Nasik

Maharashtra Jyotirlings – Aundha Nagnath, Baijnath and Grhrineshwar

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धर्मशाला में रूम का पता किया तो कोई 700 कोई 500 मांग रहा था, हालांकि वहां मन्दिर ट्रस्ट का धर्मशाला भी है वो मन्दिर के पीछे की और है और किसी पण्डित ने बताया की वहां सिर्फ 100 रुपए ही रुकने का किराया है, उन्ही पण्डित जी से हमने अभिषेक करवाने के लिए बात की तो वो भी हमारे साथ हो लिए की चलिए पहले आपको रूम की व्यवस्था करवाता हूँ फिर आराम से अभिषेक और पूजा के लिए चलना क्योंकि सोमवार होने की वजह से बाबा का पूजा अभिषेक 7 बजे तक करने की इजाजत मन्दिर प्रबन्धन देता है,

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शिंगणापुर यात्रा – जहाँ शनि देव विराजते हैं

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आपको फिर बताना चाहूंगा की साई आश्रम में दर्शन की बायोमेट्रिक सिस्टम है जो में स्तिथ है और रिसेप्शन से सुविधा मिल जाती है ताकि अगर आपने ऑनलाइन पर्ची नहीं ली तो आप आश्रम में ही बॉयोमीट्रिक्स करवा के शाम या सुबह की मंदिर प्रवेश की पर्ची प्राप्त कर सकते हैं । इससे यह सुविधा मिलती है की आपको फिर मंदिर के गेट १ & २ के सामने लाइन से पर्ची लेने में जो समय लगेगा वह समय बच जायेगा और एक बार प्रसादालय से प्रसाद ज़रूर पाए, यह एक डिवाइन अनुभव होगा ।

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शिरडी , जहाँ साई बसते हैं

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आपको बता दूँ की ऑनलाइन पर्ची वालों के लिए गेट नंबर ३ या शनि गेट से एंट्री होती है जलपान होने के बाद हमने मंदिर संसथान के सामने ऑटो करने का फैसला किया पर सामने तांगेवाले को देख के मन ललचा गया और बुक करके मंदिर की और चल पड़े, मंदिर संसथान से १ किमी दूर है और १००० मीटर आपको पैदल चलना होगा रस्ते में दुकान वाले आपको चादर और प्रसादी के लिए बोलेंगे पर आप सिर्फ चादर और गुलाब का फूल लीजियेगा क्योंकि बाबा को प्रसाद बाहर का नहीं चढ़ता सिर्फ फूल और चादर चढ़ती है,

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एशिया का एकमात्र टैंक म्यूजियम , अहमदनगर टैंक म्यूजियम

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सारा परिसर कई प्रकार के टैंकों से भरा था. मगर मेरी नज़र किसी भारतीय टैंक को ढूँढने में लगी हुई थी. अंत में उसी परिसर में एक भारतीय टैंक सुशोभित दिखाई दिया, जिसका नाम “Vijayanta” था. यह टैंक सेंचुरियन टैंकों की श्रेणी का था, जिसे सम्पूर्ण रूप से भारत में बनाया गया था. यह १९६६ में सेना में शामिल हुआ और २००४ में इसे सेवानिवृत किया गया. १९७१ के युद्ध में इसने अहम् भूमिका निभाई. पर उससे भी ज्यादा गौरव की बात यह है कि इसी टैंक ने भारत को टैंकों की दुनिया में निर्माणकर्ता राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल कर दिया. अहमदनगर टैंक म्यूजियमअद्भुत थी.

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अंजनेरी पर्वत की पदयात्रा

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पर्वत की तलहटी वहाँ से लगभग २ किलोमीटर दूर थी. वहाँ तक का रास्ता घुमावदार, पथरीला और उबड़-खाबड़ था. उस पर चलने वाली गाड़ियाँ भयानक हिचकोले ले रहीं थी. पर पदयात्री की लिए, उस मौसम में, वह रास्ता बेहद ख़ूबसूरत नज़ारा पेश कर रहा था. मैं धरती पर नीचे उतर आये बादलों के बीच चल रहा था, पौधों और वृक्षों से हरे हो चुके पहाड़ों को निहार रहा था, कलकल बहने वाले झरनों की आवाज सुन रहा था, उन्मुक्त स्वच्छ हवा में साँसे ले रहा था. ऐसे में सड़कों का पथरीला होना क्या महत्व रखता है? तीन-चार घुमाव के बाद रास्ता समतल हो गया. अब तो प्रकृति की छटा देखते ही बनती थी. बस एक तस्वीर की कल्पना कीजिये

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पांडव लेनी (गुफा), नासिक की पदयात्रा

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नामकरण के किस्सों को जानने के पश्चात् मैं इन्हें देखने के लिए और लालायित हो उठा. कदम तेजी से बढ़ने लगे और मैं गुफा-वृन्द के गेट पर आ गया. वहां २४ लाजवाब गुफाएं थीं. पुरातत्व विभाग द्वारा एक बोर्ड भी लगा हुआ था, जिसमें बताया गया की वे गुफाएं लगभग २०० वर्षों में बनीं थीं. कई गुफाएं तत्कालीन सम्राटों और धनिक-सम्मानित लोगों के द्वारा दान में दी गयी राशि से बनाई गयीं थीं और बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा उपयोग में लाई जातीं थीं.

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पंचवटी की यात्रा – भाग २

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पंचवटी का शाब्दिक अर्थ है, “पांच बड़/बरगद के वृक्षों से बना कुञ्ज”. अब हम उस स्थान में प्रवेश कर रहे थे, जहाँ रामायण काल में श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी ने निवास किया था. पर्णकुटी तो इतने दिनों तक अब शेष नहीं रह सकती. पर पांच वृक्षों से घिरा वह कुञ्ज आज भी शेष दिखाया जा रहा है. सभी पांच वृक्षों पर नंबर लगा दिए गए थे, ताकि लोग उन्हें देख कर गिन सकें. वर्तमान में उन पांच वृक्षों के कुंज के बीच से ही पक्का रास्ता भी बना हुआ था, जिस पर एक ऑटो-स्टैंड भी मौजूद था और साधारण यातायात चालू था. बरगद के वे वृक्ष काफी ऊँचे हो गए थे. श्रधालुओं ने उन वृक्षों की पूजन स्वरूप उनपर कच्चे धागे भी लपेटे थे. हमलोगों ने पहली बार पंचवटी से साक्षात्कार किया.

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पंचवटी की यात्रा – भाग १

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नारोशंकर मंदिर की छत अपने आप में स्थापत्य-कला के लिए प्रसिद्ध है. काफ़ी विदेशी पर्यटक इस मंदिर की छत का अध्धयन करने आते हैं. चट्टानों के नक्काशीदार टुकड़े सिर्फ उन टुकड़ों पर बने खांच में लग कर अभी तक खड़े है. मंदिर के अन्दर के सभा मंडप में एक नंदी और एक कछुए की मूर्ति है. कछुए की मूर्ति तो जमीन के सतह पर ही अंकित है. कुछ ऐसा-ही त्रैम्बकेश्वर मंदिर में भी देखने को मिलता है. मंदिर के बाहर के प्रांगन में भी कई कलात्मक आकृतियाँ हैं, जैसे की काल-सर्प की प्रतिमा. नारोशंकर मंदिर में कुछ समय बिताने के बाद हमलोग फिर से राम-तीर्थ की तरफ बढ़े.

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ब्रह्मगिरी की पदयात्रा , त्रैम्बकेश्वर

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सीढ़ियों ने अब बहुत ऊँचाई ले ली थी. विशाल चट्टान-नुमा ब्रह्मगिरी पर्वत अपने सम्पूर्ण विशालता को ले कर हमारे सामने था. उस ऊँचाई से त्रैम्बकेश्वर शहर कितना बौना और मनोहर लग रहा था. सीढियां पर्वत की सपाट सतहों से लग गयी थीं. इन सीढ़ियों में घाटी की तरफ लोहे की रेलिंग्स भी लगे हुए थे ताकि कोई फिसल कर घाटियों में न गिर जाये. उस पर अब बन्दर सामने आ गए. पहाड़ की ऊँची खड़ी सपाट सतह पर भी ये बन्दर चीखते-चिल्लाते ऐसे दौड़ते थे की मानो समतल धरती पर दौड़ रहे हों. कूद कर अचानक किसी पदयात्री के सामने आ जाना और उनके हाथ से खाना छीन लेने में इन बंदरों को महारत हासिल थी. पर अनुभवी यात्री अपने साथ इनके लिए भी कुछ खाद्य सामग्री ले कर चलते है. श्री दानी ने भी ऐसा ही किया था. उसने अपने थैले से बिस्कुट निकाला और बंदरों को निश्चिंतता से खिलाया. और इधर हम तीनों अनुभव-हीन यात्री अपनी छड़ियाँ पकड़े बंदरों से बच कर आगे चलते रहे.

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सप्त्श्रींगी देवी, नाशिक-त्रैम्बकेश्वर , की यात्रा

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जैसे ही मैं अंतिम सीढ़ी से उतरा, मेरे ध्यान स्थानीय लोगों की एक टोली पर गया, जो निचली सीढ़ी पर अजीबो-गरीब हरकतें कर रहे थे. मेरी पत्नी तो आगे बढ़ गयीं, पर मैं अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु उस टोली की ताराग चला गया. वहां एक स्त्री, जिसके बाल बिखरे हुए थे, बड़े जोरों से चिल्ला रही थी. वह हांफ भी रही थी और बड़ी बेचैन लग रही थी. वहीँ खड़े लोगों ने मुझे बताया कि उस स्त्री पर देवी आ गयीं हैं और वह तब-तक ठीक नहीं होगी, जब तक इस मंदिर के सामने उसकी पूजा न की जाये. उसके घरवाले भी वहीँ मौजूद थे. कोई ओझा उसकी तथाकथित पूजा कर रहा था. इस पूजा की पूजन सामग्री कोई भिन्न नहीं थी. वही अगरबत्ती, नारियल, फूल, मिठाई इत्यादि. पर एक बकरा भी वहीँ खड़ा था,

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Daulatabad Fort – Maharashtra Yatra (Part 10)

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Aurangzeb funded his resting place by knitting caps and copying the Qu’ran, during the last years of his life, works which he sold anonymously in the market place. Here are also buried Azam Shah, Aurangzeb’s son, Nizam-ul-Mulk Asaf Jah, the founder of the Hyderabad dynasty, his second son Nasir Jang, Nizare Shah, king of Ahmednagar, Tana Shah, last of the Golkonda kings and a host of minor celebrities.

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Ellora caves – The Brahmanical series (Maharashtra Yatra – Part 8)

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It is estimated that the task of quarrying its 3,000,000 cubic feet of rock must have occupied at least one hundred years. It is wonder to see so great a mass in the air which seems so slenderly under-dropped that could hardly forbear to shudder on first entering it. There is no nobler achievement of the Indian architects and sculptors, and no greater marvel of Indian sculpture.

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