
माता वैषà¥à¤£à¥‹à¤¦à¥‡à¤µà¥€ यातà¥à¤°à¤¾ à¤à¤¾à¤— – ४ (माता का à¤à¤µà¤¨ और à¤à¥ˆà¤°à¥‹ घाटी)
à¤à¤¸à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने पर, देवी माता पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करने वालों के सà¤à¥€ पाप धà¥à¤² जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादà¥à¤•ा कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं.इसके बाद वैषà¥à¤£à¥‹ देवी ने अधकावरी के पास गरà¥à¤ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-मगà¥à¤¨ रहीं और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कीं. à¤à¥ˆà¤°à¤µ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना à¤à¤‚ग हà¥à¤ˆ. जब à¤à¥ˆà¤°à¤µ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैषà¥à¤£à¥‹ देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¼à¤¾ के दà¥à¤µà¤¾à¤° पर देवी मां पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¤‚. देवी ने à¤à¤¸à¥€ शकà¥à¤¤à¤¿ के साथ à¤à¥ˆà¤°à¤µ का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवितà¥à¤° गà¥à¤«à¤¼à¤¾ से 2.5 कि.मी. की दूरी पर à¤à¥ˆà¤°à¤µ घाटी नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर जा गिरी.
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