Weekend-Delhi

What we did at Aravali Resorts near Dharuhera

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robably, resort people could identify our intentions of sitting there. They managed to arrange some comfortable chairs for us & also offered Hukka. Some of us enjoyed Hukka, sitting below the crystal clear sky with lot of stars visible. It is not possible for we Delhites to witness such a beauty of stars now in our city, as Delhi atmosphere is too polluted.

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Bandhavgarh – Where Tigers Rule

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It was 10:00am and our first Jeep Safari was about to end. From 06:00 am till now, we had seen a variety of birds (Night Jar, Serpent eagle, dancing peacocks, Eurasian Thicknee, Jungle Fowl, common Kingfisher, and Indian Roller) and spotted dear, jungle cat and wild boar. The forest blossomed with ever green Sal Trees and echoed with sounds of birds, animals and crushing dry leaves. Its vast meadows produced brilliant sight of Cheetals around a lake with the Bandhavgarh hills at the backdrop.

The best thing about a jungle Safari is that you never know when a tiger could cross your path, and this hope keeps you excited and energetic. But our vigilance hadn’t paid so far.

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माता वैष्णो देवी की यात्रा – मैया रानी का प्यार मुझे भी मिला अबकी बार

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लगभग दो घंटो की प्रतीक्षा के बाद अंततः वो समय आ ही गया जब मे माता जी किी पिंडियो के दर्शन करने हेतु पवित्र गुफा मे प्रवेश कर रहा था. गुफा की दीवारों से रिस्ता हुआ प्राकृतिक जल जब आपके शरीर पर पड़ता है तो मानो अंतर-आत्मा तक को भीगा डालता है और जिस सच की अनुभुउति होती है वह तो अतुलनीया है. धीरे-2 मैं माता किी पिंडियो तक भी पहुँच गया जिनके दर्शन करते ही नेत्रो मे सुकुउन और मन को आराम मिल जाता है. ऐसी अदभुत शक्ति का आचमन मात्रा ही कुछ पलों के लिए हमारे मन से ईर्ष्या, राग और द्वेष जैसे दोषो को समाप्त कर देता है और बदन एक उन्मुक्त पंछी की भाँति सुख के खुले आकाश मे हृदय रूपी पंख फैलाकर हर उस अनुभूति का स्वागत करने लगता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नही की थी. मुझे स्वयं भी यह आभास हो रहा था की पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर मेरा चंचल चित्त कहीं पीछे ही छूट चुका है और निकास मार्ग तक पहुँचते-2 वो अब काफ़ी शांत व गंभीर हो गया है, लगता है मानो कुछ पा लिया हो.

माता जी के दर्शानो के उपरांत समीप ही स्थित शिव गुफा मे भी मत्था टेकने और पवित्र गुफा मे बहते अमृत जल का आचमन करने के बाद मैं बहुत देर तक माता के भवन को निहारता ही रहा और इसकी सुंदरता भी देखते ही बनती थी, शायद नवरात्रि के उपलक्षय मे इसे विशेष रूप से सजाया गया था. यह वो पल थे जब मैने स्वयं को उस गूगे के समान्तर पाया जो मीठे फल का आनंद तो ले सकता है किंतु चाहकर भी उसका व्याख्यान नही कर सकता.

तत्पश्चात मैने समीप ही स्थित सागर रत्ना मे रात्रि का डिन्नर करने के पश्चात एक दूसरे ढाबे से सुजी का हलवा लिया और एक खुले स्थान पर जाकर माता के भवन की तरफ मुख करके खड़ा हो उसे खाने लगा. यहाँ यह ज़रूर बता देना चाहूँगा की मात्र रु 20 का यह हलवा कम से कम रु 250 के भोजन से स्वादिष्ट था जो मैने सागर रत्ना मे खाया था. इस वक्त तक शाम पूरी तरह से घिर आई थी और तेज सर्द हवाओं का दौर शुरू हो चुका था. माता जी का भवन जग-मग रोशनी मे नहा रहा था और मेरा मन उन तेज हवाओं मे भी यहीं टीके रहने को आतुर था और यहाँ खड़े-2 मे जल्दी ही एक डोना गर्मागर्म हलवा और एक कप कॉफी हजम कर चुका था.

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दिल्ली से हाटु पीक नारकंडा की बाइक यात्रा

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हाटु पीक से करीब दो किलोमीटर पहले से ही सड़क पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई थी और जैसे ही हमने उसके ऊपर बाइक चलाने की कोशिश की, बाइक आगे जाने की बजाय पीछे की तरफ फिसलने लगी। हमारे पीछे कुछ फ़ीट पर खाई थी और रोकने के बावजूद बाइक पीछे की तरफ फिसल रही थी इसलिए मैंने बाइक को दाहिने हाथ के तरफ गिरा दिया जिससे बाइक का हैंडल बर्फ में धंस गया और बाइक रुक गयी।

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मोटरसाइकिल से दिल्ली – मंसूरी /धनोल्टी यात्रा

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सहस्त्रधारा में अंदर घुसते ही 10 रूपये/बाइक एंट्री फीस लगती है जो हमने दिया और अंदर चले गए. वहाँ जाकर हमने बाइक को एक दुकान के आगे खड़ा किया और दुकान वाले से दो लॉकर किराये पर लिया (50 रूपये एक लाकर ). अपना बैग और सामान लाकर के अंदर रखने के बाद हमने दुकान वाले को चाय नाश्ता के लिए बोला और पानी में नहाने के लिए चले गए.

अंदर पानी बहुत ही ठंडा था और वहाँ पर स्थानीय लोगो ने जगह-जगह दिवार बनायी थी इसलिए वह किसी स्विमिंग पूल की तरह दिख रहा था.
थोड़ी देर नहाने के बाद हम लोगो ने सहस्त्रधारा किनारे बैठ के चाय और परांठे खाये।

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उज्जैन यात्रा

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फिर अगले दिन हमने उज्जैन दर्शन किया महाकाल एरिया के पास आपको बहुत से ड्राइवर अपना कार्ड देंगे जिसमे घूमने की जगहों के नाम होंगे आप उसमे खुद अपनी इच्छा से नाम जोड़ और हटा सकते हैं हमारा ड्राइवर जो खुद एक मुस्लिम था पर उसकी भक्ति और ज्ञान देखकर हम बहुत प्रभाभित हुए, उसने हमें एक एक जगह का महत्व बताया और अच्छे से दर्शन करवाये, आप यदि उसका नंबर चाहते हैं तो नोट कर लीजिये नाम : ज़ाकिर ०८३४९८२५२०७ और गाड़ी थी मारुती वैन I

हमने शुरुआत की श्री रामकृष्ण आश्रम उज्जैन से जो की मानव सेवा में लगा हुआ है यहाँ पर एक सुंदर फिजियोथेरेपी क्लिनिक है जो गरीबो की सेवा करती है, हमने आश्रम की सुंदरता निहारते हुए जप किया और मंदिर के दर्शन किये I आश्रम में दान दिया और प्रसाद ग्रहण किया

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Chand Baori Abhaneri

Neemrana to Bundi: In search of Indian step wells – Part 2

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This part of the city is flourishing (economically) because most travelers here are from Europe, I mean I met with more euro backpackers rather than travelers from India. So locals have turned their homes as B&B, guest house and those who have big mansions, they have turned them into haveli’s. After realizing this, I must say that I made a big mistake by booking hotel in Kota, rather than staying in a heritage Haveli’s in this part of Bundi.

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Going Crazy in Mukteshwar and Nainital

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Nainital was just 10 kms from Bhowali and the road went uphill. So we decided to board the cab at last. Nainital meant the usual activity of walking around the Naini Lake, One hour in peddle boats and a shopping spree on the mall road.

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Neemrana to Bundi: In search of Indian step wells – Part 1

Neemrana to Bundi: In search of Indian step wells – Part 1

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But leaving the roads apart, when I entered Chand Baori, a WOW just came out from my mouth. I mean Neemrana Stepwell was massive, but this one is like some aliens came to build it. This stepwell is enormous and mind-blowing & now I understand that why a scene of Batman 2008 was filmed here. There is no parallel of such structure in India.

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दिल्ली से कैंची धाम और नैनीताल की यात्रा दो दिनो मैं

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कैंची धाम पहुँच कर के वहाँ पहाड़ी नींबू का शर्बत पिया और मंदिर मैं जा कर के थोड़ी देर मंदिर परिसर मैं बाबा के आसन के पास बैठा रहा, मैं जब वहाँ मंदिर परिसर मैं बैठा हुआ था तो मन मैं शांति का एहसास हो रहा था और बिलकुल भी इच्छा नहीं हो रही थी की मैं वहाँ से जाऊँ, पहले सोचा था की मंदिर परिसर मैं सिर्फ 10 मिनट तक रहूँगा लेकिन मैं उससे काफी ज़्यादा समय तक वहीं रहा और नहीं जानता कितनी देर तक बस वहाँ बैठ कर के मैं उस शांति के एहसास को महसूस कर रहा था, लेकिन मुझे वहाँ से चलना ही था मेरे पास समय की कमी थी शायद कभी मैं वहाँ फिर जा कर के एक या दो दिनो तक का समय बिताऊँ।

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