11 Nov

हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा – २

हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा – २

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मेरा विचार था कि बुद्धा टैंपिल मेरे 1980 में देहरादून छोड़ देने के बाद अस्तित्व में आया है किन्तु जब मैने भाई से पूछा तो उसने बताया कि पहले ये इतना लोकप्रिय नहीं हुआ करता था अतः हम लोग पहले यहां आया नहीं करते थे। पिछले कुछ वर्षों से, जब से ISBT यहां पास में बनी है और इस क्षेत्र में जनसंख्या भी बढ़ गई और बाज़ार भी बन गये तो लोगों को पता चला कि ऐसा कोई सुन्दर सा मंदिर भी यहां आसपास में है। क्लेमेंटाउन में स्थित इस बौद्ध मठ के बारे बाद में मैने जानने का प्रयास किया तो इसके महत्व की अनुभूति हुई। यह मठ तिब्बत के विश्वविख्यात बौद्ध मठ की प्रतिकृति है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसके मुख्य भवन की दीवारों पर मौजूद भित्तिचित्र हैं, कलाकृतियां हैं जिनके माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन की अनेकानेक घटनाओं को अंकित किया गया है। (इनका चित्र लेना मना है)। इसका निर्माण वर्ष 1965 में हुआ बताया जाता है। लगभग पचास कलाकार तीन वर्ष तक इन दीवारों पर स्वर्णिम रंग के पेंट से कलाकृतियां बनाते रहे हैं तब जाकर यह कार्य पूरा हुआ। बहुत दूर से ही इस मंदिर का स्तूप दिखाई देता है जो 220 फीट ऊंचा है। यह जापान की वास्तुकला शैली पर आधारित है। इस मुख्य भवन में पांच मंजिलें हैं और हर मंजिल पर भगवान बुद्ध की व अन्य अनेकानेक प्रतिमायें भी स्थापित की गई हैं। यह मानव की स्वभावगत कमजोरी है कि वह जिस कला को देखकर प्रारंभ में चकित रह जाता है, बाद में उसी कला के और भी अगणित नमूने सामने आते रहें तो धीरे-धीरे उसका उत्साह भी कम होता जाता है। बहुत ज्यादा ध्यान से वह हर चीज़ का अध्ययन नहीं कर पाता। पहली मंजिल पर स्थित कलाकृतियों और प्रतिमाओं को देखने में हमने जितना समय लगाया उससे थोड़ा सा ज्यादा समय में हमने बाकी चारों मंजिलें देख लीं ! शायद इसकी एक मुख्य वज़ह ये है कि हम उन सब कलाकृतियों को समझ नहीं पा रहे थे और हमें सब कुछ एक जैसा सा लग रहा था। कोई गाइड यदि वहां होता जो एक-एक चीज़ का महत्व समझाता तो अलग बात होती।

मुख्य मंडप में से निकल कर सीढ़ियां उतर कर लॉन में आये तो बायें ओर भी एक स्तंभ दिखाई दिया। लॉन में एक धर्मचक्र स्थापित किया गया है। आपने तिब्बतियों को अपने हाथ में एक धर्मचक्र लिये हुए और उसे हाथ की हल्के से दी जाने वाली जुंबिश से निरंतर घुमाते हुए देखा होगा। वे पोर्टेबल धर्मचक्र वास्तव में इसी धर्मचक्र की अनुकृतियां हैं। इस स्तूप में लगभग 500 लामा धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। बताया जाता है कि तिब्बत के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा स्तूप है।

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A Road Trip from Delhi to Kolkata

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In an August morning of 1888, Mrs. Bertha Benz driven a distance of 106 Kms with her teenage children to visit her mother. With a maximum speed of 10 mph, it took hours for them to reach the destination and the car broke down several times during the journey. Today that road trip is recorded as the first road trip ever made by the first patented motor car ‘The Benz-Patent Motorwagen’. The car was never meant for that long trip but generated a huge publicity pioneering the journey of the automobile industry. 124 years later sitting in a Volkswagen Polo 1.6, I was driven by none other than curiosity to be a part of the road saga where it tells you stories about the ‘river of life’ and the settlements alongside when a road ends to meet another. For next couple of days I dug deep into the travelogues and road trip forums, spent a couple of sleepless nights in impatience. I recall, that was the only time I studied the map seriously as by then I realized, to make a road trip from Delhi to Kolkata through the great Grand Trunk road you need to spend more time with history than geography !

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हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा

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तो साब! ऐसे बना हमारा हरिद्वार का प्रोग्राम जिसमें मेरा कतई कोई योगदान नहीं था। घर के ताले – कुंडे बन्द कर के हम चारों अपनी बुढ़िया कार में बैठे, रास्ते में सबसे पहले पंपे पर गाड़ी रोकी, पांच सौ रुपल्ली का पैट्रोल गाड़ी को पिलाया, गाड़ी में फूंक भरी (मतलब हवा चैक कराई) और हरिद्वार की दिशा में चल पड़े! मारुति कार में और चाहे कितनी भी बुराइयां हों, पर एक अच्छी बात है! हवा-पानी-पैट्रोल चैक करो और चल पड़ो ! गाड़ी रास्ते में दगा नहीं देती !

चल तो दिये पर कहां ठहरेंगे, कुछ ठिकाना नहीं ! गर्मी के दिन थे, शनिवार था – ऐसे में हरिद्वार में बहुत अधिक भीड़ होती है। नेहा इतनी impulsive कभी नहीं होती कि बिना सोचे – विचारे यूं ही घूमने चल पड़े पर बच्चों की इच्छा के आगे वह भी नत-मस्तक थी! मन में यह बात भी थी कि अगर हरिद्वार में कोई भी सुविधाजनक जगह ठहरने के लिये नहीं मिली तो किसी न किसी रिश्तेदार के घर जाकर पसर जायेंगे! “आपकी बड़ी याद आ रही थी, कल रात आपको सपने में देखा, तब से बड़ी चिन्ता सी हो रही थी ! सोचा, मिल कर आना चाहिये!” अपनी प्यारी बड़ी बहना को छोटी बहिन इतना कह दे तो पर्याप्त है, फिर आवाभगत में कमी हो ही नहीं सकती!

कार ड्राइव करते हुए मुझे अक्सर ऐसे लोगों पर कोफ्त होती है जो ट्रैफिक सैंस का परिचय नहीं देते। मैं यह कह कर कि “इन लोगों को तो गोली मार देनी चाहिये” अपना गुस्सा अभिव्यक्त कर लिया करता हूं! बच्चे मेरी इस आदत से परिचित हैं और उन्होंने अब इसे एक खेल का रूप दे दिया है। जब भी सड़क पर कुछ गलत होता दिखाई देता है तो मेरे कुछ कहने से पहले ही तीनों में से कोई न कोई बोल देता है, “आप शांति से ड्राइव करते रहो! गोली तो इसे हम मार देंगे।” मुझे भी हंसी आ जाती है और गुस्सा काफूर हो जाता है।

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The Untouched beauty of Kerala – Athirapally and Vazahal waterfall

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We were enjoying our car ride on this wonderful route. Then after one hour or so our driver took a turn and we reached at one beautiful place. The place has beautiful landscape, water bodies, small reservoir and a small tea shop and Restroom. (What I remember the place name as Nature’s Resort (but unfortunately I am unable to find this place on internet). It’s a picturesque spot and one can actually enjoy by going into water as water level is very low here.

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Motorcycle Diaries. Road to Munsiyari…here we come…

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By now, Nitin was up and ready with his arms and ammunition – the Camera! Gaurav guided him to a viewpoint they constructed right the top of the hill, located at a 5-minutes trek. Nitin came back with amazing set of images – spectacular mountain panorama of evergreen Himalayan ranges and valleys. The views of major peaks like Chaukhamba, Panchachuli, Nanda Devi, Nanda Kot, and Kedarnath are distinctly visible from there. Sitting leisurely at the camp, one couldn’t even fathom what vista laid just a five-minute trek ahead! This was a clear sky day, which offered a 180-degree Himalayan view. I must share with all readers here that such vast panoramic view can been seen only from Binsar and Kausani in Uttarakhand. In fact, there is a location called the ‘Zero Point’ here, which offers amazing views of the magnificent range. Binsar also offers an excellent view of Almora town.

As we sipped the superbly made herbal tea, prepared from the herbs grown in-house, Gaurav helped us with sourcing five litres of petrol from Almora through his contacts. This was done as the next filling-station was at Berinag, another 65kms ahead. Since we rode almost 430kms on day one, I didn’t want to take risk of running on an empty fuel tank in case of any exirgency.

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Trip to Haridwar By Car from Delhi

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There are many small but good restaurants are there. We decided one Punjabi Restaurant in front of Jai Gurudev Ashram and enjoyed our meal there. In the evening we went towards local temple and visit Chandi Devi Mandir. We hire Auto which is famous with the name Vikram, as the Auto is from Vikram company. We have to change the second auto from the main raod intersection towards Chandi Devi. Their we have to pay the entrance fee and Cable Car fee. We rach at the Mandir premises from where we have to stand in the line to board the cable car as the Mandir is situated at the top of hill. It was a breath stiopping moment at the top of hill. Akmost the whole Haridwar city and river ganga basin is visible from there. We participated in the evening puja there and fed some chanas to monkey. Here monkeys are very naughty, they snatch the eatable items from the visitors.

After darshan we returned back to Har Ki Pauri and attended Evening Pooja there. Har ki Pauri was very crowded and it was very risky with kids to go near the ghats. So we decided to view the prayer from the foot over bridge and after prayer plan to visit the Ganga river from the close. Evening prayer and the environment were very devotional. Many persons on the foot over bridge start chanting Gangaji Aarti. After end of the prayer much priest start moving towards crowd with Aarti Jyot and every one get a chance to take the arti darshan from the close.

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अमृतसर में अटारी – वाघा बार्डर

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हम जब शाम को पांच बजे स्वर्ण जयंती द्वार पर पहुंचे तो सारी बैंच पूरी तरह से ठसाठस भरी हुई थीं।  जब मैने द्वार पर खड़े बी.एस.एफ. के अधिकारी को प्रेस पास दिखाया और कहा कि मुझे आगे जाने दें तो उन्होंने वी.आई.पी. लाउंज के लिये प्रवेश द्वार 3 की ओर इंगित किया और कहा कि आप वहां कोशिश करें।  मैं उधर भागा पर वहां कोई सुनवाई नहीं हुई !  वहां विदेशियों और कुछ वी.आई.पी. महिलाओं, युवतियों और बच्चों को जाने दिया जा रहा था।  अतः फिर वापिस भागा और स्वर्ण जयंती द्वार की सीढ़ियां चढ़ कर वहां पहुंचा जहां पहले ही मानों पूरा हिन्दुस्तान आकर सीटों पर जमा हुआ था।  अपने कैमरे के लिये मुझे जो सर्वश्रेष्ठ स्थान उपलब्ध हो सका वहां जाकर मैं खड़ा होगया।  बड़ा ही मजेदार दृश्य सामने था।  स्वर्ण जयंती द्वार से लेकर पाकिस्तान वाले द्वार तक तिरंगा झंडा हाथ में लेकर भागते हुए जाने और वापिस आने के लिये महिलाओं की लाइन लगी हुई थी।  उनको बी.एस.एफ. के इस अभियान के संयोजक एक अधिकारी तिरंगे झंडे देते थे और भागने का इशारा करते थे।  युवा, प्रौढ़ और यहां तक कि वृद्ध महिलाएं भी बड़े उत्साह से तिरंगा हाथ में लेकर पाकिस्तान की सीमा तक भागती हुई जाती थीं और फिर वापस आती थीं।  हज़ारों की संख्या में दर्शक गण भारत माता की जय, वंदे मातरम्‌,  हर-हर, बम-बम नारे लगा कर उनका उत्साह-वर्धन कर रहे थे।  दर्शकों के उत्साह का आलम कुछ ऐसा था मानों वह वृद्ध महिला नहीं बल्कि पाकिस्तान के बैट्समैन को आउट करने के लिये भारतीय क्रिकेट टीम का बॉलर दौड़ रहा हो। पन्द्रह मिनट तक यह कार्यक्रम चलता रहा फिर महिलाएं, युवतियां और स्कूली बच्चे डांस करने के लिये अपनी अपनी सीट छोड़ कर सड़क पर उतर आये।  पन्द्रह मिनट तक धुआंधार कमर मटकाई गईं और जनता गला फाड़ – फाड़ कर अपने उत्साह का प्रदर्शन करती रही।  सबसे मजेदार बात ये थी कि पाकिस्तान वाले गेट के उस पार भी एक स्टेडियम नज़र आ रहा था जहां तीस-चालीस दर्शक बैठे हुए दिखाई दे रहे थे।  इस ओर हज़ारों दर्शकों का अदम्य उत्साह, नारेबाजी और कान के पर्दे फाड़ देने लायक शोर और उधर केवल मात्र तीस – चालीस दर्शक! अब अगर ऐसे में पाकिस्तानी हुक्मरान डिप्रेशन का शिकार न हों तो क्या हों? मुझे तो लग रहा था कि पाकिस्तान वाली साइड में बैठे दर्शकों का भी मन कर रहा होगा कि हिन्दुस्तान वाला कार्यक्रम देखें पर अनुमति न होने के कारण मन मसोस कर रह जाते होंगे।

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Motorcycle Diaries. Road to Munsiyari…Ride to Binsar

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Well, I must share that I have travelled on some very lonely stretches; this was proved to be the scariest of all. Completely dark it was, we brothers rode our bikes non-stop in the only source of lights – the bikes’ headlights! This was a typical forest track, and rains made it all the more difficult to negotiate the ride. We stopped several times to check the signal of the phone – no respite. What made us ride ahead in this pitch dark jungle located upon the mounts in the dead of rainy night was the my belief/experience – people in hills don’t lie! After all, the guard had said that the forest track would end in 13kms and route to Dhaulchhina would emerge!

Bang on right he was! Just as my bike’s meter clocked 13kms, we came out to a neat tarmac. By now, we were completely drenched and shivering. And it didn’t help that there weren’t any signage that could guide us to either left or right. Fortunately, mobile phone’s signals were back and we called the Camp to locate the address.

30minutes later, amidst heavy rains, we arrived at Dhaulchhina, a hamlet where Binsar Eco Camp was located above a hillock.

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Lucknow Lights

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Two centuries ago when the Nawabs were driving around in their horse drawn buggies they would give way of right to the horse drawn buggy of the fellow Nawab, both on their way to Hazratganj for shopping. This was perfectly normal in the true spirit of Pehle Aap (after you) culture of Lucknow. After all, that was the era of leisure, languidness and laid back, aptly depicted in Satyajit Ray’s ‘Shatranj ke Khiladi’.

Times have definitely changed now. Goons – elected or otherwise – sitting in their Endeavours, with number plates emblazoned with their self-christened designations, pressure horns on full blast, bulldoze their way through the crowded streets. Of course the number plates do not carry registration numbers and the horn has to sound the loudest. Few moments caught in this decibelly deafening din will bring in the worst headache and probably convulsions. Guantanamo Bay authorities could play this cacophonic recording and the Al-Qaeda inmates would start singing like canaries instead of paying royalties to music companies for playing their metal rock.

You are startled and jump off the street when you hear a truck horn, only to see a motorcycle whizz past you. In Punjab, your vehicle needs to be shod with the flashiest alloys. In Lucknow, people get turned on by going sadistic on your ears. It is auditory mayhem on the roads.

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धनोल्टी , सहस्त्रधारा ,ऋषिकेश और फिर हरिद्वार

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रात की नीरवता मे गंगा की लहरो की तट की पैकडियो से टकराने की आवाज आ रही थी. इसी बीच मेरी श्रीमती जी ढुढती हुई आ गयी. आते ही बोली यहाँ कहाँ लेटे हो, मै बोला क्या करू यहाँ पर ठंडक है इसलिये इन सबके साथ यहीं लेट गया हूँ पर नींद तो आ नही रही है. बोली चलो बस मे ही आरम करना. यहाँ के ठंडे फर्श पर लेटे रहे तो कमर अकड जायगी. अब मुझे लगा, इससे तो अच्छा वापस दिल्ली चलते हैं, यहाँ परेशन होने से क्या फायदा. इतनी रात मे भी कई लोग गंगा नहा रहे थे. मैने गंगा का जल अपने उपर छिड़का और बस मे पहुंचकर जब सबसे वापस दिल्ली चलने के लिये कहा तो कुछ लोग बोले जब इतना परेशान हो ही चुके हैं तो अब कल गंगा नहाकर ही चलेंगे. मैने कहा ठीक है जैसी तुम सबकी मर्जी. बस मे बैठे हुए पता नही कब नींद लग गयी. दिन निकल आने के बाद ही नींद खुली.

अब सभी हर की पोड़ी पर चल दिये. तभी हमारे साथ के मनोज जी हर की पोड़ी के सामने बने धर्मशाला मे दो कमरे तय कर आये. बोले 500-500 रुपये मे मिल रहे हैं लेना है. मैने कहा ले लो भई थोड़ी देर के लिये ही सही बरसात के करण गंगा का पानी मटमैला था कुछ लोग नखरे करने लगे. पर बाकी सभी ने तो गंगा मे ढंग से स्नान किया. . नहा कर तैयार होने मे ही सभी को दस बज गये. अब भी कुछ एक तैयार नही हुए थे, मैने कहा मै तो नाश्ता कर के बस मे बैठने जा रहा हूँ तुम सब लोग भी जल्दी से आ जाओ. जब इतने सारे लोग होते हैं तब सारे अपनी- अपनी मर्जी चलाते हैं. करीब 12 बजे बस मे पहुंचे. अब वापस दिल्ली लौटना था.

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