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Valparai Series – Part 1: An Introduction

Valparai Series – Part 1: An Introduction

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Green Hills has a restaurant that is dingy and uninviting but their food is delicious.  Some of the home stays provide meals, some do not have this facility.  There are several restaurants, food stalls and messes along the one and only main road where you can enjoy a cheap and delicious meal.  Besides this there are umpteen bakeries serving hot snacks, cakes and locally grown tea.  The problem arises for strict vegetarians who will not eat vegetarian food in a non veg establishment, and as we all know there are many such good folk not just in Tamil Nadu but all over India.   I have seen only one place near the Gandhi Bus Stand – the Sabari Mess – which proclaims itself to be “Veg Only“.   No personal experience but you can not go too wrong with the local food.  We dined at the Plaza on the main road opposite the Police Station.  It was consistently good with excellent service and spotlessly clean.     For us, once we are on to a good thing, we are reluctant to experiment with something new so as with the home stay, the staff at Plaza now also treat us as long lost friends.  I did notice a Mary Matha Mess in the adjoining building on the first floor which seemed to be popular.  Mess in these parts  means restaurant or a place where meals are served.

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: तपोवन – रुद्रप्रयाग – दिल्ली

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रास्ते में हम लोग लोग थोड़ी देर रुद्रप्रयाग में रुके और फिर चल दिए श्रीनगर की ओर. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते हमें काफी देर हो चुकी थी और आज रात इससे आगे जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था. कोई जीप या बस मिलने की तो संभावना बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि यहाँ हिमाचल की तरह रात को बसें नहीं चलती. ऐसे में हमारे चालक साब ने हमें रात श्रीनगर में ही बिताने का सुझाव दिया और हमें रात गुजारने का एक ठिकाना भी दिखाया. हमने ठिकाना तो देख लिया पर अब किसी का भी यहाँ रुकने का मन नहीं था और सब जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे. उत्तरांचल में वैसे तो रात को कोई वाहन नहीं चलते पर सब्ज़ी फल आदि रसद पहुँचाने वाले ट्रकों की आवाजाही रात भर चालू रहती है, सोचा क्यों ना इसे ही आजमाया जाए. आज शायद किस्मत हम पर मेहरबान थी, थोडा पूछ्तात करने पर ही हमें एक ट्रक मिल गया जो हरिद्वार तक जा रहा था. ट्रक चलने में अभी लगभग आधा घंटा बाकी था और सुबह सिर्फ आश्रम में ही भोजन किया था इसलिए एक ढाबे पर जाकर थोड़ी पेट पूजा की गई.

ट्रक पर वापस लौटे तो देखा की चालक के साथ वाली सीट पर पहले ही दो लोग बैठे हुए थे. ऐसे में वहाँ हम तीनों का एक साथ बैठना संभव और सुरक्षित नहीं था. इसलिए दोनों की बुरी हालत देखकर मैं ट्रक के पीछे चला गया जहाँ कुछ अन्य लोग पहले से ही लेटे थे. इस ट्रक के ऊपर एक बरसातीनुमा दरी थी जो शायद सब्जियों को धूल और बारिश से बचाने के लिए डाली गयी थी और नीचे खाली प्लास्टिक के डब्बे रखे हुए थे जिनमे सब्जियाँ रखी जाती हैं. इन्ही हिलते डुलते प्लास्टिक के डब्बों के ऊपर हम सभी मुसाफ़िर लेटे हुए थे. ट्रक चलने पर कुछ समय तो बड़ा मजा आया पर जैसे जैसे रात गहराती गयी और नींद आने लगी तो इन हिलते हुए डब्बों पर सोना बड़ा दुखदायी लग रहा था क्योंकि एक तो ये डब्बे आपस में टकराकर हिल रहे थे और टेढ़े मेढ़े होने की वजह से चुभ भी रहे थे. खैर मेरे लिए तो ये सब रोमांच था, लेकिन रोमांच धीरे धीरे बढ़ने लगा जब इन्द्रदेव अर्धरात्रि में जागे और हम पर जमकर मेहरबान हुए. तिरछी पड़ती हुई मोटी मोटी बारिश की बूँदे हमारे ऊपर एक शॉवर की तरह पड़ रही थी जो एक मंद मंद शीतल रात को एक बर्फ़ीली सी महसूस होने वाली रात में बदलने के लिए काफी थी. ऐसे में ऊपर रखी हुई दरी ने ठण्ड से तो नहीं पर भीगने से तो बचा ही लिया. ठण्ड में किटकिटाते हुए, बिना सोये जैसे तैसे करीब चार बजे के आस पास ट्रक चालक ने हमें हरिद्वार में एक सुनसान मोड़ पर उतार दिया. जितना दर्द मेरे शरीर में उस ट्रक में सवारी करते हुए हुआ उतना पूरी यात्रा कहीं नहीं हुआ, शरीर इतना अकड़ गया था कि ट्रक से बाहर निकलने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी. ठण्ड के मारे बुरा हाल था, सुनसान गलियों से होकर गुजरते हुए हम लोग बस स्टेशन की ओर बढ़ने लगे. ऐसे में रास्ते में एक चाय का ठेला देखकर चेहरे पर कुछ ख़ुशी आयी, भाईसाब के हाथ की गर्मागरम चाय और बंद खाकर शरीर में कुछ ऊर्जा आई. फिर तो बस जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए हरिद्वार बस स्टेशन पहुँचकर, दिल्ली की बस पकड़ी तो लगभग दस या ग्यारह बजे तक दिल्ली पहुँच कर ही राहत की साँस ली. यात्रा समाप्त!

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Udaipur Vintage Cars

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इस गाड़ी का तकनीकी नाम है GLK21 ! वाह, बड़ाई सोणा नाम है! सन्‌ 1924 के दिनों के तो इंसान भी आज कल मुश्किल से ही मिलते हैं, ये बेचारी तो कार है। वर्ष 2000 के आस-पास मेवाड़ घराने के मन में ये खयाल आया कि हम अपनी कारों की एक प्रदर्शनी क्यूं ना लगा दें। कम से कम प्रवेश टिकट के पैसों से ड्राइवर की तनखाह तो निकलेगी! तो फिर यह खयाल भी हाथ के हाथ आया कि कार देखने के लिये लोग तो तब आयेंगे जब कार बढ़िया हालत में हों । ऐसे में अपने जीवन के फाइनल बसंत देख रही इस कार को पुनः युवा बनाने का अभियान शुरु हुआ। Hofmanns of Henley, UK की राय ली गई और उनके तकनीकी निर्देशन में गाड़ी के एक-एक अंग का प्रत्यारोपण शुरु हुआ। गाड़ी के पहिये न्यू ज़ीलेंड से मंगाये गये। गीयर बक्से की मरम्मत के लिये इंग्लैंड की उसी कंपनी के इंजीनियर आये जिन्होंने इसे बनाने की ज़ुर्रत की थी। यह कुछ ऐसा ही था कि शादी के स्वर्णजयंती वर्ष में कोई व्यक्ति अपने श्वसुर को पत्र लिख कर कहे कि आपकी सत्तर साल की बिटिया का ब्लड transfusion होना है, जरा आकर सहायता करें। जैसे श्वसुर अपने दामाद को “ना” नहीं कर पाते ऐसे ही Hofmanns of Henley कंपनी के श्रीयुत्‌ ग्राहम ने भी मना नहीं किया और गाड़ी के रेडियेटर और गीयर बाक्स को बिल्कुल नये जैसा बना कर दे दिया। धन्य हैं मेवाड़ के महाराणा और धन्य हैं इंग्लैंड के इंजीनियर ! आज ये गाड़ी उदयपुर की सड़कों पर पूरी शान से दौड़ती है। आपको शायद मालूम हो कि रॉल्स-रॉयस कार की सबसे बड़ी पहचान उसका रेडियेटर ही होती है जिसका डिज़ाइन आज तक भी नहीं बदला। O & M विज्ञापन एजेंसी के मालिक ने एक बार लिखा था कि इस गाड़ी को जब बनाया जाता है तो इसकी बॉडी पर stethescope लगा-लगा कर देखा जाता है कि इसमें कहीं कोई आवाज़ तो नहीं आ रही है! पांच बार प्राइमर और नौ बार पेंट का कोट चढ़ाया जाता है, अन्दर कहां, क्या, कैसे चाहिये – यह सब आपकी फर्माइश के हिसाब से बनाया जाता है। ऐसा नहीं कि जो कंपनी वालों को पसन्द आया, लगा दिया। इतना ही नहीं, गाड़ी की हैड लाइट के एंगिल, direction, focus वगैरा सारे समायोजन ड्राइवर अपने आस-पास लगाये गये लीवर से ही कर सकता था। जे हुई ना कुछ बात !

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

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देवभूमि गढ़वाल के कुछ छिपे हुए रत्नों को तलाशती तीन दोस्तों की कभी ना भुला पाने वाली रोमांचक घुमक्कड़ी की दास्तान…जिसमे हमने कुछ बेहतरीन नज़ारे देखे, कुछ अनोखे और सोच बदलने वाले अनुभवों से गुजरे, कुछ खुबसूरत दोस्तों से मिले, कुछ बेहतरीन ठिकानों पर रात गुजारी और बहुत कुछ सीखने को मिला…

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: जोशीमठ – तपोवन – बाबा आश्रम

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पैदल घूमते घामते प्रकृति को निहारते हुए सलधार पहुँचे और सबसे पहले वसुधारा की पद यात्रा से सबक लेकर एक दुकान पर रुककर आगे की यात्रा के लिए कुछ चने और मीठी गोलियाँ रख ली. सलधार से भविष्य बद्री तक का रास्ता ज़्यादातर जगह जंगल के बीच से गुज़रते हुए जाता था जहाँ कई जगह राह मे दो रास्ते सामने आ जाते थे जो हमारी दुविधा का कारण बन बैठते. ऐसे मे कई बार या तो स्थानीय लोगो की मदद से और कई बार बस किस्मत के भरोसे ‘अककड़ बक्कड़’ करके हम लोग जैसे तैसे सुभाईं नामक गाँव तक पहुँचे जहाँ से भविष्य बद्री की दूरी लगभग 1 ½ किमी ही रह जाती है.

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गढ़वाल घुमक्कडी: बद्रीनाथ – माणा – वसुधारा – जोशिमठ

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चलो अब चलते हैं मुचुकूंद गुफा, ‘अरे नही यार ये तो बहुत उपर लगता है’ दीपक बोला. ‘अरे नही भाई, पास ही तो है’, मैं बोला. ‘3 किमी तो दूर है भाई, फिर हम लोग वसुधारा नही जा पाएँगे, देख लो’, पुनीत बोला. बात सबको ठीक लगी, हम लोग वसुधारा को नही छोड़ना चाहते थे, गुफ़ाएँ तो सबने देख ही ली थी अब वसुधारा के दर्शन करने को सब बड़े बेकरार थे. इसलिए बिना समय गवाए हम लोग नीचे भीम पुल की ओर बढ़ चले. भीम पुल के पास आकर सबसे पहले एक बड़ी भ्रांति टूटी जो थी ‘सरस्वती के लुप्त हो जाने की’, हमने तो सरस्वती दर्शन से पहले केवल यही सुन रखा था की यह नदी अब विलुप्त हो चुकी है और शायद भूमिगत होकर बहती है.

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गढ़वाल घुमक्कडी: रुद्रप्रयाग – कार्तिक स्वामी – कर्णप्रयाग

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उपर के नज़ारों ने शरीर को तरो ताज़ा कर दिया था, इसलिए उतरते वक्त ज़्यादा समय नही लगा और उतरते ही पैदल यात्रा आरंभ. कुछ एक किलोमीटर ही चले थे कि दोस्तों को थकान लगने लगी, सोचा चलो जो साधन मिल जाए आगे तक उसी मे चल पड़ेंगे. अब चलते चलते हर एक आगे जाने वाली गाड़ी को हाथ दिखाकर रोकने की कोशिश करते रहे, पर सब बेकार. किस्मत से थोड़ी देर बाद एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया, आधे मन से इसे हाथ दिखाया और ये क्या! ट्रक तो थोड़ा आगे जाकर रुक ही गया था.

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Wanderings in South Goa.

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You are really spoilt for choice when it comes to restaurants in Goa. Besides the beach shacks, where you can sit on the sands and gaze out at the sea, sipping on a drink, while waiting an hour or two for your meal to arrive, there are many restaurants inland which also serve excellent food at very reasonable rates. There is a fusion of East and West, Portugese and Indian, meat and vegetables, which makes Goan cuisine unique. Coconut is used liberally, along with other Indian spices in the cooking. ‘Fish curry rice’ is the most common food and available virtually in every restaurant. The different types of seafood on offer in Goa includes pomfret, kingfish, ladyfish, mackerel, tuna, shark, crab, prawn, lobster, squid and mussels. Chicken, pork, mutton and beef dishes are also on offer at all the restaurants, cooked in the popular Goan flavours such as vindaloo, balchao, recheado, xhacuti and caldin.
We had already planned that we would include at least one meal out at a shack or restaurant in our daily sight-seeing itinerary. One precaution we always took was to carry our own drinking water if we did not want to order a drink, or pay for a bottle of branded mineral water.

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वाटरटन नेशनल पार्क और यु.एस. बोर्डर (भाग २)

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पार्क की सुबह बहुत खूबसूरत थी. हिरण जैसे दो प्राणी घूम रहे थे. सुबह उठ कर एक चक्कर गांव का लगाता हूँ. एक दुकान खुली देख कर अंदर काफी लेने जाता हूँ, साथ ही खाने के लिए एक पेस्ट्री ले लेता हूँ. यह दुकान वाला बहुत सामान बेच रहा था. काफी, ब्रेड चोकलेट, और बहुत सा सामान. पेट्रोल पम्प भी इस दुकान वाले का ही था. साथ में साइकल भी किराये पर दे रहा था. एक साइकल का एक घंटे का किराया १० डॉलर, और हेल्मट के १० डॉलर अलग से. साथ में मोटर बाइक भी किराये के लिए थे.

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वाटरटन नेशनल पार्क और यु.एस. बोर्डर (भाग १)

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वाटरटन नेशनल पार्क यु.एस. के मोंटाना प्रान्त और कैनेडा के अलबर्टा प्रान्त के बोर्डर पर स्थित है. लाखों लोग यु.एस. और कैनेडा से हर साल नेशनल पार्क घूमने आते हैं. फोर्ट सस्केच्वन से वाटर टन पार्क की दूरी ६०० की. मी. है.

कैलगरी शहर के बाद सबवे पर लंच के लिए रुकते हैं. सबवे की संसार में 37,207 से ज्यादा लोकेशन हैं. भारत में 282 लोकेशन हैं. सबवे सेक्टर 15 फरीदाबाद में भी है. विदेश में शाकाहारी भोजन के लिए सबवे अच्छा आप्शन हैं. मेनू में पहले सफ़ेद या ब्राउन ब्रेड, उसके के बाद सौस, खीरा, टमाटर प्याज, शिमला मिर्च, (कच्ची कटी हुई) आदि डाल कर सब त्यार कर दिया जाता है.  भारत में यह ८० रूपये से शुरू होता है, विदेश  में ४ से ६ डॉलर का है.

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Rewalsar – A sacred confluence of multi religions

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When you come to Rewalsar, you cannot be untouched by the spiritual vibrations being reflected in every activity in this sacred land, be it the chirpings of the birds, soulful chantings from the monastery or temple or Gurubani from the Gurudwara, people feeding hungry souls in the lake, pondering monkeys over the trees, Buddhist prayer flags swirling in the air, swimming ducks in the lake, meditating and contemplating holy people on bank of the lake, the green and serene water of the lake, monks running the prayer-wheels, beautiful surrounding hills, finely ornated colourful monasteries with young monks playing around, burning oil lamps, ringing bells, cows and dogs resting near the lake, swaying trees, smiling flowers etc, whatever passes through your eyes gives you a sort of positive vibrations.

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Hundred in Gangtok – Part 5 (Final)

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But me and my camera was not having any desire of sleeping as I wanted to capture the beautiful Teesta river in my eyes as well in the camera lens. The views from the bus window were amazing. Early morning, cloudy weather, green high mountains and flowing Teesta; I could not ask more from the Nature. I clicked endless photographs. After some time it started raining which made the surrounding more beautiful. Around 7.30 we stopped in the middle near a small tea shop just near the banks of the Teesta. It was a great experience to have tea on the banks of Teesta while is was raining outside.

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