नन्हे शिवम की ओंकार परिक्रमा………..

साथियों,

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैने आप लोगों को हमारे ओंकारेश्वर टूर के बारे में बताया था, करीब सात बजे हम लोग अपनी शेवरोले स्पार्क से ओंकारेश्वर पहुंच गये। हमेशा की तरह इस बार भी हम लोग श्री गजानन महाराज संस्थान में ही रुके, कुछ देर आराम करने के बाद हमने संस्थान के भोजनालय में स्वादिष्ट खाना खाया और निकल पड़े भगवान ओंकार की शयन आरती में शामिल होने के लिये। शयन आरती से आने के बाद हम अपने कमरे में आकर लेट गये।

ओंकारेश्वर - सुर्योदय से पहले

ओंकारेश्वर – सुर्योदय से पहले

हम लोग साल में कम से कम दो बार तो ओंकारेश्वर जाते ही हैं, लेकिन अब तक हमने कभी ओंकार पर्वत की परिक्रमा के बारे में नहीं सोचा था, बस हमेशा से सुनते आ रहे थे की यह परिक्रमा बहुत फ़लदायी होती है तथा ओंकारेश्वर दर्शन के लिये पधारे सभी भक्तों को इस परिक्रमा का लाभ उठाना ही चाहिये, पर इस बार मैं घर से सोच कर ही आई थी की इस बार कैसे भी यह परिक्रमा करनी ही है। अब तक हम लोग बच्चों की वजह से परिक्रमा के बारे में सोच ही नहीं पाए थे.

हमारी गुड़िया तो बड़ी है लेकिन शिवम अभी छोटा है अत: हमें यही डर था की शिवम सात किलोमीटर की यह परिक्रमा पैदल कर पायेगा की नहीं। मैनें रात को सोने से पहले शिवम से पुछा की हम लोग सुबह जल्दी जागकर पैदल परिक्रमा करने जायेंगे, तुम हमारे साथ चल पाओगे? चुंकि उसे रास्ते की लंबाई का एह्सास नहीं था अत: उसने बड़े उत्साह से हामी भर दी।

अन्तत: मुकेश ने तथा मैनें भी यह निर्णय ले ही लिया कि शिवम अगर पैदल नहीं भी चल पाया तो धीरे धीरे कैसे भी करके उसे गोद में उठा कर परिक्रमा पुरी करेंगे, जब निर्णय हो गया तो सुबह पाँच बजे का अलार्म भर कर हम सो गये, क्योंकि ७-८ किलोमीटर पैदल चलना था अत: सुबह सुबह ठंडे मौसम में परिक्रमा हो जाये तो ठीक रहेगा वर्ना दोपहर में गर्मी, थकान और प्यास से बुरा हाल हो जाता।

सुबह अलार्म बजते ही मुकेश जी उठ खड़े हुए और बच्चों को जगाने का प्रयास करने लगे। ठंड के मौसम में बच्चों को जगाना वैसे ही मुश्किल होता है, फिर वो भी सुबह ५ बजे ………सचमुच बड़ी टेढी खीर थी लेकिन आखीर हो ही गया।

फ़टाफ़ट तैय़ार होकर हम सब निकल पड़े, पहले हम भगवान ओंकारेश्वर के मन्दिर में पहुंचे, सुबह सुबह भीड़ बिल्कुल भी नहीं थी अत: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बहुत अच्छे से दर्शन हुए, दर्शन के बाद करीब साढे छ: बजे हम लोग परिक्रमा मार्ग की ओर चल दिये, थोड़ा पैदल चलकर अब हम नर्मदा के किनारे स्थित परिक्रमा मार्ग के प्रवेश द्वार पर पहुंच गये जहां से ओंकार पर्वत की परिक्रमा प्रारंभ होती है।

यहां से शुरु होता है परिक्रमा मार्ग

यहां से शुरु होता है परिक्रमा मार्ग

ओंकार पर्वत परिक्रमा के बारे में:
वस्तुत:ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर एक पर्वत की तलहटी पर स्थित है, इस पर्वत को ओंकार पर्वत कहा जाता है, यह पर्वत नर्मदा नदी के बीच में एक द्विप (टापु) के रुप में विद्यमान है तथा “ॐ” आकार का है इसीलिये इसे ओंकार पर्वत तथा मन्दिर को ओंकारेश्वर मन्दिर कहा जाता है। सदियों से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के साथ ही ओंकार पर्वत की परिक्रमा का भी बहुत महत्व बताया जाता है, कहा जाता है की ओंकार परिक्रमा के बिना ओंकारेश्वर यात्रा अधुरी होती है। यह परिक्रमा मार्ग लगभग आठ किलोमिटर लंबा है तथा इसे भक्तजनों को पैदल ही पूरा करना होता है, इसे पूरा करने में सामान्यत: तीन घन्टे लगते हैं। परिक्रमा मार्ग में स्थित कई प्राचिन मन्दिर इस बात के गवाह हैं कि इस परिक्रमा का ईतिहास भी उतना ही पुराना है जितना कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का।

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परिक्रमा मार्ग प्रारंभ होने के कुछ ही देर बाद रास्ते में आता है यह सुंदर मंदिर

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परिक्रमा मार्ग से दिखाई देता नर्मदा किनारे एक मंदिर

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परिक्रमा मार्ग से मां नर्मदा के दर्शन

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तैयार हैं हम…….

आइये पुन:चलते हैं हमारे यात्रा वर्णन की ओर:
ठीक सात बजे हमारी यह परिक्रमा यात्रा प्रारंभ हुई, इस समय पूरी तरह से सुर्योदय भी नहीं हुआ था और हल्का सा अन्धेरा विद्यमान था अत: ठंड भी बहुत लग रही थी, थोड़ा ठिठुरते, थोड़ा सिहरते लेकिन उमंग, उत्साह और जोश से भरे हम चारों चलते ही जा रहे थे। हमारे परिवार के अलावा इस समय परिक्रमा पथ पर भोपाल से आया कौलेज के स्टुडेन्ट्स का एक ग्रुप भी था।

हम दोनों को शिवम की चिन्ता हो रही थी कि पता नहीं कब गोद में लेने की जिद करने लगे, लेकिन शिवम को तो जैसे भोले बाबा ने पंख लगा दिये थे वह तो बिना थके बिना हम लोगों की परवाह किये अपनी मस्ती में मस्त पुरे जोश के साथ कभी चल रहा था तो कभी दौड़ लगा कर बस चले ही जा रहा था।

हम तीनों में भी उत्साह और उमंग की कोई कमी नहीं थी, कई सालों के बाद आज हमारा इस परिक्रमा का सपना पुरा होने जा रहा था। सुबह का सुहावना मौसम और यात्रा मार्ग का नैसर्गीक सौंदर्य, बीच बीच में दिखाई देती सुंदर, पावन और निश्छल मां नर्मदा ………..सबकुछ बिल्कुल एक सुन्दर स्वप्न की तरह लग रहा था। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था, ठंड कम होती जा रही थी और सुर्य की कोमल किरणें वातावरण में गर्माहट का विस्तार कर रहीं थीं।

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पुरे परिक्रमा मार्ग पर शिलालेखों के रुप में मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग की ओर से गीता के श्लोक उकेरे गये हैं.

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नन्हे शिवम ने सात किलोमिटर की यह परिक्रमा पैदल चलकर पुरी की

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परिक्रमा के दौरान प्रसन्नचीत्त मुद्रा में शिवम

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है ना लुभावना द्रश्य ??

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ॐ नम: शिवाय

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शिव और शिवम

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परिक्रमा मार्ग में एक सुन्दर झांकी

यात्रा मार्ग के बीच में एक से एक सुन्दर छोटे, बड़े मन्दिर आ रहे थे कुछ प्राचिन, कुछ नवनिर्मित, हम हर एक मन्दिर के दर्शन बड़े ही मनोयोग से करते हुए अपनी राह पर आगे बढते चले जा रहे थे। एक जगह तो भगवान शिव की एक अति विशाल मुर्ति थी जिसे हम वर्षों से लेकिन दुर से देखते चले आ रहे थे लेकिन आज उस मुर्ति को करीब से देखने का सौभाग्य मिला था, इस मुर्ति के निचे एक सुन्दर सा मन्दिर था जिसके दर्शन करके हम आगे बढे।

कौलेज के उन बच्चों के ग्रुप और हमारे बीच एक अन्जानी सी प्रतियोगीता स्थापित हो गई थी, कभी वे हमसे आगे निकल जाते तो कभी हम उनसे. अब तक हम इस परिक्रमा मार्ग का आधा हिस्सा तय कर चुके थे, लेकिन शिवम ने एक बार भी गोद में उठाने के लिये जिद नहीं की, वह अब भी उसी उत्साह के साथ चले जा रहा था, उसके चेहरे पर थकान का लेश मात्र भी संकेत नहीं था, यह बात हमारे लिए किसी आश्चर्यजनक घटना से कम नहीं थी।

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वानर परिवार

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प्राचीन गौरी सोमनाथ मंदिर

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गौरी सोमनाथ मंदिर में स्थित विशाल शिवलिंग

रास्ते में किसी मन्दिर के सामने प्रसाद के रुप में चावल की गर्मागर्म खिचडी मिल रही थी, मुकेश तथा दोनों बच्चों ने बड़े चाव एक एक दोने में खिचड़ी खाई, मेरा व्रत होने कि वजह से मैं नहीं खा पाई, पास में स्थित प्याऊ से पानी पीकर हम फिर चल पड़े अपनी राह पर। अब हम लोग इस परिक्रमा का लगभग अस्सी प्रतिशत हिस्सा पुरा कर चुके थे, शिवम अब भी थका नहीं था और हम अब और भी आश्चर्यचकित थे। पुरे रास्ते में कुछ छोटी बड़ी खाने, पीने की दुकानों के अलावा अन्य सामानों की दुकानें भी मिलती रहीं।

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वानर भोजनालय

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एक मंदिर का प्रवेश द्वार

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शिव कि अति विशाल प्रतिमा

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थक गये हैं, थोड़ा विश्राम हो जाये………

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एक प्राचिन शिव मंदिर के भग्नावेश

मुकेश जी ने एक स्थानिय व्यक्ति से पुछा कि अब और कितना रास्ता बाकि है तो उसने बताया कि बस अब कुछ एक डेढ किलोमिटर ही बचा है, सुनकर हमारी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, हमारी मंज़िल अब हमसे कुछ ही मिनट दुर थी, और शिवम ने अब तक उठाने के लिये एक बार भी नहीं कहा था।
अन्त में एक मन्दिर (नर्मदेश्वर महादेव मन्दिर) आया और उसके बाद हमारे सामने थीं कलकल करती मां नर्मदा यानी इसका मतलब था की परिक्रमा यात्रा का अन्तिम छोर हमारे सामने था, यानी हमने यह परिक्रमा यात्रा पुरी कर ली थी.

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ओंकार पर्वत परिक्रमा मार्ग से दिखाई देती नर्मदा एवं ओंकारेश्वर

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लगभग समाप्त होता परिक्रमा मार्ग एवं ओम्कारेश्वर का मोहक द्रश्य

“आप सोच सकते हैं छ: साल का वह बच्चा जो पाँच मिनट से ज्यादा पैदल चलना पसन्द नहीं करता, आज पुरे सात-आठ किलोमिटर के उबड़ खाबड़, पथरीले और पहाड़ी रास्ते पर तीन घंटे लगातार पैदल चलता रहा और एक बार भी गोद में उठाने की जिद नहीं की ?? हमारे लिये तो यह घटना किसी आश्चर्य से कम नहीं”।

तो इस तरह से हमारी यह ओंकार परिक्रमा पुर्ण हुई, बिना किसी रुकावट या अवरोध के खुशी खुशी उत्साह, जोश और उमंग के साथ.

अब परिक्रमा के बाद मेरी इच्छा हुइ कि नर्मदा के त्रिवेणी घाट पर जा कर नर्मदा के जल से स्नान किया जाये अत: एक नाविक से बात करके १५० रु. में हम त्रिवेणी संगम पर पहुंच गये, चुंकि हम सुबह यात्रा पर स्नान करके ही निकले थे और नर्मदा क पानी बहुत ठन्डा भी था अत: यहां मुंह हाथ धोकर शरीर पर जल छिंटे मारकर पवित्रम पवित्रम कर लिया और वपस नाव में बैठकर ममलेश्वर मन्दिर वाले किनारे पर पहुंच गये.

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परिक्रमा मार्ग का अन्तिम छोर……..हुर्रे…हमारी परिक्रमा पुरी हुई

ममलेश्वर मन्दिर में ओंकारेश्वर मन्दिर की तुलना में भीड़ बहुत कम होती है तथा यहां ज्योतिर्लिंग का स्पर्श तथा अभिषेक भी किया जा सकता है जबकी ओंकारेश्वर मन्दिर में ज्योतिर्लिंग का दिन ब दिन क्षरण होने की वजह से उस पर अब कांच का आवरण चढा दिया गया है। ममलेश्वर मन्दिर में हमने शान्ति से बैठकर अभिषेक तथा रुद्राष्टकम का पाठ किया तथा कुछ समय बिताने के बाद मन्दिर से बाहर आ गये.

पिछले कुछ दिनों से एक टी.वी. चेनल पर लगातार दिखाया जा रहा था की ओंकारेश्वर में एक पत्थर के करीब से अपने आप ही एक तेज धार के रुप में लगातार पानी निकल रहा है, कहां से और कैसे यह किसी को नहीं मलूम था। अचानक मुझे उस चैनल की वह न्युज याद आ गई अत: हमने एक स्थानिय दुकानदार से इस बारे में पुछा तो उसने हमें इशारे से वह जगह बता दी, और जब हम उस प्राक्रतिक पानी के स्त्रोत के करीब पहुंचे तो हमारे आश्चर्य का ठीकाना ही नहीं रहा सचमुच यह एक अद्भूत नज़ारा था. अब लोगों ने वहां पर एक गोमुख बना दिया है तथा जलधारा के निचे एक शिवलिंग स्थापित कर दिया है, चौबिसों घंटे चारों पहर इस शिवलिंग पर प्राक्रतिक जलधारा से शिव का अभिषेक होता रह्ता है.

आप भी इस चमत्कार के दर्शन कर लिजिये.

भोले का चमत्कार - इस पानी के स्त्रोत का कोई अता पता नहीं है.......

भोले का चमत्कार – इस पानी के स्त्रोत का कोई अता पता नहीं है…….

ओंकारेश्वर से कुछ दस किलोमीटर आगे रास्ते में शिवकोठी नामक एक स्थान है जहां पर ॐ नम: शिवाय मिशन नामक एक आश्रम है, जिसकी देख रेख स्वामी शिवोहम भारती करते हैं, यहां पर मिशन के द्वारा एक नम: शिवाय मन्त्र बैंक सन्चालित की जाती है इस बैंक में श्रद्धालु अपने घर पर    मन्त्र लेखन पुस्तिकाओं में ॐ नम: शिवाय मन्त्र क लेखन करके यहां जमा कराते हैं, यह भी एक तरह की भक्ति ही है और मैं भी इस मिशन तथा मन्त्र बैंक की सदस्य हुं। यहां स्थित शिव मन्दिर में पिछ्ले १५ वर्षों से अनवरत ॐ नम: शिवाय धुन लगातार कुछ भक्तों लोगों के द्वारा गाई जा रही है जिसका क्रम कभी भी नहीं टूटता है।

श्री नम: शिवाय मिशन शिवकोठी - ओंकारेश्वर

श्री नम: शिवाय मिशन शिवकोठी – ओंकारेश्वर

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हम लोग जब भी ओंकारेश्वर आते हैं तो यहां कुछ देर के लिये जरूर रुकते हैं, यहां पर सभी के लिये नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था रहती है। कुछ देर यहां बिताने के बाद हमने अपने घर की ओर रुख किया।

आज के लिये बस इतना ही, इस श्रंखला की अगली कड़ी के रूप में जल्द ही मैं आपलोगों को रुबरू कराउंगी ओंकारेश्वर में ठहरने के सर्वोत्तम साधन के रूप में प्रसिद्ध श्री गजानन महाराज संस्थान से………..तब तक के लिये बाय.

12 Comments

  • Saurabh Gupta says:

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  • Anupam Mazumdar says:

    Nicely composed, nice photos, lots of information, thanks for sharing.

    Regards
    Anupam Mazumdar

  • vandana paranjape says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • Nandan Jha says:

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    • Kavita Bhalse says:

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  • SilentSoul says:

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    sorry for delayed response.

  • Ritesh Gupta says:

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  • mukund says:

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  • ashok rai says:

    Nice post very very thankyou for information mujhe bhi Jana hai sawan me 2016 kripya rasta bataye Varanasi s hoon lokesan de please how can I reach there bus or train. Please

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