
हरसिदà¥à¤§à¤¿ शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥€à¤ दरà¥à¤¶à¤¨ (à¤à¤¾à¤— 4)
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ के मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जब सती बिन बà¥à¤²à¤¾à¤ अपने पिता के घर गई और वहां पर राजा दकà¥à¤· के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने पति का अपमान सह न सकने पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी काया को अपने ही तेज से à¤à¤¸à¥à¤® कर दिया। à¤à¤—वान शंकर यह शोक सह नहीं पाठऔर उनका तीसरा नेतà¥à¤° खà¥à¤² गया। जिससे तबाही मच गई। à¤à¤—वान शंकर ने माता सती के पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सती की जलती पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ देह को दकà¥à¤· पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ की यजà¥à¤ž वेदी से उठाकर ले जा रहे थे शà¥à¤°à¥€ विषà¥à¤£à¥ ने सती के अंगों को बावन à¤à¤¾à¤—ों में बांट दिया । यहाठसती की कोहनी का पतन हà¥à¤† था। अतः वहाठकोहनी की पूजा होती है। यहाठकी शकà¥à¤¤à¤¿ ‘मंगल चणà¥à¤¡à¤¿à¤•ा’ तथा à¤à¥ˆà¤°à¤µ ‘मांगलà¥à¤¯ कपिलांबर हैं
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