Badrinath

Visit to BADRINATH and village MANA

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We were totally muddled what to do to see the long queue .We were doubtful that whether we would be able to visit the temple the same day but to our surprise unlike other temples our turn came within one hour as there one can afford to do hasty darshan because of too much of rush.The main entrance gate of the Badrnath is very colourful and known as “Singhdwar.”

Badrinath was originally established as a pilgrimage site by Adi Shankara in the ninth century. It is said that Shankara discovered the image of Badrinarayan in the Alaknanda River and enshrined it in a cave near the Tapt Kund (Hot Spring). Later the King of Garhwal moved that image to the present temple. Since then the temple has undergone several major renovations by many people.

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Scenic beauty on the way to Badrinath

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On the way back from Kedarnath we had our light breakfast and started our downwards journey. At slow pace we covered 3-4 kms but after sometime my elder daughter started complaining of leg pain , I advised her to use either pony or kandi for rest of the distance but she did not like the idea and continued her journey.

While coming back we tried shortcuts in between but it is advisable not to use if kids are with you.As sometimes short cuts are really very risky too. We experienced that downward journey is more painful than climbing up. Around 12 o’clock we reached Rambara (Midway) , we had our traditional lunch , rice & dal and relaxed ourselves for a while and again proceeded further for Gaurikund.

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हरिद्वार – अम्बाला – अमरनाथ यात्रा (भाग 8)

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इधर पिछ्ले कई सालों से मेरी पत्नी मेरे साथ अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिये कह रही थी लेकिन बच्चे छोटे होने के कारण कभी जा नहीं पाई थी। बच्चे तो अभी भी छोटे ही थे और मेरी छोटी बिटिया उस समय सिर्फ़ चार साल की ही थी। मेरी पत्नी मुझे इस वर्ष अकेला जाते देख मेरे साथ चलने की जिद्द करने लगी, लेकिन मेरी पत्नी के मेरे साथ अमरनाथ यात्रा पर जाने में कुछ दिक्कतें थी। पहली, आज तक बच्चे कभी भी,कहीं भी मेरी पत्नी से अलग, अकेले नहीं रुके थे और दुसरी, हमारा उनके स्कूल खुलने से पहले लौटना भी जरुरी था। इसके अलावा एक दिक़्क़त मुझे थी्।

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Char Dham Yatra – Kedarnath to Badrinath

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It really gives you a feeling of heaven. We got into the line, but this time, the line was hardly moving, reason, all educated with lot of common sense people were keep on getting into the line. Anyhow, this happens in almost all holy places in India. Anyhow, we were able to complete the darshan by 11:30 am. We came back to hotel, had good breakfast/lunch. We started for the final lap around 12:30 pm. The plan was simple, I will drive as much as possible, and wherever I feel tired, we will stop. As per my calculation, Rishikesh was around 300 kms away, and since the roads were good, we should reach there by 10 pm (if I can maintain 30 km/hr speed). We also planned not to take any break (until required or until the sun goes down). On the way down, somewhere near Chamoli, on one turn, we were stopped by cops and they put a fine of Rs. 300/- for over speed. I was driving around 30-32 km/hr and the limit was 25 km/hr. He also advised me to go slow on ghats as you never know what comes on the next turn, and I jokingly asked that are there more cops waiting somewhere. But anyhow I followed his advice for next 15-20 kms, maintaining about 25 km/hr speed, watching others overtaking me and vanishing after some time. We crossed Rudraprayag by 5:30pm. Rudraprayag, you have a new bypass (I guess) which was a pain, with lot of traffic from both side and too many turns.

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Re visiting Deoria tal, Badrinath and Mana

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Upon reaching Mana and standing atop Bheem pul I recalled my 15 year old memories when I had come here for the first time with two of my friends after visiting valley of flowers. Vishal too was amazed to see the water gushing out of the mountain and flowing with such ferocity under Bheem pul. 15 years ago I was not able to make it to Vasudhara falls as we were too tired and had less time in our hands but this time although Vishal insisted that he could make but I did not want him to take stress. At Bheem pul we met a Naga baba named Barfani Das who was preparing for puja when we reached there. He had two rabbits with him who he called Radha and Krishna.

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गोबिंद घाट – श्रीनगर -ऋषिकेश : (भाग 7)

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गुरुद्वारा काफ़ी विशाल है और हेमकुन्ड आने-जाने वाले यात्रियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण विश्राम स्थल है। गुरुद्वारे में बहुत से हेमकुन्ड यात्री थे, कुछ लोग दर्शन को जा रहे थे और कुछ लोग दर्शन करने के बाद वापिस लौट रहे थे। हमने भी वहाँ लंगर छका (खाया) और फिर चाय पी। लगभग तीन बज चुके थे और हम ऋषिकेश की ओर निकल दिये। रास्ते में एक बार रुद्रप्रयाग में चाय के लिये गाड़ी रुक्वाई और फिर से यात्रा जारी रखी।

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घाघंरिया – हेमकुंड साहिब – गोबिंद घाट (भाग 6)

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हेमकुंड संस्कृत (“बर्फ़”) हेम और कुंड (“कटोरा”) से व्युत्पन्न नाम है । हेमकुंट साहिब गुरुद्वारा एक छोटे से स्टार के आकार का है तथा सिखों के अंतिम गुरू, गुरु गोबिंद सिंह जी, को समर्पित है। श्री हेमकुंट साहिब गुरूद्वारा के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृतसरोवर (अमृत का तालाब) कहा जाता है। यह सरोवर लगभग 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है। यह चारों तरफ़ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है। कुछ समय वे बर्फ़ सी सफेद,कुछ समय सुनहरे रंग की, कभी लाल रंग की और कभी-कभी भूरे नीले रंग की दिखती हैं।

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बद्रीनाथ – गोबिंद घाट – घाघंरिया (गोबिंद धाम) : भाग 5

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जब भगवान विष्णु योग ध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत ही ज्यादा हिम पात होने लगा। भगवान विष्णु बर्फ में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का ह्रदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर(बद्री) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगी। भगवान विष्णु को धुप वर्षा और हिम से बचाने लगी। कई वर्षों बाद जब भगवान् विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा की माता लक्ष्मी बर्फ से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा की हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा। और क्यूंकि तुमने मेरी रक्षा बद्री रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा।

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गौरीकुंड – चोपटा – जोशीमठ – बद्रीनाथ (भाग 4)

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कोई शक नही हिन्दुस्तान मे चोपटा की प्राक्रतिक सुंदरता नायाब है। कोसानी के बारे मे महात्मा गाँधी ने स्विट्ज़रलैंड ऑफ इंडिया कहा था। वहाँ उन्होने अपना आश्रम भी बनाया परन्तु चोपटा की सुंदरता के आगे कोसानी कहीं नही टिकता है। जो भी चोपटा आता है वह यहाँ की खूबसूरती को भूल नही सकता। यहाँ पर हम लोग लगभग आधा घंटा रुक कर आस पास के नज़ारे देखते रहे। यहाँ की सुंदरता देख कर बार-बार सब कहने लगे बहुत अच्छा किया जो हम इस रास्ते से आए वरना हमे पता ही नही चलता कि कितनी खूबसूरत यह जगह है।

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ऋषिकेश – देवपर्याग – रुद्रप्रयाग – गौरीकुंड (भाग 2)

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ऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग तक के रास्ते में पहाडो पर काफ़ी कम हरियाली है और ये काफ़ी रेतीले लगते हैं लेकिन रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की तरफ़ मुडते ही दृश्य एकदम बदल जाता है। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली है ,घाटियॉ बहुत खुबसुरत हैं। हम इन खुबसुरत वादियों का आनंद लेते हुए अगस्त्यमुनि से होते हुए गुप्‍तकाशी पहुँच गये ।वहाँ गाड़ी रुकवा कर चाय पी और आस पास के सुन्दर नजारों को निहारने लगे। गुप्‍तकाशी से घाटी के दूसरी तरफ़ ऊखीमठ साफ़ दिखाई देता है।

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: तपोवन – रुद्रप्रयाग – दिल्ली

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रास्ते में हम लोग लोग थोड़ी देर रुद्रप्रयाग में रुके और फिर चल दिए श्रीनगर की ओर. श्रीनगर पहुँचते पहुँचते हमें काफी देर हो चुकी थी और आज रात इससे आगे जाने का कोई साधन नहीं दिख रहा था. कोई जीप या बस मिलने की तो संभावना बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि यहाँ हिमाचल की तरह रात को बसें नहीं चलती. ऐसे में हमारे चालक साब ने हमें रात श्रीनगर में ही बिताने का सुझाव दिया और हमें रात गुजारने का एक ठिकाना भी दिखाया. हमने ठिकाना तो देख लिया पर अब किसी का भी यहाँ रुकने का मन नहीं था और सब जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहते थे. उत्तरांचल में वैसे तो रात को कोई वाहन नहीं चलते पर सब्ज़ी फल आदि रसद पहुँचाने वाले ट्रकों की आवाजाही रात भर चालू रहती है, सोचा क्यों ना इसे ही आजमाया जाए. आज शायद किस्मत हम पर मेहरबान थी, थोडा पूछ्तात करने पर ही हमें एक ट्रक मिल गया जो हरिद्वार तक जा रहा था. ट्रक चलने में अभी लगभग आधा घंटा बाकी था और सुबह सिर्फ आश्रम में ही भोजन किया था इसलिए एक ढाबे पर जाकर थोड़ी पेट पूजा की गई.

ट्रक पर वापस लौटे तो देखा की चालक के साथ वाली सीट पर पहले ही दो लोग बैठे हुए थे. ऐसे में वहाँ हम तीनों का एक साथ बैठना संभव और सुरक्षित नहीं था. इसलिए दोनों की बुरी हालत देखकर मैं ट्रक के पीछे चला गया जहाँ कुछ अन्य लोग पहले से ही लेटे थे. इस ट्रक के ऊपर एक बरसातीनुमा दरी थी जो शायद सब्जियों को धूल और बारिश से बचाने के लिए डाली गयी थी और नीचे खाली प्लास्टिक के डब्बे रखे हुए थे जिनमे सब्जियाँ रखी जाती हैं. इन्ही हिलते डुलते प्लास्टिक के डब्बों के ऊपर हम सभी मुसाफ़िर लेटे हुए थे. ट्रक चलने पर कुछ समय तो बड़ा मजा आया पर जैसे जैसे रात गहराती गयी और नींद आने लगी तो इन हिलते हुए डब्बों पर सोना बड़ा दुखदायी लग रहा था क्योंकि एक तो ये डब्बे आपस में टकराकर हिल रहे थे और टेढ़े मेढ़े होने की वजह से चुभ भी रहे थे. खैर मेरे लिए तो ये सब रोमांच था, लेकिन रोमांच धीरे धीरे बढ़ने लगा जब इन्द्रदेव अर्धरात्रि में जागे और हम पर जमकर मेहरबान हुए. तिरछी पड़ती हुई मोटी मोटी बारिश की बूँदे हमारे ऊपर एक शॉवर की तरह पड़ रही थी जो एक मंद मंद शीतल रात को एक बर्फ़ीली सी महसूस होने वाली रात में बदलने के लिए काफी थी. ऐसे में ऊपर रखी हुई दरी ने ठण्ड से तो नहीं पर भीगने से तो बचा ही लिया. ठण्ड में किटकिटाते हुए, बिना सोये जैसे तैसे करीब चार बजे के आस पास ट्रक चालक ने हमें हरिद्वार में एक सुनसान मोड़ पर उतार दिया. जितना दर्द मेरे शरीर में उस ट्रक में सवारी करते हुए हुआ उतना पूरी यात्रा कहीं नहीं हुआ, शरीर इतना अकड़ गया था कि ट्रक से बाहर निकलने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ रही थी. ठण्ड के मारे बुरा हाल था, सुनसान गलियों से होकर गुजरते हुए हम लोग बस स्टेशन की ओर बढ़ने लगे. ऐसे में रास्ते में एक चाय का ठेला देखकर चेहरे पर कुछ ख़ुशी आयी, भाईसाब के हाथ की गर्मागरम चाय और बंद खाकर शरीर में कुछ ऊर्जा आई. फिर तो बस जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए हरिद्वार बस स्टेशन पहुँचकर, दिल्ली की बस पकड़ी तो लगभग दस या ग्यारह बजे तक दिल्ली पहुँच कर ही राहत की साँस ली. यात्रा समाप्त!

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गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

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देवभूमि गढ़वाल के कुछ छिपे हुए रत्नों को तलाशती तीन दोस्तों की कभी ना भुला पाने वाली रोमांचक घुमक्कड़ी की दास्तान…जिसमे हमने कुछ बेहतरीन नज़ारे देखे, कुछ अनोखे और सोच बदलने वाले अनुभवों से गुजरे, कुछ खुबसूरत दोस्तों से मिले, कुछ बेहतरीन ठिकानों पर रात गुजारी और बहुत कुछ सीखने को मिला…

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