
जंतर मंतर / वेधशाला उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ – (à¤à¤¾à¤— 10)
महाकाल के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹ के बाद हम लोगों ने नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और नाशà¥à¤¤à¥‡ के बाद हमने à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ ऑटो कि तलाश शà¥à¤°à¥‚ कि जो हमें जंतर मंतर , जिसे वेधशाला à¤à¥€ कहते हैं , ले जाà¤à¥¤ हमारी गाडी का समय दोपहर का था और उसमे अà¤à¥€ काफी समय था इसलिठहम लोग जंतर मंतर घूमना चाहते थे । आज रंग पंचमी का दिन था और यहाठकाफी धूम धाम थी। जैसे हमारे उतर à¤à¤¾à¤°à¤¤ में होली मनाई जाती है वैसे ही यहाठरंग पंचमी। इसलिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° दà¥à¤•ाने बंद थी और जो खà¥à¤²à¥€ थी वो à¤à¥€ सिरà¥à¤« कà¥à¤› घंटो के लिà¤à¥¤ आज रंग पंचमी होने के कारण ऑटो à¤à¥€ काफी कम थे। जो थे वो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पैसे मांग रहे थे। आखिर कà¥à¤› मोलà¤à¤¾à¤µ के बाद à¤à¤• ऑटोवाला हमें जंतर मंतर / वेधशाला होते हà¥à¤ रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ जाने के लिठ150 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में मान गया। हम ऑटो में सवार हो अपनी नयी मंजिल जंतर मंतर / वेधशाला की ओर चल दिठ।
ऑटो वाला हमें उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ की कà¥à¤› सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ सडकों से घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ हà¥à¤† 15-20 मिनट में जंतर मंतर ले आया। सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ सडकों पर जाने का उसका उदेशà¥à¤¯ केवल हमें व अपने नठऑटो को रंग से बचाना था। हम उसे बाहर पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने को कह जंतर मंतर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤à¥¤ यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ महाकालेशà¥à¤µà¤° से 3 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर चिंतामन रोड पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जहाठसे रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ की दà¥à¤°à¥€ मातà¥à¤° 2 किलोमीटर है। यहाठपà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ 10 रूपये पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ शà¥à¤²à¥à¤• है। जब हम वहाठपहà¥à¤‚चे तो हमारे अलावा वहाठकोई à¤à¥€ नहीं था। अंदर जाकर देखा तो à¤à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ नजर आया जो वहाठका केअर टेकर था । उसने आकर हमें टिकट दिठऔर छोटी सी फ़ीस पर खà¥à¤¦ ही गाइड का काम करने लगा। उसने हर यंतà¥à¤° के बारे में बताया जिसमे से हमें थोडा सा समठआया बाकी सब कà¥à¤› सर के ऊपर से निकल गया। हमारे पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के थोड़ी देर बाद वहाठकà¥à¤› लोग और आने लगे और वो केअर टेकर उनके साथ वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ हो गया।
वेधशाला, उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨:
उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ शहर में दकà¥à¤·à¤¿à¤£ की ओर कà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾ के दाहिनी तरफ जयसिंहपà¥à¤° नामक सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में बना यह पà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¤¾ गृह “जंतर महल’ के नाम से जाना जाता है। इसे जयपà¥à¤° के महाराजा जयसिंह ने सनॠ1733 ई. में बनवाया। उन दिनों वे मालवा के पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ नियà¥à¤•à¥à¤¤ हà¥à¤ थे। जैसा कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ के खगोलशासà¥à¤°à¥€ तथा à¤à¥‚गोलवेतà¥à¤¤à¤¾ यह मानते आये हैं कि देशांतर रेखा उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ से होकर गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥€ है। अतः यहाठके पà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¤¾à¤—ृह का à¤à¥€ विशेष महतà¥à¤µ रहा है।
यहाठपांच यंतà¥à¤° लगाये गये हैं — समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ यंतà¥à¤°, नाडी वलय यंतà¥à¤°, दिगंश यंतà¥à¤°, à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ यंतà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ शंकॠयंतà¥à¤° है। इन यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का सनॠ1925 में महाराजा माधवराव सिंधिया ने मरमà¥à¤®à¤¤ करवाया था।