इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैने आपलोगों को नाथद्वारा स्थित भगवान श्रीनाथ जी की गौशाला, लाल बाग तथा एकलिंग जी के बारे में बताया था उम्मीद है पोस्ट आप सभी को पसंद आई होगी। एकलिंग स्वामी जी के दर्शन करने, मन्दिर में स्थित अन्य छोटे मंदिरों के दर्शन करने तथा कुछ समय मंदिर में बिताने के बाद हम लोग मंदिर के सामने रोड़ से ही एक जीप में सवार होकर उदयपुर की ओर चल पड़े।
उदयपुर से हमारी ट्रेन रतलाम के लिये रात नौ बजे थी अत: हमें उदयपुर में रुकना नहीं था, बस दिन में ही उदयपुर के कुछ आकर्षणॊं की सैर करनी थी अत: जीप से उतरते ही हमने उदयपुर भ्रमण के लिये एक ऑटो वाले से बात की तो उसने बताया की 500 रु. में मुख्य सात आठ पाईंट घुमाउंगा जिसमें करीब पांच घंटे का समय लगेगा, थोड़े मोल भाव के बाद सौदा 400 रु. में तय हुआ।
महाराणा उदयसिंह ने सन् 1559 ई. में उदयपुर नगर की स्थापना की। लगातार मुग़लों के आक्रमणों से सुरक्षित स्थान पर राजधानी स्थानान्तरित किये जाने की योजना से इस नगर की स्थापना हुई। उदयपुर शहर राजस्थान प्रान्त का एक नगर है। यहाँ का क़िला अन्य इतिहास को समेटे हुये है। इसके संस्थापक बप्पा रावल थे, जो कि सिसोदिया राजवंश के थे। आठवीं शताब्दी में सिसोदिया राजपूतों ने उदयपुर (मेवाड़) रियासत की स्थापना की थी।
उदयपुर मेवाड़ के महाराणा प्रताप के पिता सूर्यवंशी नरेश महाराणा उदयसिंह के द्वारा 16वीं शती में बसाया गया था। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। मेवाड़ के नरेशों ने मुग़लों का आधिपत्य कभी स्वीकार नहीं किया था। महाराणा राजसिंह जो औरंगज़ेब से निरन्तर युद्ध करते रहे थे, महाराणा प्रताप के पश्चात मेवाड़ के राणाओं में सर्वप्रमुख माने जाते हैं। उदयपुर के पहले ही चित्तौड़ का नाम भारतीय शौर्य के इतिहास में अमर हो चुका था। उदयपुर में पिछोला झील में बने राजप्रासाद तथा सहेलियों का बाग़ नामक स्थान उल्लेखनीय हैं।
उदयपुर को सूर्योदय का शहर कहा जाता है, जिसको 1568 में महाराणा उदयसिंह द्वारा चित्तौड़गढ़ विजय के बाद उदयपुर रियासत की राजधानी बनाया गया था। प्राचीर से घिरा हुआ उदयपुर शहर एक पर्वतश्रेणी पर स्थित है, जिसके शीर्ष पर महाराणा जी का महल है, जो सन् 1570 ई. में बनना आरंभ हुआ था। उदयपुर के पश्चिम में पिछोला झील है, जिस पर दो छोटे द्वीप और संगमरमर से बने महल हैं, इनमें से एक में मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ (शासनकाल 1628-58 ई.) ने तख़्त पर बैठने से पहले अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह करके शरण ली थी।
सन 1572 ई. में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। उन दिनों एक मात्र यही ऐसे शासक थे जिन्होंने मुग़लों की अधीनता नहीं स्वीकारी थी। महाराणा प्रताप एवं मुग़ल सम्राट अकबर के बीच हुआ हल्दीघाटी का घमासान युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिए इतिहास प्रसिद्ध है। यह युद्ध किसी धर्म, जाति अथवा साम्राज्य विस्तार की भावना से नहीं, बल्कि स्वाभिमान एवं मातृभूमि के गौरव की रक्षा के लिए ही हुआ।
दोपहर करीब एक बजे हम लोगों ने अपना उदयपुर भ्रमण प्रारंभ किया। दोपहर का समय था और तेज धुप थी कहा जा सकता है की गर्मी अपने चरम पर थी। चुंकि उदयपुर की कुछ थोड़ी बहुत जानकारी मैं भी इन्टरनेट से लेकर गया था अत: अपनी जानकारी के आधार पर हमने ओटो वाले से सबसे पहले गुलाब बाग ले जाने के लिये कहा लेकिन गुलाब बाग पहुंचकर हमें निराशा ही हाथ लगी, जैसा गुलाब बाग के बारे में पढा था वैसा वहां कुछ नहीं मिला। लंबे चौड़े एरिया में फ़ैला यह बाग लगभग सुखा था, कहीं हरियाली नहीं दिखाई दे रही थी, हां कुछ गुलाब के पौधे जरुर थे लेकिन उस तरह के गुलाब के पौधों के झुंड आम तौर पर किसी भी गर्डन में देखे जा सकते हैं। यहां कुछ फोटोग्राफर राजस्थान की पारंपरिक ड्रेस में फोटो खींच रहे थे अत: हमने भी वहां रुक कर कविता तथा शिवम के कुछ फोटॊ खींचवाए और अपने अगले पड़ाव पिछोला झील की ओर चल दिये।
पिछोला झील उदयपुर शहर की सबसे प्रसिद्ध झील है और यह सबसे सुन्दरतम है। इसके बीच में जग मन्दिर और जग निवास महल है जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है।इसका निर्माण 14वीं शताब्दी के अन्त में राणा लाखा के शासनकाल में एक बंजारे ने कराया था और बाद में राजा उदयसिंह ने इसे ठीक कराया। बादशाह बनने से पहले शाहजहाँ भी इस झील के महलों में आकर ठहरा था।इस झील में स्थित दो टापुओं पर जग मंदिर और जग-निवास दो सुंदर महल बने हैं। अब इन महलों को एक पंच-सितारा होटल (लेक पैलेस होटल) में बदल दिया गया है। जिसे राजस्थान, उदयपुर के भूतपूर्व राणा भगवन्त सिंह चलाते हैं।
पिछॊला झील को देखने के बाद अब हम उदयपुर के प्रसिद्ध सिटी पैलेस महल को निहारने के लिये चल दिये। सिटी पैलेस काम्पलेक्स उदयपुर का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल माना जाता है।
उदयपुर में सिटी पैलेस की स्थापना 16वीं शताब्दी में आरम्भ हुई।सिटी पैलेस को स्थापित करने का विचार एक संत ने राणा उदयसिंह को दिया था। इस प्रकार यह परिसर 400 वर्षों में बने भवनों का समूह है।यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में 22 राजाओं का योगदान था।इसमें सात आर्क हैं। ये आर्क उन सात स्मरणोत्सवों का प्रतीक हैं जब राजा को सोने और चाँदी से तौला गया था तथा उनके वजन के बराबर सोना-चाँदी को ग़रीबों में बाँट दिया गया था। इसके सामने की दीवार ‘अगद’ कहलाती है। यहाँ पर हाथियों की लड़ाई का खेल होता था।
परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य ‘त्रिपोलिया गेट’ दिखेगा। यहाँ बालकनी, क्यूपोला और बड़ी-बड़ी मीनारें इस महल से झीलों को एक सुंदर दृश्य के रूप में दर्शाती हैं। सूरज गोखड़ा एक ऐसा स्थान है जहाँ से महाराणा जनता की बातें सुनते थे, मुख्यत: कठिन परिस्थितियों में रहने वाले लोगों का उत्साह बढ़ाने के लिए उनसे बातें किया करते थे।मोर चौक एक ऐसा अन्य स्थान है जिसकी दीवारों को मोर के काँच से बने विविध नीले रंग के टुकड़ों से सजाया गया है। इससे आगे दक्षिण दिशा में ‘फ़तह प्रकाश भ्ावन’ तथा ‘शिव निवास भवन’ है। वर्तमान में दोनों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है, इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय है। इसे अब सरकारी संग्रहालय घोषित कर दिया गया है। वर्तमान में शम्भू निवास राजपरिवार का निवास स्थान है। इस परिसर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। टिकट लेकर आप इस परिसर में प्रवेश कर सकते हैं।
सीटी पेलेस के बाद अब हम उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मंदिर की ओर चल पड़े। जगदीश मंदिर में भगवान विष्णु तथा जगन्नाथ जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
महाराणा जगतसिंह ने सन् 1652 ई. में इस भव्य मंदिर का निर्माण किया था।यह मंदिर एक ऊँचे स्थान पर निर्मित है। इसके बाह्य हिस्सों में चारों तरफ अत्यन्त सुन्दर नक़्क़ाशी का काम किया गया है। औरंगजेब की चढ़ाई के समय कई हाथी तथा बाहरी द्वार के पास का कुछ भाग आक्रमणकारियों ने तोड़ डाला था, जो फिर नया बनाया गया। मंदिर में खंडित हाथियों की पंक्ति में भी नये हाथियों को यथास्थान लगा दिया गया है।
जगदीश मंदिर के बाद अब ओटो वाला हमें लेकर गया लोक कला मंडल संग्रहालय। यहां पर हमें भारत के विभीन्न प्रांतों की लोककला की झांकियां देखने को मिलीं। यहां पर दस मिनट का कठपुतली का खेल (पपेट शो) भी दिखाया जाता है जिसका आनंद हमने भी उठाया।
और अब बारी थी सहेलियों की बाड़ी की, यह उदयपुर में स्थित एक बाग़ है। इस बाग़ में कमल के तालाब, फव्वारे, संगमरमर के हाथी बने हुए हैं। इस उद्यान का मुख्य आकर्षण यहाँ के फव्वारे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें इंग्लैण्ड से मंगवाया गया था। श्रावण मास की अमावस्या के अवसर पर इस बाड़ी में नगर निवासियों का एक बड़ा मेला भी लगता है।
सहेलियों की बाड़ी का निर्माण राणा संग्राम सिंह द्वारा शाही महिलाओं के लिए 18वीं सदी में करवाया गया था। उद्यान के बारे में यह कहा जाता है कि राणा ने इस सुरम्य उद्यान को स्वयं तैयार किया था और अपनी रानी को भेंट किया, जो विवाह के बाद अपनी 48 नौकरानियों के साथ आई थी। ‘फतेह सागर झील’ के किनारे पर स्थित यह जगह अपने ख़ूबसूरत झरनें, हरे-भरे बगीचे और संगमरमर के काम के लिए विख्यात है।
इस उद्यान के मुख्य आकर्षण फव्वारे हैं, जो इंग्लैण्ड से आयात किए गए थे। सभी फव्वारे पक्षियों की चोंच के आकार की आकृति से पानी निकलते हुये बने हैं। फव्वारे के चारों ओर काले पत्थर का बना रास्ता है। बगीचे में एक छोटा-सा संग्रहालय है, जहाँ शाही परिवार की वस्तओं का एक विशाल संग्रह प्रदर्शित है। संग्रहालय के अलावा यहाँ एक गुलाब के फूलों का बगीचा और कमल के तालाब हैं। उद्यान रोज सुबह नौ बजे से शाम के छ: बजे के बीच तक आगंतुकों के लिए खुला रहता है।
सहेलियों की बाड़ी के फ़व्वारों में भीगने से गर्मी से बहुत राहत मिल रही थी, यहां एक विदेशी कपल भी घुम रहा था जिनसे हमारी बात भी हुई लेकिन उनके टूर गाइड के माध्यम से क्योंकि वे किसी गैर अंग्रेजी देश से थे। उस विदेशी महिला ने भी कविता, संस्क्रति एवं शिवम के साथ फ़व्वारों में भीगने का बहुत लुत्फ़ उठाया।
और अब हमें हमारे ओटो वाले ने अपने अन्तिम पड़ाव यानी सुखाड़िया सर्कल पर छोड़ दिया। यह भी उदयपुर की एक बड़ी खुबसूरत जगह है। यहां पर हमने अपना बचा हुआ समय पेडल बोटिंग करने तथा यहां की खुबसूरती को निहारने में बिताया तथा शाम करीब सात बजे हम लोग उदयपुर के एक नामी होटल नटराज में खाना खाकर रेल्वे स्टेशन की ओर पैदल ही चल दिए क्योंकि यह होटल से बहुत करीब था………..और इस तरह हमारी मेवाड़ की यह यात्रा संपन्न हुई।
अपनी अगली यात्रा के अनुभव बांटने के लिये फिर उपस्थित होउंगा आप लोगों के बीच, लेकिन तब तक के लिये हेप्पी घुमक्कड़ी….
I have been to Udaipur many times for my official work, once visted with family also, Natraj is my favourite.
Thanks for refreshing the memories.
Mahesh ji,
Thanks for you comment.
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Laddha ji,
Thank you very much for your sweet words, yes we couldn’t visit these places because we had few hours to explore Udaipur.
beautiful post.very good pics.
Thanx Ashok Sir.
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Thank you Rastogi ji, your encouraging comments always motivate us.
Hello Mukesh ji,
Apki post acchi lagi.kyuki meri mummy udaipur ki thi isliye udaipur ki saari posts se ek alag lagaw rehta.kyuki ye trip ka focus udaipur nahi tha phir bhi apne bahut kuch cover kar liya.next time kabhi aap plan banaye to udaipur me stay ka kariyega.moti magri accha point hai dekhne ke liye aur fateh sagar pe shaam ko bahut accha lagta hai.hum jab chote me yaha jaate the to humare mamaji humein humesha gulab bagh aur doodh talai le jaate the.tab me aur aaj me bahut farak aa gaya hai….
Keep travelling,keep writing
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SS ji,
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Hi Mukesh,
Another Udaipur post read with a sigh. I am sure the stars will configure favourably and I will find myself in Udaipur soon.
Nice photos and the writeup of the city of lakes!
Aamin ……………
Nirdesh sir, ishwar aapko jald se jald udaipur pahuncha de ………………..
An informative post on the city.
You have covered all these places beautifully, though time was very short.
Our plan to go to Jaisalmer via Uidaipur last year cancelled at the last moment – hope to be there someday.
Hope to read your stories frequently from now onwards.
Amitava ji,
Thank you very much for your all time encouraging comments. Have you ever visited MP? If not, visit Ujjain, Omkareshwar, Maheshwar and Mandu and give us the opportunity to host you.
Thanks.
Thank you Mahesh.
Except a short trip to Morena few years back – always crossed MP at night in the train.
All these places, including Mandu & Jabbalpur are very much on our wishlist.
So, let’s see by when we can plan – It is so nice of you – I will definitely let you know.
Mukesh, I guess you made the most of the limited time you had. Apart from Nataraj, I would also recommend to go to ‘The Garden Restaurent’ (Near Sajjan Bagh). They offer a Thali, all veg and amazing quality/taste. Since it is a little away and inside a plush hotel (but the restaurant is pretty reasonable) there is never a lot of crowd.
Good to see you active again. :-) Wishes.
Nandan,
Thank you very much for your sweet words.
Mukesh Ji, Namaskar.
Very nice post indeed. I started my traveloges here by writing on Udaipur only. This city is a combination of modernism as well as tradition.
Thank you very much professor saab…..
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Dear Mukesh Ji,
Om: Namah: Shivay:
I am about to leave form Gurgaon for “Shri_Mahakal_&_Shri_Omkareshwar-Amreshwar”.
I ‘ll be there till the 5th October eve.
I already read your & kavita ji’s valuble posts regarding these places.
Specially the starting the connection between you & Vishal Ji, Nice to read all the conversation between you.
As my baby (Divyansh) is only 1.5 years old, so I planned to visit these great places of Bhole Baba with one of my very close friend, with whom I’ve already visited Shri Kedarnath, Shri Somnath & Shri Nageshwar.
Hope to see you out there !!
OM: NAMAH: SHIVAY:
Bijender YaDaV (Vijay)
9213882201
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Jay mewad Mukesh ji. mere pyare udaipur mewad ka bahut hi sundar varnan kiya he aapne. udaipur real me bahut hi sundar he aur hame garv he ki hum udaipur mewa dke vasi he. jaha Sakshat Shreenath ji shreee krishna aur Bhagvaan mahadev ekling ji virajte he. bahut bahut badhiya post lagi ye aapki udaipur ke bare me. bahut hi maja aaya padh kar. ab kabhi udaipur aaaye to time nikal kar aayiga. bahut kuch he yaha gumne ke liye. ab ki trip me mewad ke chhitorgarh ko bhi shamil kar lijiyega. yaha par maharan udaysingh maharan pratap aur shreee krishna ki bhakta meera bai rahti thi. Aur Maha sati nari maharani padmini ki Johar sthan he ye.