Jammu

Jammu is the winter capital of the northern-most state of India. A major part of tourism in this picturesque region set against the backdrop of the snow-capped Pir Panjal range consists of numerous shrines that attract thousands of pilgrims every year. Located at the heart of this city of temples is the Raghunath Temple dedicated to Lord Shri Rama where the inner walls are covered with gold, on three sides. The other surrounding temples are related to gods from the Ramayana. The Vaishno Devi temple is accessible from Jammu too.
Jammu has its share of historical monuments; the oldest perhaps is the Bahu Fort built by Raja Bahulochan, facing the Tawi River. It was later improved by the Dogra rulers of Jammu. The Mubarak Mandi Palace offers a fusion of architectural styles, Rajasthani, Mughal and Gothic, the most famous part of this Palace being the Sheesh Mahal segment. The Dogra Art Museum is a treasure house of miniature paintings from various hill schools.
Those with adventure in mind could head towards Sanasar for Paragliding, Camping, Trekking, Abseiling, Rock Climbing and scenic nature walks. Nowadays there is inclination towards promoting Eco tourism that is environmentally and socially responsible. In simple words, to leave the places one visits, better than one found it.
Jammu is connected by railways and road to the rest of the country.
Best time to visit: September to March
Languages spoken: Dogri
Climate: Pleasant summers and very cold winters with snowfall
Holy Places: Vaishno Devi, Raghunath Temple, Shahdra Sharif Shrine, Ranbireshwar Temple, Peer Kho Temple, Panjbakhtar Temple

Natural Wonders: Patnitop Hill Station, Poonch Valley
Historical sites: Punj old fort, Bhimgarh Fort, Ramnagar fort
Adventure tourism: Paragliding, Camping, Trekking, Abseiling, Rock Climbing

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ७ ( जम्मू – JAMMU – २)

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रघुनाथ मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू शहर के मध्य में स्थित है। यह मंदिर जम्मू कि पहचान हैं.यह मन्दिर आकर्षक कलात्मकता का विशिष्ट उदाहरण है। रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख एवं अनोखे मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को सन् 1835 में इसे महाराज गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया पर निर्माण की समाप्ति राजा रणजीत सिंह के काल में हुई। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है।

इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं। रघुनाथ मन्दिर में की गई नक़्क़ाशी को देख कर पर्यटक एक अद्भुत सम्मोहन में बंध कर मन्त्र-मुग्ध से हो जाते हैं।यह कहा जाता हैं कि मंदिर में तैंतीस करोड देवी देवताओं कि स्थापना हैं.  मंदिर का मैं केवल बाहर से ही चित्र दे पा रहा हूँ. अंदर के फोटो लेना वर्जित हैं.

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Here I come

Aadmi Musafir Hai (part 2)

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Remember the song “AADMI MUSAFIR HAI AATA HAI JAATA HAI” from movie Apnapan picturized on Sudhir Dalvi and that unknown girl in the bus en-route to Srinagar. The verses contain a philosophical message but in the language of common man which was forte of Anand Bakshi Sahib. As our vehicle moved towards Srinagar it seemed to me that a dream shall be chased in a few hours but the destination was quite far away.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

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मुबारक मंडी पैलेस

मुबारक मंडी महल की वास्तुकला में राजस्थानी , मुग़ल और यूरोपीयन शैली का समन्वय देखा जा सकता है। इस महल का इतिहास लगभग 150 वर्ष पुराना है। यह महल डोगरा राजाओं का शाही आवास था। इस स्थान पर हम लोग समय अभाव के कारण जा नहीं पाए थे. यह फोटो मैंने दूर से बागे बाहू से लिया था. 

बाहू के किले में माता के दर्शन करने के बाद, वंहा से निकल कर यंहा से नीचे की और बने मछली घर और बागे बाहू गार्डन की और आ जाते हैं. मछलीघर एक शानदार एक्वेरियम बना हुआ हैं. जो की जमीन के नीचे हैं.  इसका प्रवेश द्वार एक बड़ी मछली  के रूप में बना हुआ हैं. यंहा पर दुनिया में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मछलियों को प्रदर्शित किया गया हैं. यंहा पर भी फोटो खींचना निषेध हैं.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

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हम लोग करीब नो बजे कटरा से १७ किलोमीटर का सफर तय करके बाबा धनसर पहुँच जाते हैं. सड़क से करीब २०० मीटर  पैदल उतराई करके हम लोग बाबा धनसर के धाम पहुँच जाते हैं. यह क्षेत्र बहुत ही सुरम्य स्थान पर पहाडियों के बीच जंगल से घिरा हुआ हैं. एक छोटी सी झील हैं जिसमे एक झरना लगातार गिरता रहता हैं. एक और एक गुफा बनी हुई हैं जिसमे शिव लिंगम के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं. झील में कहा जाता हैं की साक्षात् शेषनाग वासुकी विराज मान हैं. यंही पर ही उनका एक मंदिर भी बना हुआ हैं.पौरौनिक विश्वास हैं की जब भगवान शिव, माता पार्वती के साथ, उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ  जी की गुफा की और जा रहे थे, तब भगवान शिव ने अपने नागराज वासुकी को यंही पर छोड़ दिया था. नागराज वासुकी एक मनुष्य के रूप में यंही पर रहने लगे थे. उनका नाम वासुदेव था. बाबा धनसर इन्ही वासुदेव के पुत्र थे. कंही से एक राक्षस यंहा पर आ गया था. और इस क्षेत्र के लोगो को परेशान करने लगा था. तब बाबा धनसर ने भगवान शिव की तपस्या की थी. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यंहा पर उस राक्षस का संहार किया था. बाबा के आग्रह पर भगवान शिव यंही पर विराजमान हो गए थे. यंहा पर स्थित झील पवित्र मानी जाती हैं. एक  झरना लगातार प्रवाहित होता रहता हैं. इस झील में नहाना शुभ नहीं माना जाता हैं. कभी कभी इस झील के स्वच्छ जल में नागों की आकृति भी दिखाई देती हैं. हर वर्ष यंहा पर, महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव और धनसर बाबा की याद में एक वार्षिक महोत्सव व मेले का आयोजन होता हैं .

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

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धीरे धीरे चलते हुए, रुकते हुए, बैठते हुए, हम लोग उस दो राहे पर आ गए थे, जंहा से एक रास्ता  अर्ध कुंवारी की और जाता हैं. और बांये से एक रास्ता नीचे की और से माता के भवन की और जाता हैं. अर्ध कुंवारी की और से माता के भवन पर जाने के लिए हाथी मत्था की कठिन चढाई चढनी पड़ती हैं. और इधर से दूरी करीब साढ़े छह  किलो मीटर पड़ती हैं. जबकि नीचे वाले रास्ते से चढाई बहुत  कम पड़ती हैं. और इधर से माता के भवन की दूरी  करीब पांच किलो मीटर पड़ती हैं.  अर्ध कुंवारी माता के भवन की यात्रा में ठीक मध्य में पड़ता हैं. यंहा पर माता का एक मंदिर, गर्भ जून गुफा, और बहुत से रेस्टोरेंट, भोजनालय, डोर मेट्री आदि बने हुए हैं. यंहा पर यात्री गण थोड़ी देर विश्राम करके, गर्भ जून की गुफा, व माता के दर्शन करते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं. पर हम लोग नीचे के रास्ते से जाते हैं, और वापिस आते हुए माता के दर्शन करते हैं. ये कंहा जाता हैं की माता वैष्णो देवी इस गुफा में नो महीने रही थी, और गुफा के द्वार पर हनुमान जी पहरा देते रहे थे. भैरो नाथ माता को ढूँढता घूम रहा था, और माता इस गुफा से निकल कर आगे बढ़ गयी थी.

हम लोग नीचे वाले रास्ते से आगे बढ़ गए थे. मौसम फिर से  खराब होना शुरू हो गया था. माता के भवन की यात्रा के मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूर पर टिन शेड बने हुए हैं. जिनमे मौसम खराब होने पर व बारिस होने पर रुक सकते हैं. बारिश होने से हम लोग भी एक टिन शेड में रुक गए थे.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

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दर्शनी द्वार के बाद और बाण गंगा से पहले एक दीवार पर माता वैष्णो देवी की यात्रा का पूरा नक्शा बनाया हुआ हैं. हम लोग पवित्र बाण गंगा पर पहुँच जाते हैं. बहुत से लोग यंहा पर स्नान करके आगे बढते हैं. हमने भी अपने हाथ, पैर, मुह धोया. माना यह जाता हैं की माता वैष्णोदेवी जब भैरो  देव से छिप कर के आगे बढ़ रही थी तो हनुमान जी भी उनके साथ साथ थे. हनुमान जी को बड़ी जोर की प्यास लगी, उन्होंने मैय्या से कंहा, माता मुझे बड़ी जोर की प्यास लगी हैं. माता ने अपने धनुष बाण के एक तीर को चलाकर के धरती से एक जल का एक स्रौत उत्पन्न किया. उस जल से ही हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई. इसी जल के स्रौत को ही बाण गंगा कहा जाता हैं. बाण गंगा की जल में अनगिनत सुन्दर मछलिया भी तैरती रहती हैं. बहुत से श्रद्धालु उन्हें आटे की गोलिया खिलाते हैं. बाण गंगा का निर्मल शीतल जल बहुत ही स्वच्छ दीखता हैं, ऐसा लगता हैं की जैसे दूध की नदी बह रही हो.

आप लोग देखियेगा, कितना निर्मल, कितना शीतल, कितना पवित्र जल हैं बाण गंगा का. यंहा पर बाण गंगा को एक झरने का रूप दे दिया गया हैं. और उसके आगे स्नान करने के लिए एक कुंड बना दिया गया हैं. यंही से पैदल रास्ता और सीढ़ियों का रास्ता शुरू हो जाता हैं. वृद्ध और कमजोर, रोगी व्यक्ति को सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उनके लिए यंहा पर घोड़े, व पालकी उपलब्ध हो जाती हैं. बच्चो व सामान के लिए पिट्ठू उपलब्ध हैं. उन सबका रेट फिक्स होता हैं. पिट्ठू या घोडा तय करने के बाद उनका कार्ड पर जो नाम व नंबर होता हैं उसे अपने पास नोट करके रख लेना चाहिए. कोई बात होने पर श्राइन बोर्ड के कंट्रोल रूम में उनकी शिकायत दर्ज की जा सकती हैं. थोड़ा सा ही आगे बढ़ने पर हमें माता वैष्णोदेवी गुरुकुल दिखाई दिया. गुरुकुल की सजावट की हुई थी. गुरुकुल का वार्षिक उत्सव चल रहा था. इस गुरुकुल में सैंकडो ब्रह्मचारियो को वैदिक संस्कृति, वेद – पुराणों आदि की शिक्षा दी जाती हैं. यह गुरुकुल एक विशाल इमारत में स्थित हैं. और इसका प्रबंधन माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा ही किया जाता हैं.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

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हमारी ट्रेन का समय ठीक ६.३० शाम को था. हम लोग ठीक ६ बजे स्टेशन पहुँच गए. स्टेशन पर भी प्रतीक्षा करने का एक अलग ही आनंद होता हैं. पता चला की ट्रेन १५ मिनट लेट हैं. दरअसल मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के बीच में सिंगल लाइन हैं. जिस कारण से करीब करीब सभी ट्रेन लेट होती हैं. हमारा आरक्षण S-6 डिब्बे में था. डिब्बे में चढ़ने के बाद वही समस्या जो की पूरे हिन्दुस्तान में रेलवे में हैं. दैनिक यात्री आरक्षित डिब्बों में घुसे रहते हैं. और बड़ा अहसान जताते हुए वे हमें हमारी सीट पर बैठने देते हैं. कहते है की सहारनपुर, यमुनानगर तक की ही तो बात हैं. पता नहीं रेलवे से ये समस्या कब दूर होगी. खैर सहारनपुर के बाद आराम से एडजस्ट हुए, हम घर से आलू ,पूरी, अचार आदि खाने में लेकर के आये थे. खाना खाकर के लंबी तान कर सो गए. सुबह ठीक पांच बजे ट्रेन जम्मू पहुँच गयी. स्टेशन पर अन्धेरा छाया हुआ था. हम लोग अपने सामान सहित बाहर बस स्टैंड पर आ गए.

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Trip to Darbar Sahib-Where self meets the soul…-I

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There is this railway crossing on the Dinanagar-Gurdaspur stretch of NH-15 which lies miraculously at the centre of a leftward curve. Most of the drivers usually get caught unaware at this crossing. I was familiar with the notoriety of this curve and hence was attentive to its arrival. Just after crossing over the railway line, we stopped near a fruit-seller to fill our empty stomachs and sat on the nearby tube-well to chat. Our jokes and pranks didn’t seem to end anytime soon but we realised that we should pull ahead. Back to the car, we hit the road again and entered Gurdaspur city after 10 kms. There is a bypass which you can take to avoid the traffic and congestion at the Gurdaspur town but since it was a national holiday (2nd Oct), the traffic was sparse and we drove through the city. Looking around for some nice place to have a proper breakfast, all four of us had our necks craned out of the window. However, any place proposed by one was put down by the rest…a big disadvantage of traveling in an all-guys-group i think. Suddenly, I saw a turbanated policeman signalling us to stop. I just wanted to zip ahead as we were on the right side of law in every respect (thats what I believed till then) but Jaspreet insisted that we should stop as the Punjab Police cops chase such cars which dont stop and then harrass you even more…the job they are best at. Stopping a few metres ahead, I asked everyone to relax and not to get out of the car…a mistake that cost us 200 bucks!!! The Sardarji policeman came upto our car…positioned his elbows on the window and asked where we were from. We replied in Punjabi that we are from Jammu and heading towards The Harmandir Sahib. The Sardarji smiled at us and asked us why we had not fastened our seat belts…..HOLY SHIT… We realised that after we started driving from our last stop where we had fruits, we had just forgot to fasten our seat-belts.

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आ पहुंचे हम श्रीनगर – कश्मीर

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इस सड़क की एक और विशेषता यह है कि उस सड़क पर पर्यटकों की भरमार होने के कारण स्कूटर, मोटर साइकिल, हाथ ठेली पर ऊनी वस्त्र बेचने वाले हर रोज़ सुबह-शाम भरपूर मात्रा में दिखाई देते हैं।  रात को हम खाना खा कर लौटे तो भी वहां बहुत भीड़ लगी थी और सुबह आठ बजे तक वहां ऐसे दुकानदारों का अंबार लग चुका था।  कुछ स्कूल भी आस-पास रहे होंगे क्योंकि छोटे-छोटे, प्यारे – प्यारे, दूधिया रंग के कश्मीरी बच्चे भी स्कूली वेषभूषा में आते-जाते मिले। कुछ छोटे बच्चों को जबरदस्ती घसीट कर स्कूल ले जाया जाता अनुभव हो रहा था तो कुछ अपनी इच्छा से जा रहे थे। भारतीय सेना की एक पूरी बटालियन वहां स्थाई कैंप बनाये हुए थी। हमारे होटल के बिल्कुल सामने सड़क के उस पार सेना के सशस्त्र जवान केबिन बना कर उसमें पहरा दे रहे थे। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि यहां तो बिल्कुल शान्ति है फिर इतनी सतर्कता की क्या जरूरत है? पर जैसा कि एक सेना के अधिकारी ने मुझे अगली सुबह गप-शप करते हुए बताया कि यहां शांति इसीलिये है क्योंकि हर समय सेना तैयार है।  अगर हम गफलत कर जायें तो कब कहां से हिंसा वारदात शुरु हो  जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता।   दो दिन बाद, 18 मार्च को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच में एक दिवसीय क्रिकेट मैच था ।  हमारा ड्राइवर प्रीतम प्यारे गुलमर्ग से लौटते समय बहुत तनाव में था क्योंकि दोपहर तक पाकिस्तान का पलड़ा भारी नज़र आ रहा था।  वह बोला कि अगर पाकिस्तान मैच जीत गया तो शाम होते – होते कश्मीर की स्थिति विस्फोटक हो जायेगी । 

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जम्मू से श्रीनगर राजमार्ग पर एक अविस्मरणीय यात्रा

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ऐसे ही एक विलक्षण और ऐतिहासिक ट्रैफिक जाम में पंकज और मैं कार से उतरे और काफी आगे तक जाकर जायज़ा लिया कि करीब कितने किलोमीटर लंबा जाम है। यातायात पुलिस के सिपाहियों को जाम खुलवाने के कुछ गुरुमंत्र भी दिये क्योंकि सहारनपुर वाले भी जाम लगाने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। हम अपनी कार से लगभग १ किलोमीटर आगे पहुंच चुके थे जहां गाड़ियां फंसी खड़ी थीं और जाम का कारण बनी हुई थीं। आगे-पीछे कर – कर के उन तीनों गाड़ियों को इस स्थिति में लाया गया कि शेष गाड़ियां निकल सकें। वाहन धीरे – धीरे आगे सरकने लगे और हम अपनी टैक्सी की इंतज़ार में वहीं खड़े हो गये। सैंकड़ों गाड़ियों के बाद कहीं जाकर हमें अपनी सफेद फोर्ड आती दिखाई दी वरना हमें तो यह शक होने लगा था कि कहीं बिना हमें लिये ही गाड़ी आगे न चली गई हो। ड्राइवर ने गाड़ी धीमी की और हमें इशारा किया कि हम फटाफट बैठ जायें क्योंकि गाड़ी रोकी नहीं जा सकती। जैसे धोबी उचक कर गधे पर बैठता है, हम कार के दरवाज़े खोल कर उचक कर अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गये। पांच सात मिनट में ही पंकज का दर्द में डूबा हुआ स्वर उभरा! “मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया।“ मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि पंकज एक मिनट के लिये भी मेरी दृष्टि से ओझल नहीं हुआ था तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वह लुट भी गया और मुझे खबर तक न हुई। रास्ते में ऐसा कोई सुदर्शन चेहरा भी नज़र नहीं आया था, जिसे देख कर पंकज पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया होती। गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो पंकज भाई आंखों में ढेर सारा दर्द लिये शून्य में ताक रहे थे। उनकी पत्नी चीनू ने कुरेदा कि क्या होगया, बताइये तो सही तो बोला,

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कश्मीर चलना है क्या?

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कोच नं० C-6 में प्रवेश कर के, मेरी पत्नी ने पूछा कि कौन – कौन सी बर्थ हैं तो पंकज का जवाब आया – “20 – 21” | मैने पूछा “और बाकी दो?” पंकज ने रहस्यवाद के कवि की सी भाव भंगिमा दोनों महिलाओं की ओर डाली और मेरे कान के पास आकर धीरे से बोला, “अभी दो ही कन्फर्म हुई हैं, बाकी दो यहीं गाड़ी में ले लेंगे।“ मेरी पत्नी को हमेशा से अपनी श्रवण शक्ति पर गर्व रहा है। बात कितनी भी धीरे से कही जाये, वह सुन ही लेती हैं! इस मामले में वह बिल्कुल मेरे बड़े बेटे पर गई हैं! जब वह यू.के.जी. में पढ़ता था तो उसे घर के किसी भी दूर से दूर कमरे में पढ़ने के लिये बैठा दो पर उसे न सिर्फ टी.वी. बल्कि हम दोनों की बातचीत भी सुनाई देती रहती थी। बीच – बीच में आकर अपनी मां को टोक भी देता था, “नहीं मम्मी जी, ऐसी बात नहीं है। स्कूल में मैम ने आज थोड़ा ही मारा था, वो तो परसों की बात थी !

सिर्फ दो ही शायिकाओं का आरक्षण हुआ है, यह सुनते ही दोनों महिलाओं के हाथों के तोते उड़ गये। मेरी पत्नी तो बेहोश होते होते बची ! तुरन्त दीवार का सहारा लिया, बीस नंबर की बर्थ पर बैठी, फिर आहिस्ता से लेट गई। पानी का गिलास दिया तो एक – दो घूंट पीकर वापिस कर दिया और ऐसी कातर दृष्टि से मेरी ओर देखा कि मेरा भी दिल भर आया। पंकज की पत्नी ने भी तुरन्त 21 नंबर बर्थ पर कब्ज़ा जमाया और पंकज से बोली, “अब आप पूरी रात यूं ही खड़े रहो, यही आपकी सज़ा है। हम दोनों बेचारी शरीफ, इज्जतदार महिलाओं को धोखा देकर ले आये। हमें पता होता कि टिकट कन्फर्म नहीं हुए हैं तो घर से बाहर कदम भी नहीं रखते!”

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