10 Oct

Badami Delight

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You have started from Bagalkot and your first stop is Badami. You have only one day to see the triple wonders of Badami, Pattadakal and Aihole. It is hot and the area is drought affected. You drive into the dusty town and abruptly turn left into the parking lot. The parking lot seems to be at the foot of this ravine with sandstone hills rising on either side. On the right, the red rocky outcrop rises almost vertically housing the rock-cut temples. On the top of this South Hill sits the Badami Fort. Few yards straight ahead to the parking lot is the lake called Agastya Teertha hemmed in between the two hills. On the left of the lake is the North Hill of Badami. North Hill also has fort ramparts, few temples, guard posts and the ASI Museum. The forts were initially built by Chalukyas & Rashtrakutas and then Tipu Sultan installed cannons and his treasury to the original structures. On the west, the town is threatening to push into the lake with houses built on the edge of the lake. Beware of a snarling dog that apparently dislikes city slickers and is ready to chew your neck. Into the east, you can see the Bhootnath Temple complex built on the edge of the lake with another hill rising behind it. Kids bathe in the cool lake water and women wash laundry spreading it on the steps.

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भाग3 – चोपता से वापस नॉएडा।

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हम लोग होटल से दूसरी और जाकर सड़क से नीचे नदी के पास चले गए। ठन्डे पानी से हाथ-मुह धोकर मज़ा सा आ गया था। मुझे याद नहीं आ रहा पर हम मे से किसी ने स्नान करने की इच्छा जताई थी। वो जो भी था पागल था। बदन पर तो दो-दो जोड़े स्वेटर और ऊपर से जैकेट डाला हुआ था और पानी देख कर स्नान करने का मन हो चला था। भगवान का शुक्र है की पागल ने पागल-पंती नहीं की। हम लोगों ने नदी के पास जाकर कुछ फ़ोटो लिए। यहाँ पर हमारा अच्छा टाइम पास हो रहा था। वरना होटल के अंदर नाश्ते का इंतज़ार मे खली-पीली टाइम ही बर्बाद होता।

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विराट नगर – पांडव अज्ञातवास का साक्षी, बौद्ध साक्षात्कार का बीजक और एक झांकता मुग़ल कालीन झरोखा

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जयपुर से विराट नगर के लिए सुबह सात बजे वाली बस मैं बैठकर 9 बजे पहुँच गया। विराट नगर जाने का मेरा केवल एक ही उद्देश्य था और वो था बीजक की पहाड़ी पर बना हुआ करीब 2500 हज़ार साल पुराना बोद्ध स्तूप। यह एतिहासिक स्मारक विराट नगर बस स्टैंड से करीब ३ कि .मी की दूरी पर एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर बने एक समतल धरातल पर स्थित है। इस पहाड़ी पर तीन समतल धरातल है। सबसे पहले वाले पर एक विशाल शिला प्राकृतिक रूप से विद्यमान है जिसका स्वरूप एक डायनासोर की तरह प्रतीत होता है।

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इन्दौर – सैंट्रल म्यूज़ियम और ज़ू दर्शन

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संग्रहालय के मुख्य द्वार से अन्दर घुसा तो देखा कि टिकट खिड़की बन्द है। मुख्य भवन के बाहर भी नाना प्रकार की सैंकड़ों मूर्तियां वहां पर सुसज्जित देख कर मैने कैमरा निकाला और बकौल नन्दन झा, न्रीक्षण-प्रीक्षण शुरु हो गया। एक सज्जन मेरे पास आकर बोले, कैमरे का टिकट ले लीजियेगा, अपना भी। अभी थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खुल जायेगा। मैने पूछा कि तब तक मैं क्या करूं? इंतज़ार करना पड़ेगा? वह बोला, “नहीं, नहीं, आराम से देखिये, जहां भी चाहें, फोटो खींचिये। मेन बिल्डिंग में भी बहुत कुछ है। रास्ता इधर से है।” धन्यवाद कह कर मैं बेधड़क इधर-उधर घूमता फिरता रहा और एक डेढ़ घंटे में पूरा संग्रहालय उलट-पुलट कर देख डाला।

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रहस्यमयी नगरी – मांडू

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अल्टीमेटली हम उस भीमकाय भवन के निकट जा पहुंचे जो दूर से एक छोटा सा बुर्ज महसूस हो रहा था। वहां लिखा था – रानी रूपमती का महल ! वहां हमने थोड़ी देर तक इमली वाले ठेले पर इमली के रेट को लेकर बहस की। ये मांडू की विशेष इमली थी जिसके बारे में मुकेश ने बताया कि ये सिर्फ यहां मांडू की जलवायु का ही प्रताप है कि यहां ये इमली उगती है। मैं अपने जन्म से लेकर आज तक इमली के नाम पर अपने परचून वाले की दुकान पर जो इमली देखता आया हूं, वह तो छोटे – छोटे बीज होते हैं जिनके ऊपर कोकाकोला रंग की खटास चिपकी हुई होती है और बीज आपस में एक दूसरे से पेप्सी कलर के धागों से जुड़े रहते हैं। वह ये तो इमली के फल थे जिनके भीतर बीज होने अपेक्षित थे। बाहर से इस फल पर इतने सुन्दर रोयें थे कि बस, क्या बताऊं = एकदम सॉफ्ट एंड सिल्की ! दूर से देखो तो आपको लगेगा कि शायद बेल बिक रही है, पर पास जाकर देखें तो पता चलता है कि इमली के फल की शक्ल-सूरत बेल के फल से कुछ भिन्न है और साथ में रोयें भी हैं! जब रेट को लेकर सौदा नहीं पटा तो हम टिकट लेकर रानी रूपमती के महल या मंडप की ओर बढ़ चले जो नर्मदा नदी से 305 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मुझे किसी भी एंगिल से महल या मंडप अनुभव नहीं हुआ। अब जैसा कि पढ़ने को मिला है, ये मूलतः सेना के उपयोग में आने वाली एक मचान हुआ करती थी जिसमें मध्य में एक बड़ा परन्तु नीची छत वाला हॉल व उसके दोनों ओर दो कमरे थे। पर बाद में उसमें विस्तार करके ऊपर बुर्ज व दो गुंबद बनाये गये। ये बुर्ज वास्तव में आकर्षक प्रतीत होती है। ये सब काम सिर्फ इसलिये कराने पड़े थे चूंकि रानी रूपमती को नर्मदा नदी के दर्शन किये बिना खाना नहीं खाना होता था, अतः वह यहां से ३०५ मीटर नीचे घाटी में एक चांदी की लकीर सी नज़र आने वाली नर्मदा की धारा को देख कर संतोष कर लिया करती थीं और एतदर्थ नित्य प्रति यहां आया करती थीं। इसी कारण बाज़ बहादुर ने इसमें कुछ परिवर्तन कराकर इसे इस योग्य कर दिया कि जब रूपमती यहां आयें तो वह रानी से कुछ अच्छे – अच्छे गानों की फरमाइश कर सकें और चैन से सुन सकें। जैसा कि आज कल के लड़के – लड़कियां मंदिर में जाते हैं तो भगवान के दर्शनों के अलावा एक दूसरे के भी दर्शन की अभिलाषा लेकर जाते हैं, ऐसे ही रानी रूपमती और बाज बहादुर भी यहां आकर प्रणय – प्रसंगों को परवान चढ़ाते थे। खैर जी, हमें क्या!

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मांडू दर्शन भालसे परिवार के संग

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इस संस्कृत विश्वविद्यालय का नाम अशर्फी महल क्यों कर पड़ गया, इसके बारे में मैने दो कहानियां सुनी हैं – एक उस गाइड के मुंह से जो मुकेश भालसे ने मांडू दर्शन कराने के लिये तय किया था। उस गाइड के अनुसार, “मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम बहुत ज्यादा प्रेगनेंट थी और अशर्फी महल की सीढ़ियां चढ़ने में आनाकानी कर रही थी । इसके लिये बादशाह ने प्रत्येक सीढ़ी पर चढ़ने के लिये बेगम पर अशर्फी लुटाने का वायदा किया। अशर्फी के लालच में बेगम अपनी प्रेगनेंसी को भुला कर सीढ़ियां चढ़ती चली गई।” दूसरी कहानी आर. बी. देशपांडे अपनी पुस्तक “Glimpses of Mandu: Past and Present” में उद्धृत करते हैं, जो वास्तव में बादशाह जहांगीर की मुंह जबानी है –

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Family Trip to Mussoorie and Rishikesh (Part II)

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We also took tickets for a round trip in boat. These tickets were valid for one hour for return journey. It means we had sufficient time to bath and roam at another side of Ganga Ji. The boat took us to another bank in just few minutes. As it was Baisakhi day, a lot of people were taking bath on Eastern Ghats. We also took bath in Holy Ganga ji.

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Famous Candles of Nainital

Nainital – The Jewel of Kumaon – Dream Fulfilled – Part – II

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Why do we need vacations? There is a very simple answer to it. We need vacation to rest, rejuvenate, relax, as well as to recharge ourselves at least for the next few months. It’s very important to get away and de-stress oneself in today’s world. When we work for a living, we must get away from the work once in a while. Recently, we went to Nainital and we were mesmerized to see the place & surroundings. You can also plan a trip there.

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Finding Delhi – Sunder Nursery

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Sunder Bagh, then known as Azim Bagh housed rare plant species from different British colonies across the world. It was also used to experiment with trees that were proposed to be planted in the new city. About 1500 shady trees we see today along the wide roads of Lutyens’s Delhi came from this nursery. Those days, Azim Bagh stood on the historic Grand Trunk Road between Humayun Tomb and Purana Qila.

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आज की शाम – मुकेश भालसे के नाम !

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सुबह शंख ध्वनि, घंटे – घड़ियाल की मंगल ध्वनि से आंख खुली तो देखा कि 7 बज रहे हैं। कविता घर में बने हुए अपने मंदिर से बाहर आ चुकी थीं और बच्चों को हिला-हिला कर जगा रही थीं कि घूमने चलना है अतः अलस त्यागो और फटाफट तैयार हो जाओ ! बच्चे पहले तो उठने के मूड में नहीं थे क्योंकि रविवार का छुट्टी का दिन था पर जब ध्यान दिलाया गया कि पिकनिक पर जाना है तो फटाफट बिस्तर में से निकल आये। शिवम्‌ को यह भी लालच दिया गया कि नीचे चल कर कार की सफाई में भी उसकी सहायता ली जायेगी। लड़कों को पता नहीं क्यों ऐसे अजीबो-गरीब कामों में बहुत मज़ा आता है। मेरे बेटे भी जब छोटे थे तो खेल – खिलौनों के बजाय प्लास, पेचकस, संडासी जैसे सामान में अधिक रुचि लेते थे।

मुकेश ने गैराज़ में से अपनी शेवरले स्पार्क निकाली और फिर शिवम्‌ के साथ एक बाल्टी पानी, कुछ अखबार और डस्टर आदि लेकर नीचे पहुंचे। मैं भी अपना कैमरा उठाने लगा तो बोले, अभी इसका क्या काम ! जाने में तो अभी दो घंटे हैं। मैने कहा कि पिकनिक तो उसी समय से शुरु हो जाती है जब हम यह निश्चय कर लेते हैं कि पिकनिक पर जाना है। उसके बाद में की जाने वाली सभी तैयारियां भी पिकनिक का अभिन्न हिस्सा हैं। कार की धुलाई – पुछाई – सुखाई सब इस अविस्मरणीय पिकनिक का अविभाज्य भाग है। इसलिये इन सब की फोटो भी जरूरी है! सब कुछ पिकनिक की भावना से करो तो हर काम में मज़ा आने लगता है। आधा घंटे तक MP 11 CC 0470 कार की मस्का पालिश की गई। फिर ऊपर आकर नहाये – धोये ! कविता तब तक धांसू वाली स्टफ्ड पूरियां और सब्ज़ी बना चुकी थीं जिनका हमने जी भर के भोग लगाया। बच्चों ने कार में सारा सामान बूट में रखा। भोले बाबा को बारंबार प्रणाम करके हम सब फ्लैट से नीचे उतर आये और मुकेश ने कार की चाबी मेरे हाथों में सौंप दी।

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इन्दौर – पैदल स्थानीय भ्रमण!

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संभवतः तीसरी मंजिल पर जाकर एक ओर खेल कूद की दुकानें और दूसरी ओर खाने पीने के रेस्तरां दिखाई दिये। जेब में हाथ मार कर देखा तो पता चला कि मेरे सारे पैसे तो होटल में ही छूट गये हैं। अब दोबारा किसी भी हालत में होटल जाने और वापिस आने का मूड नहीं था। पैंट की, शर्ट की जेब बार – बार देखी पर एटीएम कार्ड के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कैमरे के बैग की एक जेब में हाथ घुसाया तो मुड़ा तुड़ा सा १०० रुपये का एक नोट हाथ में आ गया। उस समय मुझे ये १०० रुपये इतने कीमती दिखाई दिये कि बस, क्या बताऊं ! छोले भटूरे का जुगाड़ तो हो ही सकता था। वही खा कर मॉल से बाहर निकल आया। सोचा इस बार सड़क के दूसरे वाले फुटपाथ से वापस होटल तक जाया जाये। सड़क का डिवाइडर पार कर उधर पहुंचा तो एक छोटा सा अष्टकोणीय (या शायद षट्‌कोणीय रहा होगा) भवन दिखाई दिया जिसकी छत पर एक स्तंभ भी था। सभी दीवारों पर जैन धर्म से संबंधित आकृतियां उकेरी गई थीं। यह जैनियों की किसी संस्था का कार्यालय था, जिसमें छोटे-छोटे दो कमरे बैंकों ने एटीएम के लिये किराये पर भी लिये हुए थे। एटीएम देख कर मेरी जान में जान आई और मैने तुरन्त कुछ पैसे निकाल लिये क्योंकि मेरी जेब में अब सिर्फ १० रुपये का ही एक नोट बाकी था।

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