माता के जिस सà¥à¤µà¤°à¥‚प की हम बात कर रहे है उसका थोड़ा वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ करना तो बनता है। तो पà¥à¤°à¤¿à¤¯ पाठकों माठचंडी देवी का मंदिर नील परà¥à¤µà¤¤ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• सिदà¥à¤§ पीठके रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। कहा जाता है की आठवीं शताबà¥à¤¦à¥€ में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® गà¥à¤°à¥ आदि शंकराचारà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ माता की मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ यहाठपर की गयी थी। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से जà¥à¤¡à¥€ à¤à¤• पौराणिक कथा यह है की शà¥à¤®à¥à¤-निशà¥à¤®à¥à¤ नामक राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इंदà¥à¤°à¤¾ का सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¤¯ अपने अधिपतà¥à¤¯ में ले लिया था, का वध करने के बाद माता चंडी देवी, जिनकी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ देवी पारवती के अंश से हà¥à¤¯à¥€ थी, यहाठपर कà¥à¤› समय के लिठविशà¥à¤°à¤¾à¤® करने हेतॠरà¥à¤•ी थी।
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