Religious

उज्जैन यात्रा

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फिर अगले दिन हमने उज्जैन दर्शन किया महाकाल एरिया के पास आपको बहुत से ड्राइवर अपना कार्ड देंगे जिसमे घूमने की जगहों के नाम होंगे आप उसमे खुद अपनी इच्छा से नाम जोड़ और हटा सकते हैं हमारा ड्राइवर जो खुद एक मुस्लिम था पर उसकी भक्ति और ज्ञान देखकर हम बहुत प्रभाभित हुए, उसने हमें एक एक जगह का महत्व बताया और अच्छे से दर्शन करवाये, आप यदि उसका नंबर चाहते हैं तो नोट कर लीजिये नाम : ज़ाकिर ०८३४९८२५२०७ और गाड़ी थी मारुती वैन I

हमने शुरुआत की श्री रामकृष्ण आश्रम उज्जैन से जो की मानव सेवा में लगा हुआ है यहाँ पर एक सुंदर फिजियोथेरेपी क्लिनिक है जो गरीबो की सेवा करती है, हमने आश्रम की सुंदरता निहारते हुए जप किया और मंदिर के दर्शन किये I आश्रम में दान दिया और प्रसाद ग्रहण किया

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मुंबई की गुफाएँ – जोगेश्वरी देवी की खोज में

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इतने में कुछ विदेशी पर्यटक आ गए. बड़े-बड़े कैमरों के साथ. वे भी हनुमान मंदिर की तरफ जा रहे थे. मैं भी उनके पीछे चल पड़ा. वो रास्ता एक बड़े-से आँगन से हो कर जाता था, जिसके दोनों तरफ गुफ़ाएँ बनीं हुईं थीं. मेरे पुरोहित ने बताया था कि वर्तमान का वो आँगन पूर्व-काल में गुफ़ा ही था, जिसकी छत कालांतर में गिर चुकी थी. अगर वह गुफा का हिस्सा था, तब तो एक जमाने में वह गुफा बहुत-ही विशाल रही होगी. खैर आँगन से गुजर कर हम हनुमान-मंदिर पहुँचे और वहां दर्शन किया. मंदिर एक गुफा में बना हुआ था. कोई ज्यादा लोग नहीं थे. वहां से तुरंत ही सभी निकल पड़े और फिर गणेश मंदिर तक आये. वह नजदीक ही था. वह भी एक गुफा में बना हुआ था.

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Salem – Madurai – Kanyakumari Road trip and sightseeing

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1322km, hidden beach, kanyakumari, 6:10am, 10mins away from sunset. The Road ends and it ends with Indian extreme south land zone, and turquoise sea in front about to turn saffron and then black gradually.

The feeling can’t be explained in words, of what we were watching, what we have achieved and what we have experienced so far.

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दिल्ली से कैंची धाम और नैनीताल की यात्रा दो दिनो मैं

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कैंची धाम पहुँच कर के वहाँ पहाड़ी नींबू का शर्बत पिया और मंदिर मैं जा कर के थोड़ी देर मंदिर परिसर मैं बाबा के आसन के पास बैठा रहा, मैं जब वहाँ मंदिर परिसर मैं बैठा हुआ था तो मन मैं शांति का एहसास हो रहा था और बिलकुल भी इच्छा नहीं हो रही थी की मैं वहाँ से जाऊँ, पहले सोचा था की मंदिर परिसर मैं सिर्फ 10 मिनट तक रहूँगा लेकिन मैं उससे काफी ज़्यादा समय तक वहीं रहा और नहीं जानता कितनी देर तक बस वहाँ बैठ कर के मैं उस शांति के एहसास को महसूस कर रहा था, लेकिन मुझे वहाँ से चलना ही था मेरे पास समय की कमी थी शायद कभी मैं वहाँ फिर जा कर के एक या दो दिनो तक का समय बिताऊँ।

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My Delhi-Rishikesh monsoon round-trip, in less than INR 1000

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I know swimming very well in flowing water so thinking to swim inside Ganga without hold any chain in hand, so I walked till last bridge and suddenly jumped inside.

Peoples were surprised and thinking that someone has fallen inside Ganga, but they relaxed when saw that I was swimming. After I came out from Ganga, many people’s told me that to not dare do it but I know my limit so I told them not worry about it.

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एक दिन की लैंसडाउन यात्रा

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प्रोग्राम तय हुआ की बाइक से लैंसडाउन चला जाए, क्योकि मुज़फ्फर नगर से ये सबसे नजदीक का हिल स्टेशन पड़ता हैं, सुबह ठीक ६ बजे हम लोग निकल पड़े, पहला पड़ाव हुआ कोटद्वार में, एक चाय की दुकान पर जाकर रुके, एक – एक कप चाय और एक – एक मठरी खाकर आगे चल पड़े, दूर से सिध्बली बाबा के दर्शन हुए, मनोहर कहने लगा पहले दर्शन करते हैं, मैं बोला वापिस आते हुए करेगे, ये तो एक टोक लगनी थी, माफ़ कीजियेगा अपनी मुज़फ्फरनगर वाली बोली बोल रहा हूँ, पहाड़ पर अपनी चढ़ाई शुरू हो चुकी थी, हमारी बजाज प्लेटिना धीरे धीरे चढ़ रही थी. 

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पंचवटी की यात्रा – भाग २

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पंचवटी का शाब्दिक अर्थ है, “पांच बड़/बरगद के वृक्षों से बना कुञ्ज”. अब हम उस स्थान में प्रवेश कर रहे थे, जहाँ रामायण काल में श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी ने निवास किया था. पर्णकुटी तो इतने दिनों तक अब शेष नहीं रह सकती. पर पांच वृक्षों से घिरा वह कुञ्ज आज भी शेष दिखाया जा रहा है. सभी पांच वृक्षों पर नंबर लगा दिए गए थे, ताकि लोग उन्हें देख कर गिन सकें. वर्तमान में उन पांच वृक्षों के कुंज के बीच से ही पक्का रास्ता भी बना हुआ था, जिस पर एक ऑटो-स्टैंड भी मौजूद था और साधारण यातायात चालू था. बरगद के वे वृक्ष काफी ऊँचे हो गए थे. श्रधालुओं ने उन वृक्षों की पूजन स्वरूप उनपर कच्चे धागे भी लपेटे थे. हमलोगों ने पहली बार पंचवटी से साक्षात्कार किया.

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पंचवटी की यात्रा – भाग १

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नारोशंकर मंदिर की छत अपने आप में स्थापत्य-कला के लिए प्रसिद्ध है. काफ़ी विदेशी पर्यटक इस मंदिर की छत का अध्धयन करने आते हैं. चट्टानों के नक्काशीदार टुकड़े सिर्फ उन टुकड़ों पर बने खांच में लग कर अभी तक खड़े है. मंदिर के अन्दर के सभा मंडप में एक नंदी और एक कछुए की मूर्ति है. कछुए की मूर्ति तो जमीन के सतह पर ही अंकित है. कुछ ऐसा-ही त्रैम्बकेश्वर मंदिर में भी देखने को मिलता है. मंदिर के बाहर के प्रांगन में भी कई कलात्मक आकृतियाँ हैं, जैसे की काल-सर्प की प्रतिमा. नारोशंकर मंदिर में कुछ समय बिताने के बाद हमलोग फिर से राम-तीर्थ की तरफ बढ़े.

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A Triad in Time – Gharapuri, Ambarnath and Pataleshwar

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The most important sculpture here is the Trimutri, 3 faces of Mahadev which have found its space on Maharashtra tourism logo as well. Nearly full length of wall, the faces are very skilfully carved. Point to note that this is not a sculpture of Trimurti – Brahma , Vishnu and Mahesh but these are faces of Shiva only. There has been tradition to carve faces on Shivling as well. And based on number of faces, the shivling gets the name from Ekmukhi to Panchmukhi.
Although the common man thinks these are 3 faces, the experts have always more to add. Stella Kramrisch is one such expert in Indian iconography. She has proven that these are not 3 but 5 faces. There are distinct names to each of the face and it really represents the attribute of colorful character of Shiva. Five faces of Shiva represent five elements, Ishana (sky), Tatpurusha (wind), Aghora (fire), Vamadeva (water) and Sadjoyata (earth) and together this depiction is called as Sadashiv as per iconography. We see three faces and there is one assumed to be behind and one on top.

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Pachmarhi in Madhya Pradesh- Central India’s only hill Station

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It was raining heavinly so we moved quickly and covered the place from different angles. To avoid rains I devised a trick and used my cowboy and raincoat hats as one person would hold the cap while second will hold the device right under it and click photos. The trick worked really nice and we managed to get good shots even in heavy downpour without any damage to our cameras.

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ब्रह्मगिरी की पदयात्रा , त्रैम्बकेश्वर

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सीढ़ियों ने अब बहुत ऊँचाई ले ली थी. विशाल चट्टान-नुमा ब्रह्मगिरी पर्वत अपने सम्पूर्ण विशालता को ले कर हमारे सामने था. उस ऊँचाई से त्रैम्बकेश्वर शहर कितना बौना और मनोहर लग रहा था. सीढियां पर्वत की सपाट सतहों से लग गयी थीं. इन सीढ़ियों में घाटी की तरफ लोहे की रेलिंग्स भी लगे हुए थे ताकि कोई फिसल कर घाटियों में न गिर जाये. उस पर अब बन्दर सामने आ गए. पहाड़ की ऊँची खड़ी सपाट सतह पर भी ये बन्दर चीखते-चिल्लाते ऐसे दौड़ते थे की मानो समतल धरती पर दौड़ रहे हों. कूद कर अचानक किसी पदयात्री के सामने आ जाना और उनके हाथ से खाना छीन लेने में इन बंदरों को महारत हासिल थी. पर अनुभवी यात्री अपने साथ इनके लिए भी कुछ खाद्य सामग्री ले कर चलते है. श्री दानी ने भी ऐसा ही किया था. उसने अपने थैले से बिस्कुट निकाला और बंदरों को निश्चिंतता से खिलाया. और इधर हम तीनों अनुभव-हीन यात्री अपनी छड़ियाँ पकड़े बंदरों से बच कर आगे चलते रहे.

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