समय की सुईयां, अपनी रफ़तार से आगे सरक रही हैं, अत: रात मे एक बार दुबारा से लौटने का वादा कर, पुरकाजी से विदा लेकर हम रूढ़की की तरफ बढ़ चले | रूढ़की शहर पार करके हरिद्वार की तरफ लगभग 24 किमी दूर पीरान कलियर गाँव पड़ता है जो यदि हरिद्वार की तरफ से आया जाये तो वहाँ से 12 किमी के आसपास है | सब कुछ ठीक चलते चलते अचानक ही हमारी गाड़ी की अगली खिड़की के पावर विंडो ने काम करना बंद कर दिया | सारे यत्न करके देख लिये, शीशा बीच में ही अटका पढ़ा था, फौरन रूड़की शहर वापिस लौटकर एक कार मैकेनिक को ढूँढा, जिसने अगले दरवाजे की सारी पैकिंग वगैरह खोल कर, सिद्ध किया कि इसका प्लग खराब हो गया है, अब ये तो बड़ा और झंझट का काम था, मगर उसने किसी तरह शीशा ऊपर चढ़ा दिया और कनैक्शन हटा दिया, जिससे कोई गलती से शीशा नीचे ना कर दे, क्यूंकि शीशा एक बार नीचे उतर कर ऊपर नही जा पाता | बहरहाल, चलताऊ काम हो गया, मगर इस सब में एक महत्वपूर्ण घंटा निकल गया | लेकिन अब हम निश्चिंत होकर अपनी कार कहीं भी खडी कर सकते थे | इस अकस्मात हुये अवरोध की वजह से हमारे पीरान गाँव पहुंचते-पहुँचते, शाम की धुंधिलका छानी शुरू हो गयी थी, अब समर समय के साथ भी था, अत: रुकने की जगह सब कुछ जल्दी जल्दी करना था | तमाम तरह के झंझावातों से पार पाते हुये, आखिरकार गौधूली की बेला में हम इस गाँव में पहुंचे | बिल्कुल साधारण सा गाँव है, यूपी के तमाम दूसरे गाँवों की तरह ही, तरक्की से बिल्कुल अछूता, गाँव में अंदर की तरफ जाती कच्ची-पक्की सढ़क और दूर तक फैला मिटटी का मैदान | हाँ, गाँव के प्रवेश स्थान पर पत्थर का बना एक बड़ा सा गेट, इस गाँव की कुछ विलक्षणता की मुनादी सा करता प्रतीत होता है, मगर इतना समय नही निकाल पाये कि चंद पल रुक कर, इस गेट की फोटो उतार पाते, क्यूंकि जंग अब घड़ी की सुईओं के साथ भी थी, और इधर शाम अब अपना सुरमई रूप बदल, कालिमा की तरफ़ बड़ने को अग्रसर थी | अत: फोटो का मोह छोड़ सीधे इमाम साहब की खानकाह में सजदा करने पहुंचे | ऐसी रवायत है कि हजरत साबिर अली की दरगाह पर दस्तक देने से पहले इमाम साहब और शाह बाबा की दरगाह पर हाजिरी भरनी पडती है, और दोनों जगहें एक दूसरे से लगभग 2 किमी की दूरी पर हैं | पहले हमने यहीं इमाम साहब की दरगाह पर अपना सजदा किया और अपनी मन्नत का धागा बाँधा | बाहर सेहन में कितने ही धागे और अर्जियां लोग अपनी मनोकामनायों की पूर्ती हेतु बाँध गये थे |
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