कश्मीर चलना है क्या?
कोच नं० C-6 में प्रवेश कर के, मेरी पत्नी ने पूछा कि कौन – कौन सी बर्थ हैं तो पंकज का जवाब आया – “20 – 21” | मैने पूछा “और बाकी दो?” पंकज ने रहस्यवाद के कवि की सी भाव भंगिमा दोनों महिलाओं की ओर डाली और मेरे कान के पास आकर धीरे से बोला, “अभी दो ही कन्फर्म हुई हैं, बाकी दो यहीं गाड़ी में ले लेंगे।“ मेरी पत्नी को हमेशा से अपनी श्रवण शक्ति पर गर्व रहा है। बात कितनी भी धीरे से कही जाये, वह सुन ही लेती हैं! इस मामले में वह बिल्कुल मेरे बड़े बेटे पर गई हैं! जब वह यू.के.जी. में पढ़ता था तो उसे घर के किसी भी दूर से दूर कमरे में पढ़ने के लिये बैठा दो पर उसे न सिर्फ टी.वी. बल्कि हम दोनों की बातचीत भी सुनाई देती रहती थी। बीच – बीच में आकर अपनी मां को टोक भी देता था, “नहीं मम्मी जी, ऐसी बात नहीं है। स्कूल में मैम ने आज थोड़ा ही मारा था, वो तो परसों की बात थी !
सिर्फ दो ही शायिकाओं का आरक्षण हुआ है, यह सुनते ही दोनों महिलाओं के हाथों के तोते उड़ गये। मेरी पत्नी तो बेहोश होते होते बची ! तुरन्त दीवार का सहारा लिया, बीस नंबर की बर्थ पर बैठी, फिर आहिस्ता से लेट गई। पानी का गिलास दिया तो एक – दो घूंट पीकर वापिस कर दिया और ऐसी कातर दृष्टि से मेरी ओर देखा कि मेरा भी दिल भर आया। पंकज की पत्नी ने भी तुरन्त 21 नंबर बर्थ पर कब्ज़ा जमाया और पंकज से बोली, “अब आप पूरी रात यूं ही खड़े रहो, यही आपकी सज़ा है। हम दोनों बेचारी शरीफ, इज्जतदार महिलाओं को धोखा देकर ले आये। हमें पता होता कि टिकट कन्फर्म नहीं हुए हैं तो घर से बाहर कदम भी नहीं रखते!”
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