04 Apr

हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा – २

हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा – २

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मेरा विचार था कि बुद्धा टैंपिल मेरे 1980 में देहरादून छोड़ देने के बाद अस्तित्व में आया है किन्तु जब मैने भाई से पूछा तो उसने बताया कि पहले ये इतना लोकप्रिय नहीं हुआ करता था अतः हम लोग पहले यहां आया नहीं करते थे। पिछले कुछ वर्षों से, जब से ISBT यहां पास में बनी है और इस क्षेत्र में जनसंख्या भी बढ़ गई और बाज़ार भी बन गये तो लोगों को पता चला कि ऐसा कोई सुन्दर सा मंदिर भी यहां आसपास में है। क्लेमेंटाउन में स्थित इस बौद्ध मठ के बारे बाद में मैने जानने का प्रयास किया तो इसके महत्व की अनुभूति हुई। यह मठ तिब्बत के विश्वविख्यात बौद्ध मठ की प्रतिकृति है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसके मुख्य भवन की दीवारों पर मौजूद भित्तिचित्र हैं, कलाकृतियां हैं जिनके माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन की अनेकानेक घटनाओं को अंकित किया गया है। (इनका चित्र लेना मना है)। इसका निर्माण वर्ष 1965 में हुआ बताया जाता है। लगभग पचास कलाकार तीन वर्ष तक इन दीवारों पर स्वर्णिम रंग के पेंट से कलाकृतियां बनाते रहे हैं तब जाकर यह कार्य पूरा हुआ। बहुत दूर से ही इस मंदिर का स्तूप दिखाई देता है जो 220 फीट ऊंचा है। यह जापान की वास्तुकला शैली पर आधारित है। इस मुख्य भवन में पांच मंजिलें हैं और हर मंजिल पर भगवान बुद्ध की व अन्य अनेकानेक प्रतिमायें भी स्थापित की गई हैं। यह मानव की स्वभावगत कमजोरी है कि वह जिस कला को देखकर प्रारंभ में चकित रह जाता है, बाद में उसी कला के और भी अगणित नमूने सामने आते रहें तो धीरे-धीरे उसका उत्साह भी कम होता जाता है। बहुत ज्यादा ध्यान से वह हर चीज़ का अध्ययन नहीं कर पाता। पहली मंजिल पर स्थित कलाकृतियों और प्रतिमाओं को देखने में हमने जितना समय लगाया उससे थोड़ा सा ज्यादा समय में हमने बाकी चारों मंजिलें देख लीं ! शायद इसकी एक मुख्य वज़ह ये है कि हम उन सब कलाकृतियों को समझ नहीं पा रहे थे और हमें सब कुछ एक जैसा सा लग रहा था। कोई गाइड यदि वहां होता जो एक-एक चीज़ का महत्व समझाता तो अलग बात होती।

मुख्य मंडप में से निकल कर सीढ़ियां उतर कर लॉन में आये तो बायें ओर भी एक स्तंभ दिखाई दिया। लॉन में एक धर्मचक्र स्थापित किया गया है। आपने तिब्बतियों को अपने हाथ में एक धर्मचक्र लिये हुए और उसे हाथ की हल्के से दी जाने वाली जुंबिश से निरंतर घुमाते हुए देखा होगा। वे पोर्टेबल धर्मचक्र वास्तव में इसी धर्मचक्र की अनुकृतियां हैं। इस स्तूप में लगभग 500 लामा धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं। बताया जाता है कि तिब्बत के बाद यह एशिया का सबसे बड़ा स्तूप है।

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हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा

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तो साब! ऐसे बना हमारा हरिद्वार का प्रोग्राम जिसमें मेरा कतई कोई योगदान नहीं था। घर के ताले – कुंडे बन्द कर के हम चारों अपनी बुढ़िया कार में बैठे, रास्ते में सबसे पहले पंपे पर गाड़ी रोकी, पांच सौ रुपल्ली का पैट्रोल गाड़ी को पिलाया, गाड़ी में फूंक भरी (मतलब हवा चैक कराई) और हरिद्वार की दिशा में चल पड़े! मारुति कार में और चाहे कितनी भी बुराइयां हों, पर एक अच्छी बात है! हवा-पानी-पैट्रोल चैक करो और चल पड़ो ! गाड़ी रास्ते में दगा नहीं देती !

चल तो दिये पर कहां ठहरेंगे, कुछ ठिकाना नहीं ! गर्मी के दिन थे, शनिवार था – ऐसे में हरिद्वार में बहुत अधिक भीड़ होती है। नेहा इतनी impulsive कभी नहीं होती कि बिना सोचे – विचारे यूं ही घूमने चल पड़े पर बच्चों की इच्छा के आगे वह भी नत-मस्तक थी! मन में यह बात भी थी कि अगर हरिद्वार में कोई भी सुविधाजनक जगह ठहरने के लिये नहीं मिली तो किसी न किसी रिश्तेदार के घर जाकर पसर जायेंगे! “आपकी बड़ी याद आ रही थी, कल रात आपको सपने में देखा, तब से बड़ी चिन्ता सी हो रही थी ! सोचा, मिल कर आना चाहिये!” अपनी प्यारी बड़ी बहना को छोटी बहिन इतना कह दे तो पर्याप्त है, फिर आवाभगत में कमी हो ही नहीं सकती!

कार ड्राइव करते हुए मुझे अक्सर ऐसे लोगों पर कोफ्त होती है जो ट्रैफिक सैंस का परिचय नहीं देते। मैं यह कह कर कि “इन लोगों को तो गोली मार देनी चाहिये” अपना गुस्सा अभिव्यक्त कर लिया करता हूं! बच्चे मेरी इस आदत से परिचित हैं और उन्होंने अब इसे एक खेल का रूप दे दिया है। जब भी सड़क पर कुछ गलत होता दिखाई देता है तो मेरे कुछ कहने से पहले ही तीनों में से कोई न कोई बोल देता है, “आप शांति से ड्राइव करते रहो! गोली तो इसे हम मार देंगे।” मुझे भी हंसी आ जाती है और गुस्सा काफूर हो जाता है।

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The Untouched beauty of Kerala – Athirapally and Vazahal waterfall

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We were enjoying our car ride on this wonderful route. Then after one hour or so our driver took a turn and we reached at one beautiful place. The place has beautiful landscape, water bodies, small reservoir and a small tea shop and Restroom. (What I remember the place name as Nature’s Resort (but unfortunately I am unable to find this place on internet). It’s a picturesque spot and one can actually enjoy by going into water as water level is very low here.

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Motorcycle Diaries. Road to Munsiyari…here we come…

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By now, Nitin was up and ready with his arms and ammunition – the Camera! Gaurav guided him to a viewpoint they constructed right the top of the hill, located at a 5-minutes trek. Nitin came back with amazing set of images – spectacular mountain panorama of evergreen Himalayan ranges and valleys. The views of major peaks like Chaukhamba, Panchachuli, Nanda Devi, Nanda Kot, and Kedarnath are distinctly visible from there. Sitting leisurely at the camp, one couldn’t even fathom what vista laid just a five-minute trek ahead! This was a clear sky day, which offered a 180-degree Himalayan view. I must share with all readers here that such vast panoramic view can been seen only from Binsar and Kausani in Uttarakhand. In fact, there is a location called the ‘Zero Point’ here, which offers amazing views of the magnificent range. Binsar also offers an excellent view of Almora town.

As we sipped the superbly made herbal tea, prepared from the herbs grown in-house, Gaurav helped us with sourcing five litres of petrol from Almora through his contacts. This was done as the next filling-station was at Berinag, another 65kms ahead. Since we rode almost 430kms on day one, I didn’t want to take risk of running on an empty fuel tank in case of any exirgency.

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Motorcycle Diaries. Road to Munsiyari…Ride to Binsar

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Well, I must share that I have travelled on some very lonely stretches; this was proved to be the scariest of all. Completely dark it was, we brothers rode our bikes non-stop in the only source of lights – the bikes’ headlights! This was a typical forest track, and rains made it all the more difficult to negotiate the ride. We stopped several times to check the signal of the phone – no respite. What made us ride ahead in this pitch dark jungle located upon the mounts in the dead of rainy night was the my belief/experience – people in hills don’t lie! After all, the guard had said that the forest track would end in 13kms and route to Dhaulchhina would emerge!

Bang on right he was! Just as my bike’s meter clocked 13kms, we came out to a neat tarmac. By now, we were completely drenched and shivering. And it didn’t help that there weren’t any signage that could guide us to either left or right. Fortunately, mobile phone’s signals were back and we called the Camp to locate the address.

30minutes later, amidst heavy rains, we arrived at Dhaulchhina, a hamlet where Binsar Eco Camp was located above a hillock.

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धनोल्टी , सहस्त्रधारा ,ऋषिकेश और फिर हरिद्वार

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रात की नीरवता मे गंगा की लहरो की तट की पैकडियो से टकराने की आवाज आ रही थी. इसी बीच मेरी श्रीमती जी ढुढती हुई आ गयी. आते ही बोली यहाँ कहाँ लेटे हो, मै बोला क्या करू यहाँ पर ठंडक है इसलिये इन सबके साथ यहीं लेट गया हूँ पर नींद तो आ नही रही है. बोली चलो बस मे ही आरम करना. यहाँ के ठंडे फर्श पर लेटे रहे तो कमर अकड जायगी. अब मुझे लगा, इससे तो अच्छा वापस दिल्ली चलते हैं, यहाँ परेशन होने से क्या फायदा. इतनी रात मे भी कई लोग गंगा नहा रहे थे. मैने गंगा का जल अपने उपर छिड़का और बस मे पहुंचकर जब सबसे वापस दिल्ली चलने के लिये कहा तो कुछ लोग बोले जब इतना परेशान हो ही चुके हैं तो अब कल गंगा नहाकर ही चलेंगे. मैने कहा ठीक है जैसी तुम सबकी मर्जी. बस मे बैठे हुए पता नही कब नींद लग गयी. दिन निकल आने के बाद ही नींद खुली.

अब सभी हर की पोड़ी पर चल दिये. तभी हमारे साथ के मनोज जी हर की पोड़ी के सामने बने धर्मशाला मे दो कमरे तय कर आये. बोले 500-500 रुपये मे मिल रहे हैं लेना है. मैने कहा ले लो भई थोड़ी देर के लिये ही सही बरसात के करण गंगा का पानी मटमैला था कुछ लोग नखरे करने लगे. पर बाकी सभी ने तो गंगा मे ढंग से स्नान किया. . नहा कर तैयार होने मे ही सभी को दस बज गये. अब भी कुछ एक तैयार नही हुए थे, मैने कहा मै तो नाश्ता कर के बस मे बैठने जा रहा हूँ तुम सब लोग भी जल्दी से आ जाओ. जब इतने सारे लोग होते हैं तब सारे अपनी- अपनी मर्जी चलाते हैं. करीब 12 बजे बस मे पहुंचे. अब वापस दिल्ली लौटना था.

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यादगार मसूरी – धनोल्टी की यात्रा

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जन्माष्टमी का दिन होने के करण मेरी श्रीमती जी ने व्रत रखा था. शाम ढल चुकी थी मैने सोंचा कुछ फल वगैरह ला दू. होटेल से बाहर आकर पूछने पर पता लगा थोड़ा सा आगे बस स्टॅंड है वहां पर फल मिल सकते हैं. थोड़ा सा आगे जाने पर भी दुकाने नही नजर आई फिर वहां से गुजरते पहाड़ी लोगो से पूछा, उनका वही जबाव , बस थोड़ा सा आगे चले जाओ. हमारे जैसे लोगो के लिये पहाड़ो पर 100-200 गज चलना ही काफी दूर हो जाता है पर पहाड़ी लोग एक किलोमीटर की दूरी भी थोड़ा सा आगे ही बताते है. जैसे-तैसे बस स्टॅंड पहुँचा. यहाँ पर केवल 2-3 दुकाने ही थी जिसमे से एक मे थोड़ी सी सब्जी, फल रखे थे. फल खरीद कर वापस लौटते समय तक शाम काफी गहरी हो गयी थी. बरसात का मौसम होने के कारण बादलो ने आस-पास का वातावरण ढक दिया था. दूर का साफ नही दिख रहा था. इस समय सड़क पर कोई चहलकदमी नही हो रही थी. मेरे आगे – आगे दो लड़के बाते करते हुए जा रहे थे अन्यथा वातावरण मे नीरवता छाई हुई थी. मै तेज कदमो से होटेल की तरफ बढ रहा था. ऐसे समय पर पुरानी बाते याद आ जाती हैं. इससे पिछले वर्ष मै मुक्तेश्वर गया था. मुक्तेश्वर उत्तराखंड मे ही एक हिल स्टेशन है. यहाँ से नेपाल की तरफ का हिमालय दिखता है. तो बात कर रहा था मुक्तेश्वर की ( बताना आवश्यक हो गया था , कई लोग मुक्तेश्वर के नाम से ग़ह्र मुक्तेश्वर समझने लगते हैं.) यहाँ मै रेड रूफ रिज़ॉर्ट मे ठहरा था. रिज़ॉर्ट के मलिक मिस्टर. प्रदीप विष्ट से बातो ही बातो मे पता लगा की शाम के समय कभी-कभी रिज़ॉर्ट के सामने ही बाघ आ जाता है. उन्होने एक बाघ की फोटो भी अपने रिज़ॉर्ट मे लगा रखी थी जो कि जाड़े के समय उनके रिज़ॉर्ट के सामने बैठा हुआ धूप सेक रहा था. उनके रिज़ॉर्ट के पास ही एक महिला को होटेल है. बताने लगे कि एक दिन शाम का अंधेरा ढल गया था, वह अपनी कार से मेरे रिज़ॉर्ट के सामने से गुजर रही थी कि तभी अचनक बाघ उनकी कार के सामने आकर खड़ा हो गया. उन्होने ने कार के ब्रेक लगाये, बाघ थोड़ी देर तक खड़ा कार को घूरता रहा फिर छलांग मार कर दूसरी तरफ चला गया. इस समय मुझे वही बात याद आ रही थी कि कहीं यहाँ पर भी अचनक बाघ आ गया तब क्या करेंगे. चलते समय होटेल वाले से पूछना भूल गया था कि इस इलाके मे बाघ तो, वह नही है. खैर रास्ते मे बाघ तो नही मिला, सकुशल होटेल पहुंच गया. अगर मिल जाता तो गया था श्रीमती जी के खाने का इंतजाम करने और बाघ के खाने का इंतजाम कर बैठता. वापस आकर पहले होटेल वाले से पूछा पता लगा यहाँ पर बाघ नहीं है.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

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धीरे धीरे चलते हुए, रुकते हुए, बैठते हुए, हम लोग उस दो राहे पर आ गए थे, जंहा से एक रास्ता  अर्ध कुंवारी की और जाता हैं. और बांये से एक रास्ता नीचे की और से माता के भवन की और जाता हैं. अर्ध कुंवारी की और से माता के भवन पर जाने के लिए हाथी मत्था की कठिन चढाई चढनी पड़ती हैं. और इधर से दूरी करीब साढ़े छह  किलो मीटर पड़ती हैं. जबकि नीचे वाले रास्ते से चढाई बहुत  कम पड़ती हैं. और इधर से माता के भवन की दूरी  करीब पांच किलो मीटर पड़ती हैं.  अर्ध कुंवारी माता के भवन की यात्रा में ठीक मध्य में पड़ता हैं. यंहा पर माता का एक मंदिर, गर्भ जून गुफा, और बहुत से रेस्टोरेंट, भोजनालय, डोर मेट्री आदि बने हुए हैं. यंहा पर यात्री गण थोड़ी देर विश्राम करके, गर्भ जून की गुफा, व माता के दर्शन करते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं. पर हम लोग नीचे के रास्ते से जाते हैं, और वापिस आते हुए माता के दर्शन करते हैं. ये कंहा जाता हैं की माता वैष्णो देवी इस गुफा में नो महीने रही थी, और गुफा के द्वार पर हनुमान जी पहरा देते रहे थे. भैरो नाथ माता को ढूँढता घूम रहा था, और माता इस गुफा से निकल कर आगे बढ़ गयी थी.

हम लोग नीचे वाले रास्ते से आगे बढ़ गए थे. मौसम फिर से  खराब होना शुरू हो गया था. माता के भवन की यात्रा के मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूर पर टिन शेड बने हुए हैं. जिनमे मौसम खराब होने पर व बारिस होने पर रुक सकते हैं. बारिश होने से हम लोग भी एक टिन शेड में रुक गए थे.

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अमृतसर यात्रा – स्वर्ण मंदिर दर्शन

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तो साहेबान, अपुन अपने दोनों बैग पैक करके (एक में कपड़े, दूसरे में लैपटॉप व कैमरा) नियत तिथि को नियत समय पर नियत रेलगाड़ी पकड़ने की तमन्ना दिल में लिये स्टेशन जा पहुंचे।  ये नियत तिथि, नियत समय, नियत रेलगाड़ी सुनकर आपको लग रहा होगा कि मैं जरूर कोई अज्ञानी पंडित हूं जो यजमान को संकल्प कराते समय “जंबू द्वीपे, भरत खंडे, वैवस्वत मन्वन्तरे, आर्यावर्त देशे” के बाद अमुक घड़ी, अमुक पल, अमुक नगर बोल देता है।  हमारे वातानुकूलित कुर्सीयान में, जो कि इंजन के दो डिब्बों के ही बाद में था, पहुंचने के लिये हमें बहुत तेज़ भाग दौड़ करनी पड़ी क्योंकि किसी “समझदार” कुली ने हमें बताया था कि C1 आखिर में आता है अतः हम बिल्कुल प्लेटफॉर्म के अन्त में खड़े हो गये थे।  जब ट्रेन आई और C1 कोच हमारे सामने से सरपट निकल गया तो हमने उड़न सिक्ख मिल्खासिंह की इस्टाइल में सामान सहित ट्रेन के साथ-साथ दौड़ लगाई।  परन्तु अपने कोच तक पहुंचते पहुंचते हमारी सांस धौंकनी से भी तीव्र गति से चल रही थी। हांफते हांफते अपनी सीट पर पहुंचे तो देखा कि हमारी सीट पर एक युवती पहले से ही विराजमान है।  तेजी से धकधका रहे अपने दिल पर हाथ रख कर, धौंकनी को नियंत्रण में करते हुए उनसे पूछा कि वह – मेरी – सी – ट पर – क्या – कररर – रररही – हैं !!!  उनको शायद लगा कि मैं इतनी मामूली सी बात पर अपनी सांस पर नियंत्रण खोने जा रहा हूं अतः बोलीं, मुझे अपने लैपटॉप पर काम करना था सो मैने विंडो वाली सीट ले ली है, ये बगल की सीट मेरी ही है, आप इस पर बैठ जाइये, प्लीज़।

मैने बैग और सूटकेस ऊपर रैक में रखे और धम्म से अपनी पुश बैक पर बैठ गया और कपालभाती करने लगा। दो-चार मिनट में श्वास-प्रश्वास सामान्य हुआ और गाड़ी भी अपने गंतव्य की ओर चल दी।  मिनरल वाटर वाला आया, एक बोतल ली, खोली और डेली ड्रिंकर वाले अंदाज़ में मुंह से लगा कर आधी खाली कर दी!  बीच में महिला की ओर गर्दन एक आध बार घुमाई तो वही सिंथेटिक इस्माइल!  मैने अपना बैग खोल कर उसमें से अंग्रेज़ी की एक किताब निकाल ली ! (बैग में यूं तो हिन्दी की भी किताब थी पर बगल में पढ़ी लिखी युवती बैठी हो तो अंग्रेज़ी की किताब ज्यादा उपयुक्त प्रतीत होती है।) किताब का टाइटिल “Same Soul Many Bodies” देख कर वह बोली,

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Trip to Kaudiyala

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All of us were full of excitement and adventure and thrill, this was an out of the world experience , now thrill doesn’t stop here, our trainer told that before we reach a cliff for cliff jumping we all will jump in river when he will ask to do. As soon as the last rapid came , he asked us to jump and we did, what a thrill……and excitment, chilled water and strong flow of water, but we are holding a rope tied with raft and floated with raft for 2-3 kms.

Everything stablised once we reached for cliff jumping, this was a jump from approx 30 feet height again a great thing to do. Finishing off just stopped before Rishikesh, came out of river , completely exhausted so had lemon water to claim our energies back. Took a local bus to reach Shivpuri where our vehicle was waiting.

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A trip to Kasauli and Baru Sahib on bike

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Got up at 7.30 AM. Checked the engine oil in our bikes and found that engine oil level in Hunk was very low. Asked the locals about any spare parts shop around and got to know that we can find one in Dharampur. Started our bikes again at 9.30 AM and moved on to see the very famous ‘Monkey Point’. Harmeet’s Hunk was loaded with 3 heavy bags as he had plans to stay at Baru Sahib. We reached Monkey point and got to know that we will have to trek and bags were not allowed. There was no place available where could keep our bags so had to drop the plan for ‘Monkey Point’. After that, we reached ‘Sunset point’. It was really an amazing place with a lot of breathtaking views. It was greenery all around and completely quiet place. Just the sound of birds. Just feel the fresh air and feels like you are in heaven. It was a very nice experience. After spending some time, enjoying the beauty of nature, we went to the market to have lunch. Had Chinese food at a shop but the food we had there was pathetic. I never had such food in my life. We left from there and decided to go to Shimla and then Kufri from there. Left from Kasauli at 3 PM. While on our way back, I started feeling sick and suffered from indigestion and gastric problems due to the food that we had. Reached Solan as Harmeet had to buy engine oil for his Hunk. Got the engine oil from Chambaghat near Solan. I was still not feeling well. Took a tablet of Pantop-D and we then decided to go to Baru Sahib due to health issues. Way to Baru Sahib was the worst one. Baru Sahib is located 70 kms away from Solan.

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Venice Calling

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While my son followed the boatman’s song with “row row row your boat”-my daughter’s lively imagination propelled her to the way people in the olden times. The gondola swerved into smaller water channels, compressed by the rows of houses projecting on either side. The balconeys of most houses were decorated by a riot of colorful flowers. I imagined fair maiden peeping out of the balcony, glancing shyly at the boatman who had purposefully directed his boat there-to glance at lady of his heart…hmmm I know too vivid imagination-but that’s was just the Gondola ride playing tricks on my mind.

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