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Burha luit tumi Burha luit buwa kiyo?

Summer Vacation: A beautiful river and a few Necklaces – IV

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These are some of the places of Kolkata, which you may like to visit if you travel to the city. There are good and there will be bad things in any city. There are plenty of examples or perception to believe the city is not worth a visit or a second look. Whatever I find attractive, may not be as attractive to you. Everyone has their own rights to judge things differently. However, there are so many places around in any city, not in Kolkata alone, to come and explore.

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Rain Fury in Chakrata, Uttarakhand in June 2013 (Part I)

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We made ourselves comfortable in the tents, opened our bags to change the clothes but got the shock of our life as all the clothes inside the bag were equally wet like the clothes we were wearing. I decided to continue with my present set of clothes which got dried with my body heat in next two hours. The camp guys brought a battery driven LED light which ware barely emitting any light, some pakoras and masala tea by 7:30 pm in the evening. Our gang enjoyed these snacks and felt a little relieved and energetic, since we have not ate anything after breakfast. The Sun was setting behind the hills quickly and with the absence of electricity and inability to light the fire outside due to rain, darkness was building up inside the camp and outside. The sound of rain smashing against the camp started to scare us. Rajesh the dabangg, got dumb struck, the thing that was enthusing voice in him were the never ending songs of Gurdeep ‘Dil ro raha hai…’ to which Rajesh was getting irritated and saying ‘yaar chup ho ja, tere aise gaano ki wajah se hi itni barish ho rahi hai‘. Rest of us were enjoying this cat fight between the two and were trying to be back in holiday mood. Sanjay and me were quite sure that rain will subside by morning and we will be able to visit Tiger Fall. All were keen to visit Tiger Fall, but there was no voice coming out from dabangg bhai’s mouth. By 9 pm dinner was served, and post-that we slipped inside the quilts after closing the zipper inside tent. Very soon the camp got quite warm inside assuring us that atleast we will manage to have a decent sleep. We keep chit chatting inside our camp and occasionally across the camp of Gurdeep and Arun. The rain kept turning mightier with the darkness of night, and at a point we were not able to hear each other’s voice because of deafening collision sound between rain drops and tent. With prays for God, we slept in a hope of better tomorrow.

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मसूरी की यात्रा मे पानी का विकराल रूप

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हरिद्वार से रूड़की के रास्ते मे पता नहीं कितनी बार हमारा रूट बदला गया, रास्तो का तो पता ही नहीं चल रहा था। लोगो के आगे पीछे चलते हुए और लोगो से पूछते हुए ही हम आगे बढ़ रहे थे। किसी तरह रूड़की पहुचे तो फिर से हमें नए रास्ते पर डाल दिया गया, उस रास्ते पर आगे गए तो फिर से गयी भैस पानी मे। आगे फिर सड़क पर पानी ही पानी दिख रहा था और बहुत सारी गाड़िया किनारे पर खड़ी हुई थी, हमने भी गाड़ी रुकवाई और पैदल ही वहा पहुचे, आगे का नजारा भी डराने वाला था। सड़क का एक हिस्सा टूट चूका था जो की बस की वजह से टूटा था और पूरी सड़क पर पानी था, वाहन ले जाते हुए लोग इसलिए डर रहे थे कि उसके वजन से सड़क धस न जाए। हमारी भी हालत ख़राब क्योकि पीछे भी रास्ता बंद और यहाँ भी कभी भी हो सकता था। उसके बाद १-२ गाड़ी वालो ने आगे निकलने का मन बना ही लिया क्योकि वहा रुकने से कोई फायदा नहीं था, अगर एक बार सड़क टूट जाती तो फिर हम कही भी नहीं जा सकते थे, उन लोगो ने पहले गाड़ी से उतरकर पैदल ही रास्ता पार किया ताकि गाड़ी का वजन कम रहे उसके बाद ड्राईवर ने अकेले गाड़ी धीरे धीरे बाहर निकाल ली, उन्हें देखकर हमने भी ऐसा ही किया और फिर से यात्रा शुरू कर दी। उसके बाद हमें इतनी दिक्कत नहीं हुई और लगभग ५ बजे हम पुरकाजी पार कर चुके थे। फिर हम कुछ खाने के लिए एक ढाबे पर रुके, वहा पर भी काफी लोग थे जो पीछे से आये थे और कुछ को हरिद्वार ही जाना था लेकिन रास्ता बंद होने की वजह से वो वही फस गए थे। एक व्यक्ति से हम मिले जिसकी पत्नी और बच्चे हरिद्वार से आ रहे थे लेकिन रास्ते मे कही फसे हुए थे और वो भी आगे नहीं जा पा रहा था, वो काफी चिंतित था। उस वक़्त हमें लगा कि अगर हम मसूरी से सुबह न निकलते या कही और रूककर और थोडा समय ख़राब कर देते तो शायद हम भी पीछे ही कही फंसे होते।

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A Weekend Trip to Agra

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Next day we checked out of hotel to visit Taj, and as we were approaching Taj Mahal, a number of people stopped our car seeing the Delhi number plate, and tried to lure us on some pretext or other. Some said, “Bauji, Taj Mahal se 4 km tak koi parking nahi hai, main apki car bhi park kara dunga aur auto se le chalunga” -“Sir, there is no parking within 4km of Taj Mahal, I will get your car parked and take you there in the auto”. We overheard all those guys and parked our car at Shilpgram parking, buy tickets from the counter, hired a battery cab in just Rs 10, that dropped us close to Taj. Battery operated cabs hop between authorized Taj parkings and Taj Mahal.

Reaching there, we were welcomed by a long queue of tourists getting restless to see one of the Seven Wonders of the World. The guards were checking the entry tickets of each visitor and randomly asking for identity proofs of tourists (There was no standard rule for checking authenticity of individuals). Soon after entering, there were rooms made of red sandstone which used to be the rooms of guest of the Shah Jahan, made in almost the same manner as the ones in Fateh Pur Sikri. After entering a huge gate, the sight of marvel made of white marble got visible. The Taj is magnificiently built structure of equal dimensions from all four side and even its distance from the mosque at both its sides are at same length. The entire dimensional symmetry of this architectural marvel is a treat for viewer’s eyes.

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सरिस्का के जंगल से भानगढ़ के रहस्यमय किले तक का सफ़र

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गाइड से पूछने पर पता चला की हाल फिलहाल तो शेर की कोई हलचल वहा नहीं दिखी है, अब हम इतनी बार जंगल जा चुके है कि एक विशेषज्ञ की तरह ही गाइड और ड्राईवर से बात करते है। तभी हमारे ड्राईवर लकी ने १-२ बिस्कुट जीप से बाहर हिरनों की तरफ फ़ेंक दिए तो हमने तुरंत उसको डांटा, वो बोला सर कोई गलत चीज़ नहीं फेंकी है, इससे क्या नुकसान होगा। हमने बोला भाई वो प्राकृतिक चीज़े खाते है उनको ये गन्दी आदत मत डालो, अगर बाद मे उनकी इच्छा फिर से ये खाने की हुई तो कहा से लायेगे, किसी हिरन की मादा ने फरमाइश कर दी कि वही वाले बिस्कुट चाहिए तो उस बेचारे हिरन की गृहस्थी ही टूट जायेगी। वैसे मजाक अपनी जगह है लेकिन जंगल मे इस तरह से कुछ भी फेंकना गलत ही है। जैसी की उम्मीद थी कि कोई शेर नहीं दिखा इसलिए हमने ड्राईवर को भी बोल दिया कि वो बाहर चल सकता है और वैसे भी समय हो ही गया था। इस समय हमारे मन मे भानगढ़ जाने की प्रबल इच्छा थी क्योकि इतना कुछ सुन रखा था इन किलो के बारे मे कि अब इन्तजार नहीं हो रहा था। बाहर आते ही हमने जिप्सी ड्राईवर को बचे हुए २० ० ० रूपये दिए और अपनी गाड़ी मे बैठ गए और लकी को भी इशारा कर दिया कि जल्दी से भानगढ़ की तरफ चले।

भानगढ़ और सरिस्का के बीच की दूरी लगभग ७०-८० किलोमीटर है, सरिस्का से आगे थानागाजी, अजबगढ़ होते हुए भानगढ़ जाया जा सकता है। अभी कुछ भी खाने की इच्छा नहीं थी इसलिए हमने पहले भानगढ़ जाने का ही निश्चय किया फिर वहा से वापिस आने के बाद ही खाने के बारे मे कुछ सोचेगे वैसे भी ७०-८० किलोमीटर ही दूरी थी तो सोचा कि एक सवा घंटा ही लगेगा पहुचने मे लेकिन थोड़ी देर मे ही अच्छी सड़क का रास्ता खत्म हो गया और ख़राब रास्ता शुरू जो योजना थी उससे दुगना समय लगा पहुचने मे।
भानगढ़ के बारे मे कहा जाता है कि वहा की राजकुमार रत्नावती बहुत खूबसूरत थी और लोग उसके रूप के दीवाने थे, वही एक साधू भी था जो रत्नावती को बहुत चाहता था, वो साधू काले जादू मे माहिर था। एक बार राजकुमार बाजार मे इत्र खरीद रही थी तो उस साधू ने उस इत्र पर मंत्र पढ़ दिए जिससे कि वो इत्र लगाते ही राजकुमारी उसकी दीवानी हो जाए लेकिन राजकुमार इत्र देखते ही उसकी चाल समझ गयी और उसने वो इत्र की शीशी एक पत्थर पर पटक दी,

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Photography : Practical Tips and Tricks

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This is true of every ghumakkar. If Vishal Rathore, DL, Amitava, Ritesh, Manu, Abhee, Jat Devta, SS, Praveen Wadhwa, Nirdesh, Vipin, Mala, Devasmitha and Sushant (or any of the rest of authors here) were wandering together in a city or village with our cameras on our shoulders, each of us would aim at different objects and would shoot from different angles and for different reasons. It hardly matters whether we own a DSLR or a mobile phone as far as selection of our subjects is concerned. Well, here are a few things which I have learnt in photography in all these years. May be you would find them interesting and useful.

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रहस्यमयी नगरी – मांडू

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अल्टीमेटली हम उस भीमकाय भवन के निकट जा पहुंचे जो दूर से एक छोटा सा बुर्ज महसूस हो रहा था। वहां लिखा था – रानी रूपमती का महल ! वहां हमने थोड़ी देर तक इमली वाले ठेले पर इमली के रेट को लेकर बहस की। ये मांडू की विशेष इमली थी जिसके बारे में मुकेश ने बताया कि ये सिर्फ यहां मांडू की जलवायु का ही प्रताप है कि यहां ये इमली उगती है। मैं अपने जन्म से लेकर आज तक इमली के नाम पर अपने परचून वाले की दुकान पर जो इमली देखता आया हूं, वह तो छोटे – छोटे बीज होते हैं जिनके ऊपर कोकाकोला रंग की खटास चिपकी हुई होती है और बीज आपस में एक दूसरे से पेप्सी कलर के धागों से जुड़े रहते हैं। वह ये तो इमली के फल थे जिनके भीतर बीज होने अपेक्षित थे। बाहर से इस फल पर इतने सुन्दर रोयें थे कि बस, क्या बताऊं = एकदम सॉफ्ट एंड सिल्की ! दूर से देखो तो आपको लगेगा कि शायद बेल बिक रही है, पर पास जाकर देखें तो पता चलता है कि इमली के फल की शक्ल-सूरत बेल के फल से कुछ भिन्न है और साथ में रोयें भी हैं! जब रेट को लेकर सौदा नहीं पटा तो हम टिकट लेकर रानी रूपमती के महल या मंडप की ओर बढ़ चले जो नर्मदा नदी से 305 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मुझे किसी भी एंगिल से महल या मंडप अनुभव नहीं हुआ। अब जैसा कि पढ़ने को मिला है, ये मूलतः सेना के उपयोग में आने वाली एक मचान हुआ करती थी जिसमें मध्य में एक बड़ा परन्तु नीची छत वाला हॉल व उसके दोनों ओर दो कमरे थे। पर बाद में उसमें विस्तार करके ऊपर बुर्ज व दो गुंबद बनाये गये। ये बुर्ज वास्तव में आकर्षक प्रतीत होती है। ये सब काम सिर्फ इसलिये कराने पड़े थे चूंकि रानी रूपमती को नर्मदा नदी के दर्शन किये बिना खाना नहीं खाना होता था, अतः वह यहां से ३०५ मीटर नीचे घाटी में एक चांदी की लकीर सी नज़र आने वाली नर्मदा की धारा को देख कर संतोष कर लिया करती थीं और एतदर्थ नित्य प्रति यहां आया करती थीं। इसी कारण बाज़ बहादुर ने इसमें कुछ परिवर्तन कराकर इसे इस योग्य कर दिया कि जब रूपमती यहां आयें तो वह रानी से कुछ अच्छे – अच्छे गानों की फरमाइश कर सकें और चैन से सुन सकें। जैसा कि आज कल के लड़के – लड़कियां मंदिर में जाते हैं तो भगवान के दर्शनों के अलावा एक दूसरे के भी दर्शन की अभिलाषा लेकर जाते हैं, ऐसे ही रानी रूपमती और बाज बहादुर भी यहां आकर प्रणय – प्रसंगों को परवान चढ़ाते थे। खैर जी, हमें क्या!

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Famous Candles of Nainital

Nainital – The Jewel of Kumaon – Dream Fulfilled – Part – II

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Why do we need vacations? There is a very simple answer to it. We need vacation to rest, rejuvenate, relax, as well as to recharge ourselves at least for the next few months. It’s very important to get away and de-stress oneself in today’s world. When we work for a living, we must get away from the work once in a while. Recently, we went to Nainital and we were mesmerized to see the place & surroundings. You can also plan a trip there.

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आज की शाम – मुकेश भालसे के नाम !

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सुबह शंख ध्वनि, घंटे – घड़ियाल की मंगल ध्वनि से आंख खुली तो देखा कि 7 बज रहे हैं। कविता घर में बने हुए अपने मंदिर से बाहर आ चुकी थीं और बच्चों को हिला-हिला कर जगा रही थीं कि घूमने चलना है अतः अलस त्यागो और फटाफट तैयार हो जाओ ! बच्चे पहले तो उठने के मूड में नहीं थे क्योंकि रविवार का छुट्टी का दिन था पर जब ध्यान दिलाया गया कि पिकनिक पर जाना है तो फटाफट बिस्तर में से निकल आये। शिवम्‌ को यह भी लालच दिया गया कि नीचे चल कर कार की सफाई में भी उसकी सहायता ली जायेगी। लड़कों को पता नहीं क्यों ऐसे अजीबो-गरीब कामों में बहुत मज़ा आता है। मेरे बेटे भी जब छोटे थे तो खेल – खिलौनों के बजाय प्लास, पेचकस, संडासी जैसे सामान में अधिक रुचि लेते थे।

मुकेश ने गैराज़ में से अपनी शेवरले स्पार्क निकाली और फिर शिवम्‌ के साथ एक बाल्टी पानी, कुछ अखबार और डस्टर आदि लेकर नीचे पहुंचे। मैं भी अपना कैमरा उठाने लगा तो बोले, अभी इसका क्या काम ! जाने में तो अभी दो घंटे हैं। मैने कहा कि पिकनिक तो उसी समय से शुरु हो जाती है जब हम यह निश्चय कर लेते हैं कि पिकनिक पर जाना है। उसके बाद में की जाने वाली सभी तैयारियां भी पिकनिक का अभिन्न हिस्सा हैं। कार की धुलाई – पुछाई – सुखाई सब इस अविस्मरणीय पिकनिक का अविभाज्य भाग है। इसलिये इन सब की फोटो भी जरूरी है! सब कुछ पिकनिक की भावना से करो तो हर काम में मज़ा आने लगता है। आधा घंटे तक MP 11 CC 0470 कार की मस्का पालिश की गई। फिर ऊपर आकर नहाये – धोये ! कविता तब तक धांसू वाली स्टफ्ड पूरियां और सब्ज़ी बना चुकी थीं जिनका हमने जी भर के भोग लगाया। बच्चों ने कार में सारा सामान बूट में रखा। भोले बाबा को बारंबार प्रणाम करके हम सब फ्लैट से नीचे उतर आये और मुकेश ने कार की चाबी मेरे हाथों में सौंप दी।

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इन्दौर – पैदल स्थानीय भ्रमण!

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संभवतः तीसरी मंजिल पर जाकर एक ओर खेल कूद की दुकानें और दूसरी ओर खाने पीने के रेस्तरां दिखाई दिये। जेब में हाथ मार कर देखा तो पता चला कि मेरे सारे पैसे तो होटल में ही छूट गये हैं। अब दोबारा किसी भी हालत में होटल जाने और वापिस आने का मूड नहीं था। पैंट की, शर्ट की जेब बार – बार देखी पर एटीएम कार्ड के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। कैमरे के बैग की एक जेब में हाथ घुसाया तो मुड़ा तुड़ा सा १०० रुपये का एक नोट हाथ में आ गया। उस समय मुझे ये १०० रुपये इतने कीमती दिखाई दिये कि बस, क्या बताऊं ! छोले भटूरे का जुगाड़ तो हो ही सकता था। वही खा कर मॉल से बाहर निकल आया। सोचा इस बार सड़क के दूसरे वाले फुटपाथ से वापस होटल तक जाया जाये। सड़क का डिवाइडर पार कर उधर पहुंचा तो एक छोटा सा अष्टकोणीय (या शायद षट्‌कोणीय रहा होगा) भवन दिखाई दिया जिसकी छत पर एक स्तंभ भी था। सभी दीवारों पर जैन धर्म से संबंधित आकृतियां उकेरी गई थीं। यह जैनियों की किसी संस्था का कार्यालय था, जिसमें छोटे-छोटे दो कमरे बैंकों ने एटीएम के लिये किराये पर भी लिये हुए थे। एटीएम देख कर मेरी जान में जान आई और मैने तुरन्त कुछ पैसे निकाल लिये क्योंकि मेरी जेब में अब सिर्फ १० रुपये का ही एक नोट बाकी था।

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