05 May

गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

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देवभूमि गढ़वाल के कुछ छिपे हुए रत्नों को तलाशती तीन दोस्तों की कभी ना भुला पाने वाली रोमांचक घुमक्कड़ी की दास्तान…जिसमे हमने कुछ बेहतरीन नज़ारे देखे, कुछ अनोखे और सोच बदलने वाले अनुभवों से गुजरे, कुछ खुबसूरत दोस्तों से मिले, कुछ बेहतरीन ठिकानों पर रात गुजारी और बहुत कुछ सीखने को मिला…

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A DAY AT MUNNAR – CONFLUENCE OF THREE RIVER

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After an hour or so we reached at our Friend Parent’s house at Kothamangalam (Town in the foothills of Western Ghat mountain range) where we were warmly welcomed by her family. We were offered the wonderful , delicious mouth-watering Kerala Breakfast Appam (Pancake made of Rice and Coconut) and Stew ( a dish made with potatoes, onions, vegetables & coconut milk).After finishing our breakfast we had again started our onwards journey towards the Tea plantation estate Munnar.

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Solo Bike Trip to Deoriatal in Uttrakhand

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after this again i started journey soon i reached saari village which is the base camp for Deorital.here i got warm welcome from a person his name is rakesh singh negi owner of Rakesh tourist lodge saari village.even all people of saari village were very humble and nice all have praised me that i came from delhi by bike.after taking tea .rakesh singh negi called his friend(surender singh)owner of dhaba at Deorital for my tent arrangements.he showed me  the way to reach deorital which is 2.5km from saari village.i just parked my bike ..here parking is totally safe.

from here real fun and enjoyment of loneliness started.only one song i listen repeatedly  during 1 hour trekking which was SHOW ME THE MEANING OF BEING LONELY..that song seems to be totally  inextricably linked to the surrounding  environment .deoriatal is 70 degree steep climb from saari village.

After 1 hrs of hiking i finally reached the Tal. i was  stunned and speechless on reaching the top. The snow-capped mountain peaks surrounded the Tal….it was awesome, there’s no word which I can describe its beauty.here i found everything what i wanted from  nature.

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Mt. Abu – Sunset Point – Nakki Lake

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सूर्यास्त होगया तो मैने कहा कि चलो, खेल खतम, पैसा हज़म ! अब यहां से पैदल ही नीचे चलेंगे। लुढ़कते – लुढ़कते हम नीचे पहुंचे और टैक्सी में बैठ कर नक्की लेक की ओर चल दिये। इससे पहले मैं 2003 और 2005 में भी माउंट आबू गया था। वर्ष जून 2003 में तो नक्की लेक सूखी हुई मिली थी और उसमें हज़ारों मज़दूर पुरुष और महिलाएं तसले सिर पर लिये हुए घूम रहे थे। (उस समय की खींची हुई एक फोटो भी सौभाग्य से मिल गयी है जो अपने पाठकों के सौभाग्य के लिये संलग्न किये दे रहा हूं ।) परन्तु सौभाग्य से इस बार नक्की में भरपूर पानी था और नावों में लोग सवारी कर रहे थे। हमने भी एक नाव ले ली जिसे पैडल बोट कहते हैं । बेचारे दो पुरुष पैडल मारते हुए नाव को आगे बढ़ाते हैं और पीछे दो बीवियां आराम से झील का नज़ारा देखती हुई चलती हैं। संभवतः एक घंटे तक हम नक्की में यूं ही पैडल मारते घूमते रहे। इस नक्की लेक के बारे में बहुत प्रचलित किंवदंती, जो अक्सर पढ़ने को मिलती है वह ये है कि देवताओं ने एक खूंखार राक्षस से बचने के लिये नख से धरती में झील बना डाली थी । यही नहीं, नक्की झील को लेकर एक और रोमांटिक कहानी रसिया बालम की भी चली आ रही है जिसने एक राजकुमारी से विवाह की लालसा में एक रात में ही आधा किलोमीटर लंबी और चौथाई किमी चौड़ी और २०-३० फीट गहरी झील खोद डाली थी। हे भगवान, कैसे – कैसे राजा होते थे उस जमाने में! मुनादी करा दी कि जो कोई एक रात में नक्की झील खोद देगा, उससे अपनी बिटिया का ब्याह रचा दूंगा ! सौभाग्य से इस झील को खोदने के बाद भी रसिया बालम फिर भी कुंवारा ही रहा क्योंकि राजा की घोषणा को रानी ने वीटो कर दिया। राजा को रानी से डांट पड़ी सो अलग!

नक्की झील माउंट आबू के हृदय स्थल में स्थित है और यहां का प्रमुखतम आकर्षण है। माउंट आबू के बाज़ार मुख्यतः नक्की झील के आस-पास ही केन्द्रित हैं। बात सही भी है, जब सारे टूरिस्ट नक्की पर ही आने हैं तो दुकान कहीं और खोलने का क्या लाभ? एक और बड़ी विशेष जानकारी जो विकीपीडिया से प्राप्त हुई है, वह ये कि 12 फरवरी 1948 को यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित की गई थीं और गांधी घाट का निर्माण किया गया था। पर मुझे याद नहीं पड़ता कि हमने नक्की झील पर कहीं गांधी घाट के दर्शन किये हों! सॉरी बापू ! अगली बार जायेंगे तो ऐसी गलती पुनः नहीं होगी! नक्की झील के आस-पास के एक रेस्टोरेंट में भोजन लेकर (कहां, ये याद नहीं ! भोजन कैसा था, ये तो कतई याद नहीं)। हम लोग वापिस ज्ञान सरोवर में आ पहुंचे और अपने – अपने कमरों में नींद के आगोश में समा गये। (किसी इंसान के आगोश में समाने की तो वहां अनुमति भी नहीं थी !)

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: जोशीमठ – तपोवन – बाबा आश्रम

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पैदल घूमते घामते प्रकृति को निहारते हुए सलधार पहुँचे और सबसे पहले वसुधारा की पद यात्रा से सबक लेकर एक दुकान पर रुककर आगे की यात्रा के लिए कुछ चने और मीठी गोलियाँ रख ली. सलधार से भविष्य बद्री तक का रास्ता ज़्यादातर जगह जंगल के बीच से गुज़रते हुए जाता था जहाँ कई जगह राह मे दो रास्ते सामने आ जाते थे जो हमारी दुविधा का कारण बन बैठते. ऐसे मे कई बार या तो स्थानीय लोगो की मदद से और कई बार बस किस्मत के भरोसे ‘अककड़ बक्कड़’ करके हम लोग जैसे तैसे सुभाईं नामक गाँव तक पहुँचे जहाँ से भविष्य बद्री की दूरी लगभग 1 ½ किमी ही रह जाती है.

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London 2012 – Getting there

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We went in and did the usual hoolah of checking in and immigration etc., and headed for the duty-free/lounges. My dad waited patiently while mom and I took a look around the duty-free, and finding nothing to our liking, commenced to the lounge. It was the same lounge and, of course, nothing had changed since last year – the couches, the low impossible-to-eat-off little coffee tables, the lights, everything was the same. The food was kept on a granite table with L-shaped counters around it. They had patties, sausages etc for starters, and rice, Mexican chicken gravy and different curries for people wanting a full-er meal. I first went to the patties, which were kept in that microwave-y, revolve-y thingies. I took one and got back to the couch we were sitting on and picked up the day’s Daily Mail, and spent the next 10-15 minutes savouring ‘delicacies’ (okay, it was just a patty, but still) and reading about what’s going on in the country hosting us for the next 14 days or so. I then went on to get myself the other things – I got myself sausages and sat down to eat, and in my mind thought, ‘wow, pretty delicious’, but the truth was, I was gonna learn what delicious sausages really are. I decided not to pig out anymore on the food on land and fill myself only once in air, and so for the rest of the time all I did was drink various kinds of juices, call all my friends to say bye and generally watch the news and listen to music, thinking of all the delicious cuisine I was going to savour soon.

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उदयपुर – जगदीश मंदिर – माउंट आबू हेतु प्रयाण

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वहां से निकल कर अगला पड़ाव था – जगदीश मंदिर ! मैं चूंकि एक घंटा पहले यहां तक आ चुका था अतः मुझे बड़ा अच्छा सा लग रहा था कि अब मैं अपने परिवार के लिये गाइड का रोल निर्वहन कर सकता हूं। परन्तु पहली बार तो मैं मंदिर की सीढ़ियों के नीचे से ही वापिस चला गया था। ऊपर मेरे लिये क्या – क्या आकर्षण मौजूद हैं, इसका मुझे आभास भी नहीं था। मंदिर की सीढ़ियों के नीचे दो फूल वालियां अपने टोकरे में फूल – मालायें लिये बैठी थीं । माला खरीद कर हम सीढ़ियों पर बढ़ चले। भाईसाहब का कई वर्ष पूर्व एक्सीडेंट हुआ था, तब से उनको सीढ़ियां चढ़ने में असुविधा होती है। वह बोले कि मैं टैक्सी में ही बैठता हूं, तुम लोग दर्शन करके आओ। मैने कहा कि टैक्सी में बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं। मुझे एक दूसरा रास्ता मालूम है मैं आपको वहां से मंदिर में ले चलूंगा। उसमें दो-तीन सीढ़ियां ही आयेंगी। वह आश्चर्यचकित हो गये कि मुझे इस मंदिर के रास्तों के बारे में इतनी गहन जानकारी कैसे है। वास्तव में, जब मैं पैदल घूम रहा था तो एक बहुत ढलावदार रास्ते से होकर मैं मंदिर के प्रवेश द्वार तक आया था। उस ढलावदार रास्ते पर भी जगदीश मंदिर के लिये छोटा सा प्रवेश द्वार दिखाई दिया था। भाईसाहब इतनी सारी सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते थे क्योंकि उनका घुटना पूरा नहीं मुड़ पाता परन्तु ढलावदार रास्ते पर चलने में कोई दिक्कत नहीं थी। मेरी जिस ’आवारागर्दी’ को लेकर सुबह ये तीनों लोग खफा नज़र आ रहे थे, अब तीनों ही बहुत खुश थे। आखिर इसी ’आवारागर्दी’ (जिसे मैं घुमक्कड़ी कहना ज्यादा पसन्द करता हूं) की वज़ह से भाईसाहब को मंदिर के दर्शन जो हो गये थे।

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Hilltop monasteries on the seaside

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What Jawaharlal Nehru had said about India is equally applicable to my hometown, Visakhapatnam, better known as Vizag. It is a young city with a history that goes back to the prehistoric period. In this series, I shall revisit the footprints left on the sands of time in and around Vizag by the early Buddhists.

I shall start at Thotlakonda, a 130 metre high hillock overlooking the famed beaches of Vizag. The Buddhist settlement was accidentally discovered in 1988 by Naval personnel were carrying out an aerial survey for setting up some facility.

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Motorcycle Diaries. Road to Munsiyari…Birthi Falls

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Well, didn’t I say in the last blog that silence has a very pleasant sound of its own? You should come to Birthi to experience what I mean. A couple of days away from the madness of the cities, away from what some of us call life, are always welcome. Mountains are such heavens of silence and solitude. And when you get back from this heaven, you come away feeling saner, rejuvenated. You come back a better one…

There is nothing extraordinary about Birthi, at least on the face of it. It is a tiny village, with couple of shops on road and the KMVN guesthouse perched atop a hill, right on the main road. However, what breaks the silence and the dullness is the mighty roar of a waterfall, called Birthi Falls. This is what makes Birthi fall on the tourist map and makes it really a place worth visiting.

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Hotel Wonder View Udaipur

उदयपुर और माउंट आबू घूमने चलें?

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अंततः वह क्षण भी आया जब उस प्रतीक्षालय की दीवारों पर लगे हुए इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड पर हमारी फ्लाइट का ज़िक्र आया और सभी यात्रियों को बस में बैठने हेतु उद्‌घोषणा की गई। पत्नी ने कहा कि बस की क्या जरूरत है, पैदल ही चलते हैं तो उसके जीजाजी ने कहा कि चिंता ना करै ! टिकट नहीं लगता। मैं एयरपोर्ट की बस में बैठते ही कैमरा लेकर ठीक ऐसे ही एलर्ट हो गया जैसे बॉर्डर पर हमारे वीर जवान सन्नद्ध रहते हैं। दो – तीन मिनट की उस यात्रा में वायुयान तक पहुंचने तक भी बीस-तीस फोटो खींच डालीं!

जब अपने वायुयान के आगे पहुंचे तो बड़ी निराशा हुई! बहुत छोटा सा (सिर्फ 38 सीटर) जहाज था वह भी सफेद पुता हुआ। मुझे लगा कि मैं छः फुटा जवान इसमें कैसे खड़ा हो पाउंगा ! सिर झुका कर बैठना पड़ेगा! एयर डैक्कन एयरलाइंस के इस विमान में, जिसका दिल्ली से उदयपुर तक का हमने सिर्फ 1201 रुपये किराया अदा किया था, हम अन्दर प्रविष्ट हुए तो ऐसा नहीं लगा कि सिर झुका कर चलना पड़ रहा है। सिर्फ बाहर से ही ऐसा लग रहा था कि जहाज में घुस नहीं पाउंगा। खैर अन्दर पहुंच कर अपनी सीटें संभाल लीं। मुझे खिड़की वाली सीट चाहिये थी सो किसी ने कोई आपत्ति दर्ज़ नहीं की। अन्दर सब कुछ साफ-सुथरा था। एयरहोस्टेस भी ठीक-ठाक थी। यात्रा के दौरान सुरक्षा इंतज़ामों का परिचय देने की औपचारिकता का उसने एक मिनट से भी कम समय में निर्वहन कर दिया। सच तो यह है कि कोई भी एयरलाइंस, यात्रा के शुभारंभ के समय दुर्घटना, एमरजेंसी, अग्नि शमन जैसे विषय पर बात करके यात्रियों को आतंकित नहीं करना चाहती हैं पर चूंकि emergency procedures के बारे में यात्रियों को बताना कानूनन जरूरी है, अतः इसे मात्र एक औपचारिकता के रूप में फटाफट निबटा दिया जाता है। यात्रियों को समझ कुछ भी नहीं आता कि किस बटन को दबाने से ऑक्सीज़न मास्क रिलीज़ होगा और उसे कैसे अपने नाक पर फिट करना है। एमरजेंसी लैंडिंग की स्थिति में क्या-क्या करना है और कैसे – कैसे करना है। अगर कभी दुर्घटना की स्थिति बनती है तो यात्रियों में हाहाकार मच जाता है, वह निस्सहाय, निरुपाय रहते हैं, कुछ समझ नहीं पाते कि क्या करें और क्या न करें! मेरे विचार से इसका कोई न कोई मध्यमार्ग निकाला जाना चाहिये। अस्तु !

कुछ ही क्षणों में हमारे पायलट महोदय ने प्रवेश किया और बिना हमारा अभिनन्दन किये ही कॉकपिट में चले गये। उनके पीछे – पीछे एयरहोस्टेस भी चली गई पर जल्दी ही वापस आ गई और हमें अपनी अपनी बैल्ट कसने के निर्देश दिये। मैने अपनी पैंट की बैल्ट और कस ली तो श्रीमती जी ने कहा कि सीट की बैल्ट कसो, पैंट की नहीं ! अपनी ही नहीं, मेरी सीट की भी। मैने एयरहोस्टेस को इशारा किया और कहा कि मेरी सीट की बैल्ट कस दे। (सिर्फ 1201 रुपये दिये हैं तो उससे क्या? आखिर हैं तो हम वायुयान के यात्री ही ! एयरहोस्टेस पर इतना अधिकार तो बनता ही है!) अब मुझे भी समझ आ गया था कि सीट बैल्ट कैसे कसी जायेगी अतः पत्नी की सीट की भी बैल्ट मैने कस दी। मुझे खिड़की में से अपने जहाज की पंखड़िया घूमती हुई दिखाई दीं, द्वार पहले ही बन्द किये जा चुके थे। एयर स्ट्रिप पर निगाह पड़ी तो पुराना चुटकुला याद आया। “जीतो ने संता से अपनी पहली हवाई यात्रा के दौरान खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा कि बंता ठीक कहता था कि हवाई जहाज की खिड़की से झांक कर देखो तो जमीन पर चलते हुए लोग बिल्कुल चींटियों जैसे लगते हैं! संता ने जीतो को झिड़का, “अरी बुद्धू ! ये चींटियां ही हैं, अभी जहाज उड़ा ही कहां है!” चलो खैर !

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और  भैरो घाटी)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और भैरो घाटी)

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ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

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यादगार सफर चकराता का – 2

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सुबह सुबह जल्दी सब उठ गए और दूर पहाड़ियों से सूरज देवता के दर्शन करने लगे, सचमुच बड़ा ही मनभावन नज़ारा था। नहा धोकर हमने होटल वाले से आस पास की जगहो के बारे मैं पूछा तो कुछ ढंग का नहीं लगा तो सबने विचार किया के चलो मसूरी चलते हैं, आज रात वहीं रुकेंगे। इसके बाद सबने नाश्ता कर के थोड़ी बहुत फोटोग्राफी करने के बाद प्रस्थान कर दिया। अब हम लोगों की मंज़िल थी यमुना पल और केंपटी फॉल, पहले ही इरादा कर लिया था की टाईगर फॉल का बदला केंपटी फॉल मैं लेंगे। नाश्ता करके तो चले ही थे इसलिए कहीं रुके नहीं॥ रुके सीधा यमुना पल जाकर जब सबको जोरों से भूक की तलब लगी। यमुना पल को पार करते ही किनारे पर दाहिने हाथ पर एक छोटी सी दुकान हैं खाने के बारे मैं यूहीं पूछ लिया तो पता चला के खाना भी मिल जाएगा॥ अब सबको भूख भी ज़ोरों से लगी थी इसलिए मांगा लिया। खाने मैं थाली थी जिसमे दाल, चावल और गोभी की सब्जी थी। और पूछने पर पता चला की मछ्ली की सब्जी भी मिलेगी और वो भी ताज़ा। दुकान के मालिक ने बताया की सीज़न मैं यहाँ पर काफी भीड़ रहती हैं जिसकी वजह से बाकी दुकानें भी खुली रहती हैं, लेकिन अब सब बंद हैं शायद बाद मैं खुल जाये |

वहाँ पर शायद राफ्टिंग भी होती होगी क्यूंकी जगह जगह बोर्ड भी लगे हुये थे। खैर खाना खाया और जब दाम पूछे तो सब दंग रह गए। एक थाली का दाम था 20 रु जिसमे दाल, चावल, गोभी की सब्जी और 4 रोटी। और 1 प्लेट फिश करी सिर्फ 50 रु की कुल मिलकर 200 -250 का खर्चा रहा होगा। जिसमे कोल्ड ड्रिंक और चिप्स वागेरह भी थे। ऐसा स्वादिष्ट खाना और इतने कम दाम में तो शायद हमने पूरे टूर में नहीं खाया। खाने वाले का शुक्रिया अदा करके हम लोग मसूरी की तरफ वापस चल दिये॥ और पहाड़ों की सुंदरता के मज़े लेते रहे। शायद भरे पेट में वो ज्यादा अच्छे लग रहे थे। शाम करीब 3 बजे हम लोग केंपटी फॉल पहुंचे और बिना एक पल गवाएँ दौड़ पड़े फॉल की तरफ, मैं तो अभी 10 दिन पहले भी आया था लेकिन तब फॉल में नहाया नहीं था इसीलिए मुझे सबसे ज्यादा जल्दी थी। 2-3 घंटे तसल्ली से हम सब झरने का आनंद लेते रहे लेकिन जैसे ही शाम बढ्ने लगी हम लोग की ठिठुरन बदने लगी और एक एक करके सब बाहर आ गए॥ अब दूसरा काम था मसूरी पहुँचकर एक अच्छा सा कमरा लेना और इस काम को सोनू बड़िया कर सकता था, क्यूंकी वो भी 2-3 बार मसूरी आ चुका था। मसूरी पहुंचर हमने “दीप होटल “ मैं एक कमरा लिया। होटल काफी अच्छा था, साफ सूथरा और पार्किंग भी थी।

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