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गौरीकुंड – चोपटा – जोशीमठ – बद्रीनाथ (भाग 4)

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कोई शक नही हिन्दुस्तान मे चोपटा की प्राक्रतिक सुंदरता नायाब है। कोसानी के बारे मे महात्मा गाँधी ने स्विट्ज़रलैंड ऑफ इंडिया कहा था। वहाँ उन्होने अपना आश्रम भी बनाया परन्तु चोपटा की सुंदरता के आगे कोसानी कहीं नही टिकता है। जो भी चोपटा आता है वह यहाँ की खूबसूरती को भूल नही सकता। यहाँ पर हम लोग लगभग आधा घंटा रुक कर आस पास के नज़ारे देखते रहे। यहाँ की सुंदरता देख कर बार-बार सब कहने लगे बहुत अच्छा किया जो हम इस रास्ते से आए वरना हमे पता ही नही चलता कि कितनी खूबसूरत यह जगह है।

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The Tent city

Maha Kumbh Mela – A day in Prayag

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As the sun sets slowly in the west, we wave goodbye with a promise to come back again and pray to the almighty to give us a chance to witness & be a part of another Kumbh mela at some other place, where all the pleasures of a comfortable life are shunned for the time by millions of devotees.

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On the way to Kedarnath

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Srinagar received its name from Sri Yantra, a mythical giant rock, so evil that whoever set their eyes on it would immediately die. The rock was believed to have taken as many as thousand lives before Adi Shankaracharya, in the 8th century AD, as a part of an undertaking aimed to rejuvenate the Hindu religion across India, visited Srinagar and turned the Sri Yantra upside down and hurled it into the nearby river Alaknanda. To this day, this rock is believed to be lying docile in the underbelly of the river. That area is now known as Sri Yantra Tapu.

On the way to Srinagar we saw a broken bridge which was built recently across Alaknanda and damaged too during construction. Six labourers die during that time thereafter the construction was not restarted.
We all were enjoying our journey in our own ways as some were busy in clicking pictures of the natural beauty of Uttrakhand , some were sleeping as we got up early in the morning & kids were busy in singing and playing cards.

After 35 kms from Srinagar we reached Rudarprayag , named after Shiva (Rudra). Here Alaknanda river from Badrinath and Madakani river from Kedarnath meet.

From Rudarprayag the road separated for Kedarnath & Badrinath, left road goes to Kedarnath & right one towards Badrinath.

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गौरीकुंड- केदारनाथ- गौरीकुंड (भाग 3)

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जिस जगह से हम उतर रहे थे वहाँ बादल काफ़ी कम थे लेकिन नीचे की ओर गरुडचट्टी बादलों के कारण बिल्कुल दिखाई नहीं दे रही थी यानि की हम बादलों से भी उपर चल रहे थे। मुझे हिन्दी फ़िल्म का वो गाना याद आ गया ‘आज मैं उपर, आसमान नीचे…’ । थोड़ी ही देर बाद हम बादलों का सीना चीरते हुए गरुडचट्टी पहुँच गये और काफ़ी देर तक बादलों में चलने के बाद तेजी से नीचे की ओर उतरते गये। थोड़ा और नीचे उतरने के बाद फिर से मौसम साफ़ हो गया।

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अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म

अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म

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आज अपना पहला यात्रा अनुभव आप लोगे से साझा करने जा रहा हूँ हिंदी लिखे हुए वैसे भी अरसा हो गया! इस ब्लॉग को…

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लेह लद्दाख – मनाली – केलोंग – दार्चा – बरालाचा ला – लाचुलुंग ला – पैंग – 3

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यहाँ पर बहुत से सरकारी दफ्तर और सेवाएँ है। एक बड़ा बाज़ार और सड़क से दाएं ओर नीचे बस स्टैंड भी है। यहाँ पर रुकने का पूरा इंतजाम है कई रेस्ट हाउस, सरकारी बंगलो और होटल भी है। केलोंग मे गाड़ी का हवा-पानी टिप-टॉप करने के बाद हम बिना रुके “जिस्पा”, “दार्च” होते हुए “zingzingbar” पहुँच गए। एक बात बता दूं की “zingzingbar” मे भी रात को रुकने का इंतजाम है। अभी दोपहर का समय था तो हमने रुकना ठीक नहीं समझा। ये हमारी बहुत बड़ी भूल थी। इसका ज़िक्र आगे चल कर दूंगा। “zingzingbar” से आगे खड़ी चढाई पार करने के बाद हमने “बारालाचा ला दर्रा” दर्रा पार कर लिया था। इस दर्रे की ऊंचाई 5030 मीटर या 16500 फीट है। यहाँ से लगातार उतरने के बाद हम लोग “भरतपुर” होते हुए “सार्चू” पहुँच गए।

“सार्चू” मे हिमाचल प्रदेश की सीमा समाप्त हो जाती है और जम्मू-कश्मीर की लाद्द्खी सीमा शुरू हो जाती है। यहाँ पर भारतीय सेना का बेस कैंप है और एक पुलिस चेक पोस्ट भी है। चेक पोस्ट पर गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी गई। हमारा परमिट चेक किया और रजिस्टर मे दर्ज कर लिया गया। “सार्चू” मे सड़क एक दम सीधी है और गाड़ी की रफ़्तार आराम से 100-120km/h तक पहुँच जाती है। यहाँ पर गाड़ियाँ फर्राटे से दौड़ रहीं थी। तभी क्या देखा एक फिरंगी महिला साइकिल(आजकल तो bike बोलते हैं) पर सवार होते हुए चली आ रही थी। मुझे सड़क पर लेटा हुआ देख वो साइकिल से नीचे उतर गई और पैदल चलने लगी।

हम सब उसको देख कर हैरान हो गए। शायद हरी ने उससे पुछा की अकेले जा रही हो तो risk है। उसने बताया की उसके साथ के और लोग भी पीछे आ रहे हैं। वो और उसके साथी मनाली से लेह साइकिल से ही जाने वाले थे। और उसको आज “सार्चू” मे ही रुकना था। इतने दुर्गम, पथरीले, टूटे-फूटे, चढाई-उतराई, अनिश्चिताओ से भरपूर इलाके मे जहाँ 2.6L की Xylo का भी दम निकल जाता था ये फिरंगी इसको साइकिल से ही पार करने वाले थे। इनके जज़्बे और हिम्मत की तारीफ़ की गई और इनको सलाम बोल कर भोजन की तलाश मे चल दिए।

ठीक से याद नहीं है पर दोपहर के करीब 3 बज रहे थे और भूख लग चुकी थी। यह जगह एक बहुत बड़े समतल मैदान जैसी है। यहाँ पर भी रुकने के लिए बहुत सारे टेंट लगे हुए थे। ये सब देख कर समझ आ गया था की यहाँ के लोग काफी मेहनती है। साल के 6 महीने ही मनाली-लेह हाईवे खुलता है। इन्ही 6 महीनों मे इनकी कमाई होती है और बाकि के 6 महीने तो बर्फ पड़ी रहती है। यहाँ पर लगे एक टेंट खाने का इंतजाम था। हमसे पहले और लोग भी थे तो हमको 10-15 मिनट बाद का टाइम दे दिया गया। इस टाइम का हमने पूरा उपयोग करके फोटो session कर डाला। “सार्चू” मे ली गई कुछ फोटो। जानकारी के लिए बता दूँ यहाँ पर ली गई सारी फोटो मैंने नहीं बल्कि मनोज, हरी और राहुल ने खीचीं हैं।

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Delhi to Hyderabad By Road – Road trip – Part 2 – Final

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Once you cross the MP border and enter Maharashtra, the real pain begins. The border was a stretch of non existent roads with craters  all over it. To add more to misery, there was a RTO checkpost which was checking the trucks and had created a huge Jam at this place.

After crossing the border, roads were bad, though there was tar on top but sudden potholes do surprise you and take a hit on your suspension.

After around 30 Kms from there, 4 lane road started which took me straight to Nagpur byepass. Paid my toll @ Mansar, and drove down the Nagpur byepass. I had initial plan of taking a stoppage at Nagpur and then start afresh from there, but never found any boards inviting me inside Nagpur, and I reached the next toll gate which was outside Nagpur. Now I had covered more than 250 Kms and wanted to have some rest but there were no dhabas or motels available.

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ऋषिकेश – देवपर्याग – रुद्रप्रयाग – गौरीकुंड (भाग 2)

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ऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग तक के रास्ते में पहाडो पर काफ़ी कम हरियाली है और ये काफ़ी रेतीले लगते हैं लेकिन रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की तरफ़ मुडते ही दृश्य एकदम बदल जाता है। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली है ,घाटियॉ बहुत खुबसुरत हैं। हम इन खुबसुरत वादियों का आनंद लेते हुए अगस्त्यमुनि से होते हुए गुप्‍तकाशी पहुँच गये ।वहाँ गाड़ी रुकवा कर चाय पी और आस पास के सुन्दर नजारों को निहारने लगे। गुप्‍तकाशी से घाटी के दूसरी तरफ़ ऊखीमठ साफ़ दिखाई देता है।

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लद्दाख यात्रा – > नोएडा – बिलासपुर – मंडी – मनाली

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खेर बहुत बड़ी बला टली और 5 मिनट चलने के बाद “Haveli” आ गयी और हमने गाड़ी पार्किंग में लगा दी। अंकल के साथ गाड़ी का बाहरी निरक्षण किया गया एक भी खरोंच नहीं थी, ऐसा लगा की सारा झटका Xylo के शौकर और कमानियों ने झेल लिया था। अंकल ने कहा की अगर इंजन मे कोई लीकेज होगी तो पता चल जाएगा क्योंकि हम वहां पर 30 मिनट के लिए रुकने वाले थे। हम चारों “Haveli” के अंदर चल दिए, पर अंकल अभी भी गाड़ी के निरक्षण मे लगे हुए थे। इस घटना को याद करते तो पहले तो हम सहम से जाते पर कुछ समय के बाद ये एक मज़ाक का विषय बन चुका था। इसका जिक्र आते ही ज़ोरों की हंसी आती थी क्योंकि अभी तो ट्रिप शुरू ही हुई थी और अंकल तो इसका अंत करने ही वाले थे। आगे के पूरे रास्ते हम यही सोच कर बहुत हँसे थे। हमने यहाँ पर कुछ नहीं खाया। सब फ्रेश होकर गाड़ी के ओर चल पड़े और अंकल से कहा कि अब सीधे रात्री मे भोजन ही करेंगे।

यह सोच कर हम आगे निकल पड़े। अम्बाला से कुछ दूर पहले ही नज़र “Liquor” शॉप पर जा पड़ी। गाड़ी को रुकने का आदेश दिया गया और “Haveli” से पहले हुए कांड का अफ़सोस मनाते हुए मूड बनाया गया। यहीं पर अंकल की एक खासियत का पता चला, ट्रांसपोर्ट लाइन मे होने के बावजूद वो मदिरा का सेवन नहीं करते थे और सुद्ध साकाहारी थे। ये सुनकर हम लोगों की खुशी दुगनी हो गई और हम अपनी बाकि बची हुई यात्रा को लेकर निश्चिंत हो गए थे। आजकल ऐसे ड्राईवर कम ही मिला करते हैं। यहाँ पर थोड़ा टाइम बिताने के बाद हम लोग अम्बाला से पहले ही अंकल ने एक U-Turn ले लिया और बोले की हम जाटवर, बरवाला, रामगढ़ होते हुए पिंजौर पहुँच जाएँगे। हम सबने कहा जैसी आपकी इच्छा “अंकल”। रात के 10 बज चुके थे हमने पिंजौर में रुक कर खाना खाया, अंकल को बोला की गाड़ी मे जो pizza पड़ा है वो ले आओ। अंकल बोले बेटा वो तो मैंने खा लिया है। अंकल के सामने किसी ने कोई आपत्ती नहीं जताई। लेकिन बाद में ये भी एक joke बनके रह गया क्यूंकि अंकल ने बड़े शान से कहा था “में pizza नहीं खाता, हम तो सादी रोटी खाने वाले इंसान हैं”। हम आगे बद्दी, बिलासपुर, सुंदरनगर, मंडी, कुल्लू होते हुए मनाली जाने वाले थे और अंदाजन दोपहर के 12 या 1 बजे तक पहुँचने वाले थे। खाने के सबने सोचा की यहीं रूम लेकर सो जाते हैं। दो-दो का ग्रुप बना कर हम लोग रूम देखने चले गए। रूम रेंट यहाँ पर बहुत ज्यादा था। सिर्फ 5-6 घंटे की ही तो बात थी। क्यूंकि हम अगली सुबह जल्दी ही निकलने वाले थे। होता वही है जो होना होता है, सबने बिना रुके आगे चलने का फ़ैसला किया। यहाँ से थोड़ी देर बाद हम बद्दी पहुँच गए। नालागढ़ के आस-पास ही गाड़ी रुकवा कर चाय पी। अभी भी हमे 255km आगे मनाली तक जा कर 10-सितम्बर की रात वहीं बितानी थी। बद्दी के बाद हम चारों गहरी नींद मे चले गए।

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Shergarh – Sixth City of Delhi

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Before entering the main gate, get off at Mathura Road and enter the lake area. You can take the kids out boating. But you have more serious things to do. You walk towards the looming Talaaqi Gate. This gate like the others is also capped with chattris and protected with bastions. Walk along the ramparts on the right with the rim of the lake on your right. Once the moat probably ran around the fort but now is limited to the western flank. Just make some noise walking so that you do not startle love birds cooing in the bushes.
Shergarh is a sprawling compound bound by walls on all sides. There are three gates: The Western Gate for entering is called Bada Darwaza flanked with mighty bastions, Northern Gate is called the Talaaqi Darwaza or the Forbidden Gate and the Southern Gate is called Humayun Gate. Humayun Gate is the signature symbol of Purana Qila with the two ubiquitous pavilions on top. At the foot is an amphitheatre where the Light and Sound show about Seven Cities of Delhi is played out in the evenings.

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केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब यात्रा तथा दर्शन रिपोर्ट – भाग 1 : अम्बाला- ऋषिकेश

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हमारा पहली रात ऋषिकेश में रुकने का प्रोग्राम था जो अम्बाला से सीधे सिर्फ 200 किलोमीटर है। यानि की हमारे पास काफी समय था और इसलिए हमने रास्ते में जाते हुए पोंटा साहिब और मसूरी में केम्पटी फॉल जाने का निश्चय किया।इस रास्ते से ऋषिकेश 50 -60 किलोमीटर ज्यादा पड़ रहा था लेकिन दो महत्वपूर्ण स्थान भी कवर हो रहे थे ।सभी लोगों से कहा गया की पहले दिन का लंच घर से लेकर आयें ,इसके अलावा हमने काफी बिस्कुट और स्नैक रास्ते के लिए खरीद लिए ।और आखिरकार 11 जून 2011 , दिन शनिवार आ ही गया । सभी लोग तैयार होकर पहले से निश्चित स्थान पर मिलते रहे और गाड़ी में सवार होते गए .लेकिन अभी सीटी साहेब नहीं पहुचे थे । हमने गाड़ी को महेश नगर में रुकवा कर उसका इन्तज़ार शुरु किया। हम पिछले एक घन्टे से उसे फोन कर रहे थे ताकि वो लेट ना हो जाये और अब तो उसने फोन उठाना भी बन्द कर दिया, घर पर फोन किया तो बताया कि चले गये हैं, लेकिन गाड़ी पर नहीं पहुचे जबकि सिर्फ़ 3-4 मिनट का रास्ता था । हमें ( मुझे और सुशील को ) मालूम था कि अभी वो तैयार नहीं हुआ होगा क्योंकि वो हमारा बचपन से दोस्त है और हम उसकी रग रग से वाकिफ़ हैं। हम सबको काफ़ी गुस्सा आ रहा था, अरे जब सात लोग एक आठवें की काफ़ी देर इन्तज़ार करेंगें तो गुस्सा आयेगा ही। हमने यह निर्णय लिया कि यदि वो 8:30 तक नहीं आया तो हम उसे छोड़ कर चले जायेंगे और वो पठठा पूरे 8:28 पर वहाँ पहुँच गया और वो भी अकेले नहीं ,साथ में अपने 9-10 साल के बेटे को भी यात्रा के लिये ले आया। हम उसका स्वागत गालियों से करने को तैयार बैठे थे लेकिन उसके बेटे के कारण वैसा ना कर पाये। लेकिन फिर भी उसका ‘यथायोग्य’ स्वागत किया गया।

लगभग सुबह 8:30 पर हम अम्बाला से पोंटा साहिब के लिए निकल गए। अम्बाला से पोंटा साहिब की दुरी 100 किलोमीटर है और हम मौज मस्ती करते हुए 10 :30 तक पोंटा साहिब पहुँच गए ।

(पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के दक्षिण में एक सुंदर शहर है।राष्ट्रीय राजमार्ग 72 इस शहर के मध्य से चला जाता है।यह सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल और एक औद्योगिक शहर है। गुरुद्वारा पौंटा साहिब, पौंटा साहिब में प्रख्यात गुरुद्वारा है।सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की स्मृति में पौंटा साहिब के गुरुद्वारे को बनाया गया था। दशम ग्रंथ, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा यहीं लिखा गया था। इस तथ्य की वजह से इस गुरुद्वारे को विश्व भर में सिख धर्म के अनुयायियों के बीच ऐतिहासिक और बहुत ही उच्च धार्मिक महत्व प्राप्त है। )

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Mussorie – My best ever economical trip Day 2

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This place is located nearly 1364 Meter above the sea level . The Kempty Falls, surrounded by high mountain ranges and located at a high altitude of 4500 feet, is a good place for picnic or for spending a couple of hours listening to the music of water in the midst of the Greenery which cover the surroundings This waterfall attracts many tourists particularly from plain areas. Located at a distance of 15 KM from Mussoorie town , it can be visited by conducted tour or by taking a shared taxi near Gandhi chowk taxi stand. We opted for shared taxi.

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