
सिद्धबली धाम, लैंसडौन और तारकेश्वर धाम की अप्रतिम यात्रा
बहुत दिन हुए किन्तु कहीं घूमना फिरना नहीं हो पा रहा था, आखिर होता भी कैसे क्यूंकि हमारी पांच माह की बेटी ने हमे…
Read Moreबहुत दिन हुए किन्तु कहीं घूमना फिरना नहीं हो पा रहा था, आखिर होता भी कैसे क्यूंकि हमारी पांच माह की बेटी ने हमे…
Read Moreतय कार्यक्रम के अनुसार हम तीनों ने अगले दिन गुरुवार को सुबह गार्जिया देवी के मंदिर जाने के लिए अपनी गाड़ी स्टार्ट की और आधे घंटे के भीतर हमने 10 किलोमीटर का सफ़र पूरा किया और सीधे मंदिर की पार्किंग मे जाकर गाड़ी पार्क कर दी! राम नगर से माता का मंदिर 10 किलोमीटर की दूरी पर है और रास्ता इतना मनोरम है की पूछिए ही मत! लगता है की किसी सुंदर वाटिका मे आ गये हैं!
Read Moreमेरे घुमक्कड़ सदस्यों, पिछले भाग में मैंने आपके साथ अपनी दिल्ली से कीर्तिनगर तक की यात्रा के खट्टे मीठे अनुभव साँझा किये थे, ठीक उसी प्रकार अब हम अपनी कीर्तिनगर से श्री बद्रीधाम तक की यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। तो दिनांक छब्बीस जून दो हजार अठारह को प्रातः नौ बजे नाश्ता करने के बाद हम लोगों ने अपना सामान उठाया और रिवरसाइड रिसोर्ट को अलविदा कहते हुए अपने ड्राइवर साब से गाड़ी श्री बद्रीधाम की तरफ बढ़ाने को कहा।
Read Moreऋतू का आगमन यूँ तो प्रत्येक वर्ष ही होता है, जिसके फलस्वरूप अक्सर हम सभी फिर से वापिस अपने बचपन की उन यादों को जी लेते हैं जिनमे सिवाय मौज-मस्ती और सैर-सपाटा के कुछ नहीं होता था। लगभग पूरे दो महीने तक स्कूल की छुट्टी और चारो तरफ बच्चों का शोरगुल आरम्भ। सांप-सीढ़ी, कैरम-बोर्ड, पकड़म पकड़ाई, खो-खो, कबड्डी, पहला-दुग्गो आदि जैसे खेलों को खेलते हुए दिन कैसे बीत जाते थे कुछ पता ही नहीं चलता था।
Read Moreमेले में एंट्री करते ही आपको अनायास ही दिल्ली हाट का ध्यान आता है, इस तरह का अधिकतर साजो सामान वहीँ मिलता है। वैसे एक बात और बताना चाहूंगा की इस मेले में यदि आप शुरूआती दिनों में आएंगे तो सामान कुछ अधिक कीमत पर मिलता है लेकिन अगर आप अंतिम शेष 2-3 दिनों में आएंगे तो सामान की कीमत में अच्छा खासा फर्क देखने को मिलेगा क्यूंकि विभिन्न राज्यों से आये हुए विक्रेता अपना सामान वापिस ले जाने के बदले स्टॉक क्लियर करने में ज्यादा रूचि रखते हैं। घर के लिए यदि आप फर्नीचर, चादर, वूडेन डेकोरेटिव आइटम्स आदि लेने के मूड में हैं तो सावधानी पूर्वक मोलभाव करने के बाद आगे की सोच सकते हैं अन्यथा जेब की सलामती के लिए मेरे जैसे अनारी तो कृपया दूर ही रहे। वैसे हमारा शॉपिंग वगैरह का विचार नहीं था, फिर भी एक बेडशीट, वेस्टकोट, लेडीज सूट और टॉय स्टेचू जो की हम मध्यमवर्गीय लोगों की जेब के अनुकूल थे, ले ही लिया।
Read Moreमाता के जिस स्वरूप की हम बात कर रहे है उसका थोड़ा व्याख्यान करना तो बनता है। तो प्रिय पाठकों माँ चंडी देवी का मंदिर नील पर्वत पर स्थित एक सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। कहा जाता है की आठवीं शताब्दी में प्रसिद्ध हिन्दू धर्म गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा माता की मूर्ति की स्थापना यहाँ पर की गयी थी। इस स्थान से जुडी एक पौराणिक कथा यह है की शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों, जिन्होंने इंद्रा का साम्राजय अपने अधिपत्य में ले लिया था, का वध करने के बाद माता चंडी देवी, जिनकी उत्पत्ति देवी पारवती के अंश से हुयी थी, यहाँ पर कुछ समय के लिए विश्राम करने हेतु रुकी थी।
Read Moreलगभग दो घंटो की प्रतीक्षा के बाद अंततः वो समय आ ही गया जब मे माता जी किी पिंडियो के दर्शन करने हेतु पवित्र गुफा मे प्रवेश कर रहा था. गुफा की दीवारों से रिस्ता हुआ प्राकृतिक जल जब आपके शरीर पर पड़ता है तो मानो अंतर-आत्मा तक को भीगा डालता है और जिस सच की अनुभुउति होती है वह तो अतुलनीया है. धीरे-2 मैं माता किी पिंडियो तक भी पहुँच गया जिनके दर्शन करते ही नेत्रो मे सुकुउन और मन को आराम मिल जाता है. ऐसी अदभुत शक्ति का आचमन मात्रा ही कुछ पलों के लिए हमारे मन से ईर्ष्या, राग और द्वेष जैसे दोषो को समाप्त कर देता है और बदन एक उन्मुक्त पंछी की भाँति सुख के खुले आकाश मे हृदय रूपी पंख फैलाकर हर उस अनुभूति का स्वागत करने लगता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नही की थी. मुझे स्वयं भी यह आभास हो रहा था की पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर मेरा चंचल चित्त कहीं पीछे ही छूट चुका है और निकास मार्ग तक पहुँचते-2 वो अब काफ़ी शांत व गंभीर हो गया है, लगता है मानो कुछ पा लिया हो.
माता जी के दर्शानो के उपरांत समीप ही स्थित शिव गुफा मे भी मत्था टेकने और पवित्र गुफा मे बहते अमृत जल का आचमन करने के बाद मैं बहुत देर तक माता के भवन को निहारता ही रहा और इसकी सुंदरता भी देखते ही बनती थी, शायद नवरात्रि के उपलक्षय मे इसे विशेष रूप से सजाया गया था. यह वो पल थे जब मैने स्वयं को उस गूगे के समान्तर पाया जो मीठे फल का आनंद तो ले सकता है किंतु चाहकर भी उसका व्याख्यान नही कर सकता.
तत्पश्चात मैने समीप ही स्थित सागर रत्ना मे रात्रि का डिन्नर करने के पश्चात एक दूसरे ढाबे से सुजी का हलवा लिया और एक खुले स्थान पर जाकर माता के भवन की तरफ मुख करके खड़ा हो उसे खाने लगा. यहाँ यह ज़रूर बता देना चाहूँगा की मात्र रु 20 का यह हलवा कम से कम रु 250 के भोजन से स्वादिष्ट था जो मैने सागर रत्ना मे खाया था. इस वक्त तक शाम पूरी तरह से घिर आई थी और तेज सर्द हवाओं का दौर शुरू हो चुका था. माता जी का भवन जग-मग रोशनी मे नहा रहा था और मेरा मन उन तेज हवाओं मे भी यहीं टीके रहने को आतुर था और यहाँ खड़े-2 मे जल्दी ही एक डोना गर्मागर्म हलवा और एक कप कॉफी हजम कर चुका था.
Read Moreअनायास ही मेरी नजर होटल की खिड़की से बाहर की तरफ गयी तो देखा की सभी लोग गंगा माता के मंदिर की तरफ बने घाट की सीढ़ियों पर पसर चुके थे, मतलब साफ़ है की माँ की आरती आरम्भ होने वाली है, हमने भी कमरा लॉक किये और सरपट दौड़े माता की आरती में शामिल होने को। ऑफ-सीजन होने के कारण किसी प्रकार की धक्का-मुक्की का सामना किये बगैर हमे मंदिर के पास ही आरती में शरीक होने का अवसर प्राप्त हुआ और जो दबंग पण्डे वगेरह अक्सर आपको आरती के समय दूर होने के लिए टोकते रहते थे आज वो स्वयं ही आरती की थाल हमारे हाथों में सौंप रहे थे माता की आरती उतारने को, हमें तो यकीं ही नहीं हो रहा था, खैर चलो छोडो। एक और महत्वपूर्ण बात यह थी की इस दरमियान ही मौसम भी करवट बदल चूका था और ग्रीष्म ऋतू अब शरद ऋतू का अहसास करवाने लगी थी, ऊपर से माँ गंगा की लहरों से उठती ठंडी हवाएं हमें बेबस किये जा रही थी वहीँ पर डेरा जमाये रखने को।
Read Moreमन में आज एक विशेष ऊर्जा और उमंग उमड़ रही थी जो अनायास ही मुझे पर्वतों और जंगलों की खूबसूरत दुनिया में ले जाने…
Read Moreतकरीबन तीन घंटे की स्मूथ ड्राइव के बाद आगरा शहर में दिशा निर्देशो का पीछा करते हुए हम लोग होटल मधुश्री के सामने आकर खड़े हो गए. यमुना एक्सप्रेसवे से बाहर निकल कर जब आप आगरा शहर में प्रवेश करते है तो नाक की सीध में चलते चले जाने से एत्माददुल्ला के मकबरे (किले) की तरफ जाने वाले रस्ते पर एक टी पॉइंट आता है जिसमे यह होटल बिलकुल कोने पर ही बना हुआ है और इस होटल से दो मार्ग जाते है पहला आपको रामबाग, मथुरा, दिल्ली की तरफ ले जाता है और दूसरा मार्ग एत्माददुला और ताज महल की तरफ ले जाता है। इस होटल की एक बात मुझे और अच्छी लगी की आगरा की भीड़ से आप बचे भी रहेंगे और शांति भी बनी रहेगी अन्यथा जैसे-२ आप शहर के भीतर बढ़ते चले जाते है बेतहाशा ट्रैफिक और गन्दगी के ढेर आपको परेशान करते रहते है. और एक बात जिसकी हमे बहुत आवश्यकता थी वो थी कार पार्किंग जिसका बंद गलियो वाले रास्तो पर मिलना बहुत ही कठिन कार्य लग रहा था और एक पल को तो हमे लगा की कहीं हम इस भूल भुलैया में ही घूमते हुए न रह जाये। होटल के प्रांगण में कार पार्किंग का पर्याप्त स्थान मिल जाने के कारन एक मुसीबत तो हल हो चुकी थी और अब बारी थी उस जोर के झटके की जो धीरे से लगने वाला था अर्थात कमरे का किराया। होटल के अंदर स्वागत कक्ष में उपलब्ध प्रबंधक साहब ने बताया की यह होटल अधिकतर बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही बुक रहता है जिसमे फॉरेन डेलीगेट्स आकर ठहरते है अतः आपको एक कमरा मिल तो जायेगा किन्तु चार्जेज लगेंगे पूरे पच्चीस सौ रूपए। अब मरता क्या न करता, आगरा के भीतर घुसकर ट्रैफिक से जूझने और कमरा ढूंढने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी अतः महाशय को एडवांस में रूम चार्जेज का भुगतान करने के बाद अब हम लोग निश्चिंत होकर ताज देखने के लिए अपनी आगे की योजना बनाने लगे. वैसे यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा की साफ़-सफाई और सुविधा की दृष्टि से होटल में कोई कमी नहीं थी, कार पार्किंग के अलावा अलमारी, सोफ़ा, एक्स्ट्रा पलंग, कलर टीवी, एयर कंडीशनर, संलग्नित बाथरूम, फ़ोन व् फ्री वाईफाई जैसे तमाम विकल्प मौजूद थे.
Read Moreसावन के महीने का आगमन दिल्ली में हो गया था किन्तु बारिश की बूंदो का इंतजार अब भी बाकि था, लग ही नहीं रहा था की इस बार दिल्ली में बारिश होगी भी या नहीं। आख़िरकार है तो यह दिल्ली ही न, रोजाना यहाँ वहां की खबरों को सुनते हुए यह पता चल जाता था की सलमान की एक-एक फिल्म 100 करोड़ कमा रही है किन्तु पूरी दिल्ली में 100 लीटर भी पानी बरस जाये तो गनीमत होगी।
Read Moreअब बात करते है इस्कान मंदिर की। यह मंदिर अपने आप में अत्यंत ही अनूठा है। यहाँ आपको भजन-कीर्तन मंडली के रूप में बहुत सारे विदेशी (अंग्रेज) श्रद्धालु दिखायी देते है जो हिन्दी भजनों को स्वयं गाते है और आप को मजबूर कर देते है श्री कृष्ण के रंग में रंग जाने को। विदेशी महिलाए ठेठ हिन्दुस्तानी संस्कृति में डूबी हुयी सी लगती है और इस बात का प्रमाण आपको तभी पाप्त हो जाता है जब आप उन के माथे पर लाल बिंदी, हाथो में चूडिया और शरीर पर गोपी वस्त्र देखते है। गोपी वस्त्र एक ख़ास तरह का परिधान है जो लगभग साडी का ही रेडीमेड रूप है। विदेशी पुरुष भी अपने सर के सारे बाल मुंडा कर और सफ़ेद अंगरखा पहन कर लींन है श्री कृष्ण के गुणगान मे। पाठको यह सोच कर ही मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है की विदेशी परम्परा को त्याग कर वर्षो से यह विदेशी नागरिक हमारे ही देश में हमारी ही संस्कृति की रक्षा में दिन रात लगे हुए है.
इस्कान मंदिर में कुछ पल बिताने के पश्चात अब सभी को भूख लगने लगी थी सो हमने होटल भारती में भोजन करना तय किया क्योंकि यहाँ इस होटल का नाम थोड़ा ज्यादा ही प्रसिद्द है। होटल के रेट ठीक-ठाक है किन्तु भोजन की गुणवता शायद उतनी अच्छी नही थी जितना लोगो के मुख से सुन रखा था। घूमते हुए हमें रात्रि के दस बज गए और नींद भारी आँखों से हमने अपनी धर्मशाला की तरफ रुख किया।
हमारी धर्मशाल के केयरटेकर, जो की वयवहार से बहुत ही नेक और सहायक थे ने हमें बताया की कुछ ही दूरी पर प्रेम मंदिर स्थित है जो की दर्शनीय होने के साथ ही कला की दृष्टि से अत्यंत ही मनोरम भी है। बस फिर क्या था, अगली प्रातः रविवार के दिन हम सभी निकल पड़े प्रेम मंदिर की वास्तुकला के दर्शन करने और उसके पश्चात कला के जिस रूप से हमारा साक्षात्कार हुया वह अविस्मरनीय है। मूर्ति कला और उन पर रंगों की छटा का अनूठा संगम आपको विस्मय कारी आभास करा देता है। इस मंदिर में केवल मूर्तिकला के माध्यम से ही श्री कृष्ण के जन्म से से लेकर कंस वध तक का वर्णन किया गया है जिसका कोई जवाब नही है। इस मंदिर की खूबसूरती का अंदाजा आप इन फोटो को देखकर लगा सकते है।
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