05 May

वाटरटन नेशनल पार्क और यु.एस. बोर्डर (भाग २)

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पार्क की सुबह बहुत खूबसूरत थी. हिरण जैसे दो प्राणी घूम रहे थे. सुबह उठ कर एक चक्कर गांव का लगाता हूँ. एक दुकान खुली देख कर अंदर काफी लेने जाता हूँ, साथ ही खाने के लिए एक पेस्ट्री ले लेता हूँ. यह दुकान वाला बहुत सामान बेच रहा था. काफी, ब्रेड चोकलेट, और बहुत सा सामान. पेट्रोल पम्प भी इस दुकान वाले का ही था. साथ में साइकल भी किराये पर दे रहा था. एक साइकल का एक घंटे का किराया १० डॉलर, और हेल्मट के १० डॉलर अलग से. साथ में मोटर बाइक भी किराये के लिए थे.

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Motorcycle Diaries. Road to Ladakh…at Tso Kar

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As we entered the mountainous terrain, I observed the colour of the flowing river on our left – so different than the rivers we were used to see during this ride!
Out first break of the day was at Rumtse, the same hamlet where we stopped on our way to Leh a few days ago.
As I sat down here, I observed an acute silence amongst riders, as if all excitement had gone missing, as if we left it at Leh. There weren’t banters flowing around, no one was pushing each other, no laughter; only a passive wait…till this Ladakhi kid showed up.

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Bamsaru Khal Trek

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In the morning, view outside our tents  was spectacular. We saw snow capped Mountains all around , took some pics, but after 15-20 Min  Mist covered the valley and mountains were not visible. We were supposed to start early , but got  late, we finished our breakfast by 8:30AM and started  walking towards Gidara.

From Dayara one black dog started walking with us , we thought it will go away after sometime but it  remained  with us till the end of trek. The Dog was too hairy, and resembled a  bear , got scared of him twice, he also had a bad habit  of crossing  the path when there was a difficult climb or narrow path.

While on the trek an idea popped up that we should also visit “Dodital” ( Lord Ganeshji Birthplace ). Dodital situated at a distance of 30 km from Dayara Bugyal, is also popular among tourists. Going there meant an  extension of 2 More days , which we could not  afford. Hence all  agreed to keep walking towards Gidara.

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वाटरटन नेशनल पार्क और यु.एस. बोर्डर (भाग १)

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वाटरटन नेशनल पार्क यु.एस. के मोंटाना प्रान्त और कैनेडा के अलबर्टा प्रान्त के बोर्डर पर स्थित है. लाखों लोग यु.एस. और कैनेडा से हर साल नेशनल पार्क घूमने आते हैं. फोर्ट सस्केच्वन से वाटर टन पार्क की दूरी ६०० की. मी. है.

कैलगरी शहर के बाद सबवे पर लंच के लिए रुकते हैं. सबवे की संसार में 37,207 से ज्यादा लोकेशन हैं. भारत में 282 लोकेशन हैं. सबवे सेक्टर 15 फरीदाबाद में भी है. विदेश में शाकाहारी भोजन के लिए सबवे अच्छा आप्शन हैं. मेनू में पहले सफ़ेद या ब्राउन ब्रेड, उसके के बाद सौस, खीरा, टमाटर प्याज, शिमला मिर्च, (कच्ची कटी हुई) आदि डाल कर सब त्यार कर दिया जाता है.  भारत में यह ८० रूपये से शुरू होता है, विदेश  में ४ से ६ डॉलर का है.

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Rewalsar – A sacred confluence of multi religions

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When you come to Rewalsar, you cannot be untouched by the spiritual vibrations being reflected in every activity in this sacred land, be it the chirpings of the birds, soulful chantings from the monastery or temple or Gurubani from the Gurudwara, people feeding hungry souls in the lake, pondering monkeys over the trees, Buddhist prayer flags swirling in the air, swimming ducks in the lake, meditating and contemplating holy people on bank of the lake, the green and serene water of the lake, monks running the prayer-wheels, beautiful surrounding hills, finely ornated colourful monasteries with young monks playing around, burning oil lamps, ringing bells, cows and dogs resting near the lake, swaying trees, smiling flowers etc, whatever passes through your eyes gives you a sort of positive vibrations.

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अमरनाथ यात्रा (पहलगाम – चंदनवाड़ी – शेषनाग )

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पिस्सू टॉप की चढ़ाई वास्तव मे एक  कठिन चढ़ाई   है. घोड़े  पर बैठे हुए डर  लग रहा था. इससे  पिछले  वर्ष हम केदारनाथ यात्रा पर गये थे , वाहा 14 किलोमीटर की चढ़ाई  है, हम उस रास्ते को देख कर सोचते  थे कि कितना कठिन रास्ता है परंतु यहा तो रास्ता ही नही था रास्ते के नाम पर उबड़ -खाबड़ पगडंडी है, कई जगह पर तो ऐसा लगा की अब गिरे तो तब गिरे. सबसे बरी दिक्कत तो तब होती है जब घोड़ा पहाड़ से नीचे को उतरता  है.ऐसा लगता है , कई लोग गिर भी जाते है, पिस्सू टॉप से शेषनाग के बीच एक बहुत सुंदर झरना गिर रहा है उसके थोड़ा पहले हमे घोड़े  वाले ने उतार दिया और बताया यहाँ से लगभग 1 किलोमीटर . आगे तक पैदल चलना होगा क्योकि घोड़े  से जाने का रास्ता नही है. अब हम पैदल आगे चल दिए, रास्ते  मे वर्फ़ के  ग्लेसियार के बाद  खूबसूरत झरना बह रहा था, 

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Rejuvenating Trip to Naukuchiatal

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After a good stroll, my hunger meter was on & I enjoyed a nice buffet spread at restaurant. We went again for best spot near lake side & enjoyed the peace around the place. One shikara was approaching us & he offered us to take ride in lake. He also offered us cab service for local sightseeing. We decided to visit Sattal which was about 15-20 kms from our place. After taking a nap, we were ready to go on sightseeing, we preferred to took cab and rely on local info.

While on way to Sattal, we also explored Naldamiyanti Tal & Garuda Tal.The drive was very sceneric and Garuda tal was worth going. it was a perfect place to have a picnic or just being in lap of nature. Sattal was little commercialsed & we just spent ½ hr there.

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सिल्वन लेक और कैनेडा डे

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जुलाई 1 को कैनेडा डे मनाया जाता है और यह सार्वजनिक अवकाश होता है. मैं इस दिन सिल्वन लेक जाने का प्रोग्राम बना लेता हूँ. विशाल भी मेरे साथ था. सिल्वन लेक फोर्ट सस्केच्वन से 200 किमी है. सुबह जल्दी चल कर नाश्ते के लिए टिम होरटन पहुँच जाते हैं. टिम होरटन कैनेडा में बहुत मश्हुर है. यह कैनेडीअन का है, इस लिए अमेरिकन रेस्तराँ से ज्यादा लोकप्रिय है. फोटो में SUV ( गाड़ी ) ड्राइव थरु पर जा रही है. आप जो दो बॉक्स देख् रहें हैं, उसमें माइक और स्पीकर लगा हुआ है. चालक अपना ऑर्डर माइक पर बता देगा, जैसे ही वह खिड़की पर पहुँचेगा, उसका ऑर्डर त्यार होगा. पैसे चुका कर वह गाड़ी ड्राइव करते हुए अपना ब्रेकफास्ट एन्जॉय करेगा. पर मैं आप को काउंटर पर ले कर चलता हूँ.

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आ पहुंचे हम श्रीनगर – कश्मीर

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इस सड़क की एक और विशेषता यह है कि उस सड़क पर पर्यटकों की भरमार होने के कारण स्कूटर, मोटर साइकिल, हाथ ठेली पर ऊनी वस्त्र बेचने वाले हर रोज़ सुबह-शाम भरपूर मात्रा में दिखाई देते हैं।  रात को हम खाना खा कर लौटे तो भी वहां बहुत भीड़ लगी थी और सुबह आठ बजे तक वहां ऐसे दुकानदारों का अंबार लग चुका था।  कुछ स्कूल भी आस-पास रहे होंगे क्योंकि छोटे-छोटे, प्यारे – प्यारे, दूधिया रंग के कश्मीरी बच्चे भी स्कूली वेषभूषा में आते-जाते मिले। कुछ छोटे बच्चों को जबरदस्ती घसीट कर स्कूल ले जाया जाता अनुभव हो रहा था तो कुछ अपनी इच्छा से जा रहे थे। भारतीय सेना की एक पूरी बटालियन वहां स्थाई कैंप बनाये हुए थी। हमारे होटल के बिल्कुल सामने सड़क के उस पार सेना के सशस्त्र जवान केबिन बना कर उसमें पहरा दे रहे थे। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि यहां तो बिल्कुल शान्ति है फिर इतनी सतर्कता की क्या जरूरत है? पर जैसा कि एक सेना के अधिकारी ने मुझे अगली सुबह गप-शप करते हुए बताया कि यहां शांति इसीलिये है क्योंकि हर समय सेना तैयार है।  अगर हम गफलत कर जायें तो कब कहां से हिंसा वारदात शुरु हो  जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता।   दो दिन बाद, 18 मार्च को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच में एक दिवसीय क्रिकेट मैच था ।  हमारा ड्राइवर प्रीतम प्यारे गुलमर्ग से लौटते समय बहुत तनाव में था क्योंकि दोपहर तक पाकिस्तान का पलड़ा भारी नज़र आ रहा था।  वह बोला कि अगर पाकिस्तान मैच जीत गया तो शाम होते – होते कश्मीर की स्थिति विस्फोटक हो जायेगी । 

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जम्मू से श्रीनगर राजमार्ग पर एक अविस्मरणीय यात्रा

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ऐसे ही एक विलक्षण और ऐतिहासिक ट्रैफिक जाम में पंकज और मैं कार से उतरे और काफी आगे तक जाकर जायज़ा लिया कि करीब कितने किलोमीटर लंबा जाम है। यातायात पुलिस के सिपाहियों को जाम खुलवाने के कुछ गुरुमंत्र भी दिये क्योंकि सहारनपुर वाले भी जाम लगाने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। हम अपनी कार से लगभग १ किलोमीटर आगे पहुंच चुके थे जहां गाड़ियां फंसी खड़ी थीं और जाम का कारण बनी हुई थीं। आगे-पीछे कर – कर के उन तीनों गाड़ियों को इस स्थिति में लाया गया कि शेष गाड़ियां निकल सकें। वाहन धीरे – धीरे आगे सरकने लगे और हम अपनी टैक्सी की इंतज़ार में वहीं खड़े हो गये। सैंकड़ों गाड़ियों के बाद कहीं जाकर हमें अपनी सफेद फोर्ड आती दिखाई दी वरना हमें तो यह शक होने लगा था कि कहीं बिना हमें लिये ही गाड़ी आगे न चली गई हो। ड्राइवर ने गाड़ी धीमी की और हमें इशारा किया कि हम फटाफट बैठ जायें क्योंकि गाड़ी रोकी नहीं जा सकती। जैसे धोबी उचक कर गधे पर बैठता है, हम कार के दरवाज़े खोल कर उचक कर अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गये। पांच सात मिनट में ही पंकज का दर्द में डूबा हुआ स्वर उभरा! “मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया।“ मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि पंकज एक मिनट के लिये भी मेरी दृष्टि से ओझल नहीं हुआ था तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वह लुट भी गया और मुझे खबर तक न हुई। रास्ते में ऐसा कोई सुदर्शन चेहरा भी नज़र नहीं आया था, जिसे देख कर पंकज पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया होती। गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो पंकज भाई आंखों में ढेर सारा दर्द लिये शून्य में ताक रहे थे। उनकी पत्नी चीनू ने कुरेदा कि क्या होगया, बताइये तो सही तो बोला,

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कश्मीर चलना है क्या?

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कोच नं० C-6 में प्रवेश कर के, मेरी पत्नी ने पूछा कि कौन – कौन सी बर्थ हैं तो पंकज का जवाब आया – “20 – 21” | मैने पूछा “और बाकी दो?” पंकज ने रहस्यवाद के कवि की सी भाव भंगिमा दोनों महिलाओं की ओर डाली और मेरे कान के पास आकर धीरे से बोला, “अभी दो ही कन्फर्म हुई हैं, बाकी दो यहीं गाड़ी में ले लेंगे।“ मेरी पत्नी को हमेशा से अपनी श्रवण शक्ति पर गर्व रहा है। बात कितनी भी धीरे से कही जाये, वह सुन ही लेती हैं! इस मामले में वह बिल्कुल मेरे बड़े बेटे पर गई हैं! जब वह यू.के.जी. में पढ़ता था तो उसे घर के किसी भी दूर से दूर कमरे में पढ़ने के लिये बैठा दो पर उसे न सिर्फ टी.वी. बल्कि हम दोनों की बातचीत भी सुनाई देती रहती थी। बीच – बीच में आकर अपनी मां को टोक भी देता था, “नहीं मम्मी जी, ऐसी बात नहीं है। स्कूल में मैम ने आज थोड़ा ही मारा था, वो तो परसों की बात थी !

सिर्फ दो ही शायिकाओं का आरक्षण हुआ है, यह सुनते ही दोनों महिलाओं के हाथों के तोते उड़ गये। मेरी पत्नी तो बेहोश होते होते बची ! तुरन्त दीवार का सहारा लिया, बीस नंबर की बर्थ पर बैठी, फिर आहिस्ता से लेट गई। पानी का गिलास दिया तो एक – दो घूंट पीकर वापिस कर दिया और ऐसी कातर दृष्टि से मेरी ओर देखा कि मेरा भी दिल भर आया। पंकज की पत्नी ने भी तुरन्त 21 नंबर बर्थ पर कब्ज़ा जमाया और पंकज से बोली, “अब आप पूरी रात यूं ही खड़े रहो, यही आपकी सज़ा है। हम दोनों बेचारी शरीफ, इज्जतदार महिलाओं को धोखा देकर ले आये। हमें पता होता कि टिकट कन्फर्म नहीं हुए हैं तो घर से बाहर कदम भी नहीं रखते!”

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Canberra (Australia) Trip

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Next day was horrible, muggy and cold, suddenly temperature went down below 20C (below 5C at night). So no outdoors and we went to Australian Parliament and to Australia War Memorial which were nice places to visit and are free for public. It is great to see the history of parliament in Australia, how well it was recorded and shown to the public. On the contrary in India, it is so hard to enter the parliament and then how poorly the history is shown, goes on the show what our politicians are. You can see the chronicles of Australian politics, telling one about the constitution in the beginning and how it evolved to include the Aborigines later on. It is fascinating to see that government did apologize to the aborigines. I don’t think in India we have ever apologized to the outcast people of our society.

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