यहाà¤-वहाठकà¥à¤› नौजवान लडके-लडकियाठखà¥à¤²à¥‡ में गà¥à¤°à¥à¤ª बनाकर बैठे हैं, कà¥à¤› इधर-उधर घूम रहे है, कà¥à¤› छोटे बचà¥à¤šà¥‡ खरगोशों के पीछे à¤à¤¾à¤— रहें हैं, कà¥à¤› तोते और चिड़ियाठà¤à¥€ हैं, दूर तक फैला, खà¥à¤²à¤¾ विशाल कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, चारो तरफ चीड़ के पेड़, आपको जंगल में मंगल का नज़ारा देता है | à¤à¤• कप गरमा-गरम अदरक वाली चाय, आपकी रासà¥à¤¤à¥‡ की सारी थकान उतार देती है | यहाठकोई रिसेपà¥à¤¶à¤¨ या हॉल नही है, केवल सोने के लिठकमरे हैं, और आप खà¥à¤²à¥‡ में बाहर बैठकर पूरी तरह से पà¥à¤°à¤•ृति को जी सकते हो | चाय पीते-पीते आपका कमरा तैयार हो जाता है | रिजोरà¥à¤Ÿ की ही तरह कमरा à¤à¥€ बहà¥à¤¤ साधारण है, साधारण पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤° की हà¥à¤ˆ दीवारें, टीन की छत, जिन पर अंदर से लकड़ी की सीलिंग लगी है, कमरे के साथ अटैचà¥à¤¡ टॉयलेट के अलावा, à¤à¤• डबल बैड, दो सोफा-नà¥à¤®à¤¾ कà¥à¤°à¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, à¤à¤• छोटी मेज़ और टीवी | कमरे में जाकर कपड़े बदलते हैं, पर कमरे में मन ही नही लगता, वो तो कमरे से बाहर निकलना चाहता है | मोबाइल के सिगà¥à¤¨à¤² अकà¥à¤¸à¤° यहाठनही मिलते, BSNL अपवाद है | टीवी कोई देखना नही चाहता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सारी पà¥à¤°à¤•ृति तो बाहर बिखरी पड़ी है, वो कमरे में तो आà¤à¤—ी नही, अपितॠहमे ही उसके पास जाना पड़ेगा, यदि कमरे की चार-दीवारों में ही बैठना होता, तो अपने घर सा सà¥à¤– कहाठ? असली नजारे देखने हैं तो बाहर निकलो, मिलो दूसरों से… धीरे-धीरे आपकी सबसे जान-पहचान होने लगती है, जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° यà¥à¤µà¤¾ तो दिलà¥à¤²à¥€ या गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ से ही हैं, कà¥à¤› हमारी तरह आज ही आये हैं, कà¥à¤› कल | पर जहाठसे अà¤à¥€ तक कोई à¤à¥€ बाहर ही नही गया ! कारण पूछा, तो कहने लगे बाहर कà¥à¤¯à¤¾ देखना है ? सब कà¥à¤› तो यहीं है, इतनी खूबसूरती तो यहीं बिखरी पड़ी है | इस रिजोरà¥à¤Ÿ के चारों तरफ कोई चारदीवारी नही है, बस बांस की खपचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की दो-ढाई फà¥à¤Ÿ ऊंची बाढ़ है, जिससे बगल का सारा जंगल à¤à¥€ इसी का à¤à¤¾à¤— लगता है, और इस को और विशाल बना देता है |
इसी की बगल से दो कचà¥à¤šà¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡, और आगे के गांवों की तरफ जा रहे है, कà¥à¤› लडके-लडकियाठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शायद पहले कà¤à¥€ गाà¤à¤µ या जंगल नही देखा, घूमने जाना चाहते हैं, दिनेश का à¤à¤¤à¥€à¤œà¤¾ जो रसोई के काम से शायद अब निवृत हो गया है, उनके साथ गाइड बनकर चलने को तैयार है, अपने साथ à¤à¤• छड़ी और टॅारà¥à¤š लेकर | छाता, छड़ी और टॅारà¥à¤š ये à¤à¤¸à¥€ चीज़े हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लिठबिना कोई पहाड़ का वासी बाहर नही निकलता, जाने कब इनकी जरूरत पड़ जाये…. और इधर हम, लोगों से परिचय करते-करते रात के पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® की उधेढ़-बà¥à¤¨ में लगे हैं, रिजोरà¥à¤Ÿ के à¤à¤• कोने की तरफ à¤à¤• छोटा सा टेंट लग रहा है और उधर किचन के पीछे à¤à¤• लड़का लकड़ियाठफाड़ रहा है | दिनेश से पूछने पर पता चलता है आज इनके रिजोरà¥à¤Ÿ का à¤à¤• साल पूरा होने की ख़à¥à¤¶à¥€ में इनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने गाà¤à¤µ वालों और कà¥à¤› दूसरे जानकारों को पारà¥à¤Ÿà¥€ दी है, जिनसे साल à¤à¤° बिज़नेस मिलता है | लकड़ियाठरात को बोन-फायर के लिठकाटी जा रही हैं, à¤à¤• दूसरे किनारे पर डी-जे लग रहा है, कमरों के सामने की तरफ थोड़ी खà¥à¤²à¥€ सी जगह पर 3-4 लडके à¤à¤• टेंट खड़ा कर रहे हैं, जो वैसा ही है, जैसा अकà¥à¤¸à¤° मिलिटà¥à¤°à¥€ वालों के पास या फिर जंगल सफारी करने वालों के पास होता है | हमारे देखते ही देखते उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दो टेंट खड़े करके उनमे सामान रखना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया- गदà¥à¤¦à¥‡, रजाई, टीवी, हीटर और बिजली का बलà¥à¤¬ ये देख कर के तो NCC के दिन याद आ गये | दिनेश से बात की, à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ हमे कमरा नही चाहिà¤, हमे तो यहीं सेट करो… आखिर à¤à¤¡à¤µà¥‡à¤‚चर हो तो पूरा हो ! और फिर आखिर, जिनके लिठटेंट लगाया गया था, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टेंट के नà¥à¤•à¥à¤¸à¤¾à¤¨ और कमरे के फायदे गिनाकर हमारा कमरा दे दिया गया | सबसे मज़ेदार तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ये बताना था कि कई बार रात को यहाठलकà¥à¤•ड़बगà¥à¤—े à¤à¥€ आ जाते है, आखिर जंगल इसके साथ ही लगा हà¥à¤† है, इस बात ने मासà¥à¤Ÿà¤° सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‹à¤• का काम किया और अपनी चाहत के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हम टेंट में शिफà¥à¤Ÿ हो गये, आखिर जीवन में à¤à¤¸à¥‡ मौके कितनी बार मिलते हैं…?
Read More