हिन्दी में घुमक्कड़ी

नोएडा से चन्द्रताल वाया मनाली – भाग 2

By

Tenzin और balli ने मेरा मोबाइल नंबर लिया। मैंने भी उनका नंबर माँगा तो उन्होंने कहा ये नंबर तो हम अब बंद कर देंगे। अब तो सीजन खत्म होने वाला है। हम लोग नवंबर-दिसंबर मे दिल्ली चले जाएँगे। Tenzin दिल्ली ISBT मजनू का टीला के पास Tibet Colony जाने वाला था। balli नोएडा मे सेक्टर-34 मे Tibet market मे दुकान लगाने वाला था। balli ने कहा दिसंबर मे मार्किट आना वहीँ मिल जाऊँगा।

Read More

नोएडा से चन्द्रताल वाया मनाली – भाग 1

By

कुल्लू से बस मे भीड़ हो गई। मैंने भी शराफ़त से सीट छोड़ दी और खिड़की वाली सीट पर बैठ गया। वैसे तो कुल्लू से मनाली करीब डेढ़ (1hr 30mins ) घंटे का ही रास्ता है लेकिन भीड़ देख कर मैं समझ गया था कि टाइम ज्यादा लगने वाला है। मेरे आगे वाली सीट पर स्कूल के बच्चे बैठे हुए थे। मैंने उनको कैमरा दिया और मेरी एक फ़ोटो खींचने के लिए बोला। कैमरा देख कर बच्चे खुश हो गए और झट से तैयार हो गए।

Read More

गायकवाडों का शहर वड़ोदरा (Vadodara: The city of Gaikwads)

By

ट्रेन आई और हम बैठ लिए अपने स्थान पर | एक वृद्ध दंपत्ति एक दुसरे का हाथ पकडे चढ़े | देखकर लगा की प्रेम की अभिव्यक्ति के कई आयाम और मायने होते हैं | ट्रेन अपनी गति से आगे बढती रही बीच बीच में आस पास के खेतों में उगे फसलों पर हम बात चीत कर रहे थे | तीन घंटे में हम वड़ोदरा पहुंच गये | स्टेशन से बाहर निकलकर हमने ठेले पर समोसे खाए और चल पड़े सैयाजी राव बाग़ की तरफ |

Read More

हिंदुस्तान का नाज़, यक़ीनन ताज….

By

तकरीबन तीन घंटे की स्मूथ ड्राइव के बाद आगरा शहर में दिशा निर्देशो का पीछा करते हुए हम लोग होटल मधुश्री के सामने आकर खड़े हो गए. यमुना एक्सप्रेसवे से बाहर निकल कर जब आप आगरा शहर में प्रवेश करते है तो नाक की सीध में चलते चले जाने से एत्माददुल्ला के मकबरे (किले) की तरफ जाने वाले रस्ते पर एक टी पॉइंट आता है जिसमे यह होटल बिलकुल कोने पर ही बना हुआ है और इस होटल से दो मार्ग जाते है पहला आपको रामबाग, मथुरा, दिल्ली की तरफ ले जाता है और दूसरा मार्ग एत्माददुला और ताज महल की तरफ ले जाता है। इस होटल की एक बात मुझे और अच्छी लगी की आगरा की भीड़ से आप बचे भी रहेंगे और शांति भी बनी रहेगी अन्यथा जैसे-२ आप शहर के भीतर बढ़ते चले जाते है बेतहाशा ट्रैफिक और गन्दगी के ढेर आपको परेशान करते रहते है. और एक बात जिसकी हमे बहुत आवश्यकता थी वो थी कार पार्किंग जिसका बंद गलियो वाले रास्तो पर मिलना बहुत ही कठिन कार्य लग रहा था और एक पल को तो हमे लगा की कहीं हम इस भूल भुलैया में ही घूमते हुए न रह जाये। होटल के प्रांगण में कार पार्किंग का पर्याप्त स्थान मिल जाने के कारन एक मुसीबत तो हल हो चुकी थी और अब बारी थी उस जोर के झटके की जो धीरे से लगने वाला था अर्थात कमरे का किराया। होटल के अंदर स्वागत कक्ष में उपलब्ध प्रबंधक साहब ने बताया की यह होटल अधिकतर बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही बुक रहता है जिसमे फॉरेन डेलीगेट्स आकर ठहरते है अतः आपको एक कमरा मिल तो जायेगा किन्तु चार्जेज लगेंगे पूरे पच्चीस सौ रूपए। अब मरता क्या न करता, आगरा के भीतर घुसकर ट्रैफिक से जूझने और कमरा ढूंढने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी अतः महाशय को एडवांस में रूम चार्जेज का भुगतान करने के बाद अब हम लोग निश्चिंत होकर ताज देखने के लिए अपनी आगे की योजना बनाने लगे. वैसे यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा की साफ़-सफाई और सुविधा की दृष्टि से होटल में कोई कमी नहीं थी, कार पार्किंग के अलावा अलमारी, सोफ़ा, एक्स्ट्रा पलंग, कलर टीवी, एयर कंडीशनर, संलग्नित बाथरूम, फ़ोन व् फ्री वाईफाई जैसे तमाम विकल्प मौजूद थे.

Read More

घुमक्कड़ की दिल्ली : हवेली मिर्ज़ा ग़ालिब

By

ग़ालिब के रहते इस हवेली की असल पैमाइश तकरीबन 400 स्क्वायर यार्ड्स (square yards) थी. नाजायज कब्जों की वजह से इस हवेली के अंदर और चारों ओर दुकानों और दूसरे कारोबारी इस्तेमाल के चलते हवेली ने अपना वज़ूद लगभग खो-सा दिया. साल 1999 में दिल्ली सरकार ने इस हवेली के कुछ हिस्से को नाज़ायज़ कब्जों से छुड़ाकर इसे फिर से पुराने रंग-रूप में लाने की कोशिश की. और इस तरह ग़ालिब की हवेली “ग़ालिब स्मारक” के तौर पर वज़ूद में आयी.

Read More

थोल बर्ड सैंक्चुअरी की औचक यात्रा

By

हमने लेक के किनारे बने पैदल पथ पर यात्रा शुरू की | मौसम सुहावना हो चला था और हलकी हलकी बयार् बह रही थी जिसने माहौल को खुशनुमा बना दिया था | इतने बड़ी झील को देखकर सुकून महसूस हुआ और ऐसा लगा की मै पहले यहाँ क्यूँ नहीं आया ? हम रास्ते से नीचे उतरकर झील के किनारे तक गये और वहां बैठकर सुबह की बनाई थेर्मोफ्लास्क में रखी गरम चाय (जो अभी तक पर्याप्त गरम थी) का आनंद लिया |

किनारे हमने एक घंटे बिठाये और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की | कुछ समय तक शांत बैठकर सबने स्वतः बात चीत बंद कर दी और दूर तक फैले झील और उड़ते पक्षियों को देखते रहे |फिर हम वापस किनारे के रस्ते पर आ बर्ड वाच पॉइंट की ओर बढे | रास्ते में एक मैन-मेड वृक्ष आकार का पॉइंट मिला जिस पर जाने के लिए बच्चे उतावले हो गये | और अभिलाषा जल्दी से जाकर ऊपर चढ़ गई |

रास्ते के किनारे उगे कई नीम के पेड़ में से सबसे आसान पेड़ पर मैंने चढाई का प्लान बनाया ताकि अपनी बचपन की कहानियों को सिध्ध किया जा सके की मे पेड़ पर चढ़ने में माहिर हूँ | सबके मना करने के बाद भी मे पेड़ की सबसे नीचे डाली पर चढ़ा और रों धोकर अभिलाषा भी आ गई थोड़ी देर में |

Read More
घुमक्कड़ी — कुछ खट्टी-कुछ मीठी (सुरक्षा)

घुमक्कड़ी — कुछ खट्टी-कुछ मीठी (सुरक्षा)

By

We were enjoying the trekking.  A group of Rajasthanis were also going with us.  They had  drums with them and they were loudly singing bhajans and going fast.  My father said – it is not good to sing while trekking on steep slopes, their songs will be stopped soon. ..and it happened too.  In the way there was a small tea shop where we enjoyed our tea with Neemari Pakoras.  The shopkeeper showed us some wild elephants, who were grazing in the valley below.

Read More

घुमक्कड़ की दिल्ली : गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब

By

भवन के बाहर आकर पंक्ति में हलुवा का प्रशादा लिया. प्रांगण में कुछ देर शांतचित्त होकर बैठे रहने के बाद प्रशादा ग्रहण किया. गुरुद्वारों में मिलने वाले प्रशाद रूपी हलुवे की विशेषता है कि यह शुद्ध देशी घी से बना होता है और पूरी तरह से घी में तर होता है. हाथ में प्रशादा लेकर खाने के बाद हाथों में देशी घी की सुगंध और चिकनाहट बानी रहती है और स्वाद की तो बात ही क्या ‘गुरु-प्रसाद’ जो है. बच्चों ने भी प्रशादा ग्रहण किया और मेरी बड़ी बेटी भूमिका को इतना पसंद आया कि प्रशादा की लिए दोबारा से लाइन में लग गयी. प्रशादा वितरण करने वाले भगतजी ने सर पर रुमाला न होने की कारण थोड़ा डांटते हुए प्रशादा देने से मना कर दिया और हम दूर से दृश्य देखते रहे.

Read More

अन्नू भाई चला चकराता – पम्म पम्म पम्म – लाखामंडल

By

कभी गाडी से इधर झांक, कभी उधर झांक | देखते के कुछ समझ आ जाए , क्यूंकि आगे तो हम लगातार देखे ही रहें थे आख्ने फाड़ें ,    हा हा हा …वहां गाड़ी की हेड लाइट की रोशनी में जो कुछ एक दो मीटर तक दिख रहा था बस समझो उस समय वही हमारी दुनिया थी बाकी तो कुछ दिख ही नहीं रहा था,थोड़ी देर बाद हमें खुद मालुम नहीं की कब कहाँ दो चार मकानो के बीच से होकर हमारी वो पथरीली सड़क गुजर रही थी (अँधेरा होने के कारण ) तब गाड़ी रोकी … वहीँ एक दो आदमी मिले। एक सज्जन से परिचय होने पर उन्होने बताया के वो रहने वाले तो बड़ोत (UP) के ही हैं।   यहाँ उनकी  पुरानी जमींन है, सो यहाँ भी रहते हैं।  वहीँ एक घर में भी बनी छोटी सी दूकान से दर्जनों  “पारले जी ” की बिस्कुट के पैकेट खरीद अन्नू और प्रवीण बाबू तो बिजी हो गए …..मै  वैसे भी भी बिस्कुट नहीं खाता और गाडी भी चला रहा था।  सो उन साहब से बातचीत कर आगे का हाल चाल और रास्ते का ब्यौरा ले चल पड़ा।

Read More

हम चले अमृतसर की सैर को

By

प्रोग्राम  अमृतसर जाने का तय हुआ, आरक्षण  कराया गया.४ नवम्बर की रात का स्वर्णमंदिर एक्सप्रेस (फ्रोंटिएर मेल) का जाने का तय हुआ, वापसी ६ नवम्बर को छत्तीसगढ़ एक्स्प. से थी. रेलवे स्टेशन पर जल्दी पहुँच कर, वंहा पर बैठ कर चाय वाय पीने का आनंद ही कुछ और होता हैं.

Read More

गढ़वाल घुमक्कडी: कर्णप्रयाग – विष्णुप्रयाग – बद्रीनाथ

By

चूँकि आज हमे सिर्फ़ बद्रीनाथ ही पहुँचना था (जो की यहाँ से मात्र 125 किमी ही है), इसलिए हम संगम पर काफ़ी देर बैठे मस्ती करते रहे. संगम का आनंद लेकर और दोनो नदियों के जल से विशुद्धि व उर्जा पाकर हम लोग आगे की यात्रा पर निकलने को तैय्यार थे. ढाबे पर नाश्ता करने के बाद, हम लोग सीधे बद्रीनाथ की बस लेने आ पहुँचे. थोड़ी देर इंतेज़ार के बाद, एकाध बसें आई पर सब खचाखच भारी हुई, पाँव रखने तक की जगह नही थी, यात्रा सीज़न मे ये एक आम नज़ारा है.

Read More

लेह – लद्दाख

By

आये इस सुचना के साथ कि सुरक्षा कारणों से आम जन के लिए नुब्रा वैली कुछ दिनों के लिए बंद है अत:खार्दुन्गला से वापस आना होगा।

ऊपर जाकर या रास्ते में कुछ भी नही मिलता भोजन के लिए तो पहले लंच किया और फिर थोड़ी हताशा के साथ चल पड़े विश्व की सबसे ऊँचे सड़क मार्ग पर जो की 18380 फुट (5602मी) की ऊंचाई पर स्थित है,बेहद संकरी उबड़ खाबड़ रोड जो लेह से 40 किमी दूर है, भूरे निर्जन वनस्पति शून्य इस मार्ग पर चार पहिया वाहन कम और दो पहिया ज्यादा होते है,मोटरसाइकिल और साइकिल चालको की ये प्रिय सड़क है और हमें अपनी गाडी इनसे बचते हुए चलानी थी,लेह से किराये पे मिलते है ये वाहन।

Read More