Jammu and Kashmir

The beautiful mountainous landscape of Kashmir valley, numerous shrines of Jammu and the remote mountain beauty and Buddhist culture of Ladakh, justify the exclamation of Emperor Jahangir, If there is ever a heaven on earth, it is here, it is here, it is here.
The northernmost state of India is home to many beautiful valleys such as the Kashmir Valley, Tawi Valley, Chenab Valley, Poonch Valley, Sindh Valley and Lidder Valley. Srinagar is the summer capital and Jammu the winter capital of the state. The official language is Urdu, while the main spoken languages are Kashmiri in Kashmir Valley, Dogri in Jammu and Ladakhi in Ladakh. Most people speak at least a little Hindi.
One can arrive here by air to Srinagar and Leh or board a train till Jammu or Udhampur. By road entry is via Jammu upto Srinagar and via Manali upto Leh.
Kashmir Valley is a land of beautiful gardens like Shalimar and Nishant gardens, vast lakes like Dal Lake and Manasbal Lake, pristine streams and friendly people. Gulmarg, Sonamarg and Patnitop are hill stations offering enchanting view of Snow Mountains. Raghunath Temple, Bahu Fort, Mubarak Mandi Palace, Peer Baba, Vaishno Devi, Pari Mahal, Hari Parbat Shankaracharya Temple, Amarnath, Bhimgarh Fort and Ramnagar fort are some of the pilgrimage and historical sites.
Leh, the capital of Ladakh is famous for monasteries. Zanskar Trek is a great adventure tourism destination. Nubra Valley, Lake Moriri and Pangong Lake offer truly amazing landscapes high up in the Himalayas.

लेह लद्दाख – मनाली – केलोंग – दार्चा – बरालाचा ला – लाचुलुंग ला – पैंग – 3

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यहाँ पर बहुत से सरकारी दफ्तर और सेवाएँ है। एक बड़ा बाज़ार और सड़क से दाएं ओर नीचे बस स्टैंड भी है। यहाँ पर रुकने का पूरा इंतजाम है कई रेस्ट हाउस, सरकारी बंगलो और होटल भी है। केलोंग मे गाड़ी का हवा-पानी टिप-टॉप करने के बाद हम बिना रुके “जिस्पा”, “दार्च” होते हुए “zingzingbar” पहुँच गए। एक बात बता दूं की “zingzingbar” मे भी रात को रुकने का इंतजाम है। अभी दोपहर का समय था तो हमने रुकना ठीक नहीं समझा। ये हमारी बहुत बड़ी भूल थी। इसका ज़िक्र आगे चल कर दूंगा। “zingzingbar” से आगे खड़ी चढाई पार करने के बाद हमने “बारालाचा ला दर्रा” दर्रा पार कर लिया था। इस दर्रे की ऊंचाई 5030 मीटर या 16500 फीट है। यहाँ से लगातार उतरने के बाद हम लोग “भरतपुर” होते हुए “सार्चू” पहुँच गए।

“सार्चू” मे हिमाचल प्रदेश की सीमा समाप्त हो जाती है और जम्मू-कश्मीर की लाद्द्खी सीमा शुरू हो जाती है। यहाँ पर भारतीय सेना का बेस कैंप है और एक पुलिस चेक पोस्ट भी है। चेक पोस्ट पर गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी गई। हमारा परमिट चेक किया और रजिस्टर मे दर्ज कर लिया गया। “सार्चू” मे सड़क एक दम सीधी है और गाड़ी की रफ़्तार आराम से 100-120km/h तक पहुँच जाती है। यहाँ पर गाड़ियाँ फर्राटे से दौड़ रहीं थी। तभी क्या देखा एक फिरंगी महिला साइकिल(आजकल तो bike बोलते हैं) पर सवार होते हुए चली आ रही थी। मुझे सड़क पर लेटा हुआ देख वो साइकिल से नीचे उतर गई और पैदल चलने लगी।

हम सब उसको देख कर हैरान हो गए। शायद हरी ने उससे पुछा की अकेले जा रही हो तो risk है। उसने बताया की उसके साथ के और लोग भी पीछे आ रहे हैं। वो और उसके साथी मनाली से लेह साइकिल से ही जाने वाले थे। और उसको आज “सार्चू” मे ही रुकना था। इतने दुर्गम, पथरीले, टूटे-फूटे, चढाई-उतराई, अनिश्चिताओ से भरपूर इलाके मे जहाँ 2.6L की Xylo का भी दम निकल जाता था ये फिरंगी इसको साइकिल से ही पार करने वाले थे। इनके जज़्बे और हिम्मत की तारीफ़ की गई और इनको सलाम बोल कर भोजन की तलाश मे चल दिए।

ठीक से याद नहीं है पर दोपहर के करीब 3 बज रहे थे और भूख लग चुकी थी। यह जगह एक बहुत बड़े समतल मैदान जैसी है। यहाँ पर भी रुकने के लिए बहुत सारे टेंट लगे हुए थे। ये सब देख कर समझ आ गया था की यहाँ के लोग काफी मेहनती है। साल के 6 महीने ही मनाली-लेह हाईवे खुलता है। इन्ही 6 महीनों मे इनकी कमाई होती है और बाकि के 6 महीने तो बर्फ पड़ी रहती है। यहाँ पर लगे एक टेंट खाने का इंतजाम था। हमसे पहले और लोग भी थे तो हमको 10-15 मिनट बाद का टाइम दे दिया गया। इस टाइम का हमने पूरा उपयोग करके फोटो session कर डाला। “सार्चू” मे ली गई कुछ फोटो। जानकारी के लिए बता दूँ यहाँ पर ली गई सारी फोटो मैंने नहीं बल्कि मनोज, हरी और राहुल ने खीचीं हैं।

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -६ (जम्मू – JAMMU – १)

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मुबारक मंडी पैलेस

मुबारक मंडी महल की वास्तुकला में राजस्थानी , मुग़ल और यूरोपीयन शैली का समन्वय देखा जा सकता है। इस महल का इतिहास लगभग 150 वर्ष पुराना है। यह महल डोगरा राजाओं का शाही आवास था। इस स्थान पर हम लोग समय अभाव के कारण जा नहीं पाए थे. यह फोटो मैंने दूर से बागे बाहू से लिया था. 

बाहू के किले में माता के दर्शन करने के बाद, वंहा से निकल कर यंहा से नीचे की और बने मछली घर और बागे बाहू गार्डन की और आ जाते हैं. मछलीघर एक शानदार एक्वेरियम बना हुआ हैं. जो की जमीन के नीचे हैं.  इसका प्रवेश द्वार एक बड़ी मछली  के रूप में बना हुआ हैं. यंहा पर दुनिया में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मछलियों को प्रदर्शित किया गया हैं. यंहा पर भी फोटो खींचना निषेध हैं.

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आग़ाज़ लद्दाख का ………….. – भाग1

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Rs. 2000/day के हिसाब से तेय हो गया, जिसमे की डीजल का खर्चा अलग से हमे ही देना था। अंदाजे से 10 दिन का 20000 + 15000(डीजल) = 35000 का खर्चा होने का अनुमान लगाया गया। इसके अलावा अतिरिक्त 5000/- हर एक आदमी को रखना था अपने दस दिन के खाने-पीने, रुकना, इत्यादि। सब कुछ जोड़ दिया गया और 70000/- का अनुमानित बजट तैयार हो गया।

इसको सात हिस्सों में बाँट दिया जाये तो प्रतेक आदमी का योगदान मात्र 10000/- आ रहा था जो की लद्दाख जाने के हिसाब से ठीक ही था। सब ये जान कर खुश थे। गाड़ी को फाइनल करने के बाद लद्दाख जाने का सफ़र 9-सितम्बर से 18-सितम्बर का तय हो गया था। हमारे साउथ इंडियन बंधुओं ने झट-पट दिल्ली तक की एयर टिकट बुक करा ली थी। सेंट्रल वाले भाई लोग भी दिल्ली तक आने के लिए रेलवे की टिकट बुक करने मे जुट गए थे। बाकी बचे हम तीनों को तो नोएडा से ही जाना था तो बस 9-सितम्बर के इंतज़ार मे लग गए थे। बहुत ही मुश्किल से बीत रहा था एक-एक दिन। सब लोग शांत थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी आने वाले तूफ़ान का इंतज़ार कर रहे हों। और ऐसा ही हुआ जाने से एक सप्ताह पहले तीन लोगों ने आलतू-फालतू बहाने लगा कर मना कर दिया। अब सात नहीं केवल चार लोग जाने वाले थे। फिर भी हम खुश थे की अब तो और आराम से जाएंगे। एक बात समझ मे आ गई थी की दूर के ट्रिप मे ज्यादा लोगों की भसड नहीं पालनी चाहिये। वैसे ये बात तो पहले से ही मालूम थी पर और लोगों से पूछना भी जरूरी था अन्यथा बाद मे ये सुनने को मिलता की “लद्दाख से हो आये, एक बार हमें भी पूछ लिया होता”। एसा अक्सर हुआ है मेरे साथ। एक बात थी की अब बजट 10000/- से बढ़ कर 17500/- प्रतेक वक्ति हो गया था। लेकिन किसी को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ा, बस जाने की धुन सवार थी। ट्रिप मे जाने वाले चार लोग थे मैं(अनूप), राहुल, हरी और मनोज। माफ़ कीजियेगा दरअसल पांच थे एक ड्राईवर अंकल भी थे। परिचय के लिए एक फोटो लगा रहा हूँ। इसमें राहुल नहीं है क्यूंकि फोटो उसी ने ली है।

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Sarchhu to Leh, Pangong Lake, and Back via Kashmir

Sarchhu to Leh, Pangong Lake, and Back via Kashmir

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First town where some civilization could be seen was Upshi which is basically a check post where we did not stop. Next stop at about 30 km was Karu which basically a military establishment just before Leh. We stopped a Karu for a late lunch and some tea and then soon proceeded to Leh which took about 1-1.5 hours. On the way to Leh one can see gorgeous mountain views with Indus flowing along the road.

Next, day we went to places around Leh such as Patthar Singh Sahab Gurudwara (पत्थर सिंह साहिब गुरुद्वारा), so called Magnetic Hill, Confluence of Janskar and Indus rivers, a Kali temple and a Buddhist temple, and one of the oldest monastery near Leh. The landscape near Leh is also dry, barren but mesmerizingly beautiful. Buddhist temple have special wheels called Maney ( माने) carrying the holy mantra “Om Many Padme hum” or “ओम माणी पद्मे हूं”  which the devotees rotate.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -५ (धनसर बाबा, झज्जर कोटली, कोल कंडोली)

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हम लोग करीब नो बजे कटरा से १७ किलोमीटर का सफर तय करके बाबा धनसर पहुँच जाते हैं. सड़क से करीब २०० मीटर  पैदल उतराई करके हम लोग बाबा धनसर के धाम पहुँच जाते हैं. यह क्षेत्र बहुत ही सुरम्य स्थान पर पहाडियों के बीच जंगल से घिरा हुआ हैं. एक छोटी सी झील हैं जिसमे एक झरना लगातार गिरता रहता हैं. एक और एक गुफा बनी हुई हैं जिसमे शिव लिंगम के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं. झील में कहा जाता हैं की साक्षात् शेषनाग वासुकी विराज मान हैं. यंही पर ही उनका एक मंदिर भी बना हुआ हैं.पौरौनिक विश्वास हैं की जब भगवान शिव, माता पार्वती के साथ, उन्हें अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ  जी की गुफा की और जा रहे थे, तब भगवान शिव ने अपने नागराज वासुकी को यंही पर छोड़ दिया था. नागराज वासुकी एक मनुष्य के रूप में यंही पर रहने लगे थे. उनका नाम वासुदेव था. बाबा धनसर इन्ही वासुदेव के पुत्र थे. कंही से एक राक्षस यंहा पर आ गया था. और इस क्षेत्र के लोगो को परेशान करने लगा था. तब बाबा धनसर ने भगवान शिव की तपस्या की थी. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यंहा पर उस राक्षस का संहार किया था. बाबा के आग्रह पर भगवान शिव यंही पर विराजमान हो गए थे. यंहा पर स्थित झील पवित्र मानी जाती हैं. एक  झरना लगातार प्रवाहित होता रहता हैं. इस झील में नहाना शुभ नहीं माना जाता हैं. कभी कभी इस झील के स्वच्छ जल में नागों की आकृति भी दिखाई देती हैं. हर वर्ष यंहा पर, महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव और धनसर बाबा की याद में एक वार्षिक महोत्सव व मेले का आयोजन होता हैं .

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My 12th Amarnath Yatra – Trip Report and Pictures , Part 2

My 12th Amarnath Yatra – Trip Report and Pictures , Part 2

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We get up at 5.30 AM. It was very cold outside. Around 6 AM we came out of tent to proceed further to Holy Cave. We took a bucket of hot water for Rs.50 from Tentwala and wash our face and hands etc. We did not take bath as we were so tired and weather was very cold. We took a cup of tea and stood in the line for Darshan. After Aarti, Darshan started at 7:30AM. Around 8.15 AM we reached in holy cave .All the atmosphere was filled with the Jaikare of Bam Bam Bhole. We forget all our tiredness and body pain after Darshan. We were feeling so energetic. I got very emotional after Darshan. A full size ice lingam was in front of my eyes. As I already mention that this was my 12th Yatra to Holy cave but this year ice lingam size was the biggest I have ever seen. We spent around 40 minutes in the Holy cave and offered some rituals. We came down from the cave. As we had not taken lunch and dinner yesterday, we were very hungry. We took one prantha each and tea from the Bhandara and started journey towards Baltal. It was around 9.30 AM. There were frequent traffic jam on the ways due to heavy rush. At 3:45 PM we reached at Domel and went to Barfani sewa mandal Bhandara. We took lunch there and rested for night at there.

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My 12th Amarnath Yatra – Trip Report and Pictures , Part 1

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Our bus was stopped by one police party at Srinagar and asks to go back as there was some stone pelting incidence on the road. Later we came to know that some fire was broken out at some old Sufi Dargah due to which local persons were creating disturbances in the area. All buses returned 15 Km and took the Gulmarg Bypass road. All this exercise wasted one hour. I was sure that we will not reach Baltal in the evening because we were too late to cross Manigam Camp .Generally all the Yatra vehicles moving towards Baltal are stopped at Manigam Yatra camp after 5 PM. Manigam lies in Ganderbal district and 35 Km away from Srinagar. As feared our buses were stopped at Manigam camp. A lot of vehicles were already parked there. Our bus driver told us that the buses will leave for Baltal next morning at 6.30 AM. There were lots of tents available for night rest. 3-4 Bhandaras were also there for food and snacks. We took our bags and book one tent @100 per head. Then after taking dinner at Bandara we came to our tent for sleep.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और  भैरो घाटी)

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग – ४ (माता का भवन और भैरो घाटी)

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ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

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Ladakh: Nature’s Eloquent SIlence

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A trip to Ladakh leaves many a visitors breathless and not just because of its high altitude location. In an ephemeral moment of truce, when the cool breeze lets you rejuvenate your thoughts long lost to the battles of daily routine, a perchance to dream, a sense of being afloat on wings of imagination and suddenly you realize you need to breathe too. It’s just like in songs, ‘a flight of fancy on the windswept fields’ when you are standing alone and your senses reel. The attraction in Ladakh can be fatal especially when emotions are involved. When you are in Ladakh all you wish for is to capture its reality and here in the overwhelming vastness even reality turns out to be abstract.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

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धीरे धीरे चलते हुए, रुकते हुए, बैठते हुए, हम लोग उस दो राहे पर आ गए थे, जंहा से एक रास्ता  अर्ध कुंवारी की और जाता हैं. और बांये से एक रास्ता नीचे की और से माता के भवन की और जाता हैं. अर्ध कुंवारी की और से माता के भवन पर जाने के लिए हाथी मत्था की कठिन चढाई चढनी पड़ती हैं. और इधर से दूरी करीब साढ़े छह  किलो मीटर पड़ती हैं. जबकि नीचे वाले रास्ते से चढाई बहुत  कम पड़ती हैं. और इधर से माता के भवन की दूरी  करीब पांच किलो मीटर पड़ती हैं.  अर्ध कुंवारी माता के भवन की यात्रा में ठीक मध्य में पड़ता हैं. यंहा पर माता का एक मंदिर, गर्भ जून गुफा, और बहुत से रेस्टोरेंट, भोजनालय, डोर मेट्री आदि बने हुए हैं. यंहा पर यात्री गण थोड़ी देर विश्राम करके, गर्भ जून की गुफा, व माता के दर्शन करते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं. पर हम लोग नीचे के रास्ते से जाते हैं, और वापिस आते हुए माता के दर्शन करते हैं. ये कंहा जाता हैं की माता वैष्णो देवी इस गुफा में नो महीने रही थी, और गुफा के द्वार पर हनुमान जी पहरा देते रहे थे. भैरो नाथ माता को ढूँढता घूम रहा था, और माता इस गुफा से निकल कर आगे बढ़ गयी थी.

हम लोग नीचे वाले रास्ते से आगे बढ़ गए थे. मौसम फिर से  खराब होना शुरू हो गया था. माता के भवन की यात्रा के मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूर पर टिन शेड बने हुए हैं. जिनमे मौसम खराब होने पर व बारिस होने पर रुक सकते हैं. बारिश होने से हम लोग भी एक टिन शेड में रुक गए थे.

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माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

माता वैष्णोदेवी यात्रा – भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)

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दर्शनी द्वार के बाद और बाण गंगा से पहले एक दीवार पर माता वैष्णो देवी की यात्रा का पूरा नक्शा बनाया हुआ हैं. हम लोग पवित्र बाण गंगा पर पहुँच जाते हैं. बहुत से लोग यंहा पर स्नान करके आगे बढते हैं. हमने भी अपने हाथ, पैर, मुह धोया. माना यह जाता हैं की माता वैष्णोदेवी जब भैरो  देव से छिप कर के आगे बढ़ रही थी तो हनुमान जी भी उनके साथ साथ थे. हनुमान जी को बड़ी जोर की प्यास लगी, उन्होंने मैय्या से कंहा, माता मुझे बड़ी जोर की प्यास लगी हैं. माता ने अपने धनुष बाण के एक तीर को चलाकर के धरती से एक जल का एक स्रौत उत्पन्न किया. उस जल से ही हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई. इसी जल के स्रौत को ही बाण गंगा कहा जाता हैं. बाण गंगा की जल में अनगिनत सुन्दर मछलिया भी तैरती रहती हैं. बहुत से श्रद्धालु उन्हें आटे की गोलिया खिलाते हैं. बाण गंगा का निर्मल शीतल जल बहुत ही स्वच्छ दीखता हैं, ऐसा लगता हैं की जैसे दूध की नदी बह रही हो.

आप लोग देखियेगा, कितना निर्मल, कितना शीतल, कितना पवित्र जल हैं बाण गंगा का. यंहा पर बाण गंगा को एक झरने का रूप दे दिया गया हैं. और उसके आगे स्नान करने के लिए एक कुंड बना दिया गया हैं. यंही से पैदल रास्ता और सीढ़ियों का रास्ता शुरू हो जाता हैं. वृद्ध और कमजोर, रोगी व्यक्ति को सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उनके लिए यंहा पर घोड़े, व पालकी उपलब्ध हो जाती हैं. बच्चो व सामान के लिए पिट्ठू उपलब्ध हैं. उन सबका रेट फिक्स होता हैं. पिट्ठू या घोडा तय करने के बाद उनका कार्ड पर जो नाम व नंबर होता हैं उसे अपने पास नोट करके रख लेना चाहिए. कोई बात होने पर श्राइन बोर्ड के कंट्रोल रूम में उनकी शिकायत दर्ज की जा सकती हैं. थोड़ा सा ही आगे बढ़ने पर हमें माता वैष्णोदेवी गुरुकुल दिखाई दिया. गुरुकुल की सजावट की हुई थी. गुरुकुल का वार्षिक उत्सव चल रहा था. इस गुरुकुल में सैंकडो ब्रह्मचारियो को वैदिक संस्कृति, वेद – पुराणों आदि की शिक्षा दी जाती हैं. यह गुरुकुल एक विशाल इमारत में स्थित हैं. और इसका प्रबंधन माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा ही किया जाता हैं.

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Motorcycle Diaries. Road to Ladakh…Riding Back Home…

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All through the route from Debring to Keylong, the weather was pretty cold. Morey Plains, Pang, Sarchu, Lachulung La, Nakee La and the Gata Loops were all familiar now – there weren’t any surprises in the store en route, barring the fact that weather was dramatically icier this time. I kept craving for a hot cup of tea – such was the chill in the weather. With clouds over our heads, and rain looming, we rode almost non-stop and arrived at Bharatpur, which was our stopover for lunch.

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