पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° यातà¥à¤°à¤¾- तीसरा दिन (धाकà¥à¤¡à¥€-खाती-दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€)
गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे हम खाती गांव पहà¥à¤‚च जाते हैं। सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा और पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ दोनों घाटियों में खाती से आगे कोई गांव नहीं है। इसकी यही खासियत इसे à¤à¤• समृदà¥à¤§ गांव बनाती है। पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€, कफनी और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा तीनों यातà¥à¤°à¤¾ मारà¥à¤—ों पर खातियों का ही वरà¥à¤šà¤¸à¥à¤µ है। ये लोग कà¥à¤®à¤¾à¤Šà¤‚-गढवाल की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¨ करते हà¥à¤ अपने नाम के साथ गांव का नाम ‘खाती’ à¤à¥€ जोडते हैं। मान लो मैं खाती गांव का रहने वाला हूं तो मेरा नाम होता नीरज खाती। गांव के सà¤à¥€ लोग गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° यातà¥à¤°à¤¾ से ही जà¥à¤¡à¥‡ हà¥à¤ हैं हालांकि आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ीकरण की हवा à¤à¥€ चल रही है। हमारे साथ चल रहे बंगाली घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड का गाइड देवा और हमारा पॉरà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सिंह à¤à¥€ खाती के ही रहने वाले हैं। आगे रासà¥à¤¤à¥‡ में हमें जितने à¤à¥€ लोकल आदमी मिलेंगे, सà¤à¥€ खाती निवासी ही होंगे। à¤à¤• बात और बता दूं कि सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ यही से अलग होता है। सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¢à¥‚ंगा जाने के लिये रहने-खाने का सामान ले जाना पडता है जो खाती में आराम से मिल जाता है।
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