07 Jul

वृन्दावन – राधा कृष्ण की रासलीला स्थली………….

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पागल बाबा मंदिर दर्शन के बाद अब हम पहुंचे श्री कृष्ण प्रणाम परम धाम मंदिर में। यह भी बहुत सुन्दर मंदिर था तथा यहाँ पर सशुल्क यन्त्र चालित झांकियां भी थीं, हमने भी झांकियां देखीं, कृष्ण भगवान के जीवन पर आधारित ये झांकियां बड़ी ही मनमोहक थी, बच्चों को तो यह शो इतना पसंद आया की वे मंदिर से बाहर निकलने को राजी ही नहीं हो रहे थे। अब हम फिर अपने वाहन में सवार हो गए थे, ये दोनों मंदिर तो मथुरा के ही बाहरी इलाके में थे अतः मैं सोच रहा था की अब शायद मथुरा की सीमा समाप्त होगी और फिर कुछ देर के बाद वृन्दावन शुरु होगा, लेकिन मेरा सोचना गलत साबित हुआ, अभी मथुरा समाप्त ही नहीं हुआ था और ड्राईवर ने कहा की वृन्दावन आ गया। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था की ऐसे कैसे वृन्दावन आ गया।

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A Glimpse of Madhya Pradesh

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My cousin brother had already visited Mandu once, so no one can guide us better than him. He asked us to visit ‘Jaahaj Mahal’ first. This palace has no entry fees. This is a very huge palace and it will take time to roam around. More than roaming, capturing photographs and selfies can take time. So, we all agreed to visit Jaahaj Mahal first. It is a beautiful palace having a small lake and a beautiful garden. This palace is maintained well.  The scenic view is very mesmerizing. Sharing some of the pics with my readers.

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Shri Gajanan Maharaj Shegaon / शेगांव- श्री गजानन महाराज दर्शन भाग – 3 ( आनंद सागर उद्यान तथा ध्यान केंद्र दर्शन)

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आनंद सागर का नाम सर्वथा उपयूक्त है, ये सचमुच आनंद का सागर है | श्री गजानन महाराज के दर्शन करने के लिए आये उनके अनुयायी तथा भक्त स्वाभाविक रूप से इच्छुक होते है की वे यहाँ कुछ दिन रुके तथा संस्थान की धार्मिक, संस्कृतिक तथा शैक्षणिक गतिविधियों में हिस्सा लें, भक्तों की इस इच्छा को केंद्र में रखते हुए संस्थान ने उनके बचे हुए समय में उन्हें प्रकृति तथा अध्यात्म से जोड़ने के लिए एक उद्यान का विकास किया जिसे आनंद सागर नाम दिया गया और आज आनंद सागर का नाम देश के कुछ चुनिन्दा उद्यानों में शुमार है |

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Munsiyari – A bowlful of beauty

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It was getting darker by the minute. The road went up and up in loops quickly gaining height so we felt the vehicle ahead of us is almost above our heads. Narrow roads didn’t leave much room for manoeuvring on either side. The gorge to one side was so deep it sends a shiver down the spine of anyone who is not attuned to such heights especially if there’s an oncoming vehicle. There weren’t any, thankfully; no human beings in sight either.

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Shri Gajanan Maharaj Shegaon / शेगांव- संत श्री गजानन महाराज दर्शन भाग 1 (स्थान परिचय एवं भौगोलिक स्थिति)

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पिछले वर्ष अक्टुबर में श्रीसैलम ज्योतिर्लिंग तथा तिरुपति बालाजी की यादगार यात्रा के बाद बहुत समय से किसी यात्रा का योग नहीं बना था, इधर एक लम्बे अरसे महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित संत श्री गजानन महाराज के पवित्र स्थान शेगांव के बारे में सुनते चले आ रहे थे और पिछले एक वर्ष से वहां जाने का मन बन रहा था, अंततः अपनी इस इच्छा को मूर्त रूप देने के प्रथम प्रयास के रूप में मैंने अपने परिवार के साथ शेगांव जाने के लिए अपने करीबी शहर महू से अकोला के लिए दिनांक 21 अक्टुबर का रेलवे का रिजर्वेशन करवा लिया।

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Los Angeles – The city of Angels !

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Well I did not see any angels, but yes truly a land of dreams !  Innumerous people come to Hollywood with this dream in their heart that they might get a chance in a film and make it big…..and end up being some impersonator on the Walk of Fame street…..Hmmmm….scary isn’t it…But what’s wrong in Dreaming….So Dream oh Dream !!!!

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Talkād – A City under the Sifting Sand

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By the banks of Cauvery was the ancient town of Talkād a bustling pilgrim city now lay buried under the sheets of shifting sand. What transpire me to visit Talkād are not the exquisite carvings and murals or the archaeological excavations but a curse – The Curse of Malangi, the ancient name of the neighbourhood.

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केदारताल यात्रा- वापस दिल्ली के लिए

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अगली सुबह हमारे कहने के मुताबिक होटल स्टाफ ने हमे पाँच बजे उठा दिया। नहा धो कर हम अपना सामन लेकर टैक्सी स्टैंड स्टैंड पहुँच गए। वहां ऋषिकेश के लिए जीप लगी हुई थिस लेकिन हम ही पहली सवारी थे। जब तक सवारी पूरी न हो जाये मतलब ही नहीं बनता की जीप चले। वहीँ एक टेम्पो ट्रवेलेर भी खड़ा था जो देहरादून जा रहा था।  उसमे कई सवारियां बैठी हुई थी और उम्मीद थी की वो पहले चलेगा। ड्राइवर से बात की तो पता चला की पहले भी चलेगा और जितनी देर हमे ऋषिकेश पहुँचने में लगेगी उससे डेड घंटे पहले ही वो हमे देहरादून पंहुचा देगा। फिर सोचना  क्या था, हम टेम्पो ट्रवेलेर में सवार हो गए और गाडी फुल होते ही  देहरादून के ओर चल पड़े जहाँ से मुझे वापस दिल्ली की गाड़ी पकड़नी थी। केदारताल यात्रा लगभग समाप्त हो चुकी थी और ये मेरी सबसे यादगार यात्राओं में से एक रही…

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केदारताल यात्रा – भोज खड़क – केदार खड़क – केदार ताल

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19 जून 2017 – कपिल ने बताया की भोज खड़क से केदार खड़क के बीच दूरी ज्यादा नहीं है लेकिन रास्ता काफी दुर्गम है। पहले दो घंटे तो रास्ता कल जैसा ही खड़ी चढाई वाला था लेकिन कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। कुछ और आगे बढ़ने पर हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे जहाँ पर कोई रास्ता ही नहीं था। भूस्खलन से रास्ता गायब हो गया था। अब हमे एकदम नीच केदार गंगा तक जाना था जहाँ से रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश करनी थी। नीचे पहुँच कर समझ में आया की पानी में उतर कर ही आगे बड़ा जा सकता है। एक तरफ केदार गंगा का हड्डियों को जमा देने वाला पानी था और दूसरी तरफ ऊपर पहाड़ी से पत्थर गिर रहे थे।

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केदारताल यात्रा – गंगोत्री से भोज खड़क

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अगली सुबह यानि 18 जून 2017 को नींद तो छै बजे ही खुल गयी थी लेकिन ठण्ड के कारण रजाई से बहार निकलते निकलते सात बज गए। तब तक कपिल भी हमारे कमरे में आ गया और फटा फट सामान बांधने में हमारी मदद करने लगा। ठीक आठ बजे हम फॉरेस्ट ऑफिस पहुंचे और परमिट की एंट्री करवाई  तथा कैंपिंग चार्जेज़ और गार्बेज चार्जेज़ जमा करवा के वापस अपने कमरे पे सामन उठाने पहुँच गए। ट्रेक शुरू करने से पहले फॉरेस्ट डिपार्टमेंट वाले गार्बेज चार्जेज लेते हैं जो की ट्रेक के दौरान आपके द्वारा फैलाये गए कूड़े कटकर के लिए होते हैं।  ये चार्जेज रिफंडेबल होते हैं अगर आप ट्रेक से वापस आने के बाद अपना सारा कूड़ा वापस लेके आये हों तो। सारी तैयारियां पूरी होने के बाद हम अपने सफर पर निकल पड़े जो की सूर्य कुंड को पार करके शुरू से ही खड़ी चढाई से शुरू होता है।

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Adisaptagram – an ancient port town in Bengal

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Currently there is a railway station by the name of Adisaptagram in the Howrah-Burdwan main line which indicates the township of Saptagram. One of the most important remnants which still exists today is a brick mosque protected by the Archaeological Survey of India. The roof has collapsed . There are rich terracotta decorations on the exterior walls and on the three Mihrabs and corner Minarets .There is a stone foundation plaque which states that the Mosque was constructed by Syed Jamaluddin , the son of Abul Syed Fakuruddin of Amul during the Ramzan month circa 936 Hizira(1529 AD).

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