आ पहुंचे हम श्रीनगर – कश्मीर

देर शाम श्रीनगर पहुंच कर वहां की विश्वप्रसिद्ध बुलेवार्ड रोड पर काफी भटकने के बाद भी जब हमें अपने मतलब का कोई होटल समझ नहीं आया तो ‘लौट के बुद्धू घर को आये’ वाले अंदाज़ में हम वापिस उसी न्यू कोहना खान रोड पर पहुंच गये जिसे हम नकार चुके थे। “नगरी – नगरी, द्वारे – द्वारे ढूंढूं रे सांवरिया” गुनगुनाते हुए हमने एक – एक होटल में खोजबीन करनी आरंभ की कि कहां रुका जा सकता है।  महिलाओं को हमने नीचे सड़क पर कार में ही बैठे रहने को कहा। उन दोनों ने इसमें कोई आपत्ति नहीं की क्योंकि दो-दो मंज़िल चढ़ कर कमरे देखने जाना, फिर वापिस आना उनको कष्टकर अनुभव हो रहा था।  वैसे भी, दोनों को अपने-अपने पति की विवेक बुद्धि पर भले ही यकीन न हो, पर पति के साथ जो दूसरा बन्दा जा रहा था, उसकी बुद्धि और पसन्द पर पूरा भरोसा था!  हम भारतीय पतियों की यही त्रासदी है।  दुनिया में हर इंसान उनको होशियार, समझदार मानता है, सिवाय उनकी अपनी पत्नियों के!  ऐसा क्यूं होता है रे?

जैसा कि मुझे अगले दिन सूर्य के प्रकाश में स्पष्ट हुआ, यह सड़क वास्तव में डल झील के कुछ भाग को पाट कर बनाई गई है, जैसे मुंबई में नरीमन प्वाइंट पर समुद्र को पाट कर backbay reclamation point  बनाया गया है।  न्यू कोहना खान रोड (New Kohna Khan Road)  पर सिवाय होटल और ढाबों के आपको और कुछ भी नज़र नहीं आता। इस सड़क पर आगे की ओर बढ़ जायें – लगभग आधा किलोमीटर, तो सड़क डल झील में प्रवेश कर जाती है और फिर संकरी होते होते झील में विलीन हो जाती है।

मुझे अपनी आंखों से वहां का अद्‌भुत दृश्य देखने का अवसर तो नहीं मिला पर मैने पढ़ा है कि रामेश्वरम्‌ में धनुष्कोडि भी ठीक इसी प्रकार से है जहां सड़क समुद्र में घुसती चली जाती है और दो एक किलोमीटर चल कर समुद्र में समाप्त हो जाती है।  उसके आगे रामसेतु है जिसे हमारी केन्द्र सरकार तोड़ देने के लिये आकुल – व्याकुल है ताकि अपनी परियोजना को आगे बढ़ा सके।  सड़क के बाईं ओर बंगाल की खाड़ी और दाईं ओर हिन्द महासागर ठाठें मारता है। आकाश से देखें तो ऐसा लगता है मानों प्रभु राम ने धनुष की प्रत्यंचा पर बाण संधान किया हुआ हो। यह पतली सी सड़क धनुष पर चढ़े हुए बाण जैसी प्रतीत होती है।  लगभग ऐसा ही नज़ारा न्यू इस कोहना खान रोड पर भी है।

Srinagar – Life at Dal Lake


श्रीनगर में एकमात्र यही सड़क झील को reclaim करके बनाई गई हो, ऐसा नहीं है।  अगर हम किसी ऊंचे स्थान से (जैसे शंकराचार्य पर्वत) डल झील पर निगाह डालें तो पायेंगे कि झील में अतिक्रमण करने वाली ऐसी अनेकों संकरी गलियां हैं।  इनमें से कई गलियां लकड़ी के फट्टों से तैयार किये गये पुल के रूप में हैं।  उस पुल में से घरों के लिये, या सही कहें तो, हाउस बोट के लिये प्रवेश द्वार दिखाई देते हैं।

इस सड़क की एक और विशेषता यह है कि उस सड़क पर पर्यटकों की भरमार होने के कारण स्कूटर, मोटर साइकिल, हाथ ठेली पर ऊनी वस्त्र बेचने वाले हर रोज़ सुबह-शाम भरपूर मात्रा में दिखाई देते हैं।  रात को हम खाना खा कर लौटे तो भी वहां बहुत भीड़ लगी थी और सुबह आठ बजे तक वहां ऐसे दुकानदारों का अंबार लग चुका था।  कुछ स्कूल भी आस-पास रहे होंगे क्योंकि छोटे-छोटे, प्यारे – प्यारे, दूधिया रंग के कश्मीरी बच्चे भी स्कूली वेषभूषा में आते-जाते मिले। कुछ छोटे बच्चों को जबरदस्ती घसीट कर स्कूल ले जाया जाता अनुभव हो रहा था तो कुछ अपनी इच्छा से जा रहे थे।

भारतीय सेना की एक पूरी बटालियन वहां स्थाई कैंप बनाये हुए थी। हमारे होटल के बिल्कुल सामने सड़क के उस पार सेना के सशस्त्र जवान केबिन बना कर उसमें पहरा दे रहे थे। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि यहां तो बिल्कुल शान्ति है फिर इतनी सतर्कता की क्या जरूरत है? पर जैसा कि एक सेना के अधिकारी ने मुझे अगली सुबह गप-शप करते हुए बताया कि यहां शांति इसीलिये है क्योंकि हर समय सेना तैयार है।  अगर हम गफलत कर जायें तो कब कहां से हिंसा वारदात शुरु हो  जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता।   दो दिन बाद, 18 मार्च को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच में एक दिवसीय क्रिकेट मैच था ।

हमारा ड्राइवर प्रीतम प्यारे गुलमर्ग से लौटते समय बहुत तनाव में था क्योंकि दोपहर तक पाकिस्तान का पलड़ा भारी नज़र आ रहा था।  वह बोला कि अगर पाकिस्तान मैच जीत गया तो शाम होते – होते कश्मीर की स्थिति विस्फोटक हो जायेगी ।  श्रीनगर में भी कब हिंसा शुरु हो जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता।  और अगर, भगवान करे,  हिन्दुस्तान जीत गया तो ये सब दुम दबा कर अपनी खोल में छिपे रहेंगे।  खैर, उस दिन गुलमर्ग से श्रीनगर में वापिस आते आते हम कार में आंखों देखा हाल सुनते हुए आ रहे थे और यह स्पष्ट हो गया था कि यह मैन भारत ही जीतने जा रहा है और अब दंगे की संभावना नगण्य ही है।  इसीलिये, हम रात्रि में निश्चिंत भाव से सड़कों पर घूमते रहे थे।  खैर !

ये सब बातें तो बाद की हैं, फिलहाल तो मैं अपनी बातों का स्टीयरिंग घुमा कर आपको वापिस अपने होटल में ही लिये चलता हूं।

होटल कोहिनूर में जब हमें कमरे दिखाये गये तो लगा कि अब ज्यादा सोचने विचारने की जरूरत नहीं है और कार में से अपना सामान मंगवा लिया जाये।  800 रुपये किराया जब हमारे बा्र्गेनर भाई पंकज को उचित अनुभव हो रहा था तो मुझे आपत्ति होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था।  मैने अपने कमरे की खिड़की में से बाहर झांक कर देखा तो मुश्किल से २०० मीटर दूर होने के बावजूद,  कुछ अन्य होटलों के पीछे छिप गई डल झील तो नज़र नहीं आ रही थी, पर अंधेरे में, झील के उस पार एक पहाड़ी जरूर नज़र आई जिसमें ऊपर एक दिये जैसा कुछ टिमटिमाता महसूस हो रहा था।  अगले दिन हम इस पहाड़ी पर भी पहुंचे जो वास्तव में शंकराचार्य पर्वत है। रात्रि में जो टिमटिमाता हुआ दिया अनुभव हो रहा था, वह शंकराचार्य मंदिर से आ रहा प्रकाश था।

मैं और पंकज घर से चले थे तो हमारे पास दो-दो फोन थे, एक – एक  प्री-पेड और दूसरा पोस्ट-पेड था।  मेरे पास लैपटॉप और फोटोन के माध्यम से net connectivity भी थी। सहारनपुर से चलने से पहले, Photon Customer Care पर फोन करके मैने पुष्टि कर ली थी कि पोस्ट पेड कनेक्शन होने के कारण फोटोन कश्मीर में भी चलता रहेगा और रोमिंग का भी कोई चक्कर नहीं है।  उन्होंने बड़े गर्व से बताया था कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा भारत एक है।

पंकज का पोस्टपेड फोन रास्ते में गिर ही चुका था।  प्री-पेड फोन हम दोनों के ही बन्द थे। शाम होते – होते मेरे पास पंकज के लिये फोन आने शुरु हो गये।  वास्तव में पंकज ने मेरा पोस्ट पेड नंबर अपने घर में दे दिया और घर वालों ने वह नंबर सारी दुनिया को दे दिया।  उसके घर से भी दिन में दस-बारह बार फोन आते थे क्योंकि माता-पिता को बेटे-बहू और पोते की चिन्ता लगी रहती थी।  रोमिंग के इलाके में मेरे फोन पर इतना हैवी ट्रैफिक देख कर मेरी पत्नी के भाल पर तनाव की रेखाएं उभरती दिखाई पड़ती थीं ।

एक बार उन्होंने मुझे कहा भी कि इमरजेंसी में किसी का फोन इस्तेमाल करना और वह भी रोमिंग में, जायज़ है परन्तु “और क्या हाल चाल हैं, कहां – कहां घूम रहे हो, कैसा मौसम है, बच्चों की बहुत याद आ रही है”  आदि – आदि बातों के लिये दूसरों का फोन इस्तेमाल करना और वह भी रोमिंग में?  मैने समझाया कि रोमिंग को हम लोगों ने हौव्वा बना डाला है,  रोमिंग को लेकर consciousness बनी रहती है कि पता नहीं कितना बिल हो गया होगा, पर ऐसा नहीं है।

जरा सोचो, जब हम बीस हज़ार अपने घूमने पर खुशी – खुशी खर्च कर सकते हैं तो रोमिंग के नाम पर अगर अगले महीने १०० रुपये का फालतू बिल आ भी गया तो क्या फर्क पड़ जायेगा?  अगर पंकज के फोन के बजाय मेरा फोन खो गया होता तो  पंकज अपने फोन से हमारी बात कराने कतई भी संकोच न करता।”

“ठीक है।  आपका मामला, आप जानों।  इसके बाद उन्होंने इस बात को पूरी तरह से अपने दिल से निकाल दिया। उन पांच – छः दिनों में मेरी जेब में जब भी वाइब्रेशन के कारण गुदगुदी होती तो मैं चुपचाप अपना फोन निकाल कर पंकज के हाथ में दे दिया करता था क्योंकि मेरे कश्मीर प्रवास के दौरान मेरे लिये कोई फोन नहीं आता था। बैंक में भी और मित्रों को भी पता था कि मैं छुट्टी पर घूमने गया हुआ हूं पर पंकज को तो अपना बिज़नेस जारी रखना था।    खैर !

न्यू कोहना खान रोड स्थित कोहिनूर होटल में अपने – अपने कमरों में अपना सामान टिका कर, नहा-धो कर हम पुनः कार में बैठे और बुलेवार्ड रोड पर “पंजाबी तड़का” शुद्ध शाकाहारी भोजनालय में पहुंच गये।  वाह, क्या बात है! पूरे हिन्दुस्तान भर से पर्यटक अपनी – अपनी ब्यूटी क्वीन को बगल में दबा कर शायद इसी रेस्तरां में आ पहुंचे थे।

भीड़ काफी थी, अपने लिये एक खाली टेबिल की इंतज़ार में हम खड़े रहे और कुदरत की इस हसीन दुनिया को निहारते रहे।  टेबिल मिलते ही बैरा छाती पर आ खड़ा हुआ, आर्डर लिया और दस मिनट में ही गर्मागर्म, स्वादिष्ट और मनभावन खाना हमारे सामने था। भीड़ के कारण फुरसत से आर्डर लेना, आधा घंटे में आर्डर सर्व करना – यह सब वहां संभव नहीं था।  पर ऐसे रेस्तरां अच्छे खाने की गारंटी हुआ करते हैं।  महीने भर पुरानी सब्ज़ी फ्रिज में से निकाल कर गर्म करना और ग्राहकों को परोस देना और हाई-फाई बिल पेश कर देना ये बड़े-बड़े फैंसी होटलों में होता है, ढाबे टाइप रेस्तरां में नहीं!

होटल में लौट कर आधा-पौना घंटा फेसबुक पर बिताया गया, स्टेटस अपडेट करते हुए दोस्तों को बताया कि अभी हाल – फिलहाल तो श्रीनगर सुन्दर लग नहीं रहा है। न तो सड़कों पर सफाई दिखाई देती है और न ही हरियाली।  बस एक बुलेवार्ड रोड चमचमा रही है जो वी.आई.पी. इलाका है।  बाकी सारा श्रीनगर कानपुर और अलीगढ़ जैसा ही गन्दा है।

जम्मू कश्मीर की सरकार तो हमें उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार से भी ज्यादा गई गुज़री प्रतीत होती है जो यात्रियों से टैक्स वसूलना तो जानती है पर शहर को सजाने – संवारने में उसे कोई रुचि नहीं है।    हमारे मित्रों ने हमें तुरन्त ढाढस बंधाया “डोंट वरी, अभी तो कश्मीर पहुंचे हो, आगे बहुत खूबसूरती मिलेगी।“  चलो, उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है, यह सोच कर हमने फेसबुक से साइन ऑफ किया, लैपटॉप पर दिन भर की फोटो ट्रांस्फर कीं, कैमरे को चार्जिंग पर लगाया और नींद के आगोश में समा गये।

More of Dal Lake

Shikara. Shikara. Shikara.

अगला दिन सुबह श्रीनगर भ्रमण के लिये तय था जिसमें डल झील में शिकारे पर भ्रमण, शंकराचार्य पर्वत के दर्शन,  चश्माशाही, निशातबाग, शालीमार बाग आदि सम्मिलित थे।  आगे की यात्रा के लिये आपका साथ बना रहेगा, इसी इच्छा और विश्वास के साथ, अब शुभ रात्रि !

33 Comments

  • Surinder Sharma says:

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  • Sharma Shreeniwas says:

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  • Nandan Jha says:

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  • JATDEVTA says:

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  • D.L.Narayan says:

    Sushantji, you have an acute eye for detail and it is amazing how unerringly accurate your observations are.

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    You could have been talking of my “????????”!!!

    • Dear DL,

      It is really very difficult to find new ways, new expressions to convey my gratitude to you.

      As regards wives’ under-valuation of their ‘dear’ husbands, they neither allow anyone to criticize their respective husbands nor allow them being praised. Usually, a husband’s worth is evaluated from the amount of money he hands over to his wife on 1st of every month. If a person is praising a husband, he must support his feelings of adoration for the husband with a nice amount of cheque also !!!! Otherwise, even Bharat Ratna wouldn’t mean a thing as far as wives are concerned. :)

      Thanks again.

      Cordially,

      Sushant

      • D.L.Narayan says:

        Undervaluation, dear Sushant? Devaluation would be more appropriate and husbands get devalued much faster than the Indian Rupee, which is the worst performing Asian currency at the moment. I wonder what Mrs. Shubhra Mukherjee feels about her lesser half, who has just been sworn in as our new President today.

        • Dear DL,

          It is a shame that a person occupying as august a post as the President of India considers this ultimate elevation of his career ‘blessings’ of Sonia Ma’m and shows his endless gratitude and solidarity personally towards her. Who is controlling India?

          When S. Manmohan Singh was asked some 8 years back by the reporters, “Did you expect to become a PM before the elections?” “PM ? Arey, main to khada ho paya ye bhi Sonia Ji ke haath ka kamaal hai.” :)

          • D.L.Narayan says:

            The presidency sunk to an all time when the Emergency Ordinance was signed in 1975 and has more or less remained there after that with the presidency of Dr. Kalam being the glorious exception.

            Way back in 1982, when Zail Singh became the President, he said, “Had Madam (Indira Gandhi) given me a broom and asked me sweep the floor, I would have done it.” Together, the madams have shown their “kamaal” and the results are there for all to see. Now, abject sycophancy and obsequiousness are essential credentials for anyone aspiring to become the first citizen of the country.

  • ashok sharma says:

    very good post, nice photographs.over crowding ,cheating and filth all over discourages one to proceed on some tour.don’t know,how things will change and when.

    • Dear Ashok Sharma,

      Thanks a lot. Our various state governments feel that in democracy, everyone should be allowed to behave as he or she like to behave. No discipline, no punishment for any misdeeds. They don’t want to annoy anyone. After all, they are the voters.

      But even a child loves and respects his parents if they are strict. If a child is not reprimanded by his parents for any wrongdoings, he loses respect towards his parents and even feels insecure.

      Kaash, hamare administrators ye baat samajh paate.

  • anjan says:

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  • rajesh priya says:

    ab jakar man shant hua .aapke is pure vritant ke lie bas ek hi baat, KYA BAAT,KYA BAAT KYA BAAT

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  • vinaymusafir says:

    hum sab ki duvayein aapke sath hain
    accha post tha.
    Pls thumbnails ki tarah photo na dalke bade photo daliye.
    ek post mein aap 20 photo daal sakte hain

    apko padhna accha ladta hai.
    bhagawaan apke pariwar mein sabko swasth rakhein

  • Mukesh Bhalse says:

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