Uttarakhand

अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 3 ) टाइगर फाल (TIGER FALL)

अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 3 ) टाइगर फाल (TIGER FALL)

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बिलकुल थोडा सा आगे जाते ही मन एक दम खुश हो गया होता भी क्यूँ नहीं …हम एक बेहद ही खुबसूरत सफ़ेद झरने का कुछ  हिस्सा जो देख रहे थे। मन एक दम लालयित हो उठा चलो जल्दी …अरे पर जल्दी तो चले लेकिन चले कहाँ से सामने तो दोनों पहांड़ी नदिया मिल रही रास्ता कुछ दिख नहीं रहा था। एक बार लगता के इन्ही नदी में पड़े पत्थरों से होकर जाना होगा। लेकिन २ दिन पहले से बंद हुयी बारिश अब तक हमें इसी और खड़े रहने का इशारा कर रही थी।

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अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 2 ) रहस्यमई मोइला गुफा

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ये सब देखकर हम तो मानो जैसे स्कूल से छुटे, छोटे छोटे बच्चो की तरह दोड़ते भागते , गिरते पड़ते जब उस मंदिर नुमा ढांचे तक पहुचे तो एक बार को तो उसे देखकर हम तीनो सिहर से उठे। वो एक लकड़ी का बना मंदिर ही था पर उसमे न कोई मूर्ति न घंटा , हाँ उसमें इधर उधर  किसी जानवर के पुराने हो चुके  सिंग , कुछ बर्तन से टंगे हुए थे और एक लड़की का ही बना पुतला दरवाजे से बाहर जो की कोई  द्वारपाल सा लग रहा था। मन ही मन उस माहोल और जगह को प्रणाम कर अपने साथ लाये मिनरल वाटर की  बोतल से उन्हें जल अर्पण किया और परिकर्मा कर बड़े इत्मिनान से वहां बैठ दूर दूर तक फैली वादियों और शान्ति का मजा लेने  लगे। थोड़ी देर बाद सोचा  के चलो ताल में नहाते है फिर कुछ खा पीकर गुफाओ को ढूंढ़ेगे।

पानी का ताल जो की थोडा और आगे था जल्दी ही दिखाई दे गया लेकिन वहां पहुँच कर नहाने का सारा प्रोग्राम चोपट हो गया। कारण उसमे पानी तो बहुत था परन्तु एक दम मटियाला। सो सिर्फ उसके साथ फोटो खीच कर ही मन को  समझा लिया। अब बारी  गुफा ढूंढने की तो लेकिन वहां चारो और दूर दूर तक कोई गुफा तो नहीं अपितु मकेक बंदरो के झुण्ड घूम रहे थे। जो की हम पर इतनी कृपा कर  देते थे की हम जिस दिशा में जाते वो वहां से दूर भाग जाते थे। हम तीनो काफी देर अलग अलग होकर  ढूंढते  रहे पर हमें तो कोई गुफा नहीं दिखी सिर्फ शुरू में आते हुए एक छोटा सा गड्ढा नुमा दिखाई दिया  था।

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A Road Trip to Enchanting Mukteshwar

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With all the theoretical knowledge collected through blogs, we had few recommended names for our stay. We started having a look on hotels. First and the very pleasing one was MT- Mountain Trail. Ambiance/view here was awesome. After discussing about the tariffs we moved on to other hotels. We were more concerned for a captivating view rather than the tariffs. We went ahead to few more lodges along with PWD Guest house. But, we had already lost our hearts to MT. So we called back the manager and asked him to book 2 rooms for us.

We parked our car near the entrance of Mukteshwar temple and started taking a walk towards the main tourist attraction point “Chauli ki jali”. After putting in few efforts in climbing the rocks we finally reached on the top of the cliff. The cliff gave a splendid panoramic view of snow-white Himalayan ranges. Captured the “Orange- setting Sun”, did some archery. As it was getting late and the temperature started dropping with Sun, instead of going for Rock climbing we opted to just give a pose :)

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: जोशीमठ – तपोवन – बाबा आश्रम

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पैदल घूमते घामते प्रकृति को निहारते हुए सलधार पहुँचे और सबसे पहले वसुधारा की पद यात्रा से सबक लेकर एक दुकान पर रुककर आगे की यात्रा के लिए कुछ चने और मीठी गोलियाँ रख ली. सलधार से भविष्य बद्री तक का रास्ता ज़्यादातर जगह जंगल के बीच से गुज़रते हुए जाता था जहाँ कई जगह राह मे दो रास्ते सामने आ जाते थे जो हमारी दुविधा का कारण बन बैठते. ऐसे मे कई बार या तो स्थानीय लोगो की मदद से और कई बार बस किस्मत के भरोसे ‘अककड़ बक्कड़’ करके हम लोग जैसे तैसे सुभाईं नामक गाँव तक पहुँचे जहाँ से भविष्य बद्री की दूरी लगभग 1 ½ किमी ही रह जाती है.

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गढ़वाल घुमक्कडी: बद्रीनाथ – माणा – वसुधारा – जोशिमठ

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चलो अब चलते हैं मुचुकूंद गुफा, ‘अरे नही यार ये तो बहुत उपर लगता है’ दीपक बोला. ‘अरे नही भाई, पास ही तो है’, मैं बोला. ‘3 किमी तो दूर है भाई, फिर हम लोग वसुधारा नही जा पाएँगे, देख लो’, पुनीत बोला. बात सबको ठीक लगी, हम लोग वसुधारा को नही छोड़ना चाहते थे, गुफ़ाएँ तो सबने देख ही ली थी अब वसुधारा के दर्शन करने को सब बड़े बेकरार थे. इसलिए बिना समय गवाए हम लोग नीचे भीम पुल की ओर बढ़ चले. भीम पुल के पास आकर सबसे पहले एक बड़ी भ्रांति टूटी जो थी ‘सरस्वती के लुप्त हो जाने की’, हमने तो सरस्वती दर्शन से पहले केवल यही सुन रखा था की यह नदी अब विलुप्त हो चुकी है और शायद भूमिगत होकर बहती है.

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A Road trip to Gangotri Dham from Harsil

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Present temple of Gangotri was built in 18th century, by Gorkha General Amar Singh Thapa, is located near the spot where the goddess Ganga is said to have first descended on earth from heaven, as an answer to the prayers of King Bhagriath! Gongotri is the highest and most important temple of Goddess Ganga. The origin of Bhagirathi river, Gaumukh glacier is 18 kms from Gangotri and there person can reach only by foot. One can go by horse riding but up to certain point and from there by foot they have to go. Gangotri remains opened from May and get closed on the day of Diwali festival. During winter, Gangotri temple remains closed due to heavy snowfall.

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गढ़वाल घुमक्कडी: रुद्रप्रयाग – कार्तिक स्वामी – कर्णप्रयाग

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उपर के नज़ारों ने शरीर को तरो ताज़ा कर दिया था, इसलिए उतरते वक्त ज़्यादा समय नही लगा और उतरते ही पैदल यात्रा आरंभ. कुछ एक किलोमीटर ही चले थे कि दोस्तों को थकान लगने लगी, सोचा चलो जो साधन मिल जाए आगे तक उसी मे चल पड़ेंगे. अब चलते चलते हर एक आगे जाने वाली गाड़ी को हाथ दिखाकर रोकने की कोशिश करते रहे, पर सब बेकार. किस्मत से थोड़ी देर बाद एक ट्रक आता हुआ दिखाई दिया, आधे मन से इसे हाथ दिखाया और ये क्या! ट्रक तो थोड़ा आगे जाकर रुक ही गया था.

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Trip to Chakrata/यादगार सफर चकराता का (दिल्ली से चकराता -1)

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अब कुछ चकराता के बारे मैं : चकराता समुद्र ताल से करीब 7000 फीट के ऊंचाई पर स्तिथ हिल स्टेशन हैं जो हिमाचल और उत्तरांचल की सीमा पर पड़ता हैं।
देहारादून से इसकी दूरी करीब 90 किमी के आसपास हैं।
आप सहारनपुर से हर्बेर्ट्पुर और विकासनगर होते हुये या फिर देहारादून- मसूरी -केंपटी फाल होते हुये भी पहुँच सकते हैं।
एक रास्ता पोंटा साहिब से भी निकलता हैं। चूंकि हमें मसूरी होते हुये आना था इसलिए हमने हर्बेर्ट्पुर-विकासनगर जाना तय किया था॥

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देहरादून कुछ जाना कुछ अनजाना

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इसके बाद हम प्रकर्ति का अजूबा घूचूपानी या रोबर्स केव की और चल पड़े |हमारे गाइड और ऑटो चालक ने बताया जब आप अंदर जाओगे तो ऐसा लगेगा की आप वात्तानुकुलित सुरंग मे चल रहे है |घूचूपानी, देहरादून से 8 किलोमीटर दूर राजपुर रोड पर अनारवाला गांव से 1 किलोमीटर की पैदल दूरी पर सिथत है |यह एक प्राकर्तिक गुफा है जिसमे लगभग आधा किलोमीटर अंदर तक आप जा सकते है|गुफा के अंदर पानी गुप्त स्रोतों से बह रहा है |यंहा टिकेट ले कर हम अंदर परवेश कर गये ऐसा लग रहा था जैसे डिस्कवरी चैनल के किसी प्रोग्राम में शामिल हो गये है |कंही सुंदर झरना है तो कंही ऊपर से गुफा की दीवार मे से पानी की बोछार हो रही है |कभी आप कमर तक पानी मे डूब जाते है तो अगले ही पल पानी एकदम गायब हो जाता है|मेरे नटखट पुत्र ने इस जगह को नाम दिया गुपचुप पानी |

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माँ सुरकंडा देवी और धनौल्टी की यात्रा

माँ सुरकंडा देवी और धनौल्टी की यात्रा

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इस स्थान से आगे निकलते ही घने बुरांश के और देव दार के जंगल शुरू हो जाते हैं. और गढ़वाल की ऊँची चोटियों के भी दर्शन हो सकते थे पर उस ओर कोहरा छाया हुआ था. यह क्षेत्र बुरांशखंडा के नाम से भी मशहूर हैं. बुरांश के पेड़ यंहा पर बहुतायत पाए जाते हैं. बुरांश का फूल उत्तराखंड का राजकीय फूल हैं. इससे जैम, जैली, शरबत, व विभिन्न आयुर्वेदिक दवाए बनायी जाती हैं. इन दिनों उत्तरखंड की पहाडिया इन फूलो से भरी रहती हैं.

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Dayara Bugyal – Part 2/2

Dayara Bugyal – Part 2/2

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Our trail was up and down over stones, tree trunks and crossing a couple of streams. We even witnessed last patch of ice around the streams. Arjun showed me how the place must be buried under snow as evident from flattened branches of shrubs. The forest was mainly comprised of Oak trees but there were others including Bhoj tree from where bhoj patracomes from. We were constantly descending and my knees started showing signs of wavering on trying to descend. As treking pole I picked up one tree branch and broke it in couple of strokes to make it suitable to which Arjun complimented that I have become a pro now.

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Dayara Bugyal – Part1/2

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We finally started at 5:45 AM and straight hit the road to Gangotri. The twists and turns were churning my stomach and sleep was dozing me off. I got woken up couple of times due to being thrown away by swerves. The journey up was not very exciting. There was no river following our route as Bhagirathi (or Ganga) comes into picture only near Tehri. There was lot of haze due to which mountains and landscape was not looking great. The road was broken at many places due to landslide and due to dryness, there was lot of dust blowing from passing vehicles. The mountain face also looked scarred at many places due to debris from landslide and construction spreading over it. The weather was unnaturally very hot and devoid of moisture because of which loose earth of rubble was flying & getting all over you. Finally the river was seen with muddy color but very less flow. The reduced flow turned out was due to ice having started to melt only now and river would be in full flow in June.

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