अफ्रीकन सफारी :- मसाईमारा-अम्बोसिली केन्या-अफ्रीका

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जंगल में रास्ते तो थे नही…गाडियों के टायर से बनी जगह इतनी उबड़ खाबड़ होती थी उस पर तेज़ चलना संभव नही था फिर दिन दिन भर खुली छत से खड़े हुए देखना आखिर थका देता है…कभी किसी पेड़ की डाल पे बैठा तेंदुआ तो कही झाड़ियो में शेरो का परिवार…अचानक कही से जिराफ या जेब्रा का दौड़ते हुए निकल जाना….लग रहा था की कोई नेशनल जियोग्राफिक या एनिमल प्लेनेट टीवी देख रहे है…विश्वास नही हो रहा था की ये सब नज़रो के सामने घटित हो रहा है।

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अनदेखा कश्मीर- पटनीटॉप/नाथाटॉप

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सड़को पर,पेड़ पौधे,घास फूस सब लुप्त….सिर्फ सफेदी…चहु ओर… आँखे और मन तो क्या ऐसा लगा आत्मा तक तृप्त हो गयी थी। सनासर का मलाल ख़त्म हो चूका था। सब तरह की(रोड ब्लाक आदि) समस्या मंजूर थी क्योकि स्नो फॉल देखने का स्वप्न अब वास्तविकता में बदल चूका था।

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वीराने का अद्भुत सौदर्य-कच्छ का रण

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बचपन में भूगोल विषय में जब नक़्शे में रण ऑफ़ कच्छ देखते थे तो समझ नही आता था यहाँ क्या है.उस समय पर्यटन की सुविधाए नही थी तो आम जनमानस भी कच्छ की यात्रा नही कर पाते थे.अतः तब अधिक जानकारी भी उपलब्ध नही थी..समय गुजरा और पर्यटन में रूचि जागृत हुई तब कच्छ भी विश लिस्ट में आ गया.प्राथमिकता तब भी जाने माने पर्यटन क्षेत्र ही रहे.फिर महानायक के विज्ञापन आने शुरू हुए
“कच्छ नही देखा तो कुछ नही देखा”

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कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान

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बहरहाल हम सब जीप पे सवार हो के अन्दर गये ।एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। कभी कभी किसी पक्षी की आवाज़ सन्नाटे को तोडती थी। तभी कुछ दूर स्पॉटेड हिरनों का झुण्ड दिखाई दिया। जैसे जैसे आगे बढे अन्य हिरन भी दिखे। बन्दर भी खूब थे। किन्तु बाघ अब भी नज़र नही आ रहे थे।अचानक ड्राईवर ने ब्रेक लगाया और चुप रहने का इशारा किया,हमे लगा बाघ होगा किन्तु कच्ची सड़क पार करता हुआ लगभग 10/12 फीट लम्बा किंग कोबरा अपना फन फैलाये बीच में खड़ा था। यु तो कई बार देखा था किन्तु उसके प्राकृतिक निवास में देखकर रोंगटे खड़े हो गये थे। लगभग 5 मिनट में हमें हतप्रभ कर नागराज जंगल में अंतर्ध्यान हो गये। हम और आगे बढे, कुछ दुरी पर जंगली हाथियों का एक झुण्ड दिखाई दिया।

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कुर्ग या कोडागु – स्कॉटलैंड ऑफ़ साउथ इंडिया

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कोडगु या कुर्ग  कर्णाटक प्रान्त का एक जिला है। इसका मुख्यालय मडिकेरी में है। पश्चिमी घाट पर स्थित पहाड़ों और घाटियों का प्रदेश कुर्ग दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्यटक स्‍थल है। यह खूबसूरत पर्वतीय स्‍थल समुद्र तल से 1525 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां की यात्रा एक न भूलने वाला अनुभव है। कुर्ग के पहाड़, हरे-भरे जंगल, चाय और कॉफी के बागान मन को लुभाते हैं। कावेरी नदी का उदगम स्‍थान कुर्ग अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा रिवर राफ्टिंग, हाइकिंग, क्रॉस कंट्री और ट्रेल्‍स के लिए भी मशहूर है।

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मेघालय – शिलोंग , स्कॉटलैंड ऑफ़ दी ईस्ट

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जब हमने सुना कि एशिया का सबसे स्वच्छ गांव का पुरस्कार भारत के एक गांव ने जीता है और वो मेघालय में है तो मैंने इसे अपने प्लान में शामिल किया । लीविंग रूट ब्रिज देखने के बाद हम इस इस गांव में पहुंचे जो कि लीविंग रूट ब्रिज वाले गांव से 2 किमी दूर स्थित है।गाँव को साफ़ कैसे रख पाते है जबकि सैलानी आते जाते रहते है रोज़ खूब सारे।

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स्तूप

अरुणाचल प्रदेश

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स्नानादि पश्च्यात 10 बजे शहर से लगभग 6 किमी की दूरी पर एक सुन्दर सी जगह है गंगा लेक( स्थानीय भाषा में Gyakar Sinyi )(झील के साथ एक मिथक जुड़ा हुआ है कि यह झील शापित है और रात के समय कोई भी इस स्थान पर जाने की हिम्मत नही करता) …एक पहाड़ ऊपर के अंतिम सिरे पर एक झील है जहा घुमावदार रास्तो से होके पंहुचा जाता है।

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लेह – लद्दाख

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आये इस सुचना के साथ कि सुरक्षा कारणों से आम जन के लिए नुब्रा वैली कुछ दिनों के लिए बंद है अत:खार्दुन्गला से वापस आना होगा।

ऊपर जाकर या रास्ते में कुछ भी नही मिलता भोजन के लिए तो पहले लंच किया और फिर थोड़ी हताशा के साथ चल पड़े विश्व की सबसे ऊँचे सड़क मार्ग पर जो की 18380 फुट (5602मी) की ऊंचाई पर स्थित है,बेहद संकरी उबड़ खाबड़ रोड जो लेह से 40 किमी दूर है, भूरे निर्जन वनस्पति शून्य इस मार्ग पर चार पहिया वाहन कम और दो पहिया ज्यादा होते है,मोटरसाइकिल और साइकिल चालको की ये प्रिय सड़क है और हमें अपनी गाडी इनसे बचते हुए चलानी थी,लेह से किराये पे मिलते है ये वाहन।

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दिल्ली से लेह-लद्दाख – सन्नाटे का सौन्दर्य

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इस सब जगहों का वर्णन शब्दों में संभव नही है,ये आप इस यात्रा के दौरान अनुभव करके ही जान सकते है।विमान से 4 दिन में लद्दाख भ्रमण आपको जगह देख लेने का संतोष तो दे सकता है किन्तु वास्तविक खूबसूरती का आनंद लेना हो तो सड़क मार्ग से ही जाईये।

केलोंग से धीरे धीरे सरचु पहुचे रास्ते पर और दिन काफी बचा था तो सोचा रात्रि विश्राम पांग में करेंगे,आगे विभिन्न रंग के पहाड़ हरे ,नीले ,पीले,भूरे ,लाल सभी रंगों में रंगे, अवर्णनीय सुन्दरता चारो और बिखरी पड़ी है और देखने वाले गिने चुने यात्री बस।

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आस्था और सुन्दरता का संगम – स्वर्ण मंदिर अमृतसर

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आप को बता दू की अगर बॉर्डर देखने का मन हो तो सुबह या 12/1 बजे तक भीड़ बढ़ने से पहले हो आये ताकि इत्मीनान से देख सके और हो सकता है पाकिस्तानी रेंजर आपको चाय पानी पूछ ले…साधारण दिनों में बॉर्डर पे आपसी भाईचारा और मित्रता का माहौल रहता है दोनों और के सैनिको के मध्य..बातचीत हंसी मजाक..चलता रहता है.

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वाह ताज – खूबसूरती और प्रेम का अनोखा संगम

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सुबह सुबह साड़े पांच बजे नींद खुल गयी एवं पत्नी का मूड एक बार फिर ताज देखने का हुआ…हलकी ठण्ड में पैदल ही पहुच गये और आश्चर्यचकित हो के देखते क्या है की सिर्फ हम गिने चुने दो चार भारतीय थे और लगभग पांच सात सौ की संख्या में विदेशी पर्यटक…हर देश के …कही से इंग्लिश भाषा सुनाई दे रही थी तो कही कोई गाइड स्पेनिश या जर्मन भाषा में इन पर्यटकों से बात कर रहा था…पता चला की लगभग सभी विदेशी सुबह ही यहाँ आते है भारतीय भीड़ से दूर और ये सुझाव उन्हें गाइड और होटल वाले देते है…पिछले दिन भी विदेशी पर्यटक काफी थे पर आज ऐसा लगा की हम लोग विदेश घुमने आये है …इतने अधिक विदेशी एक साथ एक ही जगह पे भारत में कही नही देखने को मिलते..

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नव वर्ष और गोवा

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यहाँ मैं ये अवश्य बताना चाहूँगा की यूथ हॉस्टल द्वारा आयोजित ये कार्यक्रम इतना सुनियोजित सुसंगठित एवं व्यवस्थित होता है की इसमें आप किसी तरह की कमी नहीं निकाल सकते..स्वादिष्ट नाश्ता शुद्ध शाकाहारी भोजन…इतने न्यून राशि में नव वर्ष को गोवा जैसी अत्यंत महँगी जगह पे आना साधारण मध्य वर्गीय के लिए बहुत मुश्किल के किन्तु इस आयोजन में ये खर्च न्यून से भी न्यूनतम है..इसके लिए आयोजनकर्ता यूथ हॉस्टल वन्दनीय है जिसमे सभी कार्यकर्त्ता वोलेंटियर होते है जो अपने कार्यस्थल से छुट्टी ले के इस 20/25 दिन के आयोजन को सफल बनाते है.

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