Religious

Road Journeys – Towards Somnath, In search of enlightenment

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Soon, we reached at my fourth Jyotirling, Somnath. Parking the car a few meters away in a very large space with unorganized parking facility though I hurriedly jogged to have the glance of the magnificent temple about which I have read so much in our history books during school and also in visual media. Soon a right turn left me in awe with eyes wide open to see the magnitude and glamour of the historical and mythological grand shrine at the shores of Arabian Sea, an architectural marvel standing erect in pride.

A large boundary around the shrine, with many visible vigil eyes, armed guards, innumerable CCTV cameras and steel barricading with metal detectors, scanners besides checking physically to every entrant beyond the permissible limit, reminds the history of destructions of the shrine in the past and its prone to vulnerability in the future.

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एक यात्रा ऐसी भी… पीरान कलियर, पुरकाजी और रुढ़की का सफरनामा

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समय की सुईयां,  अपनी रफ़तार से आगे सरक रही हैं, अत: रात मे एक बार दुबारा से लौटने का वादा कर, पुरकाजी से विदा लेकर हम रूढ़की की तरफ बढ़ चले | रूढ़की शहर पार करके हरिद्वार की तरफ लगभग 24 किमी दूर पीरान कलियर गाँव पड़ता है जो यदि हरिद्वार की तरफ से आया जाये तो वहाँ से 12 किमी के आसपास है | सब कुछ ठीक चलते चलते अचानक ही हमारी गाड़ी की अगली खिड़की के पावर विंडो ने काम करना बंद कर दिया | सारे यत्न करके देख लिये, शीशा बीच में ही अटका पढ़ा था, फौरन रूड़की शहर वापिस लौटकर एक कार मैकेनिक को ढूँढा, जिसने अगले दरवाजे की सारी पैकिंग वगैरह खोल कर, सिद्ध किया कि इसका प्लग खराब हो गया है, अब ये तो बड़ा और झंझट का काम था, मगर उसने किसी तरह शीशा ऊपर चढ़ा दिया और कनैक्शन हटा दिया, जिससे कोई गलती से शीशा नीचे ना कर दे, क्यूंकि शीशा एक बार नीचे उतर कर ऊपर नही जा पाता | बहरहाल, चलताऊ काम हो गया, मगर इस सब में एक महत्वपूर्ण घंटा निकल गया | लेकिन अब हम निश्चिंत होकर अपनी कार कहीं भी खडी कर सकते थे | इस अकस्मात हुये अवरोध की वजह से हमारे पीरान गाँव पहुंचते-पहुँचते, शाम की धुंधिलका छानी शुरू हो गयी थी, अब समर समय के साथ भी था, अत: रुकने की जगह सब कुछ जल्दी जल्दी करना था | तमाम तरह के झंझावातों से पार पाते हुये, आखिरकार गौधूली की  बेला में हम इस गाँव में पहुंचे | बिल्कुल साधारण सा गाँव है, यूपी के तमाम दूसरे गाँवों की तरह ही, तरक्की से बिल्कुल अछूता, गाँव में अंदर की तरफ जाती कच्ची-पक्की सढ़क और दूर तक फैला मिटटी का मैदान | हाँ, गाँव के प्रवेश स्थान पर पत्थर का बना एक बड़ा सा गेट, इस गाँव की कुछ विलक्षणता की मुनादी सा करता प्रतीत होता है, मगर इतना समय नही निकाल पाये कि चंद पल रुक कर, इस गेट की फोटो उतार पाते, क्यूंकि जंग अब घड़ी की सुईओं के साथ भी थी, और इधर शाम अब अपना सुरमई रूप बदल, कालिमा की तरफ़ बड़ने को अग्रसर थी | अत: फोटो का मोह छोड़ सीधे इमाम साहब की खानकाह में सजदा करने पहुंचे | ऐसी रवायत है कि हजरत साबिर अली की दरगाह पर दस्तक देने से पहले इमाम साहब और शाह बाबा की दरगाह पर हाजिरी भरनी पडती है, और दोनों जगहें एक दूसरे से लगभग 2 किमी की दूरी पर हैं | पहले हमने यहीं इमाम साहब की दरगाह पर अपना सजदा किया और अपनी मन्नत का धागा बाँधा | बाहर सेहन में कितने ही धागे और अर्जियां लोग अपनी मनोकामनायों की पूर्ती हेतु बाँध गये थे |

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Road journeys – Daman to Mumbai-Shirdi-Nasik

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After relishing the home made graceful dinner, after so long, we started our onward journey to Shirdi at 9 pm, a 250 km drive was supposed to take 5-6 hrs. Kavita on the front seat, immaculately navigated through the zig-zags and soon through the Ghodbander road we were on the Eastern expressway to Nasik. I was told that Mumbaikars often travel on this route on weekends for Shirdi and Nasik at this hour so no issues driving till late night there. On the contrary, I didn’t find much private vehicles and was little uncomfortable regarding the route to Shirdi from Igatpuri which is a single and bumpy 100 km drive. Engulfed with apprehensions of adversities, with three ladies on board, I was a bit skeptic to whether go Shirdi or halt at Nasik which is relatively safer because of the HW throughout. Kavita on the other hand was confident and relaxed about the safety issues. In a state of topsy-turvy, I stopped at a large food joint (not many on this route) at Igatpuri for a stretch, fags & refreshment to ladies. I was pleased to see a few private vehicles parked there, on enquiring most of them revealed of their return journey to Mumbai and suburbs. One Innova driver was however, going Shirdi with ladies on board and assured about a safe journey except that the road from Ghoti to Shirdi is single and mostly dusty and bumpy.

He was on first instance very impressed about knowing us from Delhi. He had once tried luck in Delhi and stayed in Laxmi Nagar for one year was fallen for the city as usual but luck pushed him back because of his mother’s ill health and since then staying in a slum in Khar near Bandra. While chatting, he was extremely happy recalling the names of the Delhi-NCR localities, praising proudly, every thing about his lavish life style way back in 2002-03 during his stay in Delhi.

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The Water Symphony

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Omkareshwar , one the 12 revered Shiv temples ( Jyoteerling) is actually on an island called Mandhata in Narmada. On the south bank you will find the Mamaleshwar also among the 12. The town is similar to all temple towns all over India, full of small lanes packed with Pooja shops and hotels, a free passage to all living animals including humans, devotees and pestering priests and in addition there were flocks of flies as the monsoon special. Omkareshwar is a modern looking temple from the outside however we know the place is ancient and there are ornate pillars inside the temples which give a glimpse of the old temple. Everything inside the temple is to ensure that you should not feel peaceful. The ceramic tiles, the water abhishek mechanism where water goes in a tube and then gets poured on the shivlinga, the overbearing crowd of priests offering a menu card of abhishek in various types and costs. The only time you find solace is when you come out and look at the serene Narmada. That is the real ‘Darshan’ for me.

Mamaleshwar on the other bank is visible from this side with its ornate high shikhar and a red flag fluttering to show the location amongst the crowd of several other small temples and houses. All built in red sandstone, Mamaleshwar has that special quality of providing a devotional experience to the visitor. The temple is typical Nagar style with up-swinging Shikhar. There are many small and medium temple structures in the clean premise. The elaborate door frames and beautiful sculptures on the outer walls of temples are worth a watch. In the premise, we also find several pieces of temple structure strewn away. A lone ‘amalak’ the round top of the shikhar, some carvings and ‘chandrasheela’ – an ornate step to get into the Garbhagriha are all there stashed away, silently suffering the passage of time.

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मनाली का सुहाना सफ़र: सुंदरनगर, मण्डी के रास्ते मनाली और माँ हिडिम्बा देवी के दर्शन

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फिर भी उनमे से २ लड़को के ज्यादा जिद करने पर हमने आपनी गाड़ी उनकी बाईक के पीछे दौड़ा दी जो की हमें एक होटल में लेकर गए, ये होटल रोहतांग वाले रास्ते पर व्यास नदी के उलटे हाथ की तरफ था जो की हमें कुछ ठीक नहीं लगा इसीलिए हम वहाँ ना रूककर वापस मॉल रोड की तरफ आ गए और हिडिम्बा मंदिर वाले रोड पर हमें एक आच्छा होटल दिखायी दिया, मैं उस होटल में पूछताछ के लिए गया और वहाँ पता लगा की २ कमरे तो मिल जायेंगे पर ₹२००० /- प्रति कमरे के हिसाब से, रात ज्यादा होने और बहुत ज्यादा थकान होने की बजह से हमने वहाँ रुकने का फैसला करा, यही सोचकर की अगर अगली सुबह कोई दूसरा आच्छा होटल सस्ते में मिल जाता है तो हम वहाँ पर शिफ्ट कर जायेंगे। हमने होटल के बराबर से खली जगह पर गाड़ी पार्क करी और सामान निकालकर अपने अपने कमरे में सोने चल दिए।

अगली सुबह लगभग ६ बजे जीजा जी ने मुझे फ़ोन करके होटल के बहार का नजारा देखने के लिए कहा, आपने कमरे की बालकनी में आकर जो नजारा मुझे देखने को मिला मेरे लिए उसे शब्दो में लिखना बड़ा ही कठिन कार्य है क्युकी वो एक अनुभूति थी जो की मैंने उससे पहले कभी भी महसूस नहीं करी थी, सुबह ६ बजे होटल की बालकनी में बड़ी ही ठंडी हवा चल रही थी जो कि शरीर में कपकपी पैदा कर रही थी, होटल के नीचे की तरफ जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी उसके पास ही “सेब का बाग़” था, और हमारी आँखों के ठीक सामने बर्फ के बड़े बड़े पहाड़ थे जिन्हे की हम रात को अँधेरे की बजह से देख नहीं पाये थे, बर्फ के उन पहाड़ों पर सूरज की किरणों के पड़ने के कारण वो एकदम चाँदी की तरह चमक रहे थे उनका रंग सफ़ेद ना होकर सुनहरा महसूस हो रहा था, इससे पहले मैंने पहाड़ों पऱ कभी भी बर्फ नहीं देखी थी पर आज तो पूरा बर्फ का पहाड़ ही मेरे सामने था, एक पल के लिए भी उस चमकदार पर्वत श्रंखला से नजरें हटाने का दिल नहीं कर रहा था शायद कुछ ऐसी ही अनुभूति साथ वाली बालकनी में जीजा जी भी कर रहे थे।

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In the mystic alleys of Delhi – the Dargah of Amir Khusrau

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I learnt about Amir Khusrau when I was very young.

During my childhood, we used to live in Old Delhi and our house was almost sandwiched between an ancient mosque and a “mazaar” (Mausoleum). At the Mazaar, every Thursday, a few of the good musicians assembled and played devotional music, which I came to know later on was called “Sufiyana Kalaam” and it was performed as homage to the father of “Qawwalis”, Hazrat Amir Khusrau and his Master, Hazrat Nizammudin Aulia.

Since I was fond of music, I found this kind of music very fascinating and depending on the homework prescribed by my school teachers, I used to attend the Thursday “Qawwali” session sometime. Seeing my enthusiasm, one Muslim gentleman, fondly called “Haji ji”, who lived in our neighborhood, told me a few interesting facts about Amir Khusrau.

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जंतर मंतर / वेधशाला उज्जैन – (भाग 10)

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महाकाल के दर्शनो के बाद हम लोगों ने नाश्ता किया और नाश्ते के बाद हमने एक ऐसे ऑटो कि तलाश शुरू कि जो हमें जंतर मंतर , जिसे वेधशाला भी कहते हैं , ले जाए। हमारी गाडी का समय दोपहर का था और उसमे अभी काफी समय था इसलिए हम लोग जंतर मंतर घूमना चाहते थे । आज रंग पंचमी का दिन था और यहाँ काफी धूम धाम थी। जैसे हमारे उतर भारत में होली मनाई जाती है वैसे ही यहाँ रंग पंचमी। इसलिए ज्यादातर दुकाने बंद थी और जो खुली थी वो भी सिर्फ कुछ घंटो के लिए। आज रंग पंचमी होने के कारण ऑटो भी काफी कम थे। जो थे वो ज्यादा पैसे मांग रहे थे। आखिर कुछ मोलभाव के बाद एक ऑटोवाला हमें जंतर मंतर / वेधशाला होते हुए रेलवे स्टेशन जाने के लिए 150 रुपये में मान गया। हम ऑटो में सवार हो अपनी नयी मंजिल जंतर मंतर / वेधशाला की ओर चल दिए ।
ऑटो वाला हमें उज्जैन की कुछ सुनसान सडकों से घुमाता हुआ 15-20 मिनट में जंतर मंतर ले आया। सुनसान सडकों पर जाने का उसका उदेश्य केवल हमें व अपने नए ऑटो को रंग से बचाना था। हम उसे बाहर प्रतीक्षा करने को कह जंतर मंतर में प्रवेश कर गए। यह स्थान महाकालेश्वर से 3 किलोमीटर की दुरी पर चिंतामन रोड पर स्थित है जहाँ से रेलवे स्टेशन की दुरी मात्र 2 किलोमीटर है। यहाँ प्रति व्यक्ति 10 रूपये प्रवेश शुल्क है। जब हम वहाँ पहुंचे तो हमारे अलावा वहाँ कोई भी नहीं था। अंदर जाकर देखा तो एक व्यक्ति नजर आया जो वहाँ का केअर टेकर था । उसने आकर हमें टिकट दिए और छोटी सी फ़ीस पर खुद ही गाइड का काम करने लगा। उसने हर यंत्र के बारे में बताया जिसमे से हमें थोडा सा समझ आया बाकी सब कुछ सर के ऊपर से निकल गया। हमारे पहुँचने के थोड़ी देर बाद वहाँ कुछ लोग और आने लगे और वो केअर टेकर उनके साथ व्यस्त हो गया।

वेधशाला, उज्जैन:
उज्जैन शहर में दक्षिण की ओर क्षिप्रा के दाहिनी तरफ जयसिंहपुर नामक स्थान में बना यह प्रेक्षा गृह “जंतर महल’ के नाम से जाना जाता है। इसे जयपुर के महाराजा जयसिंह ने सन् 1733 ई. में बनवाया। उन दिनों वे मालवा के प्रशासन नियुक्त हुए थे। जैसा कि भारत के खगोलशास्री तथा भूगोलवेत्ता यह मानते आये हैं कि देशांतर रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है। अतः यहाँ के प्रेक्षागृह का भी विशेष महत्व रहा है।
यहाँ पांच यंत्र लगाये गये हैं — सम्राट यंत्र, नाडी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र एवं शंकु यंत्र है। इन यंत्रों का सन् 1925 में महाराजा माधवराव सिंधिया ने मरम्मत करवाया था।

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एक सुहाना सफ़र मनाली का – अम्बाला, रोपड़ के रास्ते माँ नैना देवी के भवन (भाग १ )

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वहाँ चाय पीने के दोरान पता लगा की वहाँ से “नैना देवी” का मंदिर पास में ही है, तो सर्व सहमति से निर्णय लिया गया की पहले नैना देवी के दर्शन कर लेते है फिर आगे का सफ़र तय करा जायेगा . ढाबे से निकलने के बाद हमारा अगला उद्देश्य नैना देवी का मंदिर था, थोड़ी देर में शायद आनंदपुर साहिब से आगे निकलने पर हमें पहाड़िया मिलनी शुरू हो गयी जिन्हे देखकर हम सभी की ख़ुशी का कोई ठीकाना ही नहीं था, पहाड़ियो पर गाड़ी तो जीजा जी चला रहे थे पर अब हम भी पीछे की सीट पर सतर्क मुद्रा में बेठ कर ध्यान आगे के रास्ते पर लगाये हुए थे और सुन्दर नजरो का आनंद लिए जा रहे थे।

थोड़ी देर में हम पूछते पाछते नैना देवी के मंदिर के नीचे तक पहुच गए थे जहा पर गाड़िया बड़ी ही बेतरतीब से पार्क करी हुई थी, वहाँ मूलत जो पार्किंग थी वो बड़ी ही सीढ़ी सी पहाड़ी पर ऊपर जाकर थी जहाँ गाड़ी चढ़ाने की हिम्मत दिखने की हमने सोचा तक नहीं और वही पहाड़ी के नीचे ही और गाडियो की तरह ही हम भी आपनी गाड़ी एक तरफ खड़ी करके और सामने दुकान पर बेठी एक आंटी को कुछ पैसे देकर गाड़ी की देखभाल करने का बोल कर नंगे पैर माता के दर्शन को चल दिए।

सामने से देखने पर कुछ दुकानो के छोटे से झुण्ड की तरह दिखने वाले रास्ते से होते हुए हम आगे बढ़े तो मंदिर तक पहुचने के लिए सीडिया शुरू हो जाती है, वही ऊपर की तरफ चढ़ते हुए ही हमें कुछ भक्त देवी माँ की बड़ी सी छड़ी लेकर देवी के दरबार में जाते हुए दिखे जो की बड़े ही सुन्दर माँ के भजन गाते हुए जा रहे थे।

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महाकालेश्वर दर्शन व पुन: दर्शन (भाग 9)

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महाकालेश्वर मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था।

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उज्जैन दर्शन: श्री सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और सान्दीपनि आश्रम (भाग 8)

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संदीपनी आश्रम परिसर में स्थित श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर में 6000 वर्ष पुराना शिवलिंग स्थापित है । ऐसा माना जाता है कि इसे महर्षिसंदीपनी ने बिल्व पत्र से उत्पन्न किया था। इस शिवलिंग की जलाधारी में पत्थर के शेषनाग के दर्शन होते हैं जो प्रायः पुरे भारत वर्ष मेंदुर्लभ है। अधिकांश मंदिरों में नंदी की मूर्ति बैठी हुई अवस्था में ही होती है। इस शिवलिंग के सामने, मंदिर के बाहर खड़े हुए नंदी की एक छोटी सी दुर्लभ मूर्ति है।

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त्र्यंबकम गौतमीतटे …….त्र्यंबकेश्वर से शिर्डी.

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भीमाशंकर प्रवास तथा वहां के रात्री विश्राम की खट्टी मीठी यादें मन में संजोए अब हम अपने अगले गंतव्य त्र्यंबकेश्वर की यात्रा प्रारंभ करने…

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उज्जैन दर्शन: गढ़कालिका मंदिर और श्री काल-भैरव मन्दिर (भाग 7)

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उज्जैन की केन्द्रीय जेल के सामने से होते हुए हम लोग श्रीकाल भैरव मन्दिर जा पहुँचे। मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। यहाँ कुछ श्रद्धालु प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की बोतलें भी खरीदते हैं। ऐसी ही एक दुकान पर हम परसाद लेने के लिए रुके तो दुकानदार हमसे मंदिर में भैरों बाबा को पिलाने के लिए मदिरा लेने की जिद्द करने लगा। यहाँ पर लगभग हर ब्रांड की शराब उपलब्ध थी लेकिन शराब का रेट काफी तेज था, लगभग दुगना।

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