A Trip to Omkareshwar Jyotirling Day – 2
Next Day (06.02.2011) we woke up in the morning at 07:00 AM and after getting fresh, having bath we started for Mamleshwar temple which…
Read MoreA popular Hindu pilgrimage destination, Omkareshwar town is situated in the islands of Mandhata formed by the River Narmada. This holy shrine is one among the 12 enshrined Jyotirlinga shrines of the Lord Shiva. The structure of this island appears in the shape of the Hindu Om symbol. Of the two main shrines here, one is dedicated to Omkareshwar and the other to Amareshwar. The religious significance of Omkareshwar is raised a notch higher as it lies on the sacred confluence of the River Narmada and River Kaveri. The places of interest here include Omkareshwar Parikrama, Sacred Meeting Point, Kedareshwar Temple, Sri Govinda Bhagavatpaada Cave, Omkar Mandhata Temple, 24 Avatars, Gauri Somnath Temple, Satmatrika Temples, Mamaleshwar Temple, Kajal Rani Cave, Ranmukteshwar Temple, Fanase Ghat, Siddhanath Temple, Peshawar Ghat and Ahilya Ghat. This temple town is well connected by road and rail and the nearest airport is at Indore.
Best Time to Visit: October to March
Languages Spoken: Hindi
Climate: Hot summers, average monsoon, cold winters
Holy places: Omkareshwar Temple, Amareshwar Temple, Omkareshwar Parikrama, Sacred Meeting Point, Kedareshwar Temple, Sri Govinda Bhagavatpaada Cave, Omkar Mandhata Temple, 24 Avatars, Gauri Somnath Temple, Satmatrika Temples, Mamaleshwar Temple, Kajal Rani Cave, Ranmukteshwar Temple, Fanase Ghat, Siddhanath Temple, Peshawar Ghat, Ahilya Ghat
Next Day (06.02.2011) we woke up in the morning at 07:00 AM and after getting fresh, having bath we started for Mamleshwar temple which…
Read MoreMe and my wife alongwith our two kids are the keen divotees of lord Shiva or in other words we have immense faith in…
Read MoreOmkareshwar , one the 12 revered Shiv temples ( Jyoteerling) is actually on an island called Mandhata in Narmada. On the south bank you will find the Mamaleshwar also among the 12. The town is similar to all temple towns all over India, full of small lanes packed with Pooja shops and hotels, a free passage to all living animals including humans, devotees and pestering priests and in addition there were flocks of flies as the monsoon special. Omkareshwar is a modern looking temple from the outside however we know the place is ancient and there are ornate pillars inside the temples which give a glimpse of the old temple. Everything inside the temple is to ensure that you should not feel peaceful. The ceramic tiles, the water abhishek mechanism where water goes in a tube and then gets poured on the shivlinga, the overbearing crowd of priests offering a menu card of abhishek in various types and costs. The only time you find solace is when you come out and look at the serene Narmada. That is the real ‘Darshan’ for me.
Mamaleshwar on the other bank is visible from this side with its ornate high shikhar and a red flag fluttering to show the location amongst the crowd of several other small temples and houses. All built in red sandstone, Mamaleshwar has that special quality of providing a devotional experience to the visitor. The temple is typical Nagar style with up-swinging Shikhar. There are many small and medium temple structures in the clean premise. The elaborate door frames and beautiful sculptures on the outer walls of temples are worth a watch. In the premise, we also find several pieces of temple structure strewn away. A lone ‘amalak’ the round top of the shikhar, some carvings and ‘chandrasheela’ – an ornate step to get into the Garbhagriha are all there stashed away, silently suffering the passage of time.
Read Moreशिव पुराण के मान्यता के अनुसार जब सती बिन बुलाए अपने पिता के घर गई और वहां पर राजा दक्ष के द्वारा अपने पति का अपमान सह न सकने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया। भगवान शंकर यह शोक सह नहीं पाए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। जिससे तबाही मच गई। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पत्नी सती की जलती पार्थिव देह को दक्ष प्रजापति की यज्ञ वेदी से उठाकर ले जा रहे थे श्री विष्णु ने सती के अंगों को बावन भागों में बांट दिया । यहाँ सती की कोहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कोहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति ‘मंगल चण्डिका’ तथा भैरव ‘मांगल्य कपिलांबर हैं
Read Moreइसका सही नाम अमरेश्वर मंदिर है। ममलेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर 10 वीं सदी में बनाया गया था। यह मंदिरों का एक छोटा सा समूह है। अपने सुनहरे दिनों में इसमें दो मुख्य मंदिर थे लेकिन आजकल केवल एक बड़े मंदिर को ही भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिरों का यह समूह एक संरक्षित प्राचीन स्मारक है।
Read Moreओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है।
Read Moreमैं तो जाने के लिये एकदम तैयार था लेकिन कुछ समस्यायें थी। एक तो कार्यलय से इतनी लम्बी छुट़्टी मिलनी आसान नहीं थी और दूसरा घर से सहमति (अनुमति) लेना भी जरुरी था। मुझे पहला काम ज्यादा मुश्किल लगा और शुरुआत वहीं से की। बॉस ने कुछ ना नुकर के बाद कहा, ठीक है , अवकाश के लिये आवेदन कर दो देख लेंगे ।
Read Moreसाथियों, इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैने आप लोगों को हमारे ओंकारेश्वर टूर के बारे में बताया था, करीब सात बजे हम लोग…
Read Moreशाम करीब ७ बजे हम लोग औंकारेश्वर पहुंच गये। औंकारेश्वर में ठहरने के लिये हमेशा हमारी पहली प्राथमिकता होती है श्री गजानन महाराज संस्थान यात्री निवास, तो हमने सीधी राह पकड़ी संस्थान की और कुछ ही देर में हम संस्थान के सामने खड़े थे।
स्वागत कक्ष पर कुछ जरूरी औपचारीकतायें पुर्ण करने के बाद हमें हमारे कमरे की चाबी मिल गई। हमारा कमरा यात्री निवास नंबर ४ में था. अब चुंकी बहुत जोरों की भुख लगी थी अत:निर्णय लिया गया की सबसे पहले भोजन किया जाये। यहां यह बता देना सही रहेगा की श्री गजानन महाराज संस्थान के हर यात्री निवास में किफ़ायती दर पर भोजन की व्यवस्था होती है, चुंकी हम पहले भी श्री गजानन संस्थान (शेगांव) में रह चुके थे तथा भोजन भी कर चुके थे और वहां हमें भोजन बहुत पसंद आया था अत: हमने आज भी भोजन यहीं भोजनालय में करने का निश्चय किया और चल पड़े भोजनालय की ओर।
खाना सचमुच बड़ा स्वादिष्ट था, ३० रु. में थाली जिसमें दो सब्जी, रोटी, दाल, चावल तथा एक मिष्ठान्न के रुप में हलुवा……शुद्ध सात्वीक भोजन और हमें क्या चाहिये था? सो भरपेट करने के बाद हम लोग अपने रुम में आकर थोड़ी देर के लिये लेट गये। अब हमें ओंकारेश्वर मंदिर में शयन आरती में शामिल होना था जो की रात नौ बजे शुरु होती है. इस समय साढे आठ बज रहे थे और यही समय था शयन आरती के लिये निकलने का, अत: हम लोग मन्दीर जाने के लिये तैयार होने लगे.
चुंकि वातावरण में बहुत ठंडक थी अत: बच्चे तो इस समय बाहर निकलने में आनाकानी कर रहे थे लेकिन उन्हें हमने चलने के लिये मना ही लिया और अन्तत: हम लोग उनी कपड़े वगैरह पहनकर अपने रुम से बाहर निकल गये। बाहर सचमुच बहुत ठंड थी और हमें तो नर्मदा नदी पर बने झुला पूल से होकर ओंकारेश्वर मन्दीर की ओर जाना था जहां और ज्यादा ठंड लगने की संभावना थी।
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