
ढेला (कॉर्बेट) की मस्ती और रोमांच
हमें घुमते हुए वहा के गार्ड ने बोला कि सर यहाँ से बाहर मत जाइएगा, इस चारदीवारी की अन्दर ही रहना और पीछे के रास्ते से तो बाहर निकलना ही मत। हमने पुछा कि यहाँ भी डर है क्या तो उसने बोला साहब जी एक शेर तो रोज ही पीछे वाले रास्ते से जाता था और हाथी तो कई बार इन खेतो मे घुस चुके है। जोश मे तो थे ही तभी सोच लिया कि खाना खाकर एक चक्कर तो लगायेगे बाहर का। हम जल्दी से डाइनिंग रूम मे पहुचे, खाना तैयार था, दाजू ने तुरंत लड़को को परोसने का आदेश कर दिया। खाना मजेदार था। खाना खाकर हम वापिस कमरों मे आ गए और दाजू को भी अन्दर आने के लिए बोला। अन्दर आने पर हमने पूछा कि बाहर कहा तक जाया जा सकता है। वो पक्ष मे नहीं थे लेकिन हमने भी बोला कि हम अन्दर जंगल मे नहीं जायेगे सिर्फ बाहर सड़क तक तो जा सकते है और वैसे भी गाड़ी से बाहर तो निकलना नहीं था। । तब जाकर वो तैयार हुआ।
बारह से ज्यादा का समय हो रहा था और हम बाहर गाड़ी मे बैठे थे। आधा घंटा हम सड़को पर गाड़ी दौड़ाते रहे। वहा पेड़ो के बीच कच्चा रास्ता था जो दिन मे शोर्टकट के रूप में प्रयोग होता था, उस रास्ते से जब निकले तो रोंगटे खड़े हो गए बिलकुल सुनसान, सड़क भी कच्ची, डर लग रहा था कि अगर गाड़ी फस गयी तो निकालनी मुश्किल हो जायेगी क्योकि छोटी गाड़ी थी, अँधेरे मे हिरनों के झुण्ड भी दिखे जिनकी सिर्फ आखे चमक रही थी। वो अभी तक के सबसे यादगार और रोमांचक क्षण थे, शायद ऐसा रोमांच कभी जंगल मे भी नहीं आया था। प्रदीप का मन तो वापिस आने के लिए कर ही नहीं रहा था। एक बजे हम वापिस आये तो थोड़ी देर कमरों के बाहर ही बैठ गए कि कल कहा जाए। जिम कॉर्बेट के बिजरानी गेट से तो प्रवेश मिल सकता था लेकिन जो जानवर अन्दर दिखते थे वो बाहर ही दिख गए थे फिर ऐसा रोमांच भी हो गया था। इसलिए चार हजार रूपये खर्च करना अक्लमंदी नहीं लगी। प्रदीप ने बोला कि सर कल मे आपको मरचुला लेकर चलूगा, आपको जगह पसंद आएगी। मरचुला के बारे मे हमने कभी सुना नहीं था लेकिन कही तो जाना था इसलिए वही सही। जगह पक्की हो गयी तो हम भी अपने कमरों मे आ गए सोने के लिए।
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