
सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥‡ अतीत की परछाईओं का à¤à¤• गाà¤à¤µ: गोकà¥à¤²
और फिर आगे-आगे वो पंडित जी और उनके पीछे-पीछे हम सात लोगों का कारवाà¤, गोकà¥à¤² की गलियों में निकल पड़ा उस जगह को देखने के लिठजहाठयमà¥à¤¨à¤¾ में आई बाद के बीच, ननà¥à¤¦ बाबा वासà¥à¤¦à¥‡à¤µ और देवकी के नवजात शिशॠको à¤à¤• टोकरी में रख कर लाये थे और यहीं उसका लालन-पोषण हà¥à¤†| कौन जानता था उस वकà¥à¤¤ कि ये बचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤• पूरे यà¥à¤— का à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯-विधाता होगा और कà¤à¥€ à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में इन गलीयों को देखने के लिठदूर-दूर से लोग चल कर आयेंगे| गोकà¥à¤² की गलियों में पाà¤à¤µ रखते ही आप इस आधà¥à¤¨à¤¿à¤• दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से इतर, बिलकà¥à¤² ही पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से रूबरू होते है, जिसके लिठशायद समय का चकà¥à¤° रà¥à¤•ा हà¥à¤† है या यूठकहें जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¯à¤® ही अपने को उस काल से जोड़ कर रखा हà¥à¤† है, जब कृषà¥à¤£ अपने बाल-गोपालों और गोपियों के साथ इन गलियों में खेला करते होंगे| यदि गलियों में बिछी तारकोल की काली पटà¥à¤Ÿà¥€ को छोड़ दें तो आज à¤à¥€ गोकà¥à¤² का पूरा गाà¤à¤µ उसी दौर का नजर आता है| सड़क से 3 से 4 फà¥à¤Ÿ ऊंचे मकान पर अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤, लगà¤à¤— हर घर में à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤•ान, पांच गà¥à¤£à¤¾ पांच के आकार की जिनमे बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ है हलवाइयों की! पर वो केवल लसà¥à¤¸à¥€, पेड़े जैसी दो-तीन वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ ही रखते हैं | उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में बिजली की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ तो हम सब जानते ही हैं, सो हर दà¥à¤•ान के मालिक के हाथ में à¤à¤• हाथ से ही à¤à¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ वाला पंखा! बाहर से आये हà¥à¤ लोगों को देखते ही हर हलवाई अपनी गडवी में मथानी घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ लगता है और आपको यहाà¤-वहाठसे आवाजें अपने कानों में पडती सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती है, “लसà¥à¤¸à¥€- गोकà¥à¤² की लसà¥à¤¸à¥€ …â€! और फिर आपके जेहन में सूरदास की ये पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ कौदने लगती हैं –
“मà¥à¤– दधि लेप किà¤
सोà¤à¤¿à¤¤ कर नवनीत लिà¤à¥¤
घà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥à¤¨à¤¿ चलत रेनॠतन मंडित मà¥à¤– दधि लेप किà¤à¥¥â€œ
आखिर दूध, दही और मकà¥à¤–न के बिना गोकà¥à¤² की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कैसे हो सकती है !