Madhya Pradesh

Madhya Pradesh, literally meaning the central region is often known as the heart of India. Endowed with rich and diverse forests, Madhya Pradesh is a reservoir of Biodiversity, the home to National parks and Natural Reserves and a watershed of a number of rivers including the Narmada and the Tapti. Madhya Pradeshs Natural Heritage welcomes visitors to nine national parks including Bandhavgarh National Park, Kanha National Park, Waterfalls at Jabalpur, beautiful forest Eco systems and Natural Reserves such as Amarkantak, Bagh Caves and Pachmarhi Biosphere Reserve.
The cultural heritage of many religions is well represented in this predominantly Hindi speaking state. Innumerable monuments, exquisitely carved temples, stupas, forts and palaces on hilltops bring to mind visions of empires and kingdoms, of the great warriors and builders, poets and musicians, saints and philosophers; of Hinduism, Buddhism, Jainism and Islam. Some are the Lakshmana Temple, Devi Jagdambi Temple, The Sanchi Stupa and Masoleum on the banks of the Betwa River. The Khajuraho Group of monuments along with Buddhist Monuments at Sanchi and Rock Shelters of Bhimbetka are among declared UNESCO World Heritage Sites.
Madhya Pradesh has an extensive railway network and a good road network connecting almost all parts of the state. The state has two international airports, one in Indore and another in the state capital Bhopal and three domestic airports at Gwalior, Khajuraho and Jabalpur. The climate is characterized by hot and dry summers, a varied rainy season over different parts of the state and pleasant winters.

Summer Road Trip – National Chambal Sanctuary, Morena

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We take a turn around the gardens which are alive with bird calls. The abundant peafowl with their splendid trailing tails compete with the woodpecker, kingfisher, parakeets and the babblers for our attention. Everything else takes a back seat as the children are uncomfortable in the heat of the day. When the situation does not improve till late evening and after nightfall (the ACs are not working in spite of the gensets!), we have dinner at the FRH (which is very good) and fall back to Morena for the night.

Picking up our guide at Devri, we are at the boat pool on the river by 0530hrs. The much anticipated safari is underway with all of us on the edge of our seats, craning for the first glimpse of wildlife. At that point, the sun has just risen and is casting a golden glow on the ragged ravines on the banks and the tranquil waters of the Chambal. Suddenly, the calm breaks and a gentle giant breaks the surface with an elegant roll… the Gangetic Dolphin! It is a blind creature which does all its hunting and navigation by sonar located in the bump on its head. Cameras are ready but shots are very elusive since the dolphins are very erratic sightings.

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इन्दौर – सैंट्रल म्यूज़ियम और ज़ू दर्शन

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संग्रहालय के मुख्य द्वार से अन्दर घुसा तो देखा कि टिकट खिड़की बन्द है। मुख्य भवन के बाहर भी नाना प्रकार की सैंकड़ों मूर्तियां वहां पर सुसज्जित देख कर मैने कैमरा निकाला और बकौल नन्दन झा, न्रीक्षण-प्रीक्षण शुरु हो गया। एक सज्जन मेरे पास आकर बोले, कैमरे का टिकट ले लीजियेगा, अपना भी। अभी थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खुल जायेगा। मैने पूछा कि तब तक मैं क्या करूं? इंतज़ार करना पड़ेगा? वह बोला, “नहीं, नहीं, आराम से देखिये, जहां भी चाहें, फोटो खींचिये। मेन बिल्डिंग में भी बहुत कुछ है। रास्ता इधर से है।” धन्यवाद कह कर मैं बेधड़क इधर-उधर घूमता फिरता रहा और एक डेढ़ घंटे में पूरा संग्रहालय उलट-पुलट कर देख डाला।

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रहस्यमयी नगरी – मांडू

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अल्टीमेटली हम उस भीमकाय भवन के निकट जा पहुंचे जो दूर से एक छोटा सा बुर्ज महसूस हो रहा था। वहां लिखा था – रानी रूपमती का महल ! वहां हमने थोड़ी देर तक इमली वाले ठेले पर इमली के रेट को लेकर बहस की। ये मांडू की विशेष इमली थी जिसके बारे में मुकेश ने बताया कि ये सिर्फ यहां मांडू की जलवायु का ही प्रताप है कि यहां ये इमली उगती है। मैं अपने जन्म से लेकर आज तक इमली के नाम पर अपने परचून वाले की दुकान पर जो इमली देखता आया हूं, वह तो छोटे – छोटे बीज होते हैं जिनके ऊपर कोकाकोला रंग की खटास चिपकी हुई होती है और बीज आपस में एक दूसरे से पेप्सी कलर के धागों से जुड़े रहते हैं। वह ये तो इमली के फल थे जिनके भीतर बीज होने अपेक्षित थे। बाहर से इस फल पर इतने सुन्दर रोयें थे कि बस, क्या बताऊं = एकदम सॉफ्ट एंड सिल्की ! दूर से देखो तो आपको लगेगा कि शायद बेल बिक रही है, पर पास जाकर देखें तो पता चलता है कि इमली के फल की शक्ल-सूरत बेल के फल से कुछ भिन्न है और साथ में रोयें भी हैं! जब रेट को लेकर सौदा नहीं पटा तो हम टिकट लेकर रानी रूपमती के महल या मंडप की ओर बढ़ चले जो नर्मदा नदी से 305 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मुझे किसी भी एंगिल से महल या मंडप अनुभव नहीं हुआ। अब जैसा कि पढ़ने को मिला है, ये मूलतः सेना के उपयोग में आने वाली एक मचान हुआ करती थी जिसमें मध्य में एक बड़ा परन्तु नीची छत वाला हॉल व उसके दोनों ओर दो कमरे थे। पर बाद में उसमें विस्तार करके ऊपर बुर्ज व दो गुंबद बनाये गये। ये बुर्ज वास्तव में आकर्षक प्रतीत होती है। ये सब काम सिर्फ इसलिये कराने पड़े थे चूंकि रानी रूपमती को नर्मदा नदी के दर्शन किये बिना खाना नहीं खाना होता था, अतः वह यहां से ३०५ मीटर नीचे घाटी में एक चांदी की लकीर सी नज़र आने वाली नर्मदा की धारा को देख कर संतोष कर लिया करती थीं और एतदर्थ नित्य प्रति यहां आया करती थीं। इसी कारण बाज़ बहादुर ने इसमें कुछ परिवर्तन कराकर इसे इस योग्य कर दिया कि जब रूपमती यहां आयें तो वह रानी से कुछ अच्छे – अच्छे गानों की फरमाइश कर सकें और चैन से सुन सकें। जैसा कि आज कल के लड़के – लड़कियां मंदिर में जाते हैं तो भगवान के दर्शनों के अलावा एक दूसरे के भी दर्शन की अभिलाषा लेकर जाते हैं, ऐसे ही रानी रूपमती और बाज बहादुर भी यहां आकर प्रणय – प्रसंगों को परवान चढ़ाते थे। खैर जी, हमें क्या!

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मांडू दर्शन भालसे परिवार के संग

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इस संस्कृत विश्वविद्यालय का नाम अशर्फी महल क्यों कर पड़ गया, इसके बारे में मैने दो कहानियां सुनी हैं – एक उस गाइड के मुंह से जो मुकेश भालसे ने मांडू दर्शन कराने के लिये तय किया था। उस गाइड के अनुसार, “मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम बहुत ज्यादा प्रेगनेंट थी और अशर्फी महल की सीढ़ियां चढ़ने में आनाकानी कर रही थी । इसके लिये बादशाह ने प्रत्येक सीढ़ी पर चढ़ने के लिये बेगम पर अशर्फी लुटाने का वायदा किया। अशर्फी के लालच में बेगम अपनी प्रेगनेंसी को भुला कर सीढ़ियां चढ़ती चली गई।” दूसरी कहानी आर. बी. देशपांडे अपनी पुस्तक “Glimpses of Mandu: Past and Present” में उद्धृत करते हैं, जो वास्तव में बादशाह जहांगीर की मुंह जबानी है –

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आज की शाम – मुकेश भालसे के नाम !

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सुबह शंख ध्वनि, घंटे – घड़ियाल की मंगल ध्वनि से आंख खुली तो देखा कि 7 बज रहे हैं। कविता घर में बने हुए अपने मंदिर से बाहर आ चुकी थीं और बच्चों को हिला-हिला कर जगा रही थीं कि घूमने चलना है अतः अलस त्यागो और फटाफट तैयार हो जाओ ! बच्चे पहले तो उठने के मूड में नहीं थे क्योंकि रविवार का छुट्टी का दिन था पर जब ध्यान दिलाया गया कि पिकनिक पर जाना है तो फटाफट बिस्तर में से निकल आये। शिवम्‌ को यह भी लालच दिया गया कि नीचे चल कर कार की सफाई में भी उसकी सहायता ली जायेगी। लड़कों को पता नहीं क्यों ऐसे अजीबो-गरीब कामों में बहुत मज़ा आता है। मेरे बेटे भी जब छोटे थे तो खेल – खिलौनों के बजाय प्लास, पेचकस, संडासी जैसे सामान में अधिक रुचि लेते थे।

मुकेश ने गैराज़ में से अपनी शेवरले स्पार्क निकाली और फिर शिवम्‌ के साथ एक बाल्टी पानी, कुछ अखबार और डस्टर आदि लेकर नीचे पहुंचे। मैं भी अपना कैमरा उठाने लगा तो बोले, अभी इसका क्या काम ! जाने में तो अभी दो घंटे हैं। मैने कहा कि पिकनिक तो उसी समय से शुरु हो जाती है जब हम यह निश्चय कर लेते हैं कि पिकनिक पर जाना है। उसके बाद में की जाने वाली सभी तैयारियां भी पिकनिक का अभिन्न हिस्सा हैं। कार की धुलाई – पुछाई – सुखाई सब इस अविस्मरणीय पिकनिक का अविभाज्य भाग है। इसलिये इन सब की फोटो भी जरूरी है! सब कुछ पिकनिक की भावना से करो तो हर काम में मज़ा आने लगता है। आधा घंटे तक MP 11 CC 0470 कार की मस्का पालिश की गई। फिर ऊपर आकर नहाये – धोये ! कविता तब तक धांसू वाली स्टफ्ड पूरियां और सब्ज़ी बना चुकी थीं जिनका हमने जी भर के भोग लगाया। बच्चों ने कार में सारा सामान बूट में रखा। भोले बाबा को बारंबार प्रणाम करके हम सब फ्लैट से नीचे उतर आये और मुकेश ने कार की चाबी मेरे हाथों में सौंप दी।

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इन्दौर – पैदल स्थानीय भ्रमण!

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संभवतः तीसरी मंजिल पर जाकर एक ओर खेल कूद की दुकानें और दूसरी ओर खाने पीने के रेस्तरां दिखाई दिये। जेब में हाथ मार कर देखा तो पता चला कि मेरे सारे पैसे तो होटल में ही छूट गये हैं। अब दोबारा किसी भी हालत में होटल जाने और वापिस आने का मूड नहीं था। पैंट की, शर्ट की जेब बार – बार देखी पर एटीएम कार्ड के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कैमरे के बैग की एक जेब में हाथ घुसाया तो मुड़ा तुड़ा सा १०० रुपये का एक नोट हाथ में आ गया। उस समय मुझे ये १०० रुपये इतने कीमती दिखाई दिये कि बस, क्या बताऊं ! छोले भटूरे का जुगाड़ तो हो ही सकता था। वही खा कर मॉल से बाहर निकल आया। सोचा इस बार सड़क के दूसरे वाले फुटपाथ से वापस होटल तक जाया जाये। सड़क का डिवाइडर पार कर उधर पहुंचा तो एक छोटा सा अष्टकोणीय (या शायद षट्‌कोणीय रहा होगा) भवन दिखाई दिया जिसकी छत पर एक स्तंभ भी था। सभी दीवारों पर जैन धर्म से संबंधित आकृतियां उकेरी गई थीं। यह जैनियों की किसी संस्था का कार्यालय था, जिसमें छोटे-छोटे दो कमरे बैंकों ने एटीएम के लिये किराये पर भी लिये हुए थे। एटीएम देख कर मेरी जान में जान आई और मैने तुरन्त कुछ पैसे निकाल लिये क्योंकि मेरी जेब में अब सिर्फ १० रुपये का ही एक नोट बाकी था।

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इन्दौर पहुंच गये हम!

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खाना खाने के बाद मैने तो लंबी तान ली और ये तीनों महिलाएं न जाने क्या – क्या गपशप करती रहीं। राजा की मंडी (आगरा) स्टेशन आया तो अपने घुमक्कड़ भाई रितेश गुप्ता की याद आई। उनसे सच्ची-मुच्ची वाली मुलाकात तो आज तक नहीं हो पाई पर फेसबुक पर गप-शप अक्सर ही होती रहती है। मैने उनको इस ट्रेन से जाने के बारे में सूचना नहीं दी हुई थी पर फिर भी न जाने किस आशा में, प्लेटफार्म पर उतरा, कुछ पल चहल-कदमी की और फिर वापिस ट्रेन में आ बैठा। बाहर अंधेरा होने लगा था और खिड़की से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, अतः सामने वालों पर ही ध्यान केन्द्रित किया। सोचा, बच्चों को कुछ ज्ञान की बातें बताई जायें। घुमक्कड़ का ज़िक्र शुरु कर दिया और बताया कि अगर उन्होंने वह वेबसाइट नहीं देखी तो समझो ज़िन्दगी में कुछ नहीं देखा। वहीं बैठे – बैठे रितेश, मनु, जाट देवता, डी.एल. अमितव, नन्दन, मुकेश-कविता भालसे, प्रवीण वाधवा आदि-आदि सब का परिचय दे डाला। रेलवे को भी कोसा कि लैपटॉप नहीं चल पा रहा है, वरना उनको घुमक्कड़ साइट भी दिखा डालता।

रात हुई, खाना खाया, कुछ देर किताब पढ़ी, फिर सामान को ठीक से लॉक करके और कैमरे वाले बैग को अपनी छाती से लगा कर सो गया। ग्वालियर में उतर कर अंधेरे में अपने मोबाइल से एक-दो फोटो खींचने का भी प्रयत्न किया पर कुछ बात कुछ बनी नहीं। सुबह पांच बजे आंख खुली और ट्रेन लगभग 7 बजे इन्दौर स्टेशन पर आ पहुंची।

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ओंकारेश्वर……………चलो एक बार फिर से.

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शाम करीब ७ बजे हम लोग औंकारेश्वर पहुंच गये। औंकारेश्वर में ठहरने के लिये हमेशा हमारी पहली प्राथमिकता होती है श्री गजानन महाराज संस्थान यात्री निवास, तो हमने सीधी राह पकड़ी संस्थान की और कुछ ही देर में हम संस्थान के सामने खड़े थे।

स्वागत कक्ष पर कुछ जरूरी औपचारीकतायें पुर्ण करने के बाद हमें हमारे कमरे की चाबी मिल गई। हमारा कमरा यात्री निवास नंबर ४ में था. अब चुंकी बहुत जोरों की भुख लगी थी अत:निर्णय लिया गया की सबसे पहले भोजन किया जाये। यहां यह बता देना सही रहेगा की श्री गजानन महाराज संस्थान के हर यात्री निवास में किफ़ायती दर पर भोजन की व्यवस्था होती है, चुंकी हम पहले भी श्री गजानन संस्थान (शेगांव) में रह चुके थे तथा भोजन भी कर चुके थे और वहां हमें भोजन बहुत पसंद आया था अत: हमने आज भी भोजन यहीं भोजनालय में करने का निश्चय किया और चल पड़े भोजनालय की ओर।

खाना सचमुच बड़ा स्वादिष्ट था, ३० रु. में थाली जिसमें दो सब्जी, रोटी, दाल, चावल तथा एक मिष्ठान्न के रुप में हलुवा……शुद्ध सात्वीक भोजन और हमें क्या चाहिये था? सो भरपेट करने के बाद हम लोग अपने रुम में आकर थोड़ी देर के लिये लेट गये। अब हमें ओंकारेश्वर मंदिर में शयन आरती में शामिल होना था जो की रात नौ बजे शुरु होती है. इस समय साढे आठ बज रहे थे और यही समय था शयन आरती के लिये निकलने का, अत: हम लोग मन्दीर जाने के लिये तैयार होने लगे.

चुंकि वातावरण में बहुत ठंडक थी अत: बच्चे तो इस समय बाहर निकलने में आनाकानी कर रहे थे लेकिन उन्हें हमने चलने के लिये मना ही लिया और अन्तत: हम लोग उनी कपड़े वगैरह पहनकर अपने रुम से बाहर निकल गये। बाहर सचमुच बहुत ठंड थी और हमें तो नर्मदा नदी पर बने झुला पूल से होकर ओंकारेश्वर मन्दीर की ओर जाना था जहां और ज्यादा ठंड लगने की संभावना थी।

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उज्जैन यात्रा

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अपने प्रसाद पुष्प जल को आरती के समय अपने पास ही रखे कई बार लोग पंडित और पुलिस वालो के कहने पे बहार ही चदा देते है ! हमसे भी यही गलती हुई थी लेकिन आप लोगो को सचेत करना जरुरी समझता हु !

बाबा के दर्शन करने के लिए सिर्फ २-३ मिनिट का समय मिलता है ! बाबा के दर्शन के बाद आप मंदिर के अन्दर ही बने कई और मंदिरों के दर्शन अवस्य करे ! और जिस प्रकार वैष्णु माता के लंगर में प्रसाद मिलता है उसी प्रकार महाकाल के मंदिर में भी प्रसाद के लिए एक टोकन मंदिर के अन्दर ही मिलता है एक सदस्य को सिर्फ एक टोकन ,बाबा का प्रसाद इतना स्वादिस्ट और लाजवाब होता है की बस पूछिए ही मत ! और वयवस्था तो इतनी शानदार है की तारीफे काबिल है टोकन ११ बजे से रात ८ बजे तक ही मिलता है प्रसाद में कभी रोटी ,कढी,चावल,सब्जी, मीठे चावल आदि !

मैं आप लोगो से स्पेसल आग्रह करना चाहूँगा की एक बार बाबा का प्रसाद अवस्य ग्रहण करे !

बाबा के दर्शन के बाद हम लोगो ने उज्जैन के दर्शनीय स्थलों को देखने का फैसला किया उसके लिए यहाँ कई साधन है जैसे की ऑटो , बस, वाहिनी, वेन आदि अपनी सुविधा के हिसाब से आप इनमे से कोई एक बुक कर सकते है ऑटो आपको ३०० रुपे में बुक हो जायेगा और वाहिनी और वन तक़रीबन ७०० रुपे लेंगे और बस ५० पर सवारी|

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Musical trip to Mahakal Nagri via Mecca Madina – 1

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So we entered in General coach. The train was full at 0715 hrs. First section was full of daily goers, some were reading news paper, few were sleeping and few were talking. There were few students also who were studying. The second section was full of ladies. I requested one of the ladies if she can shift and adjust us in one seat. They have shifted. So we got approximately 1.25 seat to accommodate 2.5 of us (me , my husband and my kid). Then I just turn around and was taking a glimpse of a train. It looked like as If I have rewinded my life and I had reached 10 years back when you are actually comfortable travelling in General coach. All beautiful ladies with beautiful bangles , nicely cladded saree or salwar suits , beautiful payal , toe rings etc etc. All were looking so beautiful and I was feeling jealous as my two gold bangles was nothing in front of colorful bangles. Being at Chennai Gold always means a lot here. But at Indore I was attracted towards those beautiful colorful glass bangles. Suddenly, I heard a song.

“Dheere Dheere se meri zindagi me aana, Dheere dheere se dil ko churana “..

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Timeless in Sanchi

Timeless in Sanchi

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Before the stupa, let’s dwell a little on the township itself (we are after all travelling, not just visiting a place on the tourist map). It’s a small, small place, and if you are here to stay, practically everyone will know that you have arrived before the day is out. At least that’s how it feels. If you have a white skin, you can be sure of it. And yet, unlike many other Indian places, there is no one to hassle you, with postcards to sell or hotel rooms to show. The place itself is almost Buddhist in its quietness.

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