
ढेला (कॉरà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ) से मरचà¥à¤²à¤¾ की मसà¥à¤¤à¥€ का सफ़र (à¤à¤¾à¤— – 2)
पानी इतना साफ़ था की नीचे के पतà¥à¤¥à¤° साफ़ चमक रहे थे। इतनी छोटी सी जगह पर इतना आनंद à¤à¥€ लिया जा सकता है, सोचा न था। धूप धीरे धीरे हलकी हो रही थी और पानी à¤à¥€ अब जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ठंडा लगने लगा था इसलिठसोचा कि अब यहा से चलना चाहिà¤à¥¤ इसी बीच मनमोहन दो तीन बार पानी से निकला तो हर बार à¤à¤• मचà¥à¤›à¤° उसको काटता था और वो चिलà¥à¤²à¤¾à¤¤à¤¾ था और गालिया देता था। हम सब हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ थे कि मचà¥à¤›à¤° को गोरी चमड़ी पसंद आ रही है लेकिन अब जैसे ही हम सà¤à¥€ पानी से बाहर निकले तो उस मचà¥à¤›à¤° ने मेरे पैर मे बहà¥à¤¤ तेज काटा, अब चिलà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ की बारी मेरी थी और हसने की मनमोहन की। खैर हमने जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ कपड़े पहने और वहा से बाहर की और चल दिà¤à¥¤
पानी मे इतनी देर रहने के बाद अब काफी थकान महसूस हो रही थी इसलिठपà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª को à¤à¥€ बोला कि अब सीधे गेसà¥à¤Ÿ हाउस चले लेकिन उसने रासà¥à¤¤à¥‡ मे गाड़ी à¤à¤• लमà¥à¤¬à¥‡ से बà¥à¤°à¤¿à¤œ के सामने रोक दी। जगह अचà¥à¤›à¥€ थी लेकिन अब रà¥à¤•ने के मन ही नहीं था लेकिन फिर à¤à¥€ उतर गठकी कà¥à¤› फोटो ही खीच ले। उतरने पर देखा कि वो केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ जल आयोग से समà¥à¤¬à¤‚धित था। हम वहा पाà¤à¤š दस मिनट ही रà¥à¤•े और फिर वापिस चल दिà¤à¥¤ वापिस आते हà¥à¤ हम मोहान से थोड़ा आगे ही निकले थे कि देखा वहा बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी, हम à¤à¥€ गाड़ी से बाहर आ गठतो पता चला कि हाथी का बचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¥‹ मे उलठगया है, सड़क के à¤à¤• तरफ जंगल ही था और उसमे थोड़ा सा अनà¥à¤¦à¤° ही वो बचà¥à¤šà¤¾ फसा हà¥à¤† था और उसके पास हाथियों का पूरा à¤à¥à¤£à¥à¤¡ था, उनको देखने के लिठही वहा à¤à¥€à¤¡à¤¼ जमा थी। लोग हाथियों को परेशान कर रहे थे और बार बार अनà¥à¤¦à¤° जा रहे थे जो कि खतरनाक था अगर à¤à¤• बार हाथी पीछे à¤à¤¾à¤— लेते तो à¤à¤—दड़ मच जाती। हाथियों ने बचà¥à¤šà¥‡ को à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¤¿à¤¯à¥‹ से छà¥à¤¡à¤¼à¤¾ लिया था लेकिन वो वही थे। हम लोगो ने वहा से निकलना ही सही समà¤à¤¾à¥¤ रासà¥à¤¤à¥‡ मे हमने रामनगर से जरूरी सामान ख़रीदा और वापिस गेसà¥à¤Ÿ हाउस की और चल दिà¤à¥¤
Read More