हम चले अमृतसर की सैर को

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प्रोग्राम  अमृतसर जाने का तय हुआ, आरक्षण  कराया गया.४ नवम्बर की रात का स्वर्णमंदिर एक्सप्रेस (फ्रोंटिएर मेल) का जाने का तय हुआ, वापसी ६ नवम्बर को छत्तीसगढ़ एक्स्प. से थी. रेलवे स्टेशन पर जल्दी पहुँच कर, वंहा पर बैठ कर चाय वाय पीने का आनंद ही कुछ और होता हैं.

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शिव खोडी – SHIV KHODI

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भोले बाबा के दर्शन करके, नीचे रन्सू में आकर के भोजन करके तृप्त हुए और जम्मू की और चल दिए. बारिश और आंधी तूफ़ान बहुत तेज था. पहाड़ के एक मोड पर हमारी बस कि टक्कर एक ट्रेक्टर ट्राली से हो गयी. वह टक्कर लगते ही पलट गयी. बस पीछे की  और खिसकने लगी. पीछे सैकड़ों फीट गहरी खाई थी.

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एक दिन की लैंसडाउन यात्रा

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प्रोग्राम तय हुआ की बाइक से लैंसडाउन चला जाए, क्योकि मुज़फ्फर नगर से ये सबसे नजदीक का हिल स्टेशन पड़ता हैं, सुबह ठीक ६ बजे हम लोग निकल पड़े, पहला पड़ाव हुआ कोटद्वार में, एक चाय की दुकान पर जाकर रुके, एक – एक कप चाय और एक – एक मठरी खाकर आगे चल पड़े, दूर से सिध्बली बाबा के दर्शन हुए, मनोहर कहने लगा पहले दर्शन करते हैं, मैं बोला वापिस आते हुए करेगे, ये तो एक टोक लगनी थी, माफ़ कीजियेगा अपनी मुज़फ्फरनगर वाली बोली बोल रहा हूँ, पहाड़ पर अपनी चढ़ाई शुरू हो चुकी थी, हमारी बजाज प्लेटिना धीरे धीरे चढ़ रही थी. 

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Travel to Maa Shakumbhari Devi – माँ शाह्कुम्भरी देवी यात्रा

Travel to Maa Shakumbhari Devi – माँ शाह्कुम्भरी देवी यात्रा

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ता शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ में भक्तों की गहरी आस्था है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में माता का सुंदर स्थान विराजमान है। सहारनपुर नगर से 25कि.मी तथा हरियाणा प्रांत के यमुनानगर से लगभग 50 कि.मी. दूर यह पावन धाम स्थापित है। शिवालिक पहाड़ियों के मध्य से बहती बरसाती नदी के बीच में मंदिर रूप में माता का दरबार सजा हुआ है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि माता उनकी हर प्रकार से रक्षा करती हैं तथा उनकी झोली सुख-संपत्ति से भर देती हैं। मंदिर के गर्भ गृह में मुख्य प्रतिमा माता शाकुम्भरी देवी की है। माता की दाईं तरफ माता भीमा देवी व भ्रामरी देवी और बाईं तरफ मां शताक्षी देवी विराजमान हैं।

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ७ ( जम्मू – JAMMU – २)

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रघुनाथ मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू शहर के मध्य में स्थित है। यह मंदिर जम्मू कि पहचान हैं.यह मन्दिर आकर्षक कलात्मकता का विशिष्ट उदाहरण है। रघुनाथ मंदिर भगवान राम को समर्पित है। यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख एवं अनोखे मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को सन् 1835 में इसे महाराज गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया पर निर्माण की समाप्ति राजा रणजीत सिंह के काल में हुई। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है।

इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं। रघुनाथ मन्दिर में की गई नक़्क़ाशी को देख कर पर्यटक एक अद्भुत सम्मोहन में बंध कर मन्त्र-मुग्ध से हो जाते हैं।यह कहा जाता हैं कि मंदिर में तैंतीस करोड देवी देवताओं कि स्थापना हैं.  मंदिर का मैं केवल बाहर से ही चित्र दे पा रहा हूँ. अंदर के फोटो लेना वर्जित हैं.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

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मुबारक मंडी पैलेस

मुबारक मंडी महल की वास्तुकला में राजस्थानी , मुग़ल और यूरोपीयन शैली का समन्वय देखा जा सकता है। इस महल का इतिहास लगभग 150 वर्ष पुराना है। यह महल डोगरा राजाओं का शाही आवास था। इस स्थान पर हम लोग समय अभाव के कारण जा नहीं पाए थे. यह फोटो मैंने दूर से बागे बाहू से लिया था. 

बाहू के किले में माता के दर्शन करने के बाद, वंहा से निकल कर यंहा से नीचे की और बने मछली घर और बागे बाहू गार्डन की और आ जाते हैं. मछलीघर एक शानदार एक्वेरियम बना हुआ हैं. जो की जमीन के नीचे हैं.  इसका प्रवेश द्वार एक बड़ी मछली  के रूप में बना हुआ हैं. यंहा पर दुनिया में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मछलियों को प्रदर्शित किया गया हैं. यंहा पर भी फोटो खींचना निषेध हैं.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

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हम लोग करीब नो बजे कटरा से १७ किलोमीटर का सफर तय करके बाबा धनसर पहुँच जाते हैं. सड़क से करीब २०० मीटर  पैदल उतराई करके हम लोग बाबा धनसर के धाम पहुँच जाते हैं. यह क्षेत्र बहुत ही सुरम्य स्थान पर पहाडियों के बीच जंगल से घिरा हुआ हैं. एक छोटी सी झील हैं जिसमे एक झरना लगातार गिरता रहता हैं. एक और एक गुफा बनी हुई हैं जिसमे शिव लिंगम के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं. झील में कहा जाता हैं की साक्षात् शेषनाग वासुकी विराज मान हैं. यंही पर ही उनका एक मंदिर भी बना हुआ हैं.पौरौनिक विश्वास हैं की जब भगवान शिव, माता पार्वती के साथ, उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ  जी की गुफा की और जा रहे थे, तब भगवान शिव ने अपने नागराज वासुकी को यंही पर छोड़ दिया था. नागराज वासुकी एक मनुष्य के रूप में यंही पर रहने लगे थे. उनका नाम वासुदेव था. बाबा धनसर इन्ही वासुदेव के पुत्र थे. कंही से एक राक्षस यंहा पर आ गया था. और इस क्षेत्र के लोगो को परेशान करने लगा था. तब बाबा धनसर ने भगवान शिव की तपस्या की थी. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यंहा पर उस राक्षस का संहार किया था. बाबा के आग्रह पर भगवान शिव यंही पर विराजमान हो गए थे. यंहा पर स्थित झील पवित्र मानी जाती हैं. एक  झरना लगातार प्रवाहित होता रहता हैं. इस झील में नहाना शुभ नहीं माना जाता हैं. कभी कभी इस झील के स्वच्छ जल में नागों की आकृति भी दिखाई देती हैं. हर वर्ष यंहा पर, महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव और धनसर बाबा की याद में एक वार्षिक महोत्सव व मेले का आयोजन होता हैं .

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और  भैरो घाटी)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और भैरो घाटी)

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ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

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धीरे धीरे चलते हुए, रुकते हुए, बैठते हुए, हम लोग उस दो राहे पर आ गए थे, जंहा से एक रास्ता  अर्ध कुंवारी की और जाता हैं. और बांये से एक रास्ता नीचे की और से माता के भवन की और जाता हैं. अर्ध कुंवारी की और से माता के भवन पर जाने के लिए हाथी मत्था की कठिन चढाई चढनी पड़ती हैं. और इधर से दूरी करीब साढ़े छह  किलो मीटर पड़ती हैं. जबकि नीचे वाले रास्ते से चढाई बहुत  कम पड़ती हैं. और इधर से माता के भवन की दूरी  करीब पांच किलो मीटर पड़ती हैं.  अर्ध कुंवारी माता के भवन की यात्रा में ठीक मध्य में पड़ता हैं. यंहा पर माता का एक मंदिर, गर्भ जून गुफा, और बहुत से रेस्टोरेंट, भोजनालय, डोर मेट्री आदि बने हुए हैं. यंहा पर यात्री गण थोड़ी देर विश्राम करके, गर्भ जून की गुफा, व माता के दर्शन करते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं. पर हम लोग नीचे के रास्ते से जाते हैं, और वापिस आते हुए माता के दर्शन करते हैं. ये कंहा जाता हैं की माता वैष्णो देवी इस गुफा में नो महीने रही थी, और गुफा के द्वार पर हनुमान जी पहरा देते रहे थे. भैरो नाथ माता को ढूँढता घूम रहा था, और माता इस गुफा से निकल कर आगे बढ़ गयी थी.

हम लोग नीचे वाले रास्ते से आगे बढ़ गए थे. मौसम फिर से  खराब होना शुरू हो गया था. माता के भवन की यात्रा के मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूर पर टिन शेड बने हुए हैं. जिनमे मौसम खराब होने पर व बारिस होने पर रुक सकते हैं. बारिश होने से हम लोग भी एक टिन शेड में रुक गए थे.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

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दर्शनी द्वार के बाद और बाण गंगा से पहले एक दीवार पर माता वैष्णो देवी की यात्रा का पूरा नक्शा बनाया हुआ हैं. हम लोग पवित्र बाण गंगा पर पहुँच जाते हैं. बहुत से लोग यंहा पर स्नान करके आगे बढते हैं. हमने भी अपने हाथ, पैर, मुह धोया. माना यह जाता हैं की माता वैष्णोदेवी जब भैरो  देव से छिप कर के आगे बढ़ रही थी तो हनुमान जी भी उनके साथ साथ थे. हनुमान जी को बड़ी जोर की प्यास लगी, उन्होंने मैय्या से कंहा, माता मुझे बड़ी जोर की प्यास लगी हैं. माता ने अपने धनुष बाण के एक तीर को चलाकर के धरती से एक जल का एक स्रौत उत्पन्न किया. उस जल से ही हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई. इसी जल के स्रौत को ही बाण गंगा कहा जाता हैं. बाण गंगा की जल में अनगिनत सुन्दर मछलिया भी तैरती रहती हैं. बहुत से श्रद्धालु उन्हें आटे की गोलिया खिलाते हैं. बाण गंगा का निर्मल शीतल जल बहुत ही स्वच्छ दीखता हैं, ऐसा लगता हैं की जैसे दूध की नदी बह रही हो.

आप लोग देखियेगा, कितना निर्मल, कितना शीतल, कितना पवित्र जल हैं बाण गंगा का. यंहा पर बाण गंगा को एक झरने का रूप दे दिया गया हैं. और उसके आगे स्नान करने के लिए एक कुंड बना दिया गया हैं. यंही से पैदल रास्ता और सीढ़ियों का रास्ता शुरू हो जाता हैं. वृद्ध और कमजोर, रोगी व्यक्ति को सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उनके लिए यंहा पर घोड़े, व पालकी उपलब्ध हो जाती हैं. बच्चो व सामान के लिए पिट्ठू उपलब्ध हैं. उन सबका रेट फिक्स होता हैं. पिट्ठू या घोडा तय करने के बाद उनका कार्ड पर जो नाम व नंबर होता हैं उसे अपने पास नोट करके रख लेना चाहिए. कोई बात होने पर श्राइन बोर्ड के कंट्रोल रूम में उनकी शिकायत दर्ज की जा सकती हैं. थोड़ा सा ही आगे बढ़ने पर हमें माता वैष्णोदेवी गुरुकुल दिखाई दिया. गुरुकुल की सजावट की हुई थी. गुरुकुल का वार्षिक उत्सव चल रहा था. इस गुरुकुल में सैंकडो ब्रह्मचारियो को वैदिक संस्कृति, वेद – पुराणों आदि की शिक्षा दी जाती हैं. यह गुरुकुल एक विशाल इमारत में स्थित हैं. और इसका प्रबंधन माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा ही किया जाता हैं.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

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हमारी ट्रेन का समय ठीक ६.३० शाम को था. हम लोग ठीक ६ बजे स्टेशन पहुँच गए. स्टेशन पर भी प्रतीक्षा करने का एक अलग ही आनंद होता हैं. पता चला की ट्रेन १५ मिनट लेट हैं. दरअसल मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के बीच में सिंगल लाइन हैं. जिस कारण से करीब करीब सभी ट्रेन लेट होती हैं. हमारा आरक्षण S-6 डिब्बे में था. डिब्बे में चढ़ने के बाद वही समस्या जो की पूरे हिन्दुस्तान में रेलवे में हैं. दैनिक यात्री आरक्षित डिब्बों में घुसे रहते हैं. और बड़ा अहसान जताते हुए वे हमें हमारी सीट पर बैठने देते हैं. कहते है की सहारनपुर, यमुनानगर तक की ही तो बात हैं. पता नहीं रेलवे से ये समस्या कब दूर होगी. खैर सहारनपुर के बाद आराम से एडजस्ट हुए, हम घर से आलू ,पूरी, अचार आदि खाने में लेकर के आये थे. खाना खाकर के लंबी तान कर सो गए. सुबह ठीक पांच बजे ट्रेन जम्मू पहुँच गयी. स्टेशन पर अन्धेरा छाया हुआ था. हम लोग अपने सामान सहित बाहर बस स्टैंड पर आ गए.

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यात्रा बद्रीनाथ धाम की

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बद्रीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है।

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