Yamunotri

Bamsaru Khal Trek

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In the morning, view outside our tents  was spectacular. We saw snow capped Mountains all around , took some pics, but after 15-20 Min  Mist covered the valley and mountains were not visible. We were supposed to start early , but got  late, we finished our breakfast by 8:30AM and started  walking towards Gidara.

From Dayara one black dog started walking with us , we thought it will go away after sometime but it  remained  with us till the end of trek. The Dog was too hairy, and resembled a  bear , got scared of him twice, he also had a bad habit  of crossing  the path when there was a difficult climb or narrow path.

While on the trek an idea popped up that we should also visit “Dodital” ( Lord Ganeshji Birthplace ). Dodital situated at a distance of 30 km from Dayara Bugyal, is also popular among tourists. Going there meant an  extension of 2 More days , which we could not  afford. Hence all  agreed to keep walking towards Gidara.

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अनजान सफ़र : दिल्ली – यमुनोत्री – उत्तरकाशी

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जानकारी मिली की पहले यमनोत्री जाओ फिर गंगोत्री फिर बद्रीनाथ और केदारनाथ. श्याम को वो सज्जन भी आ गए जो मसूरी से पैसे लाये थे, अच्छा ये बता दूँ की उत्तराखंड मे बसे तडके निकाल पड़ती है कियु की रूट लम्बा होता है, पता चला की सुबह ३.३० बजे की  बस है यमनोत्री की, और अभी टिकिट खिड़की बंद हो गयी है और सुबहे ३.०० बजे खुलेगी, अब रात काटने के लिए एक होटल मे १५० रूपए  मे कमरा लिया और सुबहे २.३० बजे सो कर उठा, फटाफट मुह हाथ धो कर सीधे बस अड्डे पंहुचा, यात्रा का समय होने के कारण बहुत भीड़ थी पता चला की यमनोत्री की बस पूरी फुल है पैर रखने की भी जगह नहीं है, तो सोच मे पड़ गया की क्या करू अगर ये बस छूट गयी तो फिर टाइम से यमनोत्री नहीं पहुच पाउँगा  (आप को ये बताना जरूरी है की मैं गढ़वाल से तो हूँ पर पौड़ी गढ़वाल से, और मुझे टिहरी और चमोली गढ़वाल के बारे मे कुछ भी नहीं पता नहीं है.)

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दो धाम की यात्रा – यमुनोत्री और गंगोत्री

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तीसरे दिन हम लोग सुबह 6 बजे सोकर उठ गए अब हमारा अगला लक्ष्य यमुनोत्री पहुँचने का था . बरकोट से जानकी चट्टी की दूरी 41 किलोमीटर है. हमारा कार्य क्रम कुछ इस प्रकार का था की हम लोगों यमुनोत्री दर्शन कर शाम तक पुन बरकोट लौट आये. ताकि अगले दिन हम यहाँ से सीधे गंगोत्री के लिए प्रस्थान कर सके. इन बातो को ध्यान में रखते हुए हमने सुबह सात बजे ही बरकोट से रवानगी कर डाली. बरकोट से निकलते ही रास्ता बहुत ही ख़राब है क्योंकि यहाँ भी सड़क के चौडीकरण का काम चल रहा है. बरकोट से 15 किमी दूर गंगोनी नामक स्थान पर हमने सुबह का नाश्ता कर अपनी यात्रा जारी रखी. बरकोट से जानकी चट्टी का रास्ता बहुत अच्छा नहीं. एक तो रास्ता ख़राब दुसरे चढाई इसलिए समय भी ज्यादा लग रहा था. चारधाम यात्रा के चलते ट्रेफिक भी ज्यादा था. सयाना चट्टी पहुँचने से पहले हमें जाम में भी फँसना पड़ा. लगभग 1 घंटा जाम में हम लोग खड़े रहे. उत्तराखंड पुलिस यहाँ पर भी जाम क्लीअर करने में मुस्तैदी से लगी हुई थी. सयाना चट्टी पार करने के बाद राणा चट्टी नामक जगह आती यहाँ पर भी जाम लगा हुआ था. यहाँ से जैसे तैसे आगे बढे की हनुमान चट्टी में फिर जाम से रूबरू होना पड़ा.   सारे जामों से जूझते हुए लगभग दो बजे के आस पास हम जानकी चट्टी पहुँच गए. जानकी चट्टी यमुनोत्री मंदिर जाने के लिए बसे कैंप है. यहाँ तक बसें, कारें आती है. बरकोट से यमुनोत्री के रास्ते में निम्नलिखित स्थान पड़ते है.

गंगनाणी (15 किमी), कुथूर (3 किमी), पाल गाड (9 किमी), सयानी चट्टी (5 किमी), राणाचट्टी (3 किमी), हुनमानचट्ट (3 किमी), बनास (2 किमी), फूलचट्टी (3 किमी पैदल चढ़ाई), जानकी चट्टी (5 किमी पैदल चढ़ाई), यमुनोत्री

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यमुनोत्री में ट्रेकिंग

यमुनोत्री में ट्रेकिंग

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वो मेरी पहली ट्रेकिंग थी। पहली बार समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पार की थी। पहली बार इतने बडे-बडे पत्थरों को लांघता हुआ चल रहा था। जिन्दगी में यह सब पहली बार देख रहा था मैं। मुझे इन सब चीजों और बातों का कोई आइडिया नहीं था।

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यमुनोत्री में ग्लेशियर

यमुनोत्री में ग्लेशियर

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यमुनोत्री में उस शाम केवल मैं ही अकेला पर्यटक था, समुद्र तल से 3200 मीटर से भी ऊपर। मेरे अलावा वहां कुछ मरम्मत का काम करने वाले मजदूर, एक चौकीदार और एक महाराज जी थे।महाराज जी के साथ दो-तीन चेले-चपाटे भी थे। मैने रात में ठहरने के लिये चौकीदार के यहां जुगाड कर लिया। चौकीदार के साथ दो जने और भी रहते थे, एक उसका लडका और एक नेपाली मजदूर।

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यमुनोत्री यात्रा- हनुमानचट्टी से यमुनोत्री

यमुनोत्री यात्रा- हनुमानचट्टी से यमुनोत्री

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यहां मुख्य मन्दिर के बराबर में ही एक गुफा है। इस गुफा में सालों से एक महाराज जी रहते हैं। वे कभी नीचे नहीं जाते, सर्दियों में कपाट बन्द होने के बाद भी। अकेले ही रहते हैं। कहा जाता है कि नीचे जाना तो दूर, उन्होने कभी सामने बहती यमुना को भी पार नहीं किया है। कुछ भक्तों ने उस गुफा के सामने मन्दिर भी बनवा दिया है। महाराज उसी में रहते हैं, खुद बनाते हैं, खाते हैं। बाद में अगले दिन मैने उनकी फोटो लेनी चाही तो उन्होने मना कर दिया। तो मैने उनका फोटो लिया ही नहीं। आज जब कोई नहीं दिखा तो मैं उनके पास ही पहुंचा –“बाबा, आज रुकने के लिये कोई कमरा मिल जायेगा क्या यहां?” बोले कि मिल जायेगा, अभी थोडी देर सामने खडे होकर कुदरत का मजा लो।

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यमुनोत्री यात्रा- दिल्ली से हनुमानचट्टी

यमुनोत्री यात्रा- दिल्ली से हनुमानचट्टी

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अब मुझे कम से कम नौ घण्टे तक देहरादून में ही रहना था। समय बिताने के लिये मैं सहस्त्रधारा चला गया। चूंकि रात का सफर था, यह सोचकर मैं सहस्त्रधारा से वापस आकर देहरादून रेलवे स्टेशन पर खाली पडी बेंच पर ही सो गया। शाम को सात बजे सोया था, आंख खुली साढे दस बजे। वो भी पता नहीं कैसे खुल गयी। मन्द मन्द हवा चल रही थी, मुझे कुछ थकान भी थी और सबसे बडी बात कि मच्छर नहीं थे।

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