पार्वती घाटी (कुल्लू) में एकल (solo) घुमक्कड़ी — बिजली महादेव मंदिर, कुल्लू

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स्थानीय लोगों के अनुसार आकाश से गिरने वाली जोरदार बिजली भगवान महादेव के इस मंदिर में विराजमान पवित्र शिवलिंग पर गिरती है, जो इस पवित्र शिवलिंग को टुकड़ों में बिखेर देती है। बिजली से खंडित हुए शिवलिंग के आसपास गिरे टुकड़ों को एकत्रित करके मंदिर के पुजारी मक्खन की सहायता से शिवलिंग के टुकड़ों को फिर से शिवलिंग के आकर में जोड़ देते है. कुछ समय के पश्चात् चमत्कारी रूप से शिवलिंग अपने आप पहले की तरह पूर्ण रूप में परिवर्तित हो जाता है।

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पार्वती घाटी (कुल्लू) में एकल (solo) घुमक्कड़ी — तोष, कसोल और छलाल

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कसोल से लगभग दो किलोमीटर दूर छलाल गांव तक इस पुल को पार करने के बाद केवल पैदल ही जाया जा सकता है. छलाल गांव में जाने वाला रास्ता पार्वती नदी के किनारे है. रास्ते के एक ओर पार्वती नदी के जल का मधुर स्वर पूरे रास्ते आपके कानों से टकराता रहता है. और दूसरी ओर ऊँचे पर्वत इस मार्ग को मनोहारी बना देते है. देवदार के घने वृक्षों से होकर छलाल गांव तक की पदयात्रा का अनुभव अपने आप में अनूठा है.
छलाल गांव में पहुँचने पर शाम हो चुकी थी. रात्रि विश्राम के लिए छलाल में रूककर अगले दिन आगे की यात्रा का निर्णय लिया.

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पार्वती घाटी (कुल्लू) में एकल (solo) घुमक्कड़ी — खीर गंगा से वापसी

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नकथान में ग्रामवासियों को दैनिक जीवन के क्रिया कलापों को करते देखा जा सकता है. अपने आस-पास उपलब्ध दैनिक जीवन के सीमित सुविधा, संसाधनों से संतुष्ट यहाँ के लोग जीवन को वास्तविक रूप में जीते हैं. झरनों का बहता स्वच्छ-शुद्ध जल, पहाड़ों से होकर आती शीतल सुगन्धित वायु, पहाड़ों के बीच बहती पार्वती नदी, छोटे-छोटे खेत और बागों में उगने वाले फल, सब्जी और अन्न और साथ में रहने वाले सहयोगी पशु. जीवन को वास्तविक रूप में जीने के लिए बस इतना ही चाहिए इसके अतिरिक्त बाकी सब जीवन को और अधिक सुविधा-संपन्न बनाने की कभी न ख़त्म होने वाली लालसा ही है.

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पार्वती घाटी (कुल्लू) में एकल (solo) घुमक्कड़ी — खीर गंगा

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खीर गंगा का प्रमुख आकर्षण यहाँ बना हुआ प्राकृतिक गर्म पानी का कुंड “पार्वती कुंड” है. प्राचीन मान्यता के अनुसार खीर गंगा में प्राचीन समय में खीर बहती थी जो पहाड़ों के बीच से होकर पार्वती कुंड में गिरती थी. वर्तमान में भी पार्वती कुंड के पानी का रंग सफ़ेद है और खीर की मलाई जैसे छोटे-छोटे कतरे पार्वती कुंड के पानी में देखे जा सकते है. इसी कारण से इसका नाम खीर गंगा पड़ा. पार्वती कुंड में नहाने से पहले कुंड की पवित्रता बनाये रखने के लिए कुंड के बाहर गिरते पानी में नहाना आवश्यक है.

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पार्वती घाटी (कुल्लू) में एकल (solo) घुमक्कड़ी — मणिकर्ण

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गुरुद्वारा श्री मणिकर्ण साहिब के अतिरिक्त यह स्थान अपने गर्म पानी के स्रोतों के लिए भी प्रसिद्ध है. खौलते पानी के स्रोत मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं. इन स्रोतों के गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों में विशेष लाभ मिलता है. इस पानी में गंधक के कारण अधिक देर तक नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं. इन्हीं स्रोतों के गर्म पानी का उपयोग गुरुद्वारे के लंगर के लिए चाय बनाने, दाल व चावल पकाने के लिए किया जाता है. गर्म पानी के इन स्रोतों में पानी के तापमान का अनुमान नीचे दिया गए विडियो से लगाया जा सकता है.

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घुमक्कड़ की दिल्ली : राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (National Rail Museum, New Delhi)

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सन 1907 में निर्मित एक अनोखा मोनोरेल इंजन (Patiala State Monorail System). इस Monorail System की विशेषता है कि इसका एक पहिया पटरी पर और दूसरा (आकर में बड़ा) पहिया सड़क पर चलता है. दूर से देखने पर यह एक पहिये वाली ट्रैन दिखायी देती है.

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हिमाचल का अनमोल रत्न  ‘त्रिउण्ड’ : आकर्षक पर्वतारोहण क्षेत्र

हिमाचल का अनमोल रत्न ‘त्रिउण्ड’ : आकर्षक पर्वतारोहण क्षेत्र

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जिस प्रकार स्वादिष्ट व्यंजनों की चर्चा भूखे व्यक्ति की भूख को ओर अधिक बढ़ा देती है उसी प्रकार त्रिउण्ड के प्राकृतिक सौंदर्य की चर्चा ने घुमक्कड़ों की लालसा को भी बढ़ा दिया होगा. जिन्होंने त्रिउण्ड की घुमक्कड़ी नहीं की है उनके मन में अवश्य ही ये प्रश्न उठ रहे होंगे कि त्रिउण्ड कैसे पहुंचा जाए,

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घुमक्कड़ की दिल्ली : हवेली मिर्ज़ा ग़ालिब

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ग़ालिब के रहते इस हवेली की असल पैमाइश तकरीबन 400 स्क्वायर यार्ड्स (square yards) थी. नाजायज कब्जों की वजह से इस हवेली के अंदर और चारों ओर दुकानों और दूसरे कारोबारी इस्तेमाल के चलते हवेली ने अपना वज़ूद लगभग खो-सा दिया. साल 1999 में दिल्ली सरकार ने इस हवेली के कुछ हिस्से को नाज़ायज़ कब्जों से छुड़ाकर इसे फिर से पुराने रंग-रूप में लाने की कोशिश की. और इस तरह ग़ालिब की हवेली “ग़ालिब स्मारक” के तौर पर वज़ूद में आयी.

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घुमक्कड़ की दिल्ली : गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब

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भवन के बाहर आकर पंक्ति में हलुवा का प्रशादा लिया. प्रांगण में कुछ देर शांतचित्त होकर बैठे रहने के बाद प्रशादा ग्रहण किया. गुरुद्वारों में मिलने वाले प्रशाद रूपी हलुवे की विशेषता है कि यह शुद्ध देशी घी से बना होता है और पूरी तरह से घी में तर होता है. हाथ में प्रशादा लेकर खाने के बाद हाथों में देशी घी की सुगंध और चिकनाहट बानी रहती है और स्वाद की तो बात ही क्या ‘गुरु-प्रसाद’ जो है. बच्चों ने भी प्रशादा ग्रहण किया और मेरी बड़ी बेटी भूमिका को इतना पसंद आया कि प्रशादा की लिए दोबारा से लाइन में लग गयी. प्रशादा वितरण करने वाले भगतजी ने सर पर रुमाला न होने की कारण थोड़ा डांटते हुए प्रशादा देने से मना कर दिया और हम दूर से दृश्य देखते रहे.

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घुमक्कड़ की दिल्ली : तीन मूर्ति भवन

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तारामंडल के बीचो-बीच एक विशेष प्रकार के प्रोजेक्टर ने धीरे-धीरे क्रियाशील होकर गोलाकार छत रुपी परदे को अपने प्रकाश से ढक दिया. आकाशगंगा, तारामंडल, ग्रह-नक्षत्र आदि ब्रह्मांडीय आकृतियों ने प्रकट होकर तारामंडल की छत को वास्तविक आकाश के रूप में परिवर्तित कर दिया. ब्रह्मांडीय खगोल की क्रियाओं जैसे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, तारों के बनने नष्ट होने की प्रक्रिया, आकाशगंगा का बनना, ग्रह नक्षत्र, सौर परिवार के ग्रहों के आपसी सम्बन्ध और उनकी गति, भ्रमण, परिक्रमा आदि अनेक जानकारियों को बिखेरता हुआ तारामंडल का शो प्रगति पर था. ब्रह्माण्ड के नक्षत्र, आकाशगंगा, सौर परिवार और ग्रहों आदि को अच्छी प्रकार से समझने हेतु तारामंडल विशेष उपयोगी है.

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ब्रज भूमि भ्रमण : बरसाना-नंदगाँव में होली का हुड़दंग

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मथुरा-वृंदावन के मंदिरों के दर्शन के पश्चात सोमवार 11 मार्च, 2014 को बरसाना की यात्रा का कार्यक्रम बनाया. बरसाना की विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली के दर्शन की उत्सुकता के कारण आज सुबह सभी लोग जल्दी-जल्दी उठकर तैयार होने लगे. मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन आदि स्थानों की यात्रा का सौभाग्य तो कई बार मिला परन्तु बरसाना-नंदगाँव के स्थलों के भ्रमण का ये हमारा प्रथम अवसर था.
प्रातःकालीन दैनिक कार्यों के निवृत्ति और नाश्ते के पश्चात् बुआ जी-फूफा जी से विदा लेकर चलने कि तैयारी की. बरसाना तक पहुँचने के लिए गाडी और ड्राईवर की व्यवस्था के फूफा जी ने करवा दी थी. होली के रंग में रंगने के लिए राधारानी के जन्मस्थल बरसाना की और चल दिए.

बरसाना के होली महोत्सव में श्रीकृष्ण के स्थान नंदगाँव के निवासी बरसाना की गोपियों के साथ होली खेलने तथा राधारानी जी के मंदिर पर ध्वजारोहण के उद्देश्य से बरसाना में आते हैं. बरसाना में गोपियों द्वारा उनका स्वागत रंग-गुलाल के साथ-साथ लट्ठों (डंडों) द्वारा किया जाता है. नंदगाँव के निवासी भी स्वागत के इस तरीके से भली-भाँती परिचित होते हैं और वे रंग-गुलाल के साथ-साथ अपने बचाव के लिए बड़ी-सी मजबूत ढाल लेकर आते हैं. होली के इस अनोखे स्वरुप के कारण ही बरसाना की होली को लट्ठमार होली के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है. इसके अगले दिन बरसाना की गोपियाँ नंदगाँव में होली के लिए जाती हैं और नंदगाँव के निवासी रंग, अबीर, गुलाल से उनको तरह-तरह के रंगों में रंग देते हैं.मथुरा से लगभग 45 किलोमीटर दूर बरसाना जाते हुए रास्ते में गोवर्धन पर कुछ देर रूककर गिरिराज जी परिक्रमा मार्ग पर दंडवत और दानघाटी गिरिराज जी मंदिर को प्रणाम करके बरसाना की ओर चल दिए.

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ब्रज भूमि भ्रमण : मथुरा-वृंदावन के कुछ दर्शनीय स्थल

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निधिवन में विचरने के पश्चात् अभी भी मंदिरों के द्वार खुलने में पर्याप्त समय था. वृंदावन में आकर वृंदावनी लस्सी का मजा अगर नहीं लिया तो वृंदावन का भ्रमण अधूरा ही है. भूख भी लगी हुए थी तो कुछ खाने-पीने के साथ वृंदावनी लस्सी का मज़ा उठाने का यही सही समय था. बाकि बचे समय को श्री यमुना जी का तट पर व्यतीत करने का विचार कर पग यमुना तट की ओर चल पड़े. श्री यमुनाजी भगवान् श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं की साक्षी है. श्री यमुनाजी के तट पर बैठकर भगवन की चीर-हरण, कालिया-दमन आदि अनेक लीलाओं के दृश्य आँखों के सामने तैरने लगते हैं. श्री यमुना जी कि रेत में बच्चे क्रीड़ा करते हुए गीले रेत में सराबोर होकर आनंद के खजाने को खोदने लगे. और धीरे-धीरे समय मंदिरों के द्वार खुलने का हो गया.
सबसे पहले वृंदावन के प्राचीन श्री बांके बिहारी जी मंदिर के दर्शन के लिए मंदिर द्वार पर द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगे. बांके बिहारी मंदिर भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बांके बिहारी कृष्ण का ही एक रूप है जो इसमें प्रदर्शित किया गया है। इसका निर्माण सन 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था. वृंदावन में आने वाला प्रत्येक दर्शनार्थी इस मंदिर में श्री बांके बिहारी जी के दर्शन अवश्य करके अपने यात्रा को सफल करने का प्रयत्न करता है.

अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में कृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन टेम्पल) जो कि अंग्रेजों का मंदिर नाम से भी प्रसिद्द है. ISCON के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद जी के आदेशानुसार इस मंदिर का निर्माण सन 1975 में करवाया गया. विश्वभर के प्रसिद्द इस्कॉन मंदिरों में से एक वृंदावन का ये एक अतिप्रसिद्ध मंदिर है. वर्षभर इस मंदिर में पूरे विश्व के कृष्ण-भक्तों का यहाँ आना-जाना लगा रहता है. मंदिर में प्रवेश करते ही स्वामी प्रभुपाद जी के महामंत्र (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) का मानसिक जाप स्वतः ही प्रारम्भ हो जाता है. मंदिर में सतत चलने वाला महामंत्र का संकीर्तन आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर दर्शन के साथ नर्तन करने को विवश कर देता है.

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