
Rudraprayag – Jakholi – Dhanaulti
I read about Jakholi, a small village near Rudraprayag in Uttaranchal, in 2008 in a Travel magazine named “Bhraman” published in Kolkata where I hail…
Read MoreI read about Jakholi, a small village near Rudraprayag in Uttaranchal, in 2008 in a Travel magazine named “Bhraman” published in Kolkata where I hail…
Read Moreचूँकि आज हमे सिर्फ़ बद्रीनाथ ही पहुँचना था (जो की यहाँ से मात्र 125 किमी ही है), इसलिए हम संगम पर काफ़ी देर बैठे मस्ती करते रहे. संगम का आनंद लेकर और दोनो नदियों के जल से विशुद्धि व उर्जा पाकर हम लोग आगे की यात्रा पर निकलने को तैय्यार थे. ढाबे पर नाश्ता करने के बाद, हम लोग सीधे बद्रीनाथ की बस लेने आ पहुँचे. थोड़ी देर इंतेज़ार के बाद, एकाध बसें आई पर सब खचाखच भारी हुई, पाँव रखने तक की जगह नही थी, यात्रा सीज़न मे ये एक आम नज़ारा है.
Read Moreइन दो धोकेबाजो का नाम गौरव और हुज़ेफा है। ये दोनों हमारी कंपनी की इंदौर वाली शाखा मे काम करते थे। बाकि के दो लोग मैं और राहुल नॉएडा वाली शाखा मे थे। प्लान के मुताबिक इंदौर निवासियों को 19-नवम्बर-2010 को नॉएडा पहुँचना था। हमारी शिफ्ट शाम के 05:30 बजे से सुबह के 02:30 बजे खत्म होती थी। ये दोनों 18 तारीख गुरुवार की रात की ट्रेन पकड़ कर 19 तारीख शुक्रवार सुबह दिल्ली पहुँच चुके थे। जैसी की मैंने बताया था की कंपनी मे “वर्क फ्रॉम होम” की सुविधा थी तो इन लोगों ने एक भी छुट्टी नहीं ली थी। ट्रेन से ही datacard के माध्यम से ऑफिस का काम भी कर डाला और सकुशल दिल्ली भी पहुँच गए।
Read MoreNo human soul lives around the valley though it is not soulless completely! The valley remained unknown to the world until 1931, when arrived there like Alice in Wonderland, six British Mountaineers, who lost their way while returning from a successful expedition to Mt Kamet. Numerous wild flowers cover the Valley in monsoon and create a magical sight of a wonderland. Frank S. Smythe, one of the six British mountaineers, while mentioning about the Valley wrote, “it was impossible to take a step without crushing a flower”. They named it the Valley of Flower and thereafter the valley has become a popular place for summer expedition.
Read Moreगुरुद्वारा काफ़ी विशाल है और हेमकुन्ड आने-जाने वाले यात्रियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विश्राम स्थल है। गुरुद्वारे में बहुत से हेमकुन्ड यात्री थे, कुछ लोग दर्शन को जा रहे थे और कुछ लोग दर्शन करने के बाद वापिस लौट रहे थे। हमने भी वहाँ लंगर छका (खाया) और फिर चाय पी। लगभग तीन बज चुके थे और हम ऋषिकेश की ओर निकल दिये। रास्ते में एक बार रुद्रप्रयाग में चाय के लिये गाड़ी रुक्वाई और फिर से यात्रा जारी रखी।
Read Moreऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग तक के रास्ते में पहाडो पर काफ़ी कम हरियाली है और ये काफ़ी रेतीले लगते हैं लेकिन रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की तरफ़ मुडते ही दृश्य एकदम बदल जाता है। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली है ,घाटियॉ बहुत खुबसुरत हैं। हम इन खुबसुरत वादियों का आनंद लेते हुए अगस्त्यमुनि से होते हुए गुप्तकाशी पहुँच गये ।वहाँ गाड़ी रुकवा कर चाय पी और आस पास के सुन्दर नजारों को निहारने लगे। गुप्तकाशी से घाटी के दूसरी तरफ़ ऊखीमठ साफ़ दिखाई देता है।
Read Moreरास्ते में हम लोग लोग थोड़ी देर रुद्रप्रयाग में रुके और फिर चल दिए श्रीनगर की ओर. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते हमें काफी देर हो चुकी थी और आज रात इससे आगे जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था. कोई जीप या बस मिलने की तो संभावना बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि यहाँ हिमाचल की तरह रात को बसें नहीं चलती. ऐसे में हमारे चालक साब ने हमें रात श्रीनगर में ही बिताने का सुझाव दिया और हमें रात गुजारने का एक ठिकाना भी दिखाया. हमने ठिकाना तो देख लिया पर अब किसी का भी यहाँ रुकने का मन नहीं था और सब जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे. उत्तरांचल में वैसे तो रात को कोई वाहन नहीं चलते पर सब्ज़ी फल आदि रसद पहुँचाने वाले ट्रकों की आवाजाही रात भर चालू रहती है, सोचा क्यों ना इसे ही आजमाया जाए. आज शायद किस्मत हम पर मेहरबान थी, थोडा पूछ्तात करने पर ही हमें एक ट्रक मिल गया जो हरिद्वार तक जा रहा था. ट्रक चलने में अभी लगभग आधा घंटा बाकी था और सुबह सिर्फ आश्रम में ही भोजन किया था इसलिए एक ढाबे पर जाकर थोड़ी पेट पूजा की गई.
ट्रक पर वापस लौटे तो देखा की चालक के साथ वाली सीट पर पहले ही दो लोग बैठे हुए थे. ऐसे में वहाँ हम तीनों का एक साथ बैठना संभव और सुरक्षित नहीं था. इसलिए दोनों की बुरी हालत देखकर मैं ट्रक के पीछे चला गया जहाँ कुछ अन्य लोग पहले से ही लेटे थे. इस ट्रक के ऊपर एक बरसातीनुमा दरी थी जो शायद सब्जियों को धूल और बारिश से बचाने के लिए डाली गयी थी और नीचे खाली प्लास्टिक के डब्बे रखे हुए थे जिनमे सब्जियाँ रखी जाती हैं. इन्ही हिलते डुलते प्लास्टिक के डब्बों के ऊपर हम सभी मुसाफ़िर लेटे हुए थे. ट्रक चलने पर कुछ समय तो बड़ा मजा आया पर जैसे जैसे रात गहराती गयी और नींद आने लगी तो इन हिलते हुए डब्बों पर सोना बड़ा दुखदायी लग रहा था क्योंकि एक तो ये डब्बे आपस में टकराकर हिल रहे थे और टेढ़े मेढ़े होने की वजह से चुभ भी रहे थे. खैर मेरे लिए तो ये सब रोमांच था, लेकिन रोमांच धीरे धीरे बढ़ने लगा जब इन्द्रदेव अर्धरात्रि में जागे और हम पर जमकर मेहरबान हुए. तिरछी पड़ती हुई मोटी मोटी बारिश की बूँदे हमारे ऊपर एक शॉवर की तरह पड़ रही थी जो एक मंद मंद शीतल रात को एक बर्फ़ीली सी महसूस होने वाली रात में बदलने के लिए काफी थी. ऐसे में ऊपर रखी हुई दरी ने ठण्ड से तो नहीं पर भीगने से तो बचा ही लिया. ठण्ड में किटकिटाते हुए, बिना सोये जैसे तैसे करीब चार बजे के आस पास ट्रक चालक ने हमें हरिद्वार में एक सुनसान मोड़ पर उतार दिया. जितना दर्द मेरे शरीर में उस ट्रक में सवारी करते हुए हुआ उतना पूरी यात्रा कहीं नहीं हुआ, शरीर इतना अकड़ गया था कि ट्रक से बाहर निकलने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी. ठण्ड के मारे बुरा हाल था, सुनसान गलियों से होकर गुजरते हुए हम लोग बस स्टेशन की ओर बढ़ने लगे. ऐसे में रास्ते में एक चाय का ठेला देखकर चेहरे पर कुछ ख़ुशी आयी, भाईसाब के हाथ की गर्मागरम चाय और बंद खाकर शरीर में कुछ ऊर्जा आई. फिर तो बस जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए हरिद्वार बस स्टेशन पहुँचकर, दिल्ली की बस पकड़ी तो लगभग दस या ग्यारह बजे तक दिल्ली पहुँच कर ही राहत की साँस ली. यात्रा समाप्त!
Read Moreउपर के नज़ारों ने शरीर को तरो ताज़ा कर दिया था, इसलिए उतरते वक्त ज़्यादा समय नही लगा और उतरते ही पैदल यात्रा आरंभ. कुछ एक किलोमीटर ही चले थे कि दोस्तों को थकान लगने लगी, सोचा चलो जो साधन मिल जाए आगे तक उसी मे चल पड़ेंगे. अब चलते चलते हर एक आगे जाने वाली गाड़ी को हाथ दिखाकर रोकने की कोशिश करते रहे, पर सब बेकार. किस्मत से थोड़ी देर बाद एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया, आधे मन से इसे हाथ दिखाया और ये क्या! ट्रक तो थोड़ा आगे जाकर रुक ही गया था.
Read Moreखैर यहाँ लगभग 2 घंटे मस्ती करने के बाद, 5 बज चुके थे इसलिए अन्य मंदिरों के जल्दी से दर्शन करके चढाई शुरू कर दी वापसी के लिए. यहाँ से हमारा अगला पड़ाव होना था, उमरा नारायण मंदिर जो की यहाँ से लगभग 4 किमी आगे था. मंदिर तक पहुँचते पहुँचते अंधेरा सा होने लगा था, इसलिए सोचा की रात यहीं बिताई जाए. यह मंदिर यहाँ से कुछ दूर बसे सन्न नामक गाँव के ईष्ट देवता उमरा नारायण को समर्पित है.
Read MoreThe last night’s amazing views of the sky dotted with innumerable twinkling stars left me spell bound and I was eagerly waiting for the sunrise. Next day, I got up at 4 and asked the tent shop owner to wake up the guide. After half an hour later, we started our climb to the peak and reached there well before time and now all (all bengalis except us as this place interestingly is mostly visited by the bengalis, witness to that are the shop signboards in bengali) were waiting for the sunrise. As soon as the sun rose from behind the Nanda Devi peak, all were all set to capture the golden ring created by the sunrise. Our guide told us the names of all the Himalayan peaks that ranges from Nanda Devi till Yamunotri Peak from right to left where Chaukhamba is the most dominating peak in the middle.
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