
सफ़र चिलका झील का और कथा सफेद नकाबपोश सैनानियों की
पुरी से चिलका झील का जो सिरा सबसे नजदीक पड़ता है उसका नाम सतपाड़ा (Satpada) है और ये पुरी से करीब ५० किमी दूरी…
Read Moreपुरी से चिलका झील का जो सिरा सबसे नजदीक पड़ता है उसका नाम सतपाड़ा (Satpada) है और ये पुरी से करीब ५० किमी दूरी…
Read Moreपिछले साल अप्रैल में कोलकाता जाना हुआ था, एक परियोजना के सिलसिले में और तभी मैंने ये प्रविष्टि लिखी थी। अपने बाकी के यात्रा…
Read Moreगुरुद्वारे के सामने की सड़क तो उतनी ही संकरी है पर राहत की बात ये हे कि गुरुद्वारे के प्रांगण में गाड़ी रखने की विशाल जगह है। गुरुद्वारे के ठीक सामने रुमालों की दुकान है इसलिए अगर सर पर साफा बाँधने के लिए गर कोई कपड़ा ना भी लाएँ हों तो कोई बात नहीं।
Read Moreभिलाई से रायपुर होती हुई जैसे ही ट्रेन बिलासपुर की ओर बढ़ी बारिश में भीगे छत्तीसगढ़ के हरे भरे नज़ारों को देखकर सच कहूँ तो मन तृप्त हो गया। मानसून के समय चित्र लेने में सबसे ज्यादा आनंद तब आता है जब हरे भरे धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया ऍसा हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी भरी वनस्पति पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिए जब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चित्र , चित्र नहीं रह जाते बल्कि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिए जनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादुई तिलिस्मी संसार में । ज़रा देखूँ तो आप इसके जादू से सम्मोहित होने से कैसे बच पाते हैं ?
Read Moreआज की इस कड़ी में आपकी मुलाकात कराएँगे गौरी और उसके एकाकी जीवन से। साथ ही ले चलेंगे आपको इकाकुला के खूबसूरत समुद्र तट पर। साथ ही होगी भितरकनिका से जुड़ी यात्रा संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी।
Read Moreमैनग्रोव के जंगल दलदली और नमकीन पानी वाले दुष्कर इलाके में अपने आपको किस तरह पोषित पल्लवित करते हैं ये तथ्य भी बेहद दिलचस्प है। अपना भोजन बनाने के लिए मैनग्रोव को भी फ्री आक्सीजन एवम् खनिज लवणों की आवश्यकता होती है। चूंकि ये पानी में हमेशा डूबी दलदली जमीन में पलते हैं इसलिए इन्हें भूमि से ना तो आक्सीजन मिल पाती है और ना ही खनिज लवण। पर प्रकृति की लीला देखिए जो जड़े अन्य पौधों में जमीन की गहराइयों में भोजन बनाने के लिए फैल जाती हैं वही मैनग्रोव में ऊपर की ओर बरछी के आकार में बढ़ती हैं। इनकी ऊंचाई 30 सेमी से लेकर 3 मीटर तक हो सकती है। जड़ की बाहरी सतह में अनेक छिद्र बने होते हैं जो हवा से आक्सीजन लेते हैं और नमकीन जल में घुले सोडियम लवणों से मैनग्रोव को छुटकारा दिलाते हैं। मैनग्रोव की पत्तियों की संरचना भी ऍसी होती है जो सोडियम लवण रहित जल को जल्द ही वाष्पीकृत नहीं होने देती।
Read Moreपेड़ की हर ऊँची शाख पर पक्षी यूँ बैठे थे मानों बाहरी आंगुतकों से जंगलवासियों को सचेत कर रहे हों। जंगलों के बीच ऐसी यात्रा करने में आपके पास अगर अच्छी जूम लेंस का कैमरा और उससे बेहतर SLR ना हो तो पक्षियों को पहचानने और कैमरे में क़ैद करना मुश्किल होता है क्यूँकि पास जाते वक़्त हलका सा खटका हुआ तो चिड़िया फुर्र।
Read Moreहमारा अगला पड़ाव राजनगर (Rajnagar) था जो कि भितरकनिका जाने का प्रवेशद्वार है। केन्द्रपाड़ा और राजनगर के बीच की दूरी करीब 70 किमी है। इन दोनों के बीच पतामुन्दई (Patamundai) का छोटा सा कस्बा आता है। ये पूरी सड़क एक लेन वाली है और फिर त्योहार की गहमागहमी अलग से थी इसलिए चाहकर भी अपने गंतव्य तक जल्दी नहीं पहुँचा जा सकता था। हर पाँच छः गाँवों को पार करते ही एक मेला नज़र आ जाता था। गाँव के मेलों की रौनक कुछ और ही होती है… थोड़ी सी जगह में तरह तरह की वस्तुएँ बेचते फुटकर विक्रेता और रंग बिरंगी पोशाकों में उमड़ा जन समुदाय जो शायद एक साल से इन मेलों की प्रतीक्षा में हो।
राँची और कटक की दुर्गापूजा से अलग जगह जगह दुर्गा के आलावा शिव पार्वती, लक्ष्मी और हनुमान जी की भी मूर्तियाँ मंडप में सजी दिखाई पड़ीं। बाद में पता चला कि इस इलाके का ये सबसे बड़ा त्योहार है और इसे यहाँ गजलक्ष्मी पूजा (Gajlakshmi Puja) कहा जाता है।
Read Moreशायद ही सिक्किम जाने वाला कोई व्यक्ति ऐसा मिले जिसने गंगटोक ना देखा हो। हमने भी सिक्किम की अपनी पहली रात गंगटोक में ही…
Read Moreयही वज़ह है कि जब कोई प्राकृतिक आपदा उस प्यारी सी जगह को एक झटके में झकझोर देती है, मन बेहद उद्विग्न हो उठता है। हमारे अडमान जाने के ठीक दो महिने बाद आई सुनामी एक ऐसा ही पीड़ादायक अनुभव था। सिक्किम में आए इस भूकंप ने एक बार फिर हृदय की वही दशा कर दी है। हमारा समूह जिस रास्ते से गंगटोक फेनसाँग, मंगन, चूँगथाँग, लाचुंग और लाचेन तक गया था आज वही रास्ता भूकंप के बाद हुए भू स्खलन से बुरी तरह लहुलुहान
Read Moreदुनिया जहान की छोड़िए हम तो बात सिक्किम की कर रहे थे। क्या आपके लिए ये आश्चर्य की बात नहीं है कि सिक्किम जैसे अत्यंत छोटे से प्रदेश में भी इस फूल की 600 प्रजातियाँ हैं। दरअसल सिक्किम का कुछ हिस्सा समुद्र तल के करीब है तो इसके कुछ हिस्से कुछ 17000 फीट से भी ऊँचे हैं। इसलिए इस पूरे इलाके की आबो हवा इतने तरह के आर्किड्स की रचना करने में सहायक होती है।
Read Moreपिछली पोस्ट में आपने इस श्रृंखला में मेरे साथ यूमथांग घाटी की सैर की थी। शाम को हम गंगतोक लौट चुके थे। रात भर…
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