Trimbakeshwar Jyotirling : Maharashtra Yatra (Part 4)

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There is a mountain named the Brihmagiri Mountain 18 K.M. from the city of Nasik in the Nasik district. This is one of the parts of the Sahayadri Vallies. The city of Trimbakeshwar is located in the bottom of this mountain. This is a beautiful natural place with the cold weather as it is situated 3000 ft. above from the sea

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Bhima Shankar Jyotirling darshan – Maharashtra Yatra (Part 3)

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Bhimshankar is a carpet of greenery and legend has it that the dense jungles here served as a refuge for the Pandavas. In recent times it has gained tremendous significance since it was declared as “WILD LIFE SANCTUARY”. Nature enthusiasts would do well to explore the serene hidden depths of the BhÄ«ma Shankar Wildlife Sanctuary, where the local biodiversity has been diligently protected for generations. It is also becoming one of the attractive and well known religious places in Maharashtra as well as in India.

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Mumbai sight-seeing – Juhu Beach and ISKCON Temple (Part 1)

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Juhu Beach is a gastronomic paradise of snacks like Bhelpuri, Chuski ice balls dipped in syrup, Pani Puri, Pao bhaji etc. On weekends people throng the beach and enjoy horse rides, dancing monkeys, acrobats, balloon sellers, toy sellers and many other types of beach amusement. You can even indulge in shopping by buying souvenirs made of sea shells and other trinkets.

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पवित्र गुफा से बालटाल वापसी (Part 5)

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अमर नाथ यात्रा पर जाने के दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से। । पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है लेकिन रास्ता लम्बा है और कुल दुरी 32 किलोमीटर है । बालटाल वाले रास्ते से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है लेकिन यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है।

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पवित्र गुफा और हिमलिंग दर्शन (Part 4)

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गुफा से बाहर निकलते ही मोह माया फिर से आपको जकड़ लेती है। मैं भी जैसे ही गुफा से बाहर आया तो मुझे भी अपने साथियों की याद आई. जाने वो कहाँ रह गए? यह सोचता हुआ और भोले नाथ से अगले वर्ष फिर बुलाने की प्रार्थना करता हुआ सीडियां उतरने लगा। जूताघर से से अपने जूते लिए । उस समय ठीक 2:30 बज रहे थे यानि की मैं किसी भी हिसाब से लेट नहीं था। नीचे उतर कर एक लंगर से बेसन का एक पुड़ा मीठी चटनी के साथ खाया और दूसरे से एक कटोरी खीर। तीसरे लंगर से गरम चाय पी और फिर से तरोताजा हो वापसी शुरू कर दी।

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बालटाल से पवित्र अमरनाथ गुफ़ा : श्रध्दा व श्रम का अनोखा संयोग (भाग 3)

बालटाल से पवित्र अमरनाथ गुफ़ा : श्रध्दा व श्रम का अनोखा संयोग (भाग 3)

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हम लोग सामान्य गति से चल रहे थे लेकिन धीरे -धीरे राजू और उसके परिवार की गति कम होने लगी. शुशील उनके साथ ही चल रहा था और मैं उनसे काफी आगे निकल आया था. दोमेल से 1.5 किलोमीटर आगे रेल पथरी नामक जगह पर दो भंडारे हैं। मैं वहांरुक कर उनकी प्रतीक्षा करने लगा और बीस मिनट बाद बाद वो भी पहुँच गए। चढ़ाई चढ़ते हुए लम्बा विश्राम करने से शरीर शिथिल हो जाता है और मुझे इससे परेशानी होती है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ और मुझे लगा की अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद शाम तक ही गुफा पर पहुँच पाउँगा। मैंने उनसे कहा मैं आगे जा रहा हूँ तुम थोड़ा आराम करने के बाद चल देना। अब मैं तुम्हे बरारी टॉप पर ही मिलूंगा और तुम्हारा 11 बजे तक इंतजार करूँगा। अगर आप इससे लेट पहुंचे तो समझ लेना कि मैं आगे चला गया हूँ। ऐसा कहकर मैंने दोबारा चढ़ाई शुरू कर दी।

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Amarnath Yatra – Jammu to Baltal base Camp

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जम्मू से आगे पुरे रास्ते में जगह-जगह अमरनाथ यात्रियों के लिए लंगर लगे हुए हैं। खाने-पीने की कोई समस्या नहीं। क्योंकि हम लोग नाश्ता करके नहीं आये थे और अब तक हमें काफी भूख लग गयी थी। हमने गाड़ी वाले से कहा की किसी लंगर पर गाड़ी रोक दो, नाश्ता करना है। ड्राइवर ने बटोट से थोड़ा आगे एक लंगर पर गाड़ी रोक दी। लंगर राजपुरा के पास का था। लंगर में डोसा, पानी पूरी, आइस क्रीम, कुल्फी, कोल्ड ड्रिंक, जलजीरा, दाल चावल, रोटी सब्ज़ी, पॉपकॉर्न, हलवा, खीर और गरमा गरम चाय सब कुछ मिल रहा था। जितना चाहे प्यार से खाओ पर झूठा बचाना सख्त मना है। खाओ मन भर, न छोडो कण भर। वहां ड्राइवर सहित सभी लोगों ने नाश्ता किया, गर्मागर्म चाय पी और पौने घंटे बाद ठीक 12 बजे दोबारा से यात्रा शुरू कर दी।

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अमरनाथ यात्रा 2014 (Amarnath Pilgrimage) – प्रथम भाग

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बात जुलाई 1998 की है। मैं इंजीनियरी करने के बाद बेकार था । हमारे शहर से एक बस अमरनाथ यात्रा पर जा रही थी। मेरे पिता जी उन दिनो बिमार थे और घर पर ही रहते थे। उन्होनें मुझसे कहा कि सारा दिन आवारा घुमता है, अमरनाथ यात्रा पर ही चला जा। मैं यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो गया। आने जाने और खाने-पीने का खर्च घर से मिल रहा था तो कौन मना क रता।

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जंतर मंतर / वेधशाला उज्जैन – (भाग 10)

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महाकाल के दर्शनो के बाद हम लोगों ने नाश्ता किया और नाश्ते के बाद हमने एक ऐसे ऑटो कि तलाश शुरू कि जो हमें जंतर मंतर , जिसे वेधशाला भी कहते हैं , ले जाए। हमारी गाडी का समय दोपहर का था और उसमे अभी काफी समय था इसलिए हम लोग जंतर मंतर घूमना चाहते थे । आज रंग पंचमी का दिन था और यहाँ काफी धूम धाम थी। जैसे हमारे उतर भारत में होली मनाई जाती है वैसे ही यहाँ रंग पंचमी। इसलिए ज्यादातर दुकाने बंद थी और जो खुली थी वो भी सिर्फ कुछ घंटो के लिए। आज रंग पंचमी होने के कारण ऑटो भी काफी कम थे। जो थे वो ज्यादा पैसे मांग रहे थे। आखिर कुछ मोलभाव के बाद एक ऑटोवाला हमें जंतर मंतर / वेधशाला होते हुए रेलवे स्टेशन जाने के लिए 150 रुपये में मान गया। हम ऑटो में सवार हो अपनी नयी मंजिल जंतर मंतर / वेधशाला की ओर चल दिए ।
ऑटो वाला हमें उज्जैन की कुछ सुनसान सडकों से घुमाता हुआ 15-20 मिनट में जंतर मंतर ले आया। सुनसान सडकों पर जाने का उसका उदेश्य केवल हमें व अपने नए ऑटो को रंग से बचाना था। हम उसे बाहर प्रतीक्षा करने को कह जंतर मंतर में प्रवेश कर गए। यह स्थान महाकालेश्वर से 3 किलोमीटर की दुरी पर चिंतामन रोड पर स्थित है जहाँ से रेलवे स्टेशन की दुरी मात्र 2 किलोमीटर है। यहाँ प्रति व्यक्ति 10 रूपये प्रवेश शुल्क है। जब हम वहाँ पहुंचे तो हमारे अलावा वहाँ कोई भी नहीं था। अंदर जाकर देखा तो एक व्यक्ति नजर आया जो वहाँ का केअर टेकर था । उसने आकर हमें टिकट दिए और छोटी सी फ़ीस पर खुद ही गाइड का काम करने लगा। उसने हर यंत्र के बारे में बताया जिसमे से हमें थोडा सा समझ आया बाकी सब कुछ सर के ऊपर से निकल गया। हमारे पहुँचने के थोड़ी देर बाद वहाँ कुछ लोग और आने लगे और वो केअर टेकर उनके साथ व्यस्त हो गया।

वेधशाला, उज्जैन:
उज्जैन शहर में दक्षिण की ओर क्षिप्रा के दाहिनी तरफ जयसिंहपुर नामक स्थान में बना यह प्रेक्षा गृह “जंतर महल’ के नाम से जाना जाता है। इसे जयपुर के महाराजा जयसिंह ने सन् 1733 ई. में बनवाया। उन दिनों वे मालवा के प्रशासन नियुक्त हुए थे। जैसा कि भारत के खगोलशास्री तथा भूगोलवेत्ता यह मानते आये हैं कि देशांतर रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है। अतः यहाँ के प्रेक्षागृह का भी विशेष महत्व रहा है।
यहाँ पांच यंत्र लगाये गये हैं — सम्राट यंत्र, नाडी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र एवं शंकु यंत्र है। इन यंत्रों का सन् 1925 में महाराजा माधवराव सिंधिया ने मरम्मत करवाया था।

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महाकालेश्वर दर्शन व पुन: दर्शन (भाग 9)

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महाकालेश्वर मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था।

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उज्जैन दर्शन: श्री सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और सान्दीपनि आश्रम (भाग 8)

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संदीपनी आश्रम परिसर में स्थित श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर में 6000 वर्ष पुराना शिवलिंग स्थापित है । ऐसा माना जाता है कि इसे महर्षिसंदीपनी ने बिल्व पत्र से उत्पन्न किया था। इस शिवलिंग की जलाधारी में पत्थर के शेषनाग के दर्शन होते हैं जो प्रायः पुरे भारत वर्ष मेंदुर्लभ है। अधिकांश मंदिरों में नंदी की मूर्ति बैठी हुई अवस्था में ही होती है। इस शिवलिंग के सामने, मंदिर के बाहर खड़े हुए नंदी की एक छोटी सी दुर्लभ मूर्ति है।

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उज्जैन दर्शन: गढ़कालिका मंदिर और श्री काल-भैरव मन्दिर (भाग 7)

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उज्जैन की केन्द्रीय जेल के सामने से होते हुए हम लोग श्रीकाल भैरव मन्दिर जा पहुँचे। मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। यहाँ कुछ श्रद्धालु प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की बोतलें भी खरीदते हैं। ऐसी ही एक दुकान पर हम परसाद लेने के लिए रुके तो दुकानदार हमसे मंदिर में भैरों बाबा को पिलाने के लिए मदिरा लेने की जिद्द करने लगा। यहाँ पर लगभग हर ब्रांड की शराब उपलब्ध थी लेकिन शराब का रेट काफी तेज था, लगभग दुगना।

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