Weekend-Delhi

Lake City Udaipur

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Other important landmark in Udaipur is Maharana Pratap Smarak on Moti Magri. On top of small Hill, this smarak is located, where we can go in our own vehicle. There used to be “Moti Magari” mahal built by Maharana Udaising. Light & Sound show is organised here every evening. The smarak has big statue of Maharana Pratap and a small garden surrounding it. The smarak also has one museum where different weapons and models of forts- Chittorgar, Kumbhalgar and battlefield of Haldi Ghati are depicted in nice manner.
The history of Mewar cannot be complete without the great Maharana Pratap, who never surrendered to the enemy, while other Rajput kings decided to surrender or established relation with Akbar by wedding their daughters to Akbar. But Maharana Pratap had taken oath not to live in Mahal, not to sleep on bed and not to eat in Utensils until he could free all his kingdom from enemies. He lived in forests, slept on straw bed and ate meals on hand for twenty six years. What I came to know here that Maharana Pratap used to keep two swords with him as he would never fight with anyone who did not have weapon. When local people tell the history of great Maharana Pratap, you can sense the proud feeling they have about their Maharana. Such a great feeling to witness the heritage!

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मसूरी की यात्रा मे पानी का विकराल रूप

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हरिद्वार से रूड़की के रास्ते मे पता नहीं कितनी बार हमारा रूट बदला गया, रास्तो का तो पता ही नहीं चल रहा था। लोगो के आगे पीछे चलते हुए और लोगो से पूछते हुए ही हम आगे बढ़ रहे थे। किसी तरह रूड़की पहुचे तो फिर से हमें नए रास्ते पर डाल दिया गया, उस रास्ते पर आगे गए तो फिर से गयी भैस पानी मे। आगे फिर सड़क पर पानी ही पानी दिख रहा था और बहुत सारी गाड़िया किनारे पर खड़ी हुई थी, हमने भी गाड़ी रुकवाई और पैदल ही वहा पहुचे, आगे का नजारा भी डराने वाला था। सड़क का एक हिस्सा टूट चूका था जो की बस की वजह से टूटा था और पूरी सड़क पर पानी था, वाहन ले जाते हुए लोग इसलिए डर रहे थे कि उसके वजन से सड़क धस न जाए। हमारी भी हालत ख़राब क्योकि पीछे भी रास्ता बंद और यहाँ भी कभी भी हो सकता था। उसके बाद १-२ गाड़ी वालो ने आगे निकलने का मन बना ही लिया क्योकि वहा रुकने से कोई फायदा नहीं था, अगर एक बार सड़क टूट जाती तो फिर हम कही भी नहीं जा सकते थे, उन लोगो ने पहले गाड़ी से उतरकर पैदल ही रास्ता पार किया ताकि गाड़ी का वजन कम रहे उसके बाद ड्राईवर ने अकेले गाड़ी धीरे धीरे बाहर निकाल ली, उन्हें देखकर हमने भी ऐसा ही किया और फिर से यात्रा शुरू कर दी। उसके बाद हमें इतनी दिक्कत नहीं हुई और लगभग ५ बजे हम पुरकाजी पार कर चुके थे। फिर हम कुछ खाने के लिए एक ढाबे पर रुके, वहा पर भी काफी लोग थे जो पीछे से आये थे और कुछ को हरिद्वार ही जाना था लेकिन रास्ता बंद होने की वजह से वो वही फस गए थे। एक व्यक्ति से हम मिले जिसकी पत्नी और बच्चे हरिद्वार से आ रहे थे लेकिन रास्ते मे कही फसे हुए थे और वो भी आगे नहीं जा पा रहा था, वो काफी चिंतित था। उस वक़्त हमें लगा कि अगर हम मसूरी से सुबह न निकलते या कही और रूककर और थोडा समय ख़राब कर देते तो शायद हम भी पीछे ही कही फंसे होते।

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A Weekend Trip to Agra

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Next day we checked out of hotel to visit Taj, and as we were approaching Taj Mahal, a number of people stopped our car seeing the Delhi number plate, and tried to lure us on some pretext or other. Some said, “Bauji, Taj Mahal se 4 km tak koi parking nahi hai, main apki car bhi park kara dunga aur auto se le chalunga” -“Sir, there is no parking within 4km of Taj Mahal, I will get your car parked and take you there in the auto”. We overheard all those guys and parked our car at Shilpgram parking, buy tickets from the counter, hired a battery cab in just Rs 10, that dropped us close to Taj. Battery operated cabs hop between authorized Taj parkings and Taj Mahal.

Reaching there, we were welcomed by a long queue of tourists getting restless to see one of the Seven Wonders of the World. The guards were checking the entry tickets of each visitor and randomly asking for identity proofs of tourists (There was no standard rule for checking authenticity of individuals). Soon after entering, there were rooms made of red sandstone which used to be the rooms of guest of the Shah Jahan, made in almost the same manner as the ones in Fateh Pur Sikri. After entering a huge gate, the sight of marvel made of white marble got visible. The Taj is magnificiently built structure of equal dimensions from all four side and even its distance from the mosque at both its sides are at same length. The entire dimensional symmetry of this architectural marvel is a treat for viewer’s eyes.

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सरिस्का के जंगल से भानगढ़ के रहस्यमय किले तक का सफ़र

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गाइड से पूछने पर पता चला की हाल फिलहाल तो शेर की कोई हलचल वहा नहीं दिखी है, अब हम इतनी बार जंगल जा चुके है कि एक विशेषज्ञ की तरह ही गाइड और ड्राईवर से बात करते है। तभी हमारे ड्राईवर लकी ने १-२ बिस्कुट जीप से बाहर हिरनों की तरफ फ़ेंक दिए तो हमने तुरंत उसको डांटा, वो बोला सर कोई गलत चीज़ नहीं फेंकी है, इससे क्या नुकसान होगा। हमने बोला भाई वो प्राकृतिक चीज़े खाते है उनको ये गन्दी आदत मत डालो, अगर बाद मे उनकी इच्छा फिर से ये खाने की हुई तो कहा से लायेगे, किसी हिरन की मादा ने फरमाइश कर दी कि वही वाले बिस्कुट चाहिए तो उस बेचारे हिरन की गृहस्थी ही टूट जायेगी। वैसे मजाक अपनी जगह है लेकिन जंगल मे इस तरह से कुछ भी फेंकना गलत ही है। जैसी की उम्मीद थी कि कोई शेर नहीं दिखा इसलिए हमने ड्राईवर को भी बोल दिया कि वो बाहर चल सकता है और वैसे भी समय हो ही गया था। इस समय हमारे मन मे भानगढ़ जाने की प्रबल इच्छा थी क्योकि इतना कुछ सुन रखा था इन किलो के बारे मे कि अब इन्तजार नहीं हो रहा था। बाहर आते ही हमने जिप्सी ड्राईवर को बचे हुए २० ० ० रूपये दिए और अपनी गाड़ी मे बैठ गए और लकी को भी इशारा कर दिया कि जल्दी से भानगढ़ की तरफ चले।

भानगढ़ और सरिस्का के बीच की दूरी लगभग ७०-८० किलोमीटर है, सरिस्का से आगे थानागाजी, अजबगढ़ होते हुए भानगढ़ जाया जा सकता है। अभी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं थी इसलिए हमने पहले भानगढ़ जाने का ही निश्चय किया फिर वहा से वापिस आने के बाद ही खाने के बारे मे कुछ सोचेगे वैसे भी ७०-८० किलोमीटर ही दूरी थी तो सोचा कि एक सवा घंटा ही लगेगा पहुचने मे लेकिन थोड़ी देर मे ही अच्छी सड़क का रास्ता खत्म हो गया और ख़राब रास्ता शुरू जो योजना थी उससे दुगना समय लगा पहुचने मे।
भानगढ़ के बारे मे कहा जाता है कि वहा की राजकुमार रत्नावती बहुत खूबसूरत थी और लोग उसके रूप के दीवाने थे, वही एक साधू भी था जो रत्नावती को बहुत चाहता था, वो साधू काले जादू मे माहिर था। एक बार राजकुमार बाजार मे इत्र खरीद रही थी तो उस साधू ने उस इत्र पर मंत्र पढ़ दिए जिससे कि वो इत्र लगाते ही राजकुमारी उसकी दीवानी हो जाए लेकिन राजकुमार इत्र देखते ही उसकी चाल समझ गयी और उसने वो इत्र की शीशी एक पत्थर पर पटक दी,

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भाग3 – चोपता से वापस नॉएडा।

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हम लोग होटल से दूसरी और जाकर सड़क से नीचे नदी के पास चले गए। ठन्डे पानी से हाथ-मुह धोकर मज़ा सा आ गया था। मुझे याद नहीं आ रहा पर हम मे से किसी ने स्नान करने की इच्छा जताई थी। वो जो भी था पागल था। बदन पर तो दो-दो जोड़े स्वेटर और ऊपर से जैकेट डाला हुआ था और पानी देख कर स्नान करने का मन हो चला था। भगवान का शुक्र है की पागल ने पागल-पंती नहीं की। हम लोगों ने नदी के पास जाकर कुछ फ़ोटो लिए। यहाँ पर हमारा अच्छा टाइम पास हो रहा था। वरना होटल के अंदर नाश्ते का इंतज़ार मे खली-पीली टाइम ही बर्बाद होता।

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विराट नगर – पांडव अज्ञातवास का साक्षी, बौद्ध साक्षात्कार का बीजक और एक झांकता मुग़ल कालीन झरोखा

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जयपुर से विराट नगर के लिए सुबह सात बजे वाली बस मैं बैठकर 9 बजे पहुँच गया। विराट नगर जाने का मेरा केवल एक ही उद्देश्य था और वो था बीजक की पहाड़ी पर बना हुआ करीब 2500 हज़ार साल पुराना बोद्ध स्तूप। यह एतिहासिक स्मारक विराट नगर बस स्टैंड से करीब ३ कि .मी की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर बने एक समतल धरातल पर स्थित है। इस पहाड़ी पर तीन समतल धरातल है। सबसे पहले वाले पर एक विशाल शिला प्राकृतिक रूप से विद्यमान है जिसका स्वरूप एक डायनासोर की तरह प्रतीत होता है।

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इन्दौर – सैंट्रल म्यूज़ियम और ज़ू दर्शन

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संग्रहालय के मुख्य द्वार से अन्दर घुसा तो देखा कि टिकट खिड़की बन्द है। मुख्य भवन के बाहर भी नाना प्रकार की सैंकड़ों मूर्तियां वहां पर सुसज्जित देख कर मैने कैमरा निकाला और बकौल नन्दन झा, न्रीक्षण-प्रीक्षण शुरु हो गया। एक सज्जन मेरे पास आकर बोले, कैमरे का टिकट ले लीजियेगा, अपना भी। अभी थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खुल जायेगा। मैने पूछा कि तब तक मैं क्या करूं? इंतज़ार करना पड़ेगा? वह बोला, “नहीं, नहीं, आराम से देखिये, जहां भी चाहें, फोटो खींचिये। मेन बिल्डिंग में भी बहुत कुछ है। रास्ता इधर से है।” धन्यवाद कह कर मैं बेधड़क इधर-उधर घूमता फिरता रहा और एक डेढ़ घंटे में पूरा संग्रहालय उलट-पुलट कर देख डाला।

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Family Trip to Mussoorie and Rishikesh (Part II)

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We also took tickets for a round trip in boat. These tickets were valid for one hour for return journey. It means we had sufficient time to bath and roam at another side of Ganga Ji. The boat took us to another bank in just few minutes. As it was Baisakhi day, a lot of people were taking bath on Eastern Ghats. We also took bath in Holy Ganga ji.

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