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हरि का द्वार हरिद्वार – भाग २..

हरि का द्वार हरिद्वार – भाग २..

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ऋषिकेश हरिद्वार से करीब २५ किलोमीटर दूर हैं. इसको हिमालय का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. ऋषिकेश हिन्दुओ के सबसे पवित्र स्थलों में से एक हैं. ऋषिकेश को केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री आदि का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. यह कहा जाता हैं कि यंहा पर भगवान विष्णु ऋषिकेश अवतार में प्रकट हुए थे. इसलिए इस स्थान का नाम ऋषिकेश हैं. वैसे तो ऋषिकेश में सैकड़ो मंदिर आश्रम हैं, पर समय अभाव के कारण में कुछ ही मंदिरों और आश्रमो में जा सका.

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यात्रा हरि के द्वार हरिद्वार की – भाग १

यात्रा हरि के द्वार हरिद्वार की – भाग १

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हरिद्वार यानि हरि का द्वार, या हरद्वार कहो यानि भोले कि नगरी. हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल, देव भूमि उत्तराखंड का प्रवेश द्वार. माँ गंगा पहाड़ों से उतरकर हरिद्वार में ही मैदानों में प्रवेश करती हैं. इसलिए हरिद्वार का एक नाम गंगा द्वार भी हैं. हरिद्वार कुम्भ कि भी नगरी हैं.

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Maha Shivratri , Kovad Mela and a long weekend…

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We had been stuck in Gurgaon for quite some time, due to work, weather or some other celebrations in the riends/family circle. Luckily Mahashivratri Monday holiday coincided with no other commitments. So, we decided to get out during this long week-end.
For three whole days –February 18 to 21. Decided against hill resorts, due to weather, and a strong call from Haridwar to attend the Ganga Arti and a holy dip at Har-ki-Pauri. WE checked up on the Haridwar from various write-ups on the Ghumakkar site just to refresh ourselves with any tips, though we have visited the place number of times.

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घुमक्कड़ी – कुछ खट्टी…. कुछ मीठी (2)

घुमक्कड़ी – कुछ खट्टी…. कुछ मीठी (2)

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क्या है घुमक्कड़ी…
पढ़ो तो इक किताब है घुमक्कड़ी
देखो गर तो इक ख्वाब है घुमक्कड़ी
हंसो तो आसान बन जाती घुमक्कड़ी
सुनो तो ज्ञान बन जाती घुमक्कड़ी

Dear friends, in my previous post of the series, you saw how important the reminiscences are in our travelling. Many a times, we forget other details of our travellings and remember it by the sweet & sour memories of that travelling. Travelling is not simply going to some places or reaching the heights of Himalayas… when we rewind the films of our travels and see it frame by frame … we find that it has changed our life altogether. It has made us more confident, given us more tolerance, given us more strength and sometimes even changed our perspective towards life and its aim.

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हरिद्वार से यमनोत्री

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मंदिर पहुँच कर  गर्म कुंड मे स्नान किया. यहाँ पर काफ़ी भीड़ थी. पर स्नान मे कोई दिक्कत नही हुई. कुंड का  जल ज़्यादा गर्म ना हो इसलिए ठंडे पानी की  पतली धार कुंड मे गिर रही थी. और यह ज़रूरी भी था क्योकि इस कुंड से उपर दिव्य शिला पर जो कुंड है उसमे तो इतना गर्म पानी है कि सभी लोग पूजा के चावल उसमे पकाते है. जैसा कि  मैने पढ़ा था की दर्शन से पहले मंदिर के बाहर दिव्या शिला का पूजन करते है उसके बाद दर्शन के लिए जाते है. गर्म कुंड मे स्नान कर के कपड़े बदल ही रहा था कि  तभी पंडा लोग आ कर पूजा करने का आग्रह करने लगे. पूजा तो करनी ही थी मैने पूजा से पहले  पंडा से पूछ  लिया की कितने पैसे लोगे पर सभी कह रहे थे आप अपनी श्रधा  से दे देना. कई लोगो ने डरा दिया था की यहाँ पंडा लोग बहुत पैसे  ले लेते है. इसलिए मैने पहले ठहरा लेना उचित समझा. जब वह श्रधा  की बात करने लगे तो मैने कहा 201 रुपये दूँगा. वह बोले ठीक है अब हम अपने परिवार के साथ उनके  मंदिर के पास बने प्लेटफोर्म पर पहुचे. यहाँ पर बहुत सारे लोगो को पंडा लोग पूजा करवा रहे थे एक जगह बैठा कर पूजा करनी शुरू की. मै  समझा करता था कि   कोई शिला  होगी पर शिला तो कोई नज़र नही आई तब मैने पंडा जी से पूछा तो उन्होने बताया की जिस स्थान पर बैठे है यही दिव्या शिला है. पूजा के बाद पंडा जी ने कहा, अब आप लोग माँ  यमुना जी के दर्शन कर लो जब तक आपके चावल भी पक जाएँग. यमञोत्री मे प्रसाद  के रूप मे चावल गर्म कुंड मे पका कर यात्री ले जाते है. मंदिर मे ज़्यादा भीड़ नही थी माँ यमुना की मूर्ति काले पत्थर की  बनी है उनके साथ माँ  गंगा की भी मूर्ति स्थापित है. दर्शन कर  के बाहर आया तब तक पंडा गर्म कुंड मे पके हुए चावल की पोटली ले कर आ गये. मैने कही पढ़ा था की यहाँ एक ऋषि रहते थे जो रोज गंगा नहाने पहाड़ पार कर के गंगोत्री जाते थे जब वह काफ़ी उम्र  के हो गये और पहाड़ पार  कर जाना संभव नही हुआ तब माँ  गंगा से उन्होने प्राथना की तब गंगा वही प्रकट हो गई . कहते है यहाँ यमनोत्री मे एक धारा गंगा की भी  बहती है. मैने जब इस बारे मे पंडा जी से पूछा तब उन्होने अनभीग्यता प्रकट की. अब मैने सोचा की यहाँ तक आए है तो यमुना जी का जल तो ले चलना चाहिए. मंदिर के साथ से ही यमुना जी बह रही है. 1-2 लोग वहाँ पर जल ले रहे थे मैने भी एक बोतल मे जल भरा,  पत्नी और बच्चो को भी बुला कर यमुना जी के दर्शन कराए. एक तरह से यहाँ पर यमुना जी पहले दर्शन होते है. यमुना जी का जल एक दम स्वच्छ  पारदर्शी है और पीने मे बहुत अच्छा लगा यही जल दिल्ली पहुच कर किस अवस्था मे हम कर देते है यह तो दिल्ली वाले ही जानते है. जल इतना ठंडा था कि   बड़ी मुश्किल से बोतल मे भर पाया.

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: तपोवन – रुद्रप्रयाग – दिल्ली

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रास्ते में हम लोग लोग थोड़ी देर रुद्रप्रयाग में रुके और फिर चल दिए श्रीनगर की ओर. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते हमें काफी देर हो चुकी थी और आज रात इससे आगे जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था. कोई जीप या बस मिलने की तो संभावना बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि यहाँ हिमाचल की तरह रात को बसें नहीं चलती. ऐसे में हमारे चालक साब ने हमें रात श्रीनगर में ही बिताने का सुझाव दिया और हमें रात गुजारने का एक ठिकाना भी दिखाया. हमने ठिकाना तो देख लिया पर अब किसी का भी यहाँ रुकने का मन नहीं था और सब जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे. उत्तरांचल में वैसे तो रात को कोई वाहन नहीं चलते पर सब्ज़ी फल आदि रसद पहुँचाने वाले ट्रकों की आवाजाही रात भर चालू रहती है, सोचा क्यों ना इसे ही आजमाया जाए. आज शायद किस्मत हम पर मेहरबान थी, थोडा पूछ्तात करने पर ही हमें एक ट्रक मिल गया जो हरिद्वार तक जा रहा था. ट्रक चलने में अभी लगभग आधा घंटा बाकी था और सुबह सिर्फ आश्रम में ही भोजन किया था इसलिए एक ढाबे पर जाकर थोड़ी पेट पूजा की गई.

ट्रक पर वापस लौटे तो देखा की चालक के साथ वाली सीट पर पहले ही दो लोग बैठे हुए थे. ऐसे में वहाँ हम तीनों का एक साथ बैठना संभव और सुरक्षित नहीं था. इसलिए दोनों की बुरी हालत देखकर मैं ट्रक के पीछे चला गया जहाँ कुछ अन्य लोग पहले से ही लेटे थे. इस ट्रक के ऊपर एक बरसातीनुमा दरी थी जो शायद सब्जियों को धूल और बारिश से बचाने के लिए डाली गयी थी और नीचे खाली प्लास्टिक के डब्बे रखे हुए थे जिनमे सब्जियाँ रखी जाती हैं. इन्ही हिलते डुलते प्लास्टिक के डब्बों के ऊपर हम सभी मुसाफ़िर लेटे हुए थे. ट्रक चलने पर कुछ समय तो बड़ा मजा आया पर जैसे जैसे रात गहराती गयी और नींद आने लगी तो इन हिलते हुए डब्बों पर सोना बड़ा दुखदायी लग रहा था क्योंकि एक तो ये डब्बे आपस में टकराकर हिल रहे थे और टेढ़े मेढ़े होने की वजह से चुभ भी रहे थे. खैर मेरे लिए तो ये सब रोमांच था, लेकिन रोमांच धीरे धीरे बढ़ने लगा जब इन्द्रदेव अर्धरात्रि में जागे और हम पर जमकर मेहरबान हुए. तिरछी पड़ती हुई मोटी मोटी बारिश की बूँदे हमारे ऊपर एक शॉवर की तरह पड़ रही थी जो एक मंद मंद शीतल रात को एक बर्फ़ीली सी महसूस होने वाली रात में बदलने के लिए काफी थी. ऐसे में ऊपर रखी हुई दरी ने ठण्ड से तो नहीं पर भीगने से तो बचा ही लिया. ठण्ड में किटकिटाते हुए, बिना सोये जैसे तैसे करीब चार बजे के आस पास ट्रक चालक ने हमें हरिद्वार में एक सुनसान मोड़ पर उतार दिया. जितना दर्द मेरे शरीर में उस ट्रक में सवारी करते हुए हुआ उतना पूरी यात्रा कहीं नहीं हुआ, शरीर इतना अकड़ गया था कि ट्रक से बाहर निकलने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी. ठण्ड के मारे बुरा हाल था, सुनसान गलियों से होकर गुजरते हुए हम लोग बस स्टेशन की ओर बढ़ने लगे. ऐसे में रास्ते में एक चाय का ठेला देखकर चेहरे पर कुछ ख़ुशी आयी, भाईसाब के हाथ की गर्मागरम चाय और बंद खाकर शरीर में कुछ ऊर्जा आई. फिर तो बस जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए हरिद्वार बस स्टेशन पहुँचकर, दिल्ली की बस पकड़ी तो लगभग दस या ग्यारह बजे तक दिल्ली पहुँच कर ही राहत की साँस ली. यात्रा समाप्त!

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An Adventurous Trip from DELHI to Haridwar & Rishikesh

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It was around 12’o clock in the afternoon we felt tired after a long drive and checked-in at Hari Heritage hotel on the Haridwar Rishikesh Highway. we left for Rishikesh in few hours and stayed in the hotel overnight. After disappointment at Har ki Pauri , Rishikesh was a real delight. Clean and chilled Ganga water flowing in from huge mountains to the plains..We parked out car in parking and had lunch at the famous choti wala restaurant where a Choti wala guy is at the entrance welcoming you. It took around half an hour to reach Rishikesh from Haridwar.

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