इस बार फरवरी का महीना मेरे लिये एक सुखद समाचार लेकर आया। बैंक में सुझाव मिला कि मुझे अपनी इंदौर और धार शाखाओं की भी सुध-बुध लेते रहना चाहिये ! मैने कहा, “तथास्तु” और इससे पहले कि कोई बाधा आये, 14 फरवरी का अमृतसर – इन्दौर एक्सप्रेस से आरक्षण करा लिया। देहरादून – इन्दौर और देहरादून – उज्जयनी एक्सप्रेस रेलवे ने कई महीने से कोहरे के नाम पर बन्द कर रखी थीं। मुझे समझ नहीं आया कि जो ट्रेन सप्ताह में दो दिन देहरादून से और दो दिन अमृतसर से, वाया सहारनपुर, इन्दौर / उज्जयनी जाती है, उसे दो दिन कोहरा मिलता है और दो दिन नहीं – ऐसा कैसे संभव है? क्षण भर के लिये अगर मान लें कि अमृतसर से सहारनपुर आते हुए कोहरा नहीं मिलता है तो जालंधर से नई दिल्ली जाने वाली सुपरफास्ट भला क्यों बन्द है? दूसरी ओर, अगर देहरादून से सहारनपुर आते हुए सुबह कोहरा होता है तो देहरादून से तो और भी कई ट्रेन आ रही हैं, उनको कोहरा क्यों नहीं मिलता ? पर छोड़िये, अपुन बिज़ी आदमी हैं, रेलमंत्री से झक मारने का अपुन के पास कहां टैम है ! रेलवे वालों के तर्क तो नीली छतरी वाला भी आज तक नहीं समझ पाया, हम क्या समझेंगे?
आरक्षण कराने से पहले घर पर श्रीमती जी से पूछा था कि पांच दिन के लिये इन्दौर – धार चल सकती हैं क्या? पर उन्होंने कह दिया कि मैं तो दिन भर बैंक में व्यस्त रहूंगा, वह अकेली होटल में बैठी बोर होती रहेंगी अतः मैं अकेला ही चला जाऊं! “जो आज्ञा, देवि !” कह कर हमने अपना सामान (वही एक बैग कपड़ों का, एक लैपटॉप और कैमरे का, एक बैग खाने का जिसमें दो एक पुस्तकें, बैंक की फाइलें आदि थीं।) पैक कर लिया और यात्रा की तिथि पर स्टेशन पहुंच गये।
सहारनपुर स्टेशन पर ट्रेन का आगमन और यात्रा आरंभ
ट्रेन का समय सहारनपुर से सुबह 9.55 का था अतः अपनी इकलौती धर्मपत्नी को बाय-बाय करके सुबह साढ़े नौ बजे स्टेशन पर पहुंच गया। साइकिल रिक्शे से प्लेटफॉर्म नं0 5 तक पहुंचते-पहुंचते खाने वाले बैग की एक तनी टूट गई। जैसे तैसे उसे संभालते हुए प्लेटफार्म पर पहुंचा। पन्द्रह मिनट की देरी से ट्रेन आई। ट्रेन में चढ़ने हेतु फिर बैग उठाया तो झटके से दूसरी तनी भी टूट गई। शायद बैग कुछ ज्यादा ही भारी हो गया था। अब क्या करूं? जैसे कुत्ते के पिल्ले को बगल में दबाते हैं, ऐसे ही एक बैग को बगल में दबाया, कैमरे / लैपटॉप वाले बैग को पीठ पर पहले ही लटका लिया था, अटैची में पहिये थे, सो अपने टू-टीयर वातानुकूलित कक्ष में जा पहुंचा। कोच को देख कर दिल को बड़ा धक्का सा लगा। कोच की आयु स. मनमोहन सिंह जितनी ही रही होगी पर उनके सर्वथा विपरीत, ए.सी. की आवाज़ बहुत थी! वैसे हो सकता है, सरदार जी के अन्दर से भी खर्राटे लेने की ऐसी ही आवाज़ें आती हों, मेरा उनके साथ कोई पर्सनल तज़ुर्बा तो है नहीं ! दूसरी समस्या जो मुझे सबसे अधिक परेशान कर रही थी वह ये कि इस कोच में मेरे लैपटॉप के लिये चार्जर नहीं लग पा रहा था। प्लग तो थे पर प्लग होने मात्र से क्या होता है, उनमें करंट तो नहीं था ना ! ऐसी ही स्थिति थी कि कहने को देश में सरकार तो है, पर काम नहीं करती ! मैने सोचा कि लैपटॉप को तो अब बन्द ही रहना है, मन लगाये रखने के लिये कुछ और इंतज़ाम देखा जाये। अपना सामान वगैरा सैट किया, पढ़ने के लिये किताब निकाल ली। प्लग न होने के कारण मोबाइल को भी किफायत से इस्तेमाल करना था अतः उसका इंटरनेट बन्द किया।
मेरे सामने वाली बर्थ पर सिर्फ एक ही वृद्धा महिला बैठी थीं जिनका व्यक्तित्व बहुत भव्य था। पुरुषों जैसे कटे हुए छोटे मगर चकाचक सफेद बाल, आंखों पर लगे हुए सुनहरे फ्रेम के चश्मे के पीछे से झांकती हुई स्नेह परिपूर्ण आंखें, आलथी-पालथी मार कर बैठी हुई, घुटनों पर एक शॉल । शांत – गंभीर । जब टी.ई.टी. से बात की तो धुआंधार अंग्रेज़ी में ! उनकी बर्थ मेरे ऊपर वाली थी पर सामने की बर्थ खाली थी अतः वहीं बैठ गई थीं । कुछ देर में जींस-टॉप से सुसज्जित दो युवतियां मुझ से पूछने लगीं कि मेरे सामने की सीट पर और कोई बैठा तो नहीं है। मैने कहा कि होगा तो भी उसे भगा देंगे, आप आना चाहो तो आ जाओ! वह अपना सामान आदि वहीं सैट कर सामने वाली सीट पर डट गईं।
सामान सजाने के बाद दोनों युवतियों में से एक ने अपना बैग खोला, मोबाइल चार्जर निकाला, बैग पुनः बन्द किया, अपने गुलाबी रंग के मोबाइल में चार्जर लगाया, फिर दोबारा बैग खोला, बैग के अन्दर से एक और पर्स निकाला, पर्स खोला, उसमें से इयर फोन निकाला, पर्स बन्द किया, पर्स को बैग में रखा, बैग बन्द किया, बैग को सीट पर रखा, मोबाइल में ईयर फोन लगाया, अपनी ज़ुल्फों को ठीक से सैट किया, ईयर फोन का दूसरा सिरा कानों में लगाया, मोबाइल को खाना खाने वाली साइड टेबिल पर रखा, चार्जर को प्लग में लगाया, मोबाइल में लाइट जली कि नहीं, चैक किया, प्लग को खूब हिलाया- डुलाया, स्विच को बार-बार ऑन-ऑफ किया, पुनः लाइट चेक की। पर वह प्लग तो हमारी केन्द्र सरकार हुआ बैठा था! भला कैसे काम करता !
अपनी आंखों में ढेर सारा उलाहना लिये हुए मेरी ओर मुखातिब होकर वह बोली, “आपने बताया नहीं कि ये प्लग खराब है।“ मैने भी कह दिया, “प्लग ही तो खराब है, मेरा दिमाग थोड़ा ही खराब है जो आपको ये बात पहले ही बता देता। फिर ढाढस बंधाते हुए उनको कहा, “यू.पी. में लाइट गायब ही रहती है, हो सकता है दिल्ली पहुंच कर ट्रेन के प्लग में भी करंट आ जाये।“ उन्होंने फिर निराश होकर फोन टेबिल से उठाया, ईयर फोन पहले कान में से निकाला, फिर मोबाइल में से निकाला, अपने बाल पुनः ठीक किये, बैग खोला, बैग में से पर्स निकाला, बैग बन्द किया, पर्स खोला, ईयर फोन लपेट कर उसमें रखा, पर्स बन्द किया, बैग को पुनः खोला और पर्स को बैग में रखा, बैग को बन्द किया। बाद में उन्होंने बताया कि उनकी बर्थ पर तो प्लग था ही नहीं, यहां प्लग लगा हुआ देख कर उन्होंने इन बर्थ पर शिफ्ट करने की योजना बनाई थी। पर खैर, वह दोनों अपनी बर्थ पर वापिस नहीं गईं क्योंकि उनकी वाली बर्थ एकदम दरवाज़े के पास वाली थी और लगातार दरवाज़ा खोले जाने – बन्द किये जाने से उनको स्वाभाविक रूप से असुविधा हो रही थी।
मुज़फ्फरनगर में एक अधेड़ युगल कोच में प्रविष्ट हुआ और अपना नंबर पूछता – पूछता हमारे वाले कक्ष में आया। जैसा कि बाद में टी.ई.टी. ने राज खोला, हमारी ये कोच मोहन जोदड़ो की खुदाई में निकली थी । उत्तरी रेलवे ने काफी सोच – विचार के बाद उसे अमृतसर – इन्दौर एक्सप्रेस में लगा दिया गया था। इस कोच में सीट और बर्थ के नंबर भी कहीं लिखे हुए दिखाई नहीं दे रहे थे। खैर, उन दोनों कन्याओं ने अपने स्वर में पर्याप्त मिठास घोल कर उस युगल को अपनी ओरिजिनल वाली सीटों पर पहुंचा दिया और टी.ई.टी. से भी पुष्टि करा दी।
यह आश्चर्य ही था कि यद्यपि हमारी ट्रेन अमृतसर से आई थी पर इस के बावजूद उसमें एक भी सरदार जी दिखाई नहीं दे रहे थे। मैदान साफ देख कर हम लोग संता-बन्ता और रजनीकांत के चुटकुले सुनते – सुनाते दोपहर को लगभग 1.45 पर हज़रत निज़ामुद्दीन तक पहुंच गये। उन वृद्ध महिला ने हमारे चुटकुलों में सक्रिय भाग तो नहीं लिया परन्तु हां, सुन कर धीमे – धीमे मुस्कुराती रहीं । भूख लगी तो अपनी श्रीमती जी द्वारा पैक कर के दिये गये खाने की याद आई। अपने पिल्ले की (मेरा मतलब है, तनी टूटे हुए बैग की) चेन खोली और खाना निकाल लिया। मेरी सहयात्रिणियों ने Comesum से थाली का आर्डर कर दिया। हमारा लंच खत्म होते न होते, ट्रेन ने आगे की यात्रा आरंभ की। कई और सवारियां जिनका आरक्षण दिल्ली से था, आकर बैठ गई थीं।
खाना खाने के बाद मैने तो लंबी तान ली और ये तीनों महिलाएं न जाने क्या – क्या गपशप करती रहीं। राजा की मंडी (आगरा) स्टेशन आया तो अपने घुमक्कड़ भाई रितेश गुप्ता की याद आई। सो अपने मोबाइल से ही स्टेशन की एक फोटो खींच ली। उनसे सच्ची-मुच्ची वाली मुलाकात तो आज तक नहीं हो पाई पर फेसबुक पर गप-शप अक्सर ही होती रहती है। मैने उनको इस ट्रेन से जाने के बारे में सूचना नहीं दी हुई थी पर फिर भी न जाने किस आशा में, प्लेटफार्म पर उतरा, कुछ पल चहल-कदमी की और फिर वापिस ट्रेन में आ बैठा। बाहर अंधेरा होने लगा था और खिड़की से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, अतः सामने वालों पर ही ध्यान केन्द्रित किया। सोचा, बच्चियों को कुछ ज्ञान की बातें बताई जायें। घुमक्कड़ का ज़िक्र शुरु कर दिया और बताया कि अगर उन्होंने वह वेबसाइट नहीं देखी तो समझो ज़िन्दगी में कुछ नहीं देखा। वहीं बैठे – बैठे रितेश, मनु, जाट देवता, डी.एल. अमितव, नन्दन, मुकेश-कविता भालसे, प्रवीण वाधवा आदि-आदि सब का परिचय दे डाला। रेलवे को भी कोसा कि लैपटॉप नहीं चल पा रहा है, वरना उनको घुमक्कड़ साइट भी दिखा डालता।
रात हुई, खाना खाया, कुछ देर किताब पढ़ी, फिर सामान को ठीक से लॉक करके और कैमरे वाले बैग को अपनी छाती से लगा कर सो गया। ग्वालियर में उतर कर अंधेरे में अपने मोबाइल से एक-दो फोटो खींचने का भी प्रयत्न किया पर कुछ बात कुछ बनी नहीं। सुबह पांच बजे आंख खुली और ट्रेन लगभग 7 बजे इन्दौर स्टेशन पर आ पहुंची।
इन्दौर की प्रथम सुबह – प्रथम ग्रासे मक्षिकापात !
अपनी आदत से मज़बूर मैं सहारनपुर में रहते हुए गूगल मैप को देख-देख कर इन्दौर का नक्शा काफी कुछ अपने दिल-दिमाग में बैठा चुका था। मेरा आरक्षण धार और इन्दौर में किस – किस होटल में कराया गया है, वहां तक का रास्ता किस-किस प्रकार से है, यह सब मुझे रटा पड़ा था। मेरी योजना थी कि 15 फरवरी को इन्दौर स्टेशन से सीधे धार के लिये प्रस्थान करना है। शुक्रवार और शनिवार को धार शाखा में निरीक्षण – परीक्षण – प्रशिक्षण के बाद 16 की सायंकाल को ही इन्दौर वापसी की जायेगी। 17 फरवरी को रविवार है अतः हो सका तो उज्जैन जाऊंगा और रात तक वापिस इन्दौर के होटल में। 18 और 19 को इन्दौर शाखा को धन्य किया जायेगा और 19 को अपराह्न में ही ट्रेन पकड़ कर सहारनपुर के लिये वापसी।
पर गूगल मैप की भी कुछ सीमायें हैं। मेरी गाड़ी जिस प्लेटफॉर्म पर आकर रुकी, वह सियागंज वाली साइड थी। जबकि मैं नक्शे में प्लेटफॉर्म 1 से बाहर निकलने की उम्मीद लगाये बैठा था। जैसा कि मुझे इन्दौर जाकर पता चला, प्लेटफॉर्म नं० 1 व 2 मीटर गेज़ के प्लेटफॉर्म हैं। प्लेटफॉर्म 3, 4 व 5 broad guage वाले प्लेटफॉर्म हैं। गाड़ी 5 नंबर पर आकर रुकी और सामने ही Exit थी, अतः एक आटो पकड़ कर उसे गंगवाल बस अड्डे चलने को बोल दिया। गंगवाल बस अड्डा, यानि इन्दौर से धार जाने के लिये (और भी न जाने कहां – कहां) निर्धारित बस अड्डा, रेलवे स्टेशन से लगभग 4 किमी दूर है।
बस अड्डे पर जाकर पूछा कि धार कौन सी बस जायेगी तो टका सा उत्तर मिला, “कोई सी भी नहीं !”
“क्यों भई, क्यों? ऐसी दिल तोड़ने वाली बातें क्यों कह रहे हो?”
इस पर एक कंडक्टर महोदय बोले, “धार में तो दंगा हो गया है, अतः कर्फ्यू लगा हुआ है, सीमायें सील हैं।”
“कमाल है, मेरे पहुंचने से पहले ही दंगा? और वह भी मुझे बिना बताये? बिना पूछे ? ”
मैने अपने धार शाखा प्रबंधक को फोन लगाया तो पता चला कि धार में बसंतपंचमी को जिस मंदिर में सबसे महत्वपूर्ण पूजा होती है, उसके ही बगल में एक मस्जिद भी है। आज शुक्रवार की दोपहर की नमाज़ भी उसी समय होनी है अतः ये सारा पंगा पड़ रहा है, जिसकी वज़ह से धार प्रशासन ने कर्फ्यू घोषित कर दिया है, धारा 144 लगा दी गई है, और धार जनपद का बाहर से सब संपर्क काट दिया है। फोन पर यह भी बताया गया कि बसें भले ही न चल रही हों, आप टैक्सी से आ सकते हैं क्योंकि टैक्सी पर धारा 144 लागू नहीं होगी । प्रबंधक ने यह भी कह दिया कि आप गंगवाल बस अड्डे पर ही दस मिनट प्रतीक्षा करें, मैं अभी आपके लिये एक टैक्सी का प्रबंध कर रहा हूं, आप उससे धार आ जायें। मैने उस दस मिनट में बस – अड्डे के ठीक सामने अपना सूटकेस, कैमरे का बैग और ’पिल्ला’ टिकाया। सड़क के इस पार स्थित एक ढाबे से पानी मांगा, कुल्ला आदि करके बोतल में पानी पुनः भरा और पोहे का आर्डर किया। मैं चूंकि अपने घर में भी हफ्ते में २ दिन नाश्ते में पोहा खाता ही हूं, अतः पोहा खाना मेरे लिये विवशता नहीं थी।
लगभग २० मिनट में एक इंडिका टैक्सी आकर मेरे पास रुकी जिसका नंबर ठीक वही था जिसका वर्णन पहले मुझे दिया जा चुका था। सामान गाड़ी में रख कर हम धार यात्रा पर निकल पड़े। ड्राइवर के साथ मेरी बातचीत का सर्वप्रमुख मुद्दा कर्फ्यू ही था। राष्ट्रीय राजमार्ग 59 पर चलते चलते, जिसका निर्माण कार्य चल रहा है, हम बेटमा पहुंचे पर वहां पुलिस ने बैरियर लगाया हुआ था और हमें धार की ओर सीधे आगे बढ़ने से रोक दिया गया। ड्राइवर ने इस चौराहे से गाड़ी बाईं ओर घुमाई ताकि पीतमपुरा इंडस्ट्रियल एरिया पर जा निकलें और हाई वे से पुनः दायें चल कर हुए कुछ किमी आगे पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग 59 पर पहुंच जायें। उस हाई वे पर पहुंचे तो राष्ट्रीय राजमार्ग 59 से कुछ किमी पहले से ही सड़क पर बैरियर खुलने की प्रतीक्षा में खड़े हुए ट्रकों की अंतहीन लाइन दूर horizon तक नज़र आने लगी। यहां तक कि सड़क पर रॉंग साइड में भी जाम लगा हुआ था। फिर दोबारा धार शाखा प्रबंधक से ड्राइवर की बातचीत हुई और यह निश्चय हुआ कि आगरा – मुम्बई राजमार्ग पर भी चल कर देख लें जो धुले होते हुए जाता है। परन्तु इस मार्ग पर भी कई किलोमीटर आगे जाकर मानपुर से जब धार के लिये दाईं ओर मुड़ना चाहा तो पुनः बैरियर ने स्वागत किया और हमें रोक दिया गया। अब एक ही उपाय था कि सीधे हैलीकॉप्टर से धार में उतरें पर उसमें भी खतरा समझते हुए हम वापिस चल दिये और धार शाखा को आदेश कर दिया कि मेरा धार के होटल में जो आरक्षण था, उसे रद्द करा दें व इन्दौर के होटल प्रेज़ीडेंट में आज से ही आरक्षण करा दिया जाये।
दस मिनट में इस कार्य की पुष्टि फोन से प्राप्त हो गई तो हमने टैक्सी आर. एन. टी. मार्ग, इन्दौर पर सीधी होटल प्रेज़ीडेंट के द्वार पर रोकी। यह ’लौट के बुद्धू घर को आये’ जैसी ही बात हो गई थी। नाश्ता मैं आगरा – मुंबई राजमार्ग क्रमांक 3 पर मानपुर से कुछ पहले सड़क किनारे स्थित एक रेस्टोरेंट में कर ही चुका था (वही पोहा और जलेबी जिसका कविता भालसे गुण गाया करती हैं। ) इस समय तक दस बज चुके थे और टैक्सी वाला धार भले ही न पहुंचा पाया हो, पर अपने 1500 रुपये तो कमा ही चुका था। उसे विदा करके होटल में प्रवेश किया। यह इन्दौर के सर्वोच्च श्रेणी के होटल में न भी हो पर फिर भी लक्ज़री होटल है और अपना कमरा देख कर निर्मल आनन्द की प्राप्ति हुई। लिफ्ट के माध्यम से तीसरे तल पर, मेरा सामान (पिल्ले सहित) कमरे में पहुंचा दिया गया और मैं नहा-धोकर तैयार हो गया। हमारे बैंक की इन्दौर शाखा का एक अधिकारी मुझे लेने के लिये होटल में 11 बजे आ गया था, अतः मेरी इच्छानुसार हम दोनों पैदल ही चलते हुए लगभग आधा किमी चल कर अपनी बैंक शाखा में पहुंच गये।
मुकेश भालसे का फोन यानि संजीवनी मिली
अब आज का दिन बैंक के नाम था, शाम को वापिस होटल आने के बाद क्या-क्या करूंगा, कुछ सोचा नहीं था। पर शाम को ही मुकेश भालसे का फोन आ गया। फोन क्या आ गया, मानों मेरी ज़िन्दगी में उजाला आ गया। उन्होंने बताया कि उनकी ऑफिशयल मुंबई यात्रा आगे सरक गई है और हमें मुलाकात करनी ही करनी है। रविवार को हम सब एक साथ कहीं घूमने के लिये निकल सकते हैं। अतः अच्छा रहेगा यदि 16 फरवरी यानि अगले दिन शनिवार को मैं बैंक के बाद इन्दौर से उनके घर के लिये चल पड़ूं । बाकी कार्यक्रम वहीं घर पर पहुंच कर बनाया जायेगा।
पर, ये कहानी अभी बाकी है, मेरे दोस्त !
Waiting for the Indore rounds.
I love Indore and have relatives there. Most I love are the endless colorful bazaars.
Hope you ate the famous Kachories of Indore.
Thanks for sharing.
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Sometimes a boring train journey (if traveling alone) can be a delight if we start seeing things through your eyes or mind…once again a nice description, matching with your reaching Amritsar post. I just hope they read this post by now…
‘ll look forward to your next post.
Regards,
Thank you friends.
@Praveen Wadhwa. Coming from a hardcore ghumakkar like you, the comment means a lot to me.
@ Surinder Sharma : thank you, Sharma Ji. Next time, when you are to come to Saharanpur, please let me in advance so that we may meet.
@Amitava. It is true that if we are going through a very troublesome experience, looking at the situation from an author’s eye makes everything enjoyable. We are able to detach ourselves and become an onlooker.
Thanks Singhal ji for your Unique way of presentation..
I along with my two friend boarded the same train for Indore during my Omkareshwar/Mahakaleshwar yatra in this march. Its power got faulty after Saharanpur and we waited for 2.5 Hrs till its power changed.
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@ Naresh Sehgal : Power failures are indeed akin to heart failures. Don’t know how does it happen! Have you written about your yatra on ghumakkar ? If not, please do. I couldn’t pay a visit to these holy places.
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Hello Sushant ji,
Again Paisa Wasool post. Apki post padh ke maje aa gaye. Mere husband jo ki Indore ke hai, Indore ka naam padhte hi meri post chod ke apki post unhone pehle padhi.”Ghar ki murgi dal barabar” :(. Kachori, Poha jalebi sabki yaad dila di.Pohe to hum ghar pe banate hai, ab mujhe jaldi hi Jalebi bhi banani padhengi. Apki aage ki yatra ka wait kar rahe hai.Mujhe Indore ki 56 Dukan ki Shikanji bahut yaad aa rahi hai apki post padhne ke baad, shayad apne taste ki hogi.
One more thing, post ke saath saath comments padhne me bhi bahut accha laga.
Waiting for next part of Kahani…
Hi Abhee,
Thanks a lot for liking the post. Since Kavita Bhalse had already described in great details about many shops, temples, showrooms, malls etc., of Indore, I wanted to tell about some unusual and different places.
My poor health (esp. not so good digestion) doesn’t permit me to indulge in Khasta kachori chaat paani poori etc., so I was content with non-spicy food stuff like poha, jalebi, idli, fruits and regular meals. Getting ill in an alien place is no fun specially if you are all alone.
If your husband preferred to read about Indore instead of reading your post first, it was merely because he harbours a lot of love for his Indore. ?? ??? ???? ?????? ??? ??? ?? ? ???? ?? ?? ??? ???? ??? ?? ??? ???????? ??? ???? ?? ! ???? ???? ?? ???? ??? lol !
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Sushant Ji, Namaskar.
Bas mazaa aa gaya, kuchh mat puchhiye. Aapke lekhan ka jadui asar hai ki Indore jaane ki tamanna jo abhi tak daba kar baitha tha fier se oopar aa rahi hai. Main ek hi serial dekhta hun, colors tv par Na bole tum na maine kuchh kaha, usmein bhi Indore ka hi zikr hai, Khazrana Ganesh Mandir aur wo kya tha Rajwara . Chhappan dukaan pahunche ki nahin…………
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Asusual a very good post Sushant Ji.
I was attached with NaiDunia group for 4 years so visited there 2 times but due to lack of time not gone any other place.
I m from muzaffarnagar and my mausi is also living in Saharanpur so many times gone there. All the memories are alive today.
Thanks for sharing in your style……….. Regards.
Dear Saurabh Gupta,
Thank you for going through my post and taking time to leaving your favourable comment here. Glad to know about your stint with Nai Dunia. I liked Indore very much that this feeling would be amply visible in my next posts also.
My Mamaji’s family also is in Muzaffarnagar. Your Mausi in Saharanpur and my Mama is in MZN. That makes us sort of relatives! :) It would be nice to have some opportunity to sit together sometime during your next trip to SRE.
Definitely Sushant Ji as my wife’s uncle is also in SRE but from the last 7 years I am inDelhi so trip of SRE is very less.
Will deifinitely try to sit together in future when u r in Delhi or I m in SRE.
Warm Regards.
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a very interesting way of story telling.nice photos.
Dilchasp post , maza aap gaya !
Agali post ka intazar ……..
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Hi Sushantji,
I was in Indore last year but my journey and time there was not even half interesting as yours. But then you can make the most mundane of things like charging of phone so colourful and funny. Of course we had poha and chaat and jalebi at Apna Sweets. I too then had moved to Dhar to check one of the items off my bucket list – Mandu.
I dont think any State Transport buses exist in MP. You are at the mercy of the private buses. Trains or cars make better sense. Roads are a lot better now in MP especially Dhar to Bhopal.
I know you are back in full form on the forum. Loved the post.
Sushant Ji,
Indore is one of the best places to be in central india … i was in Indore on 26th of may but only for a day and was pretty much tied up with work … As a result i was unfortunate enough to not explore the whole city …Indore has a very good sense of public transport transit with its sprawling BRT Corridors and swanky Low Floor iBus … and these are capable enough to belittle the Delhi Low Floor fleet …. I agree with Nirdesh Bhai ..there are not enough buses run by the state government …mostly it is the private buses which share the maximum space in the bus terminus ….I was at Sarvate Bus stand for my further journey from Indore to Raj where i observed this point…. I remember there is one shop near Sarvate known as “GHAMANDI LASSI” … they surely should have the ghamand of serving the most delicious lassi of Indore
Sushant Ji …you have taken very good pictures of bus stand,railway station etc ..,.You have given very good descriptions of entry,exit at these places … Liked your post very much and i wish you travel and write more .
Waah singhal saahab,maja aa jata hai aapka yatra varnan padhkar.