Religious

Makkah – Performing the Hajj pilgrimage – 4

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Tonight, though, the crowds were huge, and we had to really hunt for a good place in which to relax. Our successful location of a nice spot turned out to be a not-so-nice one after all as a police van landed within 15 minutes and started blowing all the on-board horns and sirens. In tandem with them, foot-soldiers began to ask everyone to get up and take themselves elsewhere. We got up, moved a little way off, and waited for the police car and the troops to move before returning to the spot where we had lain a few minutes earlier. This kind of ritual was repeated once, but we managed to remain at the same spot for a few more sessions of prayer. In between, a Saudi guy came and handed over a pizza pack to Dr. Naheed. We all partook some of the pizza and found it hot and fresh. I also visited the Al Baik outlet (to buy some chicken) , but returned as the queues were very, very long.

At about half past two, we left Mina and returned to our hotel in Makkah.

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

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देवभूमि गढ़वाल के कुछ छिपे हुए रत्नों को तलाशती तीन दोस्तों की कभी ना भुला पाने वाली रोमांचक घुमक्कड़ी की दास्तान…जिसमे हमने कुछ बेहतरीन नज़ारे देखे, कुछ अनोखे और सोच बदलने वाले अनुभवों से गुजरे, कुछ खुबसूरत दोस्तों से मिले, कुछ बेहतरीन ठिकानों पर रात गुजारी और बहुत कुछ सीखने को मिला…

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वाराणसी के घाट एवं गंगा आरती

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साथियों, पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा काशी/वाराणसी/बनारस में हमने करीब ढाई दिन बिताया था। काशी में हमारा पहला दिन दशहरे का दिन था और…

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Mount Abu Sight Seeing

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माउंट आबू भ्रमण के दौरान बहुत सारा समय हमने पीस पार्क में भी बिताया था। वहां घुसते ही सबसे पहले हमें ब्रह्माकुमारी वालों ने एक वीडियो दिखाया जिसका सार ये था कि ज़िन्दगी मिलेगी दोबारा – दोबारा अगर तुम नहीं करोगे अज्ञान से किनारा ! अज्ञान का अर्थ है – खुद को और इस शरीर को एकाकार समझ लेना। इस वीडियो के अनुसार हम आत्मा हैं जो इस शरीर के अन्दर, दोनों नेत्रों के मध्य भाग में, यानि भृकुटि में रहते हैं। हम यानि आत्मा, इस शरीर रूपी गाड़ी के ड्राइवर हैं। हम सब आत्मायें परमपिता परमात्मा के प्यारे बच्चे हैं, उनके अंश हैं। हम निरंतर यह स्मृति बनाये रखें कि हमारा और हमारे परमपिता परमात्मा का बाप-बेटे का नाता है तो हमें उनसे ऐसे ही स्नेह भाव उपजेगा जैसे किसी युवक को किसी अनजानी युवती से सगाई हो जाने के बाद उससे स्नेह उपजने लगता है। उसे कहना नहीं पड़ता कि भाई, कभी टाइम निकाल कर अपनी मंगेतर को भी याद कर लिया कर! वह खाते-पीते, सोते-जागते, उठते-बैठते हर समय अपनी मंगेतर को ही याद करता रहता है, उससे मिलने के ख्वाब देखा करता है। आजकल के लड़के तो मोबाइल में couple plan ले लेते हैं ताकि चौबीसों घंटे हॉटलाइन से जुड़े रहें। ठीक वैसे ही हमें यदि परमपिता परमात्मा से अपने संबंध का ज्ञान हो जाये तो हम हर समय उनकी स्मृति में ही रहेंगे। यह तब होगा जब हम सदैव यह याद करेंगे कि हम यह शरीर नहीं हैं बल्कि इस शरीर को संचालित करने वाली आत्मा हैं। हम सब विस्मृति की शिकार आत्मायें हैं जो यहां – वहां सुख की लालसा में भटकती रहती हैं जबकि वास्तविक सुख परमपिता परमात्मा से मिलन में है जो हम योग लगा कर किसी भी समय अनुभव कर सकते हैं । उसके लिये मरना कतई जरूरी नहीं है।

गुरु शिखर और अचलगढ़ नाम की दो पर्वत चोटियों के मध्य स्थित विशाल परिसर में विकसित इस पीस पार्क में न केवल अत्यन्त सुन्दर उद्यान हैं, रोज़ गार्डन हैं, झूले हैं, रॉक गार्डन है, पिकनिक के लिये और खेल कूद के लिये मैदान हैं बल्कि सबसे आनन्द दायक बात ये है कि इस पीस पार्क का प्रबंध अत्यन्त कुशल और सेवाभावी व्यक्तियों के हाथों में है। ब्रह्माकुमारी केन्द्र यानि मधुबन, ज्ञान सरोवर और शान्तिवन में तीन या अधिक दिनों के लिये नियमित रूप से शिविर लगते रहते हैं और एक दिन प्रशिक्षुओं को घुमाने के लिये भी नियत रहता है। पीस पार्क में भी वे कुछ घंटे बिताते हैं, यहां उनके लिये खेल-कूद व खाने-पीने की भी व्यवस्था की जाती है। ऐसे ही एक अवसर के चित्र यहां लगा रहा हूं।

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उज्जैन यात्रा

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अपने प्रसाद पुष्प जल को आरती के समय अपने पास ही रखे कई बार लोग पंडित और पुलिस वालो के कहने पे बहार ही चदा देते है ! हमसे भी यही गलती हुई थी लेकिन आप लोगो को सचेत करना जरुरी समझता हु !

बाबा के दर्शन करने के लिए सिर्फ २-३ मिनिट का समय मिलता है ! बाबा के दर्शन के बाद आप मंदिर के अन्दर ही बने कई और मंदिरों के दर्शन अवस्य करे ! और जिस प्रकार वैष्णु माता के लंगर में प्रसाद मिलता है उसी प्रकार महाकाल के मंदिर में भी प्रसाद के लिए एक टोकन मंदिर के अन्दर ही मिलता है एक सदस्य को सिर्फ एक टोकन ,बाबा का प्रसाद इतना स्वादिस्ट और लाजवाब होता है की बस पूछिए ही मत ! और वयवस्था तो इतनी शानदार है की तारीफे काबिल है टोकन ११ बजे से रात ८ बजे तक ही मिलता है प्रसाद में कभी रोटी ,कढी,चावल,सब्जी, मीठे चावल आदि !

मैं आप लोगो से स्पेसल आग्रह करना चाहूँगा की एक बार बाबा का प्रसाद अवस्य ग्रहण करे !

बाबा के दर्शन के बाद हम लोगो ने उज्जैन के दर्शनीय स्थलों को देखने का फैसला किया उसके लिए यहाँ कई साधन है जैसे की ऑटो , बस, वाहिनी, वेन आदि अपनी सुविधा के हिसाब से आप इनमे से कोई एक बुक कर सकते है ऑटो आपको ३०० रुपे में बुक हो जायेगा और वाहिनी और वन तक़रीबन ७०० रुपे लेंगे और बस ५० पर सवारी|

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काशी – भगवान विश्वनाथ एवं अन्य मंदिर दर्शन

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दोस्तों, पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की आगरा में मैं, रितेश गुप्ता जी एवं जाट देवता एवं हम सबके परिवार इकट्ठा हो गए थे…

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Mt. Abu – Sunset Point – Nakki Lake

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सूर्यास्त होगया तो मैने कहा कि चलो, खेल खतम, पैसा हज़म ! अब यहां से पैदल ही नीचे चलेंगे। लुढ़कते – लुढ़कते हम नीचे पहुंचे और टैक्सी में बैठ कर नक्की लेक की ओर चल दिये। इससे पहले मैं 2003 और 2005 में भी माउंट आबू गया था। वर्ष जून 2003 में तो नक्की लेक सूखी हुई मिली थी और उसमें हज़ारों मज़दूर पुरुष और महिलाएं तसले सिर पर लिये हुए घूम रहे थे। (उस समय की खींची हुई एक फोटो भी सौभाग्य से मिल गयी है जो अपने पाठकों के सौभाग्य के लिये संलग्न किये दे रहा हूं ।) परन्तु सौभाग्य से इस बार नक्की में भरपूर पानी था और नावों में लोग सवारी कर रहे थे। हमने भी एक नाव ले ली जिसे पैडल बोट कहते हैं । बेचारे दो पुरुष पैडल मारते हुए नाव को आगे बढ़ाते हैं और पीछे दो बीवियां आराम से झील का नज़ारा देखती हुई चलती हैं। संभवतः एक घंटे तक हम नक्की में यूं ही पैडल मारते घूमते रहे। इस नक्की लेक के बारे में बहुत प्रचलित किंवदंती, जो अक्सर पढ़ने को मिलती है वह ये है कि देवताओं ने एक खूंखार राक्षस से बचने के लिये नख से धरती में झील बना डाली थी । यही नहीं, नक्की झील को लेकर एक और रोमांटिक कहानी रसिया बालम की भी चली आ रही है जिसने एक राजकुमारी से विवाह की लालसा में एक रात में ही आधा किलोमीटर लंबी और चौथाई किमी चौड़ी और २०-३० फीट गहरी झील खोद डाली थी। हे भगवान, कैसे – कैसे राजा होते थे उस जमाने में! मुनादी करा दी कि जो कोई एक रात में नक्की झील खोद देगा, उससे अपनी बिटिया का ब्याह रचा दूंगा ! सौभाग्य से इस झील को खोदने के बाद भी रसिया बालम फिर भी कुंवारा ही रहा क्योंकि राजा की घोषणा को रानी ने वीटो कर दिया। राजा को रानी से डांट पड़ी सो अलग!

नक्की झील माउंट आबू के हृदय स्थल में स्थित है और यहां का प्रमुखतम आकर्षण है। माउंट आबू के बाज़ार मुख्यतः नक्की झील के आस-पास ही केन्द्रित हैं। बात सही भी है, जब सारे टूरिस्ट नक्की पर ही आने हैं तो दुकान कहीं और खोलने का क्या लाभ? एक और बड़ी विशेष जानकारी जो विकीपीडिया से प्राप्त हुई है, वह ये कि 12 फरवरी 1948 को यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित की गई थीं और गांधी घाट का निर्माण किया गया था। पर मुझे याद नहीं पड़ता कि हमने नक्की झील पर कहीं गांधी घाट के दर्शन किये हों! सॉरी बापू ! अगली बार जायेंगे तो ऐसी गलती पुनः नहीं होगी! नक्की झील के आस-पास के एक रेस्टोरेंट में भोजन लेकर (कहां, ये याद नहीं ! भोजन कैसा था, ये तो कतई याद नहीं)। हम लोग वापिस ज्ञान सरोवर में आ पहुंचे और अपने – अपने कमरों में नींद के आगोश में समा गये। (किसी इंसान के आगोश में समाने की तो वहां अनुमति भी नहीं थी !)

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Sankaram and Kotturu

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Andhra was a bastion of Buddhism for at least a thousand years. It was a centre of learning and Buddhism spread out to Sri Lanka and South East Asia through its ports. The stupas and monasteries provided the architectural models for the more famous Buddhist shrines in the rest of the world like the famous Borobodur in Indonesia. The Buddhist phase lasted for nearly a thousand years till the rise of Shaivism in the 7th century CE obliterated Buddhism from this region. It is sad that while these places attract visitors from all over the Buddhist world, Indians are not aware of the existence of these places.In this series, I am retracing the footsteps of those distant ancestors of mine.

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: जोशीमठ – तपोवन – बाबा आश्रम

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पैदल घूमते घामते प्रकृति को निहारते हुए सलधार पहुँचे और सबसे पहले वसुधारा की पद यात्रा से सबक लेकर एक दुकान पर रुककर आगे की यात्रा के लिए कुछ चने और मीठी गोलियाँ रख ली. सलधार से भविष्य बद्री तक का रास्ता ज़्यादातर जगह जंगल के बीच से गुज़रते हुए जाता था जहाँ कई जगह राह मे दो रास्ते सामने आ जाते थे जो हमारी दुविधा का कारण बन बैठते. ऐसे मे कई बार या तो स्थानीय लोगो की मदद से और कई बार बस किस्मत के भरोसे ‘अककड़ बक्कड़’ करके हम लोग जैसे तैसे सुभाईं नामक गाँव तक पहुँचे जहाँ से भविष्य बद्री की दूरी लगभग 1 ½ किमी ही रह जाती है.

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उदयपुर – जगदीश मंदिर – माउंट आबू हेतु प्रयाण

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वहां से निकल कर अगला पड़ाव था – जगदीश मंदिर ! मैं चूंकि एक घंटा पहले यहां तक आ चुका था अतः मुझे बड़ा अच्छा सा लग रहा था कि अब मैं अपने परिवार के लिये गाइड का रोल निर्वहन कर सकता हूं। परन्तु पहली बार तो मैं मंदिर की सीढ़ियों के नीचे से ही वापिस चला गया था। ऊपर मेरे लिये क्या – क्या आकर्षण मौजूद हैं, इसका मुझे आभास भी नहीं था। मंदिर की सीढ़ियों के नीचे दो फूल वालियां अपने टोकरे में फूल – मालायें लिये बैठी थीं । माला खरीद कर हम सीढ़ियों पर बढ़ चले। भाईसाहब का कई वर्ष पूर्व एक्सीडेंट हुआ था, तब से उनको सीढ़ियां चढ़ने में असुविधा होती है। वह बोले कि मैं टैक्सी में ही बैठता हूं, तुम लोग दर्शन करके आओ। मैने कहा कि टैक्सी में बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं। मुझे एक दूसरा रास्ता मालूम है मैं आपको वहां से मंदिर में ले चलूंगा। उसमें दो-तीन सीढ़ियां ही आयेंगी। वह आश्चर्यचकित हो गये कि मुझे इस मंदिर के रास्तों के बारे में इतनी गहन जानकारी कैसे है। वास्तव में, जब मैं पैदल घूम रहा था तो एक बहुत ढलावदार रास्ते से होकर मैं मंदिर के प्रवेश द्वार तक आया था। उस ढलावदार रास्ते पर भी जगदीश मंदिर के लिये छोटा सा प्रवेश द्वार दिखाई दिया था। भाईसाहब इतनी सारी सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते थे क्योंकि उनका घुटना पूरा नहीं मुड़ पाता परन्तु ढलावदार रास्ते पर चलने में कोई दिक्कत नहीं थी। मेरी जिस ’आवारागर्दी’ को लेकर सुबह ये तीनों लोग खफा नज़र आ रहे थे, अब तीनों ही बहुत खुश थे। आखिर इसी ’आवारागर्दी’ (जिसे मैं घुमक्कड़ी कहना ज्यादा पसन्द करता हूं) की वज़ह से भाईसाहब को मंदिर के दर्शन जो हो गये थे।

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Hilltop monasteries on the seaside

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What Jawaharlal Nehru had said about India is equally applicable to my hometown, Visakhapatnam, better known as Vizag. It is a young city with a history that goes back to the prehistoric period. In this series, I shall revisit the footprints left on the sands of time in and around Vizag by the early Buddhists.

I shall start at Thotlakonda, a 130 metre high hillock overlooking the famed beaches of Vizag. The Buddhist settlement was accidentally discovered in 1988 by Naval personnel were carrying out an aerial survey for setting up some facility.

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An Adventurous Trip from DELHI to Haridwar & Rishikesh

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It was around 12’o clock in the afternoon we felt tired after a long drive and checked-in at Hari Heritage hotel on the Haridwar Rishikesh Highway. we left for Rishikesh in few hours and stayed in the hotel overnight. After disappointment at Har ki Pauri , Rishikesh was a real delight. Clean and chilled Ganga water flowing in from huge mountains to the plains..We parked out car in parking and had lunch at the famous choti wala restaurant where a Choti wala guy is at the entrance welcoming you. It took around half an hour to reach Rishikesh from Haridwar.

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