05 May

Blue sky country

Kinnaur-The land of apples (Part 1)

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On day 3, before starting off for Sangla, we were in a dilemma on whether to make the short trip to Hatu peak or not. As we had to reach Sangla before it was dark, we decided to skip Hatu peak, which is about 8 KMs from Narkanda. Thus, we hit the NH22 directly and road conditions being good, we reached the town of Rampur in about 2 hours. We refuelled the Ertiga here and noted a mileage of 15-16 KM/Litre in hilly road conditions.  After, Rampur, the highway, which was once known to the British as the Hindustan-Tibet road, leads you further on to Jeori before entering the district of Kinnaur at Chaura. After entering Kinnaur, the road, cut into sheer rock, rises steeply above the Satluj River. It follows the Satluj and is one of the most vertiginous roads in the whole country offering a spectacular view of rugged mountains.

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Venice Calling

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While my son followed the boatman’s song with “row row row your boat”-my daughter’s lively imagination propelled her to the way people in the olden times. The gondola swerved into smaller water channels, compressed by the rows of houses projecting on either side. The balconeys of most houses were decorated by a riot of colorful flowers. I imagined fair maiden peeping out of the balcony, glancing shyly at the boatman who had purposefully directed his boat there-to glance at lady of his heart…hmmm I know too vivid imagination-but that’s was just the Gondola ride playing tricks on my mind.

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गढ़वाल घुमक्कडी: रुद्रप्रयाग – कार्तिक स्वामी – कर्णप्रयाग

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उपर के नज़ारों ने शरीर को तरो ताज़ा कर दिया था, इसलिए उतरते वक्त ज़्यादा समय नही लगा और उतरते ही पैदल यात्रा आरंभ. कुछ एक किलोमीटर ही चले थे कि दोस्तों को थकान लगने लगी, सोचा चलो जो साधन मिल जाए आगे तक उसी मे चल पड़ेंगे. अब चलते चलते हर एक आगे जाने वाली गाड़ी को हाथ दिखाकर रोकने की कोशिश करते रहे, पर सब बेकार. किस्मत से थोड़ी देर बाद एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया, आधे मन से इसे हाथ दिखाया और ये क्या! ट्रक तो थोड़ा आगे जाकर रुक ही गया था.

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गढ़वाल घुमक्कडी: दिल्ली – रुद्रप्रयाग – कोटेश्वर महादेव

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खैर यहाँ लगभग 2 घंटे मस्ती करने के बाद, 5 बज चुके थे इसलिए अन्य मंदिरों के जल्दी से दर्शन करके चढाई शुरू कर दी वापसी के लिए. यहाँ से हमारा अगला पड़ाव होना था, उमरा नारायण मंदिर जो की यहाँ से लगभग 4 किमी आगे था. मंदिर तक पहुँचते पहुँचते अंधेरा सा होने लगा था, इसलिए सोचा की रात यहीं बिताई जाए. यह मंदिर यहाँ से कुछ दूर बसे सन्न नामक गाँव के ईष्ट देवता उमरा नारायण को समर्पित है.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

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दर्शनी द्वार के बाद और बाण गंगा से पहले एक दीवार पर माता वैष्णो देवी की यात्रा का पूरा नक्शा बनाया हुआ हैं. हम लोग पवित्र बाण गंगा पर पहुँच जाते हैं. बहुत से लोग यंहा पर स्नान करके आगे बढते हैं. हमने भी अपने हाथ, पैर, मुह धोया. माना यह जाता हैं की माता वैष्णोदेवी जब भैरो  देव से छिप कर के आगे बढ़ रही थी तो हनुमान जी भी उनके साथ साथ थे. हनुमान जी को बड़ी जोर की प्यास लगी, उन्होंने मैय्या से कंहा, माता मुझे बड़ी जोर की प्यास लगी हैं. माता ने अपने धनुष बाण के एक तीर को चलाकर के धरती से एक जल का एक स्रौत उत्पन्न किया. उस जल से ही हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई. इसी जल के स्रौत को ही बाण गंगा कहा जाता हैं. बाण गंगा की जल में अनगिनत सुन्दर मछलिया भी तैरती रहती हैं. बहुत से श्रद्धालु उन्हें आटे की गोलिया खिलाते हैं. बाण गंगा का निर्मल शीतल जल बहुत ही स्वच्छ दीखता हैं, ऐसा लगता हैं की जैसे दूध की नदी बह रही हो.

आप लोग देखियेगा, कितना निर्मल, कितना शीतल, कितना पवित्र जल हैं बाण गंगा का. यंहा पर बाण गंगा को एक झरने का रूप दे दिया गया हैं. और उसके आगे स्नान करने के लिए एक कुंड बना दिया गया हैं. यंही से पैदल रास्ता और सीढ़ियों का रास्ता शुरू हो जाता हैं. वृद्ध और कमजोर, रोगी व्यक्ति को सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उनके लिए यंहा पर घोड़े, व पालकी उपलब्ध हो जाती हैं. बच्चो व सामान के लिए पिट्ठू उपलब्ध हैं. उन सबका रेट फिक्स होता हैं. पिट्ठू या घोडा तय करने के बाद उनका कार्ड पर जो नाम व नंबर होता हैं उसे अपने पास नोट करके रख लेना चाहिए. कोई बात होने पर श्राइन बोर्ड के कंट्रोल रूम में उनकी शिकायत दर्ज की जा सकती हैं. थोड़ा सा ही आगे बढ़ने पर हमें माता वैष्णोदेवी गुरुकुल दिखाई दिया. गुरुकुल की सजावट की हुई थी. गुरुकुल का वार्षिक उत्सव चल रहा था. इस गुरुकुल में सैंकडो ब्रह्मचारियो को वैदिक संस्कृति, वेद – पुराणों आदि की शिक्षा दी जाती हैं. यह गुरुकुल एक विशाल इमारत में स्थित हैं. और इसका प्रबंधन माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा ही किया जाता हैं.

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Trip to Chakrata/यादगार सफर चकराता का (दिल्ली से चकराता -1)

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अब कुछ चकराता के बारे मैं : चकराता समुद्र ताल से करीब 7000 फीट के ऊंचाई पर स्तिथ हिल स्टेशन हैं जो हिमाचल और उत्तरांचल की सीमा पर पड़ता हैं।
देहारादून से इसकी दूरी करीब 90 किमी के आसपास हैं।
आप सहारनपुर से हर्बेर्ट्पुर और विकासनगर होते हुये या फिर देहारादून- मसूरी -केंपटी फाल होते हुये भी पहुँच सकते हैं।
एक रास्ता पोंटा साहिब से भी निकलता हैं। चूंकि हमें मसूरी होते हुये आना था इसलिए हमने हर्बेर्ट्पुर-विकासनगर जाना तय किया था॥

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माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा – KATRA VAISHNODEVI)

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हमारी ट्रेन का समय ठीक ६.३० शाम को था. हम लोग ठीक ६ बजे स्टेशन पहुँच गए. स्टेशन पर भी प्रतीक्षा करने का एक अलग ही आनंद होता हैं. पता चला की ट्रेन १५ मिनट लेट हैं. दरअसल मेरठ से मुज़फ्फरनगर और सहारनपुर के बीच में सिंगल लाइन हैं. जिस कारण से करीब करीब सभी ट्रेन लेट होती हैं. हमारा आरक्षण S-6 डिब्बे में था. डिब्बे में चढ़ने के बाद वही समस्या जो की पूरे हिन्दुस्तान में रेलवे में हैं. दैनिक यात्री आरक्षित डिब्बों में घुसे रहते हैं. और बड़ा अहसान जताते हुए वे हमें हमारी सीट पर बैठने देते हैं. कहते है की सहारनपुर, यमुनानगर तक की ही तो बात हैं. पता नहीं रेलवे से ये समस्या कब दूर होगी. खैर सहारनपुर के बाद आराम से एडजस्ट हुए, हम घर से आलू ,पूरी, अचार आदि खाने में लेकर के आये थे. खाना खाकर के लंबी तान कर सो गए. सुबह ठीक पांच बजे ट्रेन जम्मू पहुँच गयी. स्टेशन पर अन्धेरा छाया हुआ था. हम लोग अपने सामान सहित बाहर बस स्टैंड पर आ गए.

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Golmaal 3 in the evening

Mystical monsoon visit to Nahan, Paonta Sahib, and Dakpatthar – Part I

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Intermittently, when the Rain God seemed to have become a bit weary and softened the intensity of the downpour to smaller and scantier drops, we took a round of the rain-washed outskirts of the resort. But a look up above in the sky at the over-burdened cloud mounds, we knew it might start raining heavily any minute and so did not venture far and also had thoughtfully equipped ourselves with umbrellas. Everything looked so fresh and green early in the morning. The leaves were dripping wet and glistening with droplets of rain water hanging from their edges. The rains seemed to have breathed a fresh lease of life to the flora and fauna.

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जिम कॉर्बेट पार्क – गर्जिया देवी का मंदिर और कॉर्बेट जल प्रपात

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गर्जिया देवी का मंदिर रामनगर से रानीखेत जाने वाली सड़क पर रामनगर से 15 किलोमीटर दूर है.यह मंदिर कोसी नदी के किनारे एक पहाड़ी के शीर्ष पर बना हुआ है. यह नैनीताल जिले का एक मुख्य मंदिर है जहाँ हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर हजारो श्रदालु माता के दर्शनों के लिए आते है. वसंत पंचमी पर भी यहाँ भक्तों की भीड़ जुटती है. यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है.

मंदिर की दूरी सिर्फ 15 किमी ही थी परन्तु पहाड़ी रास्तों पर इन 15 किमी की दूरी तय करने में अच्छा खासा समय लग जाता है. हमे भी पहुँचते पहुँचते अँधेरा हो गया था. मंदिर के रास्ते में पड़ने वाली दुकाने भी बंद होने लगी थी. हमने एक दुकानदार से पूछा कि क्या मंदिर खुला होगा उसने सकारात्मक उत्तर दिया. मंदिर तक पहुँचने के लिए कोसी नदी पर बने एक पुल पर से गुजरना होता है. शाम हो चुकी थी इसलिए मंदिर का रास्ता भी सुनसान सा ही था. मंदिर एक पहाड़ के शिखर पर स्थित है. जहाँ सीढ़ियों पर चढ़कर जाना होता है. मंदिर काफी उंचाई पर है. मंदिर पहुँच कर प्रसाद चढ़ाया और माता का आशीर्वाद लिया. मंदिर से वापस होटल पहुंचे. जहाँ रात्रि भोजन कर कल की सफारी की कल्पनायों में खो गए.

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A Trip to Bolivia – Part 2

A Trip to Bolivia – Part 2

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We drove across the mountains, visited many Lagos, saw an active volcano, saw flamingos and other animals such as ostriches, lizards, emu’s etc. If you are not a big fan of dry lands, then maybe you could skip this tour because it’s a lot of travel by road. Especially on the mountains, you can hardly call them roads!! We had a roller coaster ride!

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A trip to Bolivia – Part 1

A trip to Bolivia – Part 1

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Lake Titicaca is the highest navigable lake in the world. We left our hotel early morning around 7.30am since it as a long way to Lake Titicaca. We went by road for about an hour and then by boat for half an hour. We traveled again by road to the small island of Copacabana.

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Trek to Shikari Devi, The Hunter Goddess

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Disoriented, with mixed feelings and helpless (as my mobile had no network and there was no sign of any human beings around), it took me some time to gather my senses and to think about getting out of this. Though I had experienced this earlier as well on my solo trip to McLeodganj where I was lost while wandering in the jungles near Dharamkot, I somehow managed to get out of this and felt delighted to see a way out. I am now able to relate myself sometime with some similar experiences especially when I watch the program ‘I shouldn’t be alive’ on Discovery Channel which shows the survival stories of the people. I am sure many others who would have experienced this ever will be able to better relate to this.

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