नमस्कार दोस्तों,
लीजिये हाजिर हूँ इस बार की मेरी एक धार्मिक यात्रा का वृतांत लेकर जिसमे की महाराष्ट्र में स्थित 5 ज्योतिर्लिंगों में से 4 ज्योतिर्लिंग शामिल है , अच्छे लेखको वाले गुण की कमी होने के कारण बहुत हिम्मत जुटानी पड़ी घुमक्कड़ पर पोस्ट डालने के लिए फिर सोचा जैसा भी हो जो भी हो पोस्ट डाल ही देता हूँ क्या पता किसी को कुछ उपयोगी लग जाये मेरे पोस्ट में ।
मेरी यात्राओ में अधिकतर धार्मिक स्थल ही शामिल होते है और तकरीबन 8-9 महीनो में एक टूर मैं लगा ही लेता हूँ, जनवरी 15 में साउथ (तिरुपति, कन्याकुमारी एवं रामेश्वर,मदुराई ) और फिर नवंबर 15 में वेस्ट बेंगोल (कोलकाता) की यात्रा के बाद अब फिर से मन हो चला था कही घुमक्कड़ी करने का तो इस बार मन में महाराष्ट् घूमने का विचार आया, हमारे ग्रुप में अक्सर कम से कम दो फैमिली यानी की 6-7 लोग शामिल रहते है क्योंकि अकेले घूमने का शौक फितरत में नही है। फ़िलहाल बारमेर राजस्थान में जॉब कर रहा हूँ तो प्लान बनाया की जोधपुर जो की पास में ही है से ट्रेन लेकर सीधे मुम्बई पहुंचा जाये और फिर वहां से दूसरी फैमिली के साथ मिलकर आगे यात्रा की शुरुआत की जाये, तो जून 19 का टिकिट कन्फर्म हो गया मुम्बई जाने का, मुम्बई इसलिए की जो दूसरी फॅमिली थी वो लोग हमें मुम्बई में ही मिलने वाले थे जिनकी ट्रेन कोलकाता से मुम्बई की थी।
जोधपुर से दोपहर की ट्रेन पकड़ कर हम लोग पहुंचे मुम्बई बांद्रा स्टेशन 20 जून तकरीबन सुबह 10 बजे और वहां से लोकल ट्रेन से फिर हमे जाना था मुम्बई सी एस टी स्टेशन जहाँ हमारा इन्तजार अन्य लोग पहले से ही कर रहे थे। बांद्रा से सीधी लोकल ट्रेन पकड़ कर हम पहुंचे मुम्बई सी एस टी और वही से उसी शाम 9:15PM पे हमारी आगे परभणी के लिए ट्रेन थी। हमारे पास पूरा आधा दिन का समय था तो सोचा क्यों न मुम्बई के कुछ दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर लिया जाये। मुम्बई टूरिस्ट प्लेस घूमने के लिए स्टेसन के बाहर से काफी बसे भी चलती है जो सुबह से शाम तक चुनिंदा जगहों पर घुमाकर शाम को वही ड्राप कर देती है जिसका प्रति व्यक्ति किराया तकरीबन 150 से लेकर 250 तक है , और इसके अलावा प्राइवेट व्हीकल भी बुक कर सकते है|
हमने मुम्बई घूमने के लिए कैब बुक की जिसका चार्ज उसने 800 रुपए तय किया और इसमें उसने हमें हमारे कहे अनुसार मुम्बा देवी , महालक्ष्मी मन्दिर , बाबुलनाथ मंदिर , हाजी अली दरगाह , सिद्धि विनायक गणेश , और जुहू बिच घुमाया, इन सभी जगहों के बारे में हमें घुमक्कड़ वेबसाइट से मुकेश भालसे जी की पोस्ट से मालूम चला था , और फिर कई सेलिब्रिटीज के घरो को दिखाते हुए जिनमे की अमिताभ जी , शत्रुधन सिन्हा, अम्बानी , आशा भोंसले, और कई अन्य शामिल थे अंत में उसने अँधेरी लोकल रेलवे स्टेशन ड्राप किया, जहाँ से हमें मुम्बई सी एस टी स्टेशन आना था अपने अगले पड़ाव के लिए।

श्री महालक्ष्मी मन्दिर मुंबई दर्शन हेतु लगी भीड़ की कतार

मुंबई जुहू बिच

जुहू बिच पर उमड़ी भीड़
करीब 7:30pm का समय था और मुम्बई में ठीक हमारे घूम फिरने के बाद बारिश शुरू हो गयी थी। मुम्बई घूमने के बाद फिर हमें जाना था परभणी के लिए जहाँ से औंधा नागनाथ और परली वाजिनाथ महादेव के दर्शनों के लिए जाना था।
इन सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानकारी हमने घुमक्कड़ से ही ली थी। ट्रेन ने हमें करीबन सुबह 7:30 पर परभणी स्टेशन उतारा और वहां से फिर हमें बस द्वारा पहले औंधा नागनाथ जी के दर्शनों के लिए जाना था, परभणी बस स्टैंड बिलकुल रेलवे स्टेशन के पास ही है और महज 5 मिनिट का रास्ता है, वहां जैसे ही पहुंचे रास्ते में ही हमें हिंगोली जाने वाली बस मिल गयी जोकि औंधा नागनाथ होते हुए ही हिंगोली तक जाती है, करीबन 1 घण्टे 30 मिनिट में बस ने हमें मन्दिर के सामने उतार दिया, महाराष्ट्र परिवहन की बसों के बारे में एक बात कहना पड़ेगी की ये बसे तीव्र गति से चलती है और अधिक समय न लेते हुए जल्दी ही अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंचा देती है, परभणी से औंधा नागनाथ का किराया करीबन 50 रुपए प्रति व्यक्ति है।

ओंधा नागनाथ मन्दिर

ओंधा नागनाथ मन्दिर द्वार
औंधा नागनाथ में हमें सिर्फ दर्शन ही करने थे इसलिए हमने वहां धर्मशाला इत्यादि के बारे में पूछताछ नहीं की परन्तु ये है की यदि कोई स्नान इत्यादि करना चाहे तो वहां धर्मशाला आदि उपलब्ध है। उस दिन सोमवार था तो थोड़ी भीड़ हमें मंदिर में दिखी परन्तु फिर भी 30 मिनिट में दर्शन हमें हो गए। गर्भगृह में दर्शन के लिए जाने हेतु मन्दिर में प्रवेश का एक संकरा सा रास्ता है जिसमे से एक समय में एक व्यक्ति अंदर जा पाता है और उसी समय अंदर से व्यक्ति उसी रस्ते बाहर आ पाता है, परन्तु ऐसा भी नही है की आने जाने में किसी भी प्रकार की कोई असुविधा होती हो , हाँ सावधानी जरुरी है।

ओंधा नागनाथ मन्दिर का रास्ता
औंधा नागनाथ भगवान के दर्शन पश्चात हमने पता किया की क्या कोई बस यहाँ से डायरेक्ट परली वजिनाथ के लिए है तो पता चला की एक बस 11 बजे यहाँ से सीधी परली जाती है और दूसरी 2 बजे है, अन्यथा फिर परली जाने के लिए पहले परभणी जाना होता है और फिर वहां से परली जाने के बहुत साधन है। हमें सीधी बस मिल गयी थी और परली हमें बस ने करीब 3 घण्टे में पहुंचा दिया।
परली बैद्यनाथ मन्दिर बस स्टैंड से करीबन 2km होगा और ऑटो मात्र 10 मिनिट में मन्दिर पहुंचा देता है। परली बैद्यनाथ में रुकने हेतु कई धर्मशालाए और मन्दिर की खुद की ट्रस्ट की धर्मशाला भी है। परली से हमारी ट्रेन रात 11:30 बजे की थी तो सोचा यही कही स्टेशन के आसपास रूम ले लिया जाये ताकि रात्रि में स्टेशन आसानी से पहुंच सके। खैर, जब रूम के लिए पता करने निकले तो पता चला की आसपास तो रूम बहुत महंगे है और सिर्फ 6-7 घण्टे रुकने के लिए 800-1000 रुपए देने होंगे तो मन नही माना लेने को, फिर मन बनाया की चलो मन्दिर के आसपास ही कही धर्मशाला में रुकते है वही दर्शन कर थोडा जल्दी स्टेशन के लिए निकल लेंगे। मन्दिर के लिए ऑटो किया और जैसे ही वहां पहुंचे हल्की बारिश ने फिर हमारा स्वागत किया।
धर्मशाला में रूम का पता किया तो कोई 700 कोई 500 मांग रहा था, हालांकि वहां मन्दिर ट्रस्ट का धर्मशाला भी है वो मन्दिर के पीछे की और है और किसी पण्डित ने बताया की वहां सिर्फ 100 रुपए ही रुकने का किराया है, उन्ही पण्डित जी से हमने अभिषेक करवाने के लिए बात की तो वो भी हमारे साथ हो लिए की चलिए पहले आपको रूम की व्यवस्था करवाता हूँ फिर आराम से अभिषेक और पूजा के लिए चलना क्योंकि सोमवार होने की वजह से बाबा का पूजा अभिषेक 7 बजे तक करने की इजाजत मन्दिर प्रबन्धन देता है, पंडित जी के साथ धर्मशाला पहुंचे तो पता चला दरबान सोया हुआ है और काफी आवाज देने पर भी वह उठा नही सोता ही रहा बेचारे पंडित जी ने उसे काफी आवाजे लगायी पर खिड़की में से दीखते हुए वह ऐसा लग लग रहा था जैसे की रूम देने का उसका कतई मूड नही है और मानो सोने की एक्टिंग कर रहा हो,खैर रूम तो लेना ही था सो कैसे तैसे बारगेनिंग करके पहले देखे हुए धर्मशाला में ही 300 में हमने एक रूम बुक कर लिया।
मैं थोडा बजट कॉन्शियस तो हूँ ही साथ ही फिजूल खर्ची में थोडा कम यकीन करता हूँ और ये बात इसलिए बता रहा हूँ ताकि यदि कोई परली बैद्यनाथ दर्शन को जाये तो उसे इस बात का पता रहे की वहां कोई खास मैनेजमेंट ट्रस्ट की धर्मशालाओ में नही है, जिससे जो मर्जी मांग लिया मांग लिया और रूम दिया तो दिया वरना नही दिया।खैर, हमको कौनसी रात गुजारनी थी थोडा विश्राम कर दर्शनों के लिए मन्दिर में गए दर्शन किये ,यहाँ परली में शिवलिंग को पूरा चांदी के खोल से कवर किया हुआ है और यही औंधा नागनाथ मंदिर में भी हमें देखने को मिला।
परली बैद्यनाथ के मन्दिर के बारे में एक बात बताना चाहूँगा की इस मन्दिर में शांति बहुत है , मन एकदम प्रशन्नचीत हो जाता है, शाम के समय मन्दिर के बाहर का वातावरण भी बहुत अच्छा हो जाता है, और वहां से वापिस जाने का मन ही नहीं करता।पंडित जी ने बताया की मन्दिर संस्था की और से शाम को रुकने वालो को प्रशाद की व्यवस्था भी यहाँ है और इसके लिए टोकन लेना होता है जो मन्दिर के अंदर ही ऑफिस में मिलता है, टोकन लेकर यथा शक्ति रशीद भी कटवाई जा सकती है। हमारी ट्रेन चूँकि मध्यरात्री में थी तो सोचा क्यों न प्रशाद पा लिया जाये क्योंकि प्रशाद वितरण करीबन 8:30-9:00 के बीच में होता है और टोकन देते वक्त कार्यकर्ता ये बात आपको बता भी देता है, पंडितजी ने तो यहाँ तक कहा था की टोकन ट्रेन का टिकेट और यात्रियों की संख्या देख कर दिया जाता है परन्तु ऐसा हमारे साथ नही हुआ था।
खैर, जब प्रशाद वितरण का समय हुआ तो टोकन देकर हमने प्रशाद पाया, ज्यादा भीड़ नही थी और मोस्टली वहां के कार्यकर्ता और मन्दिर में काम करने वाले लोग ही वहां मौजूद थे। पंडितजी ने आरती की फिर भोग लगाया और फिर सबको प्रशाद सर्व किया, हमने प्रशाद ग्रहण किया और यकीन मानिये लाजवाब प्रशाद रूपी भोजन हमने पाया।

परली वाजीनाथ मन्दिर के बाहर का मार्केट
बैद्यनाथ महादेव में भी औंधा नागनाथ जी के जैसे लिंग को चांदी के एक खोल जैसे कवर से ढक कर रखा जाता है, परन्तु हमने लाइव टीवी से देखा की पुजारी ने पूरा चांदी का खोल हटाकर भगवान की सफाई की फिर करीबन 1 घण्टे तक पूरा मन्दिर और शिवलिंग धोकर उसने बड़ी शिद्दत से सफाई की, हमारे पूछने पर एक कार्यकर्ता ने बताया की यहाँ रोज इसी समय ऐसे ही भगवान की सफाई की जाती है और इस समय चांदी का खोल हटाया जाता है और इस समय किसी को भी गर्भगृह में आने की इजाजत नही होती। खैर, दर्शन कर हम धन्य हुए और थोडा समय वहां रुक कर हम निकले रेलवे स्टेशन की और जहाँ से ट्रेन पकड़ कर हमें जाना था अपने अगले गन्तव्य घृष्णेश्वर ज्योत्रलिंग की और।

परली वजिनाथ मन्दिर प्रवेश द्वार
परली से ओरंगाबाद के लिए हमारी ट्रेन रात 11:30 की थी और ट्रेन ने हमें सुबह जल्दी 5 बजे औरंगाबाद उतारा, वहां उतर कर सबसे पहले हमें स्नान आदि कर दर्शनों के लिए जाना था , हमें औरंगाबाद में रुकना नहीं था इसलिए नहाने के लिए होटल का कमरा न देख कर हमने प्लेटफॉर्म पर ही वेटिंग रूम में ही स्नान करने का फैसला किया। अन्य रेलवे स्टेशनों की जगह औरंगाबाद में भी वेटिंग रूम है परन्तु बिलकुल साफ सुथरा और काफी बड़ा , नहाने की सुविधा भी बेहतरीन है मात्र 25 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से ये सुविधा का लुफ्त आप उठा सकते है और आराम से फव्वारे के निचे नहा सकते है, जी हां बिलकुल सही सुविधा है ये यहाँ पे। नहाने के बाद हमारी ड्यूटी घृष्णेश्वर जाने का साधन ढूंढने की थी तो हालांकि इसके लिए ऑटो बस और प्राइवेट साधन उपलब्ध है परन्तु लगेज की अधिकता की वजह से हमने अपना निजि वाहन बुक करने की सोची।
700 रुपए में घृष्णेश्वर और अन्य आसपास के साइट सीन जिनमे की औरंगाबाद के दर्शनीय स्थल भी शामिल थे जैसे की भद्र मारुती मन्दिर, दौलताबाद किला, ओरंगजेब की मजार, पण चक्की इत्यादि, एलोरा की गुफाएं उस दिन बन्द थी क्योंकि उस दिन मंगलवार था और मंगलवार को एलोरा बंद होता है। घृष्णेश्वर दर्शन के लिए निकलने पर सबसे पहले आता है दौलताबाद का किला जिसका टिकेट भी लगता है 15 रुपए का, परन्तु इस किले में चढ़ाई होने के कारन हमारे दल के बुजुर्ग लोगो ने तो साफ मना कर दिया की हमें तो नहीं देखना किला और फिर किले को देखकर आने जाने में कम से कम 3 घण्टे तो लगते है तो निचे से ही फ़ोटो सैसैन करके हमने आगे की और प्रस्थान किया।
हमारा अगला पॉइंट घृष्णेश्वर महादेव ही थे । इस मन्दिर के बारे में कहना चाहूँगा की प्राचीन मन्दिर है और इसमें उतना भीड़ भी देखने को नही मिला। आराम से अभिषेक भी पंडित लोग करने देते है बिना किसी रोक टोक के बस एक शर्त ये की पुरुष को अपनी कमीज या शर्ट उतारने के बाद ही मन्दिर में प्रवेश करने दिया जाता है। घृष्णेश्वर महादेव के आसानी से और सुगमता से दर्शन उपरांत हम लोग चले वापिस औरंगाबाद की और, रास्ते में भद्र मारुती हनुमान जी के दर्शन करते हुए जो की खुलताबाद में है।
उसके बाद हमारा गाड़ीवाला हमें ले गया ओरंगजेब की कब्र पे, रोड से ही वह दरगाह दिखती है सो वही दूर से ही देखी और कहा की भैया आगे ले चलो दूसरे पॉइंट पे, उसके बाद हम गए बीवी का मकबरा की और जिसे लोग ताजमहल की कॉपी भी कहते है, यहाँ भी 15 रुपए का टिकिट लगता है, जिज्ञासावस हमने भी टिकेट ले लिया सोचा लोग कहते है ताजमहल तो सिर्फ एक ही है इंडिया में फिर इसकी कॉपी भी आज देख ही लेते है। बीवी के मकबरे के बारे में कही पे पढ़ा था की इसको बनाने में पैसे की लागत कम लगवायी थी ओरंगजेब ने तो इसे देखकर वो बात साफ भी हो जाती है क्योंकि इसमें इस्तेमाल किया हुआ मेटेरियल और पत्थर उस क्वालिटी के नही है जो ताजमहल में लगाये गए है, वैसे भी किसी ने सही तो कहा है की “जितनी चीनी डालोगे उतना ही मीठा होगा” तो वही बात यहाँ साबित हो जाती है |
कुछ देर बीवी का मकबरा देखने के बाद हम निकले पनचक्की के लिए पर पहुँचने पर निराशा ही हाथ लगी क्योंकि अब कुछ भी नहीं पनचक्की में देखने के लिए पानी तक सुख चूका है।

दौलताबाद किला इतिहास

घ्रिश्नेश्वर महादेव मन्दिर प्रवेश द्वार

भद्र मारुती मन्दिर खुलताबाद

बीवी का मकबरा उर्फ़ मिनी ताजमहल

सेल्फी
ओरंगाबाद की सभी जगहों पर घुमने के बाद ऑटो ने हमें बस स्टेंड ड्राप कर दिया जहा से हमें जाना था अपने अगले पड़ाव “श्री शनि शिगनापुर” की और तो शनि शिगनापुर का दर्शन अगली कड़ी में लेकर जल्द ही हाजिर होता हूँ …….
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Wha MAJJA aagaya …aap ke aur hamare vichar milte hai..Join me in FB Suraj L Mishra
I have similar thoughts as Arun. Kudos to your spirit.
Thanks travelling alone with my son. Pray to mahadev darshan.