
ग्वालियर में घुमक्कड़ी – ग्वालियर का किला
कुछ कदम आगे बढ़ता हूँ तो देखता हूँ कि किले की तरफ जाने वाली पतली सी सड़क के एक तरफ, पत्थर की चट्टानों को काट कर जैन समुदाय के तीर्थकरों कि मूर्तियां बनाई गईं हैं। इनमे से कई मूर्तियों भग्न अवस्था में थीं जिन्हे शायद किले पर विजय प्राप्त करने के बाद मद -मस्त मुस्लिम आक्रान्ताओ ने इस अवस्था में पहुँचाया था। यह बहुत ही कष्टप्रद विषय है कि इस्लाम को मानने वाले अविवेक में अपने विजयी दंभ को वह इन पत्थरो पर निकालने लगते है। एक तरफ तो यह मुग़ल अपने आप को कला प्रेमी के रूप में स्थापित करने की चेष्टा करते हैं और दूसरी तरफ चट्टानों पर की गई इन कलाकृतियों को नष्ट करते हैं। मंगलवार का दिन था इसलिए बहुत कम लोग ही किला घूमने के लिए जा रहे थे। छुट्टी का दिन होता तो शायद यहाँ पर भीड़ देखने को मिलती। वह दोनों युवक-युवती मुझे रास्ता बता कर तेजी से आगे बढ़ गए। मेरे पीछे एक विदेशी युवती भी चट्टानों को काटकर बनाये गए इन जैन तीर्थकारों को देखती हुई आ रही थी। मै धीरे – धीरे चढ़ाई पर चढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा था पर मुझे दूर – दूर तक किला कही नहीं दिख रहा था। इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद मन ही सोंच रहा था कि इतनी चढ़ाई पर किला बनाने का अभिप्राय शायद यही होता होगा कि जल्दी तो किसी दुश्मन की हिम्मत ही नहीं होती होगी इतनी चढ़ाई पर चढ़ कर हमला करने की और अगर किया भी तो पहले ही उसकी सेना इतनी पस्त हो चुकी होती है कि जीत की बहुत कम ही गुंजाइश होती होगी। दो – तीन सौ गज या कुछ ज्यादा की चढ़ाई चढ़ने के बाद एक और गेट दिखाई पड़ता है। किले के दूसरे गेट से करीब 200 गज आगे आने पर चढ़ाई ख़त्म हो जाती है। यहाँ पर भी एक गार्ड रूम है। यहाँ पर एक प्राइवेट टैक्सी वाला बैठा था। किला और किले के अंदर उसके आस – पास की जगह घुमाने के लिए इसने 250 रूपये मांगे। इतनी चढ़ाई चढ़ने के बाद अब और आगे चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने कहा कि पीछे भी कुछ एक लोग आ रहे हैं उनसे पूछ लो अगर वह लोग चले चलेंगे तो हम लोग आपस में शेयर कर लेंगे । तभी वह विदेशी युवती भी आ गई।ड्राइवर ने उसके पास जाकर शेयर टैक्सी किराये पर लेने के लिए कहा पर वह उसकी बात ठीक से समझी नहीं तब मैंने उससे कहा कि अगर हम लोग यह टैक्सी शेयर कर ले तो सब जगह घूम लेंगे। यह टैक्सी वाला 250 रूपये मांग रहा है आधे – आधे हम लोग दे देंगे। वह युवती भी शायद थक गई थी , वह राजी हो गई।
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