पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ गà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¤° यातà¥à¤°à¤¾- चौथा दिन (दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€-पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€-दà¥à¤µà¤¾à¤²à¥€)
हिमालय की ऊंचाईयों पर à¤à¤• खास बात है कि दोपहर बाद बादल आने लगते हैं। ये बादल कहीं बंगाल की खाडी या अरब सागर से नहीं आते बलà¥à¤•ि यही बनते हैं। होता यह है कि जैसे ही सà¥à¤¬à¤¹ होती है तो मौसम बिलà¥à¤•à¥à¤² साफ-सà¥à¤¥à¤°à¤¾ होता है। जैसे जैसे दिन चढता है, वातावरण में गरà¥à¤®à¥€ बढती है तो हवा à¤à¥€ चलने लगती है। बस यही गडबड हो जाती है। हवा चलती है तो परà¥à¤µà¤¤ इसे मनचाही दिशा में नहीं चलने देते बलà¥à¤•ि नदी घाटियों में धकेल देते हैं जहां से हवा नदियों के साथ धीरे धीरे ऊपर चढती जाती है। जितनी ऊपर चढेगी, उतनी ही ठणà¥à¤¡à¥€ होगी और आखिरकार संघनित होकर धà¥à¤‚ध का रूप ले लेती है और बादल बन जाती है। बादल बनते बनते दोपहर हो जाती है।
Read More